जानिए कब है दत्तात्रेय जयंति! किसका अवतार माना गया है दत्तात्रेय भगवान को . . .
दत्तात्रेय जयंती हिंदू धर्म में सबसे शुभ दिनों में से एक मानी जाती है। यह दिन भगवान दत्तात्रेय को समर्पित है। हर साल यह पर्व मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस शुभ दिन पर भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था, जिसे दत्त जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इस साल यह पर्व 14 दिसंबर को मनाया जाएगा। ऐसी मान्यता है कि जो लोग इस व्रत का पालन करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। साथ ही दत्तात्रेय भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
भगवान दत्तात्रेय की जयंती मार्गशीर्ष माह में मनाई जाती है। दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं इसीलिए उन्हें परब्रम्हामूर्ति सद्गुरु और श्रीगुरुदेवदत्त भी कहा जाता हैं। उन्हें गुरु वंश का प्रथम गुरु, साथक, योगी और वैज्ञानिक माना जाता है। हिंदू मान्यताओं अनुसार दत्तात्रेय ने पारद से व्योमयान उड्डयन की शक्ति का पता लगाया था और चिकित्सा शास्त्र में क्रांतिकारी अन्वेषण किया था।
सनातन वैदिक उपासना एवं सन्यास धर्म में दत्तात्रेय भगवान का विशेष महत्व है। इस पर्व के दिन सद्गृहस्थों के यहां व्रत पूजन तो होता ही है लेकिन दशनाम सन्यासियों के अखाड़ों में विशेष अध्यात्मिक प्रवचन भी चलते हैं जिससे आराधाना और साधना से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। यह विद्या के परम आचार्य हैं। भगवान दत्तजी के नाम पर दत्त संप्रदाय दक्षिण भारत में विशेष प्रसिद्ध है।
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जानिए किस तरह हुई भगवान दत्तात्रेय की उत्पत्ति,
महायोगीश्वर दत्तात्रेय भगवान को विष्णु जी का अवतार माना जाता है। इनका अवतरण मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को प्रदोष काल में हुआ। अतः इस दिन बड़े समारोह पूर्वक दत्त जयंती का उत्सव मनाया जाता है। श्रीमद भभगवत में एक प्रसंग आया है कि पुत्र प्राप्ति की इच्छा से महर्षि अत्रि के व्रत करने पर दत्तो मयाहमिति यद भगवान स दत्तः मैंने अपने आपको तुम्हें दे दिया विष्णु जी के ऐसा कहने से भगवान विष्णु जी ही अत्रि के पुत्र रूप में अवतरित हुए और दत्त कहलाए। अत्रिपुत्र होने से ये आत्रेय कहलाते हैं।
दत्त और आत्रेय के संयोग से इनका दत्तात्रेय नाम प्रसिद्ध हो गया। इनकी माता का नाम अनसुईया है, उनका पतिव्रता धर्म संसार में प्रसिद्ध है। पुराणों में कथा आती है, ब्रम्हाणी, रुद्राणी और लक्ष्मी को अपने पतिव्रत धर्म पर गर्व हो गया। भगवान को अपने भक्त का अभिमान सहन नहीं होता तब उन्होंने एक अद्भुत लीला करने की सोची।
भक्त वत्सल भगवान ने देवर्षि नारद के मन में प्रेरणा उत्पन्न की। नारद घूमते घूमते देवलोक पहुंचे और तीनों देवियों के पास बारी बारी जाकर कहा अत्रिपत्नी अनसूया के समक्ष आपको सतीत्व नगण्य है। तीनों देवियों ने अपने स्वामियों विष्णु, महेश और ब्रम्हा से देवर्षि नारद की यह बात बताई और उनसे अनसूया के पातिव्रत्य की परीक्षा करने को कहा।
देवताओं ने बहुत समझाया परंतु उन देवियों के हठ के सामने उनकी एक न चली। अन्ततः साधुवेश बनाकर वे तीनों देव अत्रिमुनि के आश्रम में पहुंचे। महर्षि अत्रि उस समय आश्रम में नहीं थे। अतिथियों को आया देख देवी अनसूया ने उन्हें प्रणाम कर अर्घ्य, कंदमूलादि अर्पित किए किंतु वे बोले हम लोग तब तक आतिथ्य स्वीकार नहीं करेंगे, जब तक आप हमें अपने गोद में बिठाकर भोजन नहीं कराती।
यह बात सुनकर प्रथम तो देवी अनसूया अवाक रह गईं किंतु आतिथ्य धर्म की महिमा का लोप न जाए, इस दृष्टि से उन्होंने नारायण का ध्यान किया। अपने पतिदेव का स्मरण किया और इसे भगवान की लीला समझकर वे बोलीं यदि मेरा पातिव्रत्य धर्म सत्य है तो यह तीनों साधु छह छह मास के शिशु हो जाएं। इतना कहना ही था कि तीनों देव छह मास के शिशु हो रुदन करने लगे।
