समुद्र मंथन के बाद निकला अमृत कलश . . . पहले भाग में जानिए इसकी कथा . . .

12 साल बाद ही क्यों लगता है महाकुंभ, पौराणिक कथा, महत्व, रहस्य जानिए विस्तार से . . .
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लोगों के मानस पटल पर यह सवाल घुमड़ना स्वाभाविक ही है कि आखिर महाकुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में ही क्यों किया जाता है। प्रयागराज में इसके आयोजन को लेकर अनेक धारणाएं प्रचलन में हैं। दरअसल, इसके पीछे प्रयागराज में पुण्य सलिला माता गंगा, जीवन दायनि माता यमुना और पवित्र माता सरस्वती नदी का संगम स्थल होने के चलते इसे बहुत महत्वपूर्ण माना गया है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कुंभ मेले की शुरुआत की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने अमृत के लिए समुद्र मंथन किया। तो उस मंथन से अमृत का घट निकला। अमृत को पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच युध्द छिड़ गया था। जिसके चलते भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ को अमृत के घड़े की सुरक्षा उन्हें सौंप दिया। गरुड़ जब अमृत को लेकर उड़ रहे थे। तब अमृत के कुछ बूंदें चार स्थान प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिर गईं। तभी से कुंभ के मेले का आयोजन इन चार स्थानों पर पड़ता है। जानकारों के अनुसार इस तरह की मान्यता भी है कि देवताओं और असुरों के बीच 12 दिवसीय युद्ध हुआ था। जो मानव वर्षों के लिए 12 साल के बराबर माना गया है। इसलिए हर साल 12 साल में कुंभ का आयोजन होता है।
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अगर आप भगवान शिव जी, भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में ओम नमः शिवाय, जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
प्रयागराज में ही मोक्षदायनि गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का संगम होता है। जिसके कारण यह स्थान अन्य जगहों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां पर सरस्वती नदी विलुप्त हो चुकी हैं, लेकिन यह पवित्र नदी अभी भी पृथ्वी के धरातल पर बहती है। ऐसा कहा जाता है कि प्रयागराज कलयुग के समय को दर्शाती है कि कलयुग का अंत होने में अभी कितना समय शेष है। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि इन तीनों नदियों के संगम में जो व्यक्ति शाही स्नान करता है। उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए प्रयागराज में इसकी महत्ता अधिक है।
जानकार बताते हैं कि इस तरह की मान्यता है कि मंदराचल पर्वत के द्वारा सागर मंथन से ही इस संसार की संरचना हुई है। यह कथा देवताओं और असुरों, धर्म और अधर्म, प्रकाश और अंधकार के बीच हुए संघर्ष पर आधारित है। यह उस समय की बात है जब अंधकार युग अर्थात कलयुग समाप्ति की ओर था और मनुष्य धर्मपरायणता में असफल हो रहा था। उनका अमृत भी महाजल प्रलय में लुप्त हो चुका था जिसने देवताओं व मनुष्यों को दुर्बल कर दिया था। इस समस्त दृष्टांत पर देवताओं ने चिंतित होकर मेरू पर्वत पर सभा बुलाई व सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रम्हा जी से सहायता मांगने का विचार बनाया। ब्रम्हा जी ने कहा हम सबका प्राणाधार अमृत सागर तल पर कहीं लुप्त हो गया है और जिस प्रकार दूध से मक्खन निकाला जाता है उसी प्रकार दिव्य अमृत को पाने के लिए सागर पानी को मथना पड़ेगा। इसलिए आप सब भगवान विष्णु के पास जाइये, वे आपकी सहायता करेंगे।
मान्यता के अनुसार इसके उपरांत देवताओं ने भगवान विष्णु के सहस्त्र नामों का उच्चारण कर उन्हें प्रसन्न किया, प्रसन्न होने पर भगवान विष्णु ने कहा अमृत देवताओं को पुनर्जीवन देगा परंतु इस अमृत को प्राप्त करने के लिए देवताओं व असुरों को आपस में सहयोग करके सागर को मथना पड़ेगा। भगवान विष्णु ने भ्रमित हो रहे देवताओं को पुन आश्वस्त किया कि वे उनमें अपनी आस्था बनाये रखें। नागों के राजा वासुकि ने अपने शरीर को मंदराचल पर्वत के चारों ओर रस्सी की तरह लपेट दिया। इसके पश्चात् देवताओं ने राजा वासुकि की पूँछ को और असुरों ने उसके मुख को पकड़ कर बारी-बारी से आगे-पीछे खींचना शुरु किया जिससे मंदराचल पर्वत मथानी की तरह सागर को मथने लगा।
