नागरिकता संशोधन बिल: एक तीर से कई निशाने

(लिमटी खरे)

 नागरिकता संशोधन विधेयक की बात जैसे ही फिजा में आई वैसे ही इसके समर्थन और विरोध का सिलसिला आरंभ हो गया। लोगों को उम्मीद थी कि यह विधेयक लोकसभा में पारित नहीं हो सकेगा, पर लोगों की उम्मीद से इतर यह विधेयक लोकसभा में भारी बहुमतों से पारित हो गया। अब राज्य सभा में इस पर बहस जारी है। हिन्दुत्व के इस कार्ड के जरिए केंद्र की नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार अब अपने खराब प्रदर्शन और भाजपा की गिरती साख को बचाने की कवायद में दिख रही है। भाजपा के द्वारा महाराष्ट्र सहित अनेक सूबों में घटक दलों के बिखराव को रोकने के लिए अब हिन्दुत्व का कार्ड खेला गया है। भाजपा के घटक दलों को इस विधेयक के माध्यम से एक छत के नीचे लाने का प्रयास भी होता दिख रहा है।

 इस विधेयक को लेकर देश की सबसे बड़ी पंचायत में जिस तरह से तर्क रखे गए उसे देखकर लगने लगा है कि बीसवीं सदी के देश के इतिहास को इस पंचायत के पंचों के द्वारा अपने अपने नजरिए से पेश करना आरंभ कर दिया है। इस विधेयक के पक्ष और विपक्ष में दी गई दलीलों से यही प्रतीत हो रहा है कि इसके तात्कालिक प्रभाव चाहे जो भी हों पर इसका दूरगाभी प्रभाव भी होगा।

इस पूरे मामले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के द्वारा विधेयक पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। उनका कहने का आशय यही प्रतीत हो रहा है कि वे शरणार्थी और घुसपैठियों को परिभाषित करना चाह रहे हैं। इसके हिसाब से आसपास के पाकिस्तान, बंगलादेश, अफगानिस्तान जैसे देशों में रह रहे वहां अल्पसंख्यक हो चुके हिन्दू, बौद्ध, सित्रा ईसाई, जैन आदि समाज के लोग अपने आप को वहां असुरक्षित महसूस करते हैं और इस तरह क लोगों को भारत की नागरिकता लेने का अधिकार है। भारत वैसे भी धर्म निरपेक्ष देश है, इस देश में अगर इस तरह का वर्गीकरण किया जाता है तो उसके खिलाफ आवाज उठना लाजिमी ही है।

यहां सवाल यही खड़ा हुआ है कि क्या इस्लामिक देशों में मुस्लिमों के साथ अत्याचार नहीं हो सकता है! इतिहास को अगर खंगाला जाए तो देश के बटवारे के समय पाकिस्तान गए मुस्लिमों के साथ दोयम दर्जे का व्यहवार किया जाता था। उन्हें उस वक्त वहां मुजाहिर की संज्ञा भी दी जाती थी। भारत में मुस्लिमों के साथ शायद ही कभी अन्याय हुआ हो। देश में इस्लाम धर्म का पालन करने वाले 72 फिकरों के लोग निवास करते हैं। भारत को विश्व में मुसलमानों के लिए सबसे सुरक्षित देश भी माना जाता है।

बहरहाल, नागरिकता संशोधन विधेयक के लोकसभा में पारित होने के बाद अब देश भर में इसको लेकर बहस छिड़ चुकी है। सोशल मीडिया इस पर पूरी तरह लाल पीला नजर आ रहा है। कुछ लोग इसके पक्ष में तो कुछ विपक्ष में खड़े होकर तर्क और कुतर्क करते नजर आ रहे हैं। इस विधेयक के बारे में जिन्हें पूरी या पर्याप्त जानकारी भी नहीं है वे भी इस पर विशेषज्ञ बनकर अपनी बात कहते नजर आ रहे हैं।

इस विधेयक के तहत 31 दिसंबर या उसके पहले देश में आ चुके लोगों या पांच साल से देश में रह रहे लोगों को अब गैर कानूनी नहीं समझा जाएगा, उन्हें देश की नागरिकता का अधिकार मिल जाएगा। इस विधेयक को विपक्षी दलों के द्वारा संविधान विरोधी करार दिया जा रहा है। विपक्ष के लोगों का तर्क है कि संविधान के अनुच्छेद 25 एवं अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करते हुए इस विधेयक को लाया गया है।

