मन में उल्लास भर देता है बसंत पंचमी का प्रकृति का उत्सव, ज्ञान का पर्व
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बसंत पंचमी, एक ऐसा त्योहार जो प्रकृति के सौंदर्य, ज्ञान की देवी के प्रति श्रद्धा और नवीन शुरुआत का प्रतीक है। यह पर्व माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है, जब प्रकृति अपने चरम शीतकाल से निकलकर नवजीवन की ओर अग्रसर होती है। चारों ओर हरियाली, फूलों की खुशबू और पक्षियों का कलरव मन को आनंदित कर देता है। यह त्योहार न केवल ऋतु परिवर्तन का सूचक है, बल्कि इसका धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी है।
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी, विद्या की देवी माता सरस्वती एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, जय माता सरस्वती, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
बसंत पंचमी या श्री पंचमी हिन्दू त्यौहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती, कामदेव और विष्णु की पूजा की जाती है। यह पूजा विशेष रूप से भारत, बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।
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प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह ऋतुओं में बाँटा जाता था उनमें बसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का फूल मानो सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर मांजर (बौर) आ जाता और हर तरफ रंग बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। भर भर भंवरे भंवराने लगते। बसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा उत्सव मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती हैं। यह बसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता है।
जानिए, इस साल कब है बसंत पंचमी?
बसंत पंचमी को लेकर इस साल असमंजस की स्थिति है। इस साल पंचमी तिथि 2 फरवरी को सुबह 9 बजकर 14 मिनट से शुरू हो रही है जो 3 फरवरी को 6 बजकर 52 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार बसंत पंचमी 3 फरवरी को मनाई जाएगी। देश के कुछ हिस्सों में 2 फरवरी को तो कुछ हिस्सों में 3 फरवरी को बसंत पंचमी मनाई जाएगी। बसंत पंचमी का दिन मां सरस्वती को समर्पित है।
जानिए मां सरस्वती की पूजा में किन चीजों को करना चाहिए शामिल,
बसंत पंचमी के दिन पीले रंग का विशेष महत्व होता है। कहते हैं कि बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती को पीले पुष्प अर्पित करना शुभ होता है। इससे वह प्रसन्न होती हैं और ज्ञान का वरदान देती हैं। इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनना भी उत्तम माना जाता है।
बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा में पेन, कॉपी, किताब आदि को शामिल करना चाहिए। कहते हैं कि इससे ज्ञान और बुद्धि के वरदान की प्राप्ति होती है।
मां सरस्वती की पूजा विधि विधान से करने के बाद उन्हें पीले रंग की मिठाई का भोग लगाना चाहिए। ऐसे में मां सरस्वती को बेसन का लड्डू या बूंदी अर्पित की जा सकती है। मां सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए खीर या मालपुए का भोग लगाया जा सकता है।
अब जानिए बसंत पंचमी की पौराणिक कथाएँ और महत्व के बारे में,
उपनिषदों की कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में ब्रम्हा जी ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। लेकिन अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे, उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। हालाकि उपनिषद व पुराण ऋषियो को अपना अपना अनुभव है, अगर यह हमारे पवित्र सत ग्रंथों से मेल नही खाता तो यह मान्य नही है।
तब ब्रम्हा जी ने इस समस्या के निवारण के लिए अपने कमण्डल से जल अपने हथेली में लेकर संकल्प स्वरूप उस जल को छिड़कर भगवान श्री विष्णु की स्तुति करनी आरम्भ की। ब्रम्हा जी के किये स्तुति को सुन कर भगवान विष्णु तत्काल ही उनके सम्मुख प्रकट हो गए और उनकी समस्या जानकर भगवान विष्णु ने आदिशक्ति दुर्गा माता का आव्हान किया। विष्णु जी के द्वारा आव्हान होने के कारण भगवती दुर्गा वहां तुरंत ही प्रकट हो गयीं तब ब्रम्हा एवं विष्णु जी ने उन्हें इस संकट को दूर करने का निवेदन किया।
ब्रम्हा जी तथा विष्णु जी बातों को सुनने के बाद उसी क्षण आदिशक्ति दुर्गा माता के शरीर से स्वेत रंग का एक भारी तेज उत्पन्न हुआ जो एक दिव्य नारी के रूप में बदल गया। यह स्वरूप एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिनके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ में वर मुद्रा थे। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। आदिशक्ति श्री दुर्गा के शरीर से उत्पन्न तेज से प्रकट होते ही उन देवी ने वीणा का मधुरनाद किया जिससे संसार के समस्त जीव जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब सभी देवताओं ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उन देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती कहा।
फिर आदिशक्ति भगवती दुर्गा ने ब्रम्हा जी से कहा कि मेरे तेज से उत्पन्न हुई ये देवी सरस्वती आपकी पत्नी बनेंगी, जैसे लक्ष्मी श्री विष्णु की शक्ति हैं, पार्वती महादेव शिव की शक्ति हैं उसी प्रकार ये सरस्वती देवी ही आपकी शक्ति होंगी। ऐसा कह कर आदिशक्ति श्री दुर्गा सब देवताओं के देखते देखते वहीं अंतर्धान हो गयीं। इसके बाद सभी देवता सृष्टि के संचालन में संलग्न हो गए।
सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके प्रकटोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है,
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