मान्यता के अनुसार लगभग एक हजार वर्ष तक सागर को मथने के पश्चात मंदराचल सागर के अथाह गहरे तल को मथता हुआ उसके भीतर जाने लगा तब श्री हरि भगवान विष्णु ने कूर्म कच्छप का रूप धारण किया, जो आकार में किसी द्वीप के समान था। उस कच्छप ने गहरे सागर तल पर जाकर मंदराचल पर्वत को सहारा प्रदान किया। सागर मंथन के समय उसमें से चौदह अमूल्य रत्न निकले, जिनमें चन्द्र, कौस्तुभ मणि जो भगवान विष्णु के वक्षस्थल का आभूषण है, कल्प वृक्ष, शंख, धनुष, कामधेनु गाय, देवताओं के राजा इन्द्र की सवारी ऐरावत हाथी, उच्चौश्रवा नामक अश्व, चन्द्र का प्रकाश लिए असुरों का राजा बलि, आकर्षक दिव्य अप्सरा-रंभा, सुरा देवी वारुणी, कमल धारण किए हुए धन-धान्य की देवी लक्ष्मी, जिन्हें तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णुअपनी शक्ति कहते हैं। अंत में आयुर्वेद के जनक और देवताओं के चिकित्सक धन्वन्तरि जिन्हें भगवान विष्णु के अनेक रूपों में एक कहा जाता है, हाथों में अमृत भरा हुआ कलश लेकर सागर से प्रकट हुए, उन्हें देखते ही देवताओं और असुरों ने मथने की रस्सी छोड़कर अमृत कलश पाने के लिए धन्वन्तरि की ओर दौड़ लगाई।
मान्यता के अनुसार देवराज इन्द्र ने अपने पुत्र जयन्त को निर्देश दिया कि वो अमृत कलश को प्राप्त करके उसकी रक्षा करें। पिता के आदेश के अनुसार जयन्त ने कुम्भ अमृत कलश को प्राप्त किया और पूरे ब्रम्हाण्ड में दौड़ने लगा, साथ ही असुरों ने भी बारह दिनों तक उसका पीछा किया। जयन्त ने बारह बार रूक-रूक कर विश्राम किया जिसमें चार बार पृथ्वी, चार बार स्वर्ग व चार बार पाताल लोक का वर्णन है। प्रत्येक विश्राम-स्थल पर अमृत की कुछ बूंदें छलक गयीं। पीछा करते हुएअसुरों ने अमृत कुम्भ को छीन लिया और आपस में ही द्वंद्व करने लगे कि उनमें से पहले कौन अमृतपान करेगा, इसी द्वंद्व के मध्य में मोहिनी एकदिव्य सौन्दर्य की स्वामिनी व जिसका वर्णन शब्दों में भी नहीं किया जा सकता, प्रकट हुईं।
इसके उपरांत क्या हुआ यह बात आपको इस पूरे वृतांत के दूसरे एपीसोड में हम आपको बताएंगे, दूसरा एपीसोड देखने के लिए समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के धर्म प्रभाग में जानकारियां देखते रहिए . . . हरि ओम,
अगर आप भगवान शिव जी, भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में ओम नमः शिवाय, जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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SHWETA YADAVA

कर्नाटक की राजधानी बंग्लुरू में समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो के रूप में कार्यरत श्वेता यादव ने नई दिल्ली के एक ख्यातिलब्ध मास कम्यूनिकेशन इंस्टीट्यूट से पोस्ट ग्रेजुएशन की उपाधि लेने के बाद वे पिछले लगभग 15 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं. समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया देश की पहली डिजीटल न्यूज एजेंसी है. इसका शुभारंभ 18 दिसंबर 2008 में किया गया था. समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया में देश विदेश, स्थानीय, व्यापार, स्वास्थ्य आदि की खबरों के साथ ही साथ धार्मिक, राशिफल, मौसम के अपडेट, पंचाग आदि का प्रसारण प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है. इसके वीडियो सेक्शन में भी खबरों का प्रसारण किया जाता है. अगर आप समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को खबरें भेजना चाहते हैं तो व्हाट्सएप नंबर 9425011234 या ईमेल samacharagency@gmail.com पर खबरें भेज सकते हैं. खबरें अगर प्रसारण योग्य होंगी तो उन्हें स्थान अवश्य दिया जाएगा.