जानिए मोक्षदा एकादशी की कथा, पूजन विधि आदि सब कुछ विस्तार से, क्या मोक्षदा एकादशी ही गीता जयंति है!

मोक्षदा एकादशी का व्रत कब रखना उचित होगा, 11 या 12 दिसंबर को!
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सनातन हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। इस साल मोक्षदा एकादशी 11 या 12 दिसंबर कब पड़ेगी इसको लेकर संशय व्याप्त दिख रहा है। आगे हम आपको बताएंगे कि मोक्षदा एकादशी का व्रत कब रखना उचित होगा,
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
जानकार विद्वानों के अनुसार पदम पुराण में भगवान श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर से कहते हैं इस दिन तुलसी की मंजरी, धूप दीप आदि से भगवान दामोदर का पूजन करना चाहिए। मोक्षदा एकादशी बडे बडे पातकों का नाश करने वाली है। इस दिन उपवास रखकर श्रीहरि के नाम का संकीर्तन, भक्तिगीत, नृत्य करते हुए रात्रि में जागरण करना चाहिए।
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जानकार विद्वानों ने बताया कि इस तरह की एक कथा मिलती है कि वैखानस नामक राजा ने पर्वत मुनि के द्वारा बताए जाने पर अपने पितरों की मुक्ति के उद्देश्य से इस एकादशी का सविधि व्रत किया था। इस व्रत के पुण्य प्रताप से राजा वैखानस के पितरों का नरक से उद्धार हो गया। जो इस कल्याणमयी मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। प्राणियों को भवबंधन से मुक्ति देने वाली यह एकादशी चिन्तामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली है। मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा पढने सुनने से वाजपेय यज्ञ का पुण्य फल मिलता है।
मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन ही कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद भगवदगीता का उपदेश दिया था। अतः यह तिथि गीता जयंती के नाम से विख्यात हो गई। इस दिन से गीता पाठ का अनुष्ठान प्रारंभ करें तथा प्रतिदिन थोडी देर गीता अवश्य पढें। गीता रूपी सूर्य के प्रकाश से अज्ञान रूपी अंधकार नष्ट हो जाएगा।
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है। मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ भगवान श्री कृष्ण जी की पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। एकादशी के दिन नियम संयम का पालन किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन कुछ नियमों का पालन करने से भगवान विष्णु के साथ भगवान श्रीकृष्ण का आशीष प्राप्त होता है।
मोक्षदा एकादशी पूजन मुहूर्त जानिए,
विद्वान जानकारों के अनुसार बुधवार 11 दिसंबर को मोक्षदा एकादशी का व्रत करना उचित होगा, इस दिन ब्रम्हा मुहूर्त सुबह 5 बजकर 14 मिनिट से 6 बजकर 9 मिनिट तक, विजय महूर्त दोपहर 1 बजकर 57 मिनिट से 2 बजकर 39 मिनिट तक, अमृत काल सुबह 9 बजकर 34 मिनिट से 11 बजकर 3 मिनिट तक एवं रवि योग सुबह 7 बजकर 3 मिनिट से 11 बजकर 48 मिनिट तक रहेगा।
मोक्षदा एकादशी के दिन भद्रा का साया मोक्षदा एकादशी के दिन भद्रा का साया रहने वाला है। इस दिन भद्रा दोपहर 2 बजकर 27 मिनट पर प्रारंभ होगी और अगले दिन 12 दिसंबर को सुबह 1 बजकर 9 मिनट तक रहेगी। ज्योतिष शास्त्र में भद्रा को शुभ नहीं माना जाता है। इस अवधि में पूजा पाठ व शुभ कार्यों की मनाही होती है।
मोक्षदा एकादशी व्रत पारण समय जानिए,
मोक्षदा एकादशी व्रत का पारण 12 दिसंबर 2024 को किया जाएगा। व्रत पारण अर्थात व्रत के उपरांत का पहले भोजन का समय सुबह 7 बजकर 4 मिनट से सुबह 9 बजकर 8 मिनट तक रहेगा। पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय रात 10 बजकर 26 मिनट तक रहेगा।
मोक्षदा एकादशी व्रत के नियम जानिए,
मोक्षदा एकादशी के दिन पूजन के बाद गीता का पाठ किया जाता है। व्रत के दौरान ब्रम्हाचर्य का पालन करना चाहिए। इस दिन ब्रम्हा मुहूर्त में उठकर भगवान विष्णु की पूजा और ध्यान करना चाहिए। एकादशी के दिन चावल या चावल से बनी चीजें नहीं खानी चाहिए। एकादशी के दिन मांस, मदिरा, शराब, लहसुन व प्याज आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
मोक्षदा एकादशी के व्रत का हिंदू शास्त्रों में विशेष महत्व हैं। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। तो आइए जानते हैं मोक्षों से मुक्ति कराने वाली मोक्षदा एकादशी का क्या है महत्व,
हर वर्ष मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के अगले दिन मोक्षदा एकादशी मनाई जाती है। इस शुभ अवसर पर भगवान विष्णु संग मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही एकादशी का व्रत रखा जाता है। सनातन शास्त्रों में कहा गया है कि मोक्षदा एकादशी तिथि पर जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण ने अपने परम शिष्य अर्जुन को गीता ज्ञान दिया था। इसके साथ ही इस एकादशी पर गीता जयंती भी मनाई जाती है।
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा जानिए
एक बार की बात है गोकुल नाम के नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में वेदों के ज्ञाता ब्राम्हाण रहा करते थे। वह राजा अपनी प्रजा का अच्छे से पालन करता था। एक बार रात में राजा ने सपने में देखा कि उनके पिता नरक में कष्ट भोग रहे हैं। जिससे उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। राजा ने प्रातः अपने राज्य के विद्वान ब्राम्हाणों को इस सपने के बारे में बताया और कहा मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है। पिता ने मुझसे कहा कि हे पुत्र मैं नरक में कष्ट भोग रहा हूं। यहां से मुझे मुक्त कराओ। जबसे मैंने ये सपना देखा है तब से मेरे चित्त में बड़ी अशांति हो रही है। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता।
राजा ने ब्राम्हाण देवताओं से कहा कि इस दुःख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है। अब आप कृपा करके कोई उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए। साथ में राजा ने कहा कि उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता पिता का उद्धार न कर सके। एक उत्तम पुत्र जो अपने माता पिता और पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मूर्ख पुत्रों से अच्छा है। ब्राम्हाणों ने कहा हे राजन! यहां पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आप उनके पास जाइए वह आपकी समस्या का हल जरूर निकाल लेंगे।
राजा मुनि आश्रम की तरफ चल दिए। वहां राजा की मुलाकात पर्वत मुनि से हुई। राजा ने मुनि को दंड़ दिया । मुनि ने राजा से उनकी कुशलता के बारे में पूछा। राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन मेरा मन बिल्कुल भी शांत नहीं है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आंखें बंद की और भूत विचारने लगे। फिर बोले हे राजन! मैनें योग विघा से तुम्हारे पिता के कर्माे के बारे में जान लिया है। उन्होनें पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान मांगने पर भी नहीं दिया। उसी पाप के कारण उन्हेम नर्क में जाना पड़ा। हरि ओम,
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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