वैसे एक आरोप और केंद्र सरकार पर लगते आए हैं। वह यह कि केंद्र सरकार के द्वारा अपनी दूसरी पारी में हिडन एजेंडे को लागू करना आरंभ कर दिया गया है। धारा 370 की समाप्ति के साथ ही साथ जम्मू और काश्मीर के साथ जिस तरह का काम किया गया है, उसके बाद नागरिकता संशोधन विधेयक भी इसके उदहारण के रूप में लोगों के द्वारा प्रस्तुत किए जा रहे हैं। देखा जाए तो जम्मू और काश्मीर के हालातों के बारे में जिस तरह की बातें सोशल मीडिया सहित अन्य प्लेटफार्म पर चलती रहीं, वह अब निराधार ही साबित होती दिख रही हैं।

इस विधेयक के जरिए भाजपा सरकार के द्वारा शिवसेना और जनता दल यूनाईटेड जैसे दल जो लगभग बाऊॅड्री अर्थात सीमारेखा पर ही बैठे थे कि कब किसके साथ चले जाएं, को भी अब विचार करने पर मजबूर कर दिया गया है। माना जा रहा था कि एनडीए के घटक दल भाजपा के घटते जनाधार को देखते हुए अलग कदम ताल कर सकते थे, पर अब एनडीए का कोई भी घटक दल शायद ही अकेले किसी के पाले में जाने का जोखिम उठाए। इसके जरिए भाजपा विरोधी गठबंधन की सुगबुगाहटों पर भी विराम लगता दिख रहा है।

इस विधेयक में अभी अनेक बधाएं सामने खड़ी दिख रही हैं। सबसे बड़ी बाधा के रूप में पूर्वोत्तर के राज्य हैं। इन राज्यों में इस विधेयक का पूरजोर विरोध हो रहा है। इस विरोध को देखते हुए सरकार के द्वारा इसमें कुछ राहत देते हुए संविधान की छटवीं अनुसूची में आने वाले पूर्वोत्तर के असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम सहित कई राज्यों को इस विधेयक से प्रथक रखते हुए छूट प्रदान कर दी गई है।

इसके अलावा उन राज्यों को भी इससे मुक्त रखा गया है जहां इनर लाईन परमिट लागू है। माना तो यह भी जा रहा है कि भाजपा के द्वारा केंद्र में सरकार तो बना ली गई है पर देश में उसका जनाधार जिस तेजी से बढ़ा था वह अब कम होता जा रहा है। इस विधेयक के जरिए भाजपा परोक्ष रूप से अपने एक नए वोट बैंक की तलाश भी कर रही हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

यह सही है कि शरणार्थी और घुसपैठियों में अंतर होता है। शरणार्थियों का रिकार्ड और डाटा सरकारों के पास होता है पर घुसपैठियों के बारे में सरकार के पास शायद ही कोई जानकारी हो। सरकार के द्वारा एनआरसी के जरिए घुसपैठियों की जानकारी हासिल की जा रही थी। घुसपैठ को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।

वैसे एक बात और है कि इस पूरी कवायद में अनजाने में ही सही पर भाजपा के द्वारा देश के सामने एक संकट जरूर खड़ा कर दिया है। देश में घुसपैठियों की तादाद समस्या से कम नहीं है। देशवासी भी इन घुसपैठियों से निजात पाना चाहते हैं क्योंकि पहले से ही देश की जनसंख्या बहुत ज्यादा है। इसके साथ ही साथ भाजपा के द्वारा अन्य देशों के आधा दर्जन पूजा पद्धतियों को मानने वालों के लिए नागरिकता के रास्ते अगर खोले जाते हैं तो देश की जनसंख्या में बढ़ोत्तरी को रोका नहीं जा सकता है। इस बारे में देश व्यापी बहस अगर किसी नतीजे पर पहुंचती है तो यह राहत की बात होगी। इसके लिए सरकार को समय समय पर स्थितियां जनता के सामने स्पष्ट करने की जरूरत है, क्योंकि अगर यह पूरा का पूरा मामला वस्तु स्थिति के साफ न रहने के चलते किसी अन्य दिशा में गया तो यह सरकार के सामने बड़े संकट से कम नहीं होगा! (लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)

(साई फीचर्स)

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