सिस्टम की खामियों पर प्रहार करने के बजाए फूहड़ता परोसी जा रही है रूपहले पर्दे पर!
(लिमटी खरे)
हाल ही में पठान फिल्म के बेशर्म गीत को लेकर जमकर विवाद चल रहा है। इस गीत में दीपिका पादुकोण की वेशभूषा के रंग को लेकर सबसे ज्यादा विवाद है। इस विवाद के पीछे कहीं न कहीं दीपिका पादुकोण और शाहरूख खान का विरोध अधिक प्रतीत हो रहा है। दीपिका पादुकोण पर टुकड़े गैंग का साथ देने का आरोप है जिसके चलते वे निशाने पर हैं तो शाहरूख खान अपनी बयानबाजी के कारण निशाने पर ही रहते आए हैं।
पिछले दो तीन दशकों में हिन्दी सिनेमा में अदाकारों के चाल चरित्र और चेहरे का अगर आप अध्ययन करें तो आप पाएंगे कि नवोदित कलाकारों के बजाए स्थापित अदाकारों के द्वारा ज्यादा अश्लीलता परोसी जा रही है। ये अदाकार अधेड़ उम्र के हो चुके हैं पर इसके बाद भी वे इस तरह के सीन करने से बाज नहीं आते हैं। इस मामले में अमिताभ बच्चन, अक्षय खन्ना, आमिर खान को अपवाद माना जा सकता है। वहीं, शाहरूख खान और सलामन खान तो अंग प्रदर्शन के लिए मानो बेताब ही रहा करते हैं।
अगर आप दक्षिण की फिल्म इंडस्ट्रीज की फिल्मों को देखें तो आप पाएंगे कि दक्षिण की फिल्में अस्सी के दशक के पहले कामुक हुआ करतीं थीं, पर अस्सी के दशक के बाद दक्षिण की फिल्में व्यवस्था पर प्रहार करने वाली होती हैं। यही कारण है कि वहां की फिल्में बिना किसी प्रमोशन के बाक्स आफिस पर सुपर डुपर हिट ही रहती हैं। इससे उलट अगर आप हिन्दी मूवीज को देखिए तो अस्सी के दशक तक तो ये फिल्में व्यवस्थाओं पर प्रहार करने वाली होती थीं, किन्तु उसके बाद ये फिल्में भी कामुकता की ओर ज्यादा झुकाव दिखाने लगी हैं।
पठान फिल्म में दीपिका और शहरूख के खिलाफ लोग आग उगलते नजर आ रहे हैं। मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के द्वारा एक ट्वीट में दीपिका को टुकड़े टुकड़े गैंग का सदस्य बताया गया है। 2016 में हुए छात्र आंदोलन में दीपिका पादुकोण दिल्ली के जेएनयू (जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय) गईं थीं और उन्होंने छात्रों का समर्थन भी किया था। बहरहाल, पठान चलचित्र के इस गाने का विरोध करते हुए एमपी के होम मिनिस्टर के द्वारा टुकड़े गैंग का हवाला क्यों दिया यह बात समझ से ही परे है।
अमिताभ बच्चन को सदी का महानायक कहा जाता है, उधर शाहरूख खान को नंबर दो का सुपर स्टार ही माना जा रहा है। ये दोनों हस्तियां बीते ब्रहस्पतिवार को कोलकता इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में शिरकत करने गई थीं। दोनों ही के द्वारा बहुत ही समझदारी के साथ हाल ही में बेशर्म गाने को लेकर हुए विवाद का जिकर सीधे सीधे तो नहीं किया किन्तु उनके द्वारा जिस तरह से परोक्ष तौर पर हमला किया गया है वह भी विचारणीय ही माना जा सकता है।
इस पूरे मामले में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय मौन है। देखा जाए तो सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को इस तरह के विवादों से बचने के लिए सैंसर बोर्ड को बाकायदा एडवाईजरी जारी करना चाहिए जिसमें फूहड़ता पर अंकुश लगाने के रास्ते प्राशस्त करना चाहिए। वर्तमान समय में ओटीटी प्लेटफार्मस पर जिस तरह से सीरिज का जलजला चल रहा है वह किसी से छिपा नहीं है। इन सीरीज में सरेआम गालियां बकी जाती हैं। एक समय था जब फिल्मों में अपशब्द कहना बहुत ही अपमानजनक माना जाता था, पर आज के समय में अश्लीलता को ही मानो फिल्म अथवा सीरीज को हिट करवाने का मूल मंत्र मान लिया गया है।
फिल्मों में अश्लीलता परोसना क्या समाज को दिशा देगा! जाहिर है नहीं, फिर क्या सिर्फ पैसा कमाने के लिए इस तरह की फिल्मों या सीरीज का प्रदर्शन उचित माना जा सकता है। हर राजनैतिक दल का अपना एजेंडा होता है। हर राजनैतिक दल इस तरह के दृश्यों को अपने एजेंडे के चश्मे से देखता है पर कोई भी इस मामले में फिकरमंद नहीं दिखता कि इस तरह के दृश्यों से समाज में क्या संदेश जा रहा है।
कल तक शादी ब्याह में शराब का सेवन चोरी छिपे किया जाता था। आज काकटेल पार्टीज या बेचलर पार्टीज शादियों का प्यारा शगल बनकर रह गई हैं। फिल्म हो या टीवी हर जगह शराब या ड्रग्स का सेवन सरेआम दिखाया जाता है। निर्माता निर्देशक इसे स्टोरी की मांग बताकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं पर इसके पहले अस्सी के दशक के पहले बनने वाली फिल्मों या दूरदर्शन पर शुरूआती दौर में प्रसारित होने वाले सुपर डुपर हिट सीरियल्स में स्टोरी की मांग नहीं हुआ करते थे ऐसे दृश्य! जाहिर है समाज में अश्लीलता परोसने का एक एजेंड फिल्म इंडस्ट्रीज में सेट हो चुका है जिसका विरोध होना चाहिए, इसके लिए देश के 543 लोक सभा सांसदों सहित राज्य सभा सांसदों को भी संसद में आवाज बुलंद करने की जरूरत अब महसूस होने लगी है।
(साई फीचर्स)

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