इसका अर्थ है कि ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और तभी से इस वरदान के फलस्वरूप भारत देश में बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है। पतंगबाज़ी का बसंत से कोई सीधा संबंध नहीं है। लेकिन पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों साल पहले चीन में शुरू हुआ और फिर कोरिया और जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुँचा।
बसंत पंचमी से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कथा भगवान ब्रम्हा और देवी सरस्वती से संबंधित है। कहा जाता है कि ब्रम्हा जी ने सृष्टि की रचना के बाद जब चारों ओर नीरवता और उदासी देखी, तो उन्होंने अपने कमंडल से जल छिड़का। इससे एक अद्भुत शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ, जो देवी सरस्वती के रूप में प्रकट हुईं। उन्होंने वीणावादन से संसार को ध्वनि और संगीत प्रदान किया, जिससे प्रकृति में नवचेतना का संचार हुआ। इसलिए, बसंत पंचमी को देवी सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, कामदेव और उनकी पत्नी रति ने इसी दिन भगवान शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास किया था। हालांकि, उनका प्रयास विफल रहा, लेकिन इस घटना को प्रेम और सौंदर्य के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। बसंत ऋतु को प्रेम और उल्लास का प्रतीक भी माना जाता है।
इसके अतिरिक्त, यह भी मान्यता है कि इसी दिन राजा भरत ने अपनी सेना के साथ बसंत ऋतु का स्वागत किया था। इसलिए, इस दिन को विजय और समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है।
अब जानिए बसंत पंचमी के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के बारे में,
बसंत पंचमी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यंत व्यापक है। यह त्योहार ज्ञान, विद्या, संगीत, कला और शिल्प की देवी सरस्वती को समर्पित है। इस दिन लोग पीले वस्त्र धारण करते हैं, पीले फूल चढ़ाते हैं और देवी सरस्वती की पूजा करते हैं। विद्यार्थी अपनी पुस्तकों और वाद्य यंत्रों की पूजा करते हैं। कई शिक्षण संस्थानों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें देवी सरस्वती की वंदना, भाषण और सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल होते हैं।
इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व होता है। पीला रंग ज्ञान, प्रकाश, पवित्रता और सकारात्मकता का प्रतीक है। इसलिए, लोग पीले वस्त्र पहनते हैं, पीले व्यंजन बनाते हैं और पीले फूल चढ़ाते हैं। यह रंग प्रकृति में भी दिखाई देता है, जब सरसों के खेत पीले फूलों से भर जाते हैं और आम के पेड़ों पर बौर आने लगते हैं।
बसंत पंचमी को श्रीपंचमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग अपने घरों को फूलों और रंगोली से सजाते हैं। विशेषकर बच्चों में इस त्योहार को लेकर बहुत उत्साह होता है। वे पतंग उड़ाते हैं, गीत गाते हैं और नृत्य करते हैं। कई जगहों पर मेले भी लगते हैं, जिनमें लोग पारंपरिक वेशभूषा में सज धज कर भाग लेते हैं।
जानिए इससे जुड़ा कृषि महत्व,
बसंत पंचमी का कृषि महत्व भी है। यह त्योहार किसानों के लिए नई फसल की शुरुआत का प्रतीक है। इस समय रबी की फसल पकने लगती है और किसान नई फसल की तैयारी में जुट जाते हैं। वे अपने खेतों में पूजा करते हैं और अच्छी फसल की कामना करते हैं। कई जगहों पर इस दिन हल जोतकर खेतों में बीज भी बोए जाते हैं।
अब आपको बताते हैं इसका सामाजिक महत्व,
बसंत पंचमी सामाजिक समरसता और एकता का भी प्रतीक है। यह त्योहार सभी वर्गों और समुदायों के लोगों द्वारा एक साथ मिलकर मनाया जाता है। यह प्रेम, भाईचारे और सद्भाव का संदेश फैलाता है। इस दिन लोग एक दूसरे को बधाई देते हैं और मिलजुल कर त्योहार मनाते हैं।
बसंत पंचमी का वैज्ञानिक महत्व जानिए,
बसंत पंचमी का वैज्ञानिक महत्व भी है। यह ऋतु परिवर्तन का समय होता है, जब प्रकृति में कई बदलाव होते हैं। मौसम सुहावना हो जाता है, ठंडी हवाएं चलने लगती हैं और पेड़ पौधों में नई पत्तियां और फूल आने लगते हैं। यह समय स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा माना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, इस समय शरीर में कफ की अधिकता होती है, जिसे दूर करने के लिए कुछ विशेष उपाय किए जाते हैं।
आधुनिक परिदृश्य में बसंत पंचमी को जानिए,
आज के आधुनिक युग में भी बसंत पंचमी का महत्व कम नहीं हुआ है। यह त्योहार आज भी उसी उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। हालांकि, कुछ वर्षों से इस त्योहार को मनाने के तरीकों में कुछ बदलाव जरूर आए हैं। लोग अब सोशल मीडिया के माध्यम से एक दूसरे को बधाई देते हैं और त्योहार की तस्वीरें और वीडियो शेयर करते हैं। कई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बसंत पंचमी से संबंधित विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
बसंत पंचमी एक ऐसा त्योहार है जो प्रकृति, ज्ञान और संस्कृति का संगम है। यह हमें नई शुरुआत करने, सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने और जीवन में खुशियां लाने की प्रेरणा देता है। यह त्योहार हमें प्रकृति के प्रति प्रेम और सम्मान रखने का संदेश देता है। हमें इस त्योहार को इसकी मूल भावना के साथ मनाना चाहिए और इसे आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाना चाहिए। यह त्योहार हमारी संस्कृति और परंपरा का अभिन्न अंग है, जो हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखता है। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की साई न्यूज के दर्शकों को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं! हरि ओम,
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी, विद्या की देवी माता सरस्वती एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, जय माता सरस्वती, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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