जया एकादशी का व्रत करने से भूत, प्रेत, पिशाच आदि योनियों से मिल जाती है मुक्ति . . .

जानिए कब पड़ने वाली है बहुत पुण्यदायी मानी जाने वाली ‘जया एकादशी‘
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हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिक मास या मल मास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। जया एकादशी के विषय में जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से निवेदन करते हैं कि माघ शुक्ल एकादशी को किनकी पूजा करनी चाहिए, तथा इस एकादशी का क्या महात्मय है। श्री कृष्ण कहते हैं माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है, इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है।
हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए शुभ मानी जाती है। इस दिन एकादशी व्रत किया जाता है। साथ ही श्रीहरि के संग मां लक्ष्मी की विशेष उपासना की जाती है। पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर जया एकादशी व्रत किया जाता है।
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धार्मिक मान्यता है कि इस दिन विष्णु जी की उपासना करने से जीवन में सभी सुखों की प्राप्ति होती है। व्रत के समय खानपान से जुड़े नियम का पालन अधिक आवश्यक होता है। माना जाता है कि नियम का पालन न करने से पूजा सफल नहीं होती है। साथ ही व्रत टूट सकता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि जया एकदशी व्रत में क्या खाएं और क्या नहीं?
जया एकादशी 2025 की तिथि व शुभ मुहूर्त जानिए,
पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 7 फरवरी को रात 9 बजकर 26 मिनट पर हो रही है और समापन अगले दिन यानी 8 फरवरी को रात 8 बजकर 15 मिनट पर होगा। ऐसे में जया एकादशी व्रत 8 फरवरी को किया जाना जानकारों के अनुसार उचित है।
जानिए, जया एकादशी व्रत में क्या खाएं,
धार्मिक मान्यता है कि जया एकादशी व्रत में नियम का पालन करने से पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है। अगर आप जया एकादशी व्रत कर रहे हैं, तो शकरकंद, कुट्टू के आटे रोटी, दूध, दही और फल का सेवन कर सकते हैं। साथ ही भगवान विष्णु को पंचामृत का भोग लगाकर उसका भी सेवन किया जा सकता है।
अब जानिए, जया एकादशी व्रत में क्या न खाएं,
एकादशी व्रत में चावल को भूलकर भी नहीं खाना चाहिए। इसके अलावा अन्न और नमक के सेवन से दूर रहना चाहिए। साथ ही लहसुन, प्याज, मसूर की दाल का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि जया एकादशी व्रत में इन चीजों को खाने से व्रत टूट सकता है। साथ ही श्रीहरि भी नाराज हो सकते हैं। इसी वजह से एकादशी व्रत में खानपान से जुड़े नियम का पालन जरूर करना चाहिए।
जया एकादशी की कथा जानिए, जो भगवान श्री कृष्ण ने इस संदर्भ में धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी।
धर्मराज युधिष्ठिर बोले – हे भगवन! आपने माघ के कृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी का अत्यन्त सुंदर वर्णन किया। आप स्वदेज, अंडज, उद्भिज और जरायुज चारों प्रकार के जीवों के उत्पन्न, पालन तथा नाश करने वाले हैं। अब आप कृपा करके माघ शुक्ल एकादशी का वर्णन कीजिए। इसका क्या नाम है, इसके व्रत की क्या विधि है और इसमें कौन से देवता का पूजन किया जाता है?
भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! इस एकादशी का नाम जया एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य ब्रम्ह हत्यादि पापों से छूट कर मोक्ष को प्राप्त होता है तथा इसके प्रभाव से भूत, पिशाच आदि योनियों से मुक्त हो जाता है। इस व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए। अब मैं तुमसे पद्मपुराण में वर्णित इसकी महिमा की एक कथा सुनाता हूँ।
उन्होंने कथा आरंभ करते हुए कहा कि देवराज इंद्र स्वर्ग में राज करते थे और अन्य सब देवगण सुखपूर्वक स्वर्ग में रहते थे। एक समय इंद्र अपनी इच्छानुसार नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे और गंधर्व गान कर रहे थे। उन गंधर्वों में प्रसिद्ध पुष्पदंत तथा उसकी कन्या पुष्पवती और चित्रसेन तथा उसकी स्त्री मालिनी भी उपस्थित थे। साथ ही मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित थे।
पुष्पवती गंधर्व कन्या माल्यवान को देखकर उस पर मोहित हो गई और माल्यवान पर काम-बाण चलाने लगी। उसने अपने रूप लावण्य और हावभाव से माल्यवान को वश में कर लिया। हे राजन! वह पुष्पवती अत्यन्त सुंदर थी। अब वे इंद्र को प्रसन्न करने के लिए गान करने लगे परंतु परस्पर मोहित हो जाने के कारण उनका चित्त भ्रमित हो गया था।
इनके ठीक प्रकार न गाने तथा स्वर ताल ठीक नहीं होने से इंद्र इनके प्रेम को समझ गया और उन्होंने इसमें अपना अपमान समझ कर उनको शाप दे दिया। इंद्र ने कहा हे मूर्खों! तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है, इसलिए तुम्हारा धिक्कार है। अब तुम दोनों स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्यु लोक में जाकर पिशाच रूप धारण करो और अपने कर्म का फल भोगो।
इंद्र का ऐसा शाप सुनकर वे अत्यन्त दुःखी हुए और हिमालय पर्वत पर दुःखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे। उन्हें गंध, रस तथा स्पर्श आदि का कुछ भी ज्ञान नहीं था। वहाँ उनको महान दुःख मिल रहे थे। उन्हें एक क्षण के लिए भी निद्रा नहीं आती थी।
उस जगह अत्यन्त शीत था, इससे उनके रोंगटे खड़े रहते और मारे शीत के दाँत बजते रहते। एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा कि पिछले जन्म में हमने ऐसे कौन-से पाप किए थे, जिससे हमको यह दुःखदायी पिशाच योनि प्राप्त हुई। इस पिशाच योनि से तो नर्क के दुःख सहना ही उत्तम है। अतः हमें अब किसी प्रकार का पाप नहीं करना चाहिए। इस प्रकार विचार करते हुए वे अपने दिन व्यतीत कर रहे थे।
दैव्ययोग से तभी माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया नामक एकादशी आई। उस दिन उन्होंने कुछ भी भोजन नहीं किया और न कोई पाप कर्म ही किया। केवल फल-फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया और सायंकाल के समय महान दुःख से पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए। उस समय सूर्य भगवान अस्त हो रहे थे। उस रात को अत्यन्त ठंड थी, इस कारण वे दोनों शीत के मारे अति दुखित होकर मृतक के समान आपस में चिपटे हुए पड़े रहे। उस रात्रि को उनको निद्रा भी नहीं आई।
हे राजन! जया एकादशी के उपवास और रात्रि के जागरण से दूसरे दिन प्रभात होते ही उनकी पिशाच योनि छूट गई। अत्यन्त सुंदर गंधर्व और अप्सरा की देह धारण कर सुंदर वस्त्राभूषणों से अलंकृत होकर उन्होंने स्वर्गलोक को प्रस्थान किया। उस समय आकाश में देवता उनकी स्तुति करते हुए पुष्पवर्षा करने लगे। स्वर्गलोक में जाकर इन दोनों ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया। इंद्र इनको पहले रूप में देखकर अत्यन्त आश्चर्यचकित हुआ और पूछने लगा कि तुमने अपनी पिशाच योनि से किस तरह छुटकारा पाया, सो सब बतालाओ।
माल्यवान बोले कि हे देवेन्द्र! भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से ही हमारी पिशाच देह छूटी है। तब इंद्र बोले कि हे माल्यवान! भगवान की कृपा और एकादशी का व्रत करने से न केवल तुम्हारी पिशाच योनि छूट गई, वरन् हम लोगों के भी वंदनीय हो गए क्योंकि विष्णु और शिव के भक्त हम लोगों के वंदनीय हैं, अतः आप धन्य है। अब आप पुष्पवती के साथ जाकर विहार करो।
भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजा युधिष्ठिर! इस जया एकादशी के व्रत से बुरी योनि छूट जाती है। जिस मनुष्य ने इस एकादशी का व्रत किया है उसने मानो सब यज्ञ, जप, दान आदि कर लिए। जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत करते हैं वे अवश्य ही हजार वर्ष तक स्वर्ग में वास करते हैं।
कथा सुनकार श्री कृष्ण ने यह बताया कि जया एकादशी के दिन जगपति जगदीश्वर भगवान विष्णु ही सर्वथा पूजनीय हैं। जो श्रद्धालु भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि से को एक समय आहार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि आहार सात्विक हो। एकादशी के दिन श्री विष्णु का ध्यान करके संकल्प करें और फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से विष्णु की पूजा करे।
जया एकादशी के सरल उपाय जानिए,
जया एकादशी के दिन विष्णुजी और मां लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करें। लक्ष्मी-नारायण के समक्ष घी का दीपक जलाएं। मान्यता है कि लक्ष्मीजी और विष्णुजी की साथ में पूजा करने से जीवन में तरक्की की बाधाएं दूर होती हैं।
जगत के पालनहार श्रीहरि विष्णुजी को तुलसी अतिप्रिय है। एकादशी के दिन विष्णुजी को तुलसी के पत्ते का भोग लगाने के साथ तुलसी के पौधे की पूजा करना भी शुभ माना जाता है। इस दिन शाम को तुलसी के पौधे के सामने घी का दीपक जलाएं। विष्णुजी के मंत्र ऊँ विष्णवे नमः का जाप करें। मान्यता है कि ऐसा करने से नेगेटिविटी दूर होती है और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
जया एकादशी के दिन विष्णुजी को प्रसन्न करने के लिए विष्णु सहस्त्रनाम या नारायण कवच का पाठ कर सकते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से सभी दुख और परेशानियां दूर होती है और जीवन में खुशियों का आगमन होता है।
जया एकादशी के दिन अनाज, वस्त्र, फल, गुड़ और तिल इत्यादि का दान कर सकते हैं। इस दिन विष्णुजी को पीले रंग की मिठाई जैसे बेसन का लड्डू, केसर की खीर या पीले रंग की फलों का दान कर सकते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
जया एकादशी के दिन गायों का सेवा कर सकते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से श्रीहरि विष्णुजी प्रसन्न होते हैं। इस दिन गायों का चारा खिलाएं और उनकी सेवा करें। मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। हरि ओम,
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)

शरद खरे

लगभग 18 वर्षों से पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। दैनिक हिन्द गजट के संपादक हैं, एवं समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के लिए लेखन का कार्य करते हैं . . . समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया देश की पहली डिजीटल न्यूज एजेंसी है. इसका शुभारंभ 18 दिसंबर 2008 को किया गया था. समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया में देश विदेश, स्थानीय, व्यापार, स्वास्थ्य आदि की खबरों के साथ ही साथ धार्मिक, राशिफल, मौसम के अपडेट, पंचाग आदि का प्रसारण प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है. इसके वीडियो सेक्शन में भी खबरों का प्रसारण किया जाता है. यह पहली ऐसी डिजीटल न्यूज एजेंसी है, जिसका सर्वाधिकार असुरक्षित है, अर्थात आप इसमें प्रसारित सामग्री का उपयोग कर सकते हैं. अगर आप समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को खबरें भेजना चाहते हैं तो व्हाट्सएप नंबर 9425011234 या ईमेल samacharagency@gmail.com पर खबरें भेज सकते हैं. खबरें अगर प्रसारण योग्य होंगी तो उन्हें स्थान अवश्य दिया जाएगा.