तब माता ने उन्हें गोद में लेकर दुग्ध पान कराया फिर पालने में झुलाने लगीं। ऐसे ही कुछ समय व्यतीत हो गया। इधर देवलोक में जब तीनों देव वापस न आए तो तीनों देवियां अत्यंत व्याकुल हो गईं। फलतः नारद आए और उन्होंने संपूर्ण हाल कह सुनाया। तीनों देवियां अनसूया के पास आईं और उन्होंने उनसे क्षमा मांगी।
देवी अनसूया ने अपने पातिव्रत्य से तीनों देवों को पूर्वरूप में कर दिया। इस प्रकार प्रसन्न होकर तीनों देवों ने अनसूया से वर मांगने को कहा तो देवी बोलीं आप तीनों देव मुझे पुत्र रूप में प्राप्त हों। तथास्तु कहकर तीनों देव और देवियां अपने अपने लोक को चले गए।
कालांतर में यही तीनों देव अनुसुईया माता के गर्भ से प्रकट हुए। ब्रम्हा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा तथा विष्णु के अंश से दत्तात्रेय श्रीविष्णु भगवान के ही अवतार हैं और इन्हीं के आविर्भाव की तिथि दत्तात्रेय जयंती कहलाती है। भगवान दत्तात्रेय कृपा की मूर्ति कहे जाते हैं। परम भक्त वत्सल दत्तात्रेय भक्त के स्मरण करते ही उसके पास पहुंच जाते हैं। इसीलिए इन्हें स्मृतिगामी तथा स्मृतिमात्रानुगन्ता भी कहा गया है। मार्गशीर्ष महीने की पूर्णता दत्तात्रेय जयंती के रूप में पूर्णमासी को होने के कारण विशेष महत्व रखता है।
जानिए दत्तात्रेय जयंती की तिथि और शुभ महूर्त,
हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 14 दिसंबर, 2024 को शाम 4 बजकर 58 मिनट पर होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 15 दिसंबर, 2024 दोपहर 2 बजकर 31 मिनट पर होगी। पंचांग को देखते हुए इस साल दत्तात्रेय जयंती 14 दिसंबर को मनाई जाएगी।
दत्तात्रेय जयंती की पूजा विधि जानिए,
दत्तात्रेय जयंती पर सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करें। पूजा कक्ष को साफ करें। एक चौकी पर भगवान दत्तात्रेय की मूर्ति स्थापित करें। उन्हें गंगाजल से स्नान करवाएं। सफेद चंदन का तिलक लगाएं। उन्हें फूल माला और मिठाई आदि अर्पित करें। वहीं, जिनके पास दत्तात्रेय जी की मूर्ति नहीं है, वे भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित कर सकते हैं, क्योंकि कुछ लोगों को यह मानना है कि वह भगवान विष्णु के अवतार थे इसलिए भक्त भगवान विष्णु की मूर्ति की पूजा कर सकते हैं।
साथ ही उन्हें तुलसी पत्र और पंचामृत जरूर अर्पित करें, जो साधक इस दिन उपवास का पालन करते हैं, उन्हें व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। साथ ही अंत में आरती करनी चाहिए। इस दिन गलती से भी तामसिक चीजों का उपयोग न करें। पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा याचना करें। जरूरतमंदों में कुछ दान जरूर करें। इस दिन अवधूत गीता और जीवनमुक्ता गीता पढ़ने का विधान है. ऐसा करने से आपके जीवन के सभी दुख दूर होते हैं।
हिंदू धर्म के त्रिदेव ब्रम्हा, विष्णु और महेश की प्रचलित विचारधारा के विलय के लिए ही भगवान दत्तात्रेय ने जन्म लिया था, इसीलिए उन्हें त्रिदेव का स्वरूप भी कहा जाता है। दत्तात्रेय को शैवपंथी शिव का अवतार और वैष्णवपंथी विष्णु का अंशावतार मानते हैं। दत्तात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा का भी अग्रज माना है। यह भी मान्यता है कि रसेश्वर संप्रदाय के प्रवर्तक भी दत्तात्रेय थे। भगवान दत्तात्रेय से वेद और तंत्र मार्ग का विलय कर एक ही संप्रदाय निर्मित किया था।
शिक्षा और दीक्षा
भगवान दत्तात्रेय ने जीवन में कई लोगों से शिक्षा ली। दत्तात्रेय ने अन्य पशुओं के जीवन और उनके कार्यकलापों से भी शिक्षा ग्रहण की। दत्तात्रेयजी कहते हैं कि जिससे जितना जितना गुण मिला है उनको उन गुणों को प्रदाता मानकर उन्हें अपना गुरु माना है, इस प्रकार मेरे 24 गुरु हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, कपोत, अजगर, सिंधु, पतंग, भ्रमर, मधुमक्खी, गज, मृग, मीन, पिंगला, कुररपक्षी, बालक, कुमारी, सर्प, शरकृत, मकड़ी और भृंगी।
ब्रम्हाजी के मानसपुत्र महर्षि अत्रि इनके पिता तथा कर्दम ऋषि की कन्या और सांख्यशास्त्र के प्रवक्ता कपिलदेव की बहन सती अनुसूया इनकी माता थीं। श्रीमद्भागवत में महर्षि अत्रि एवं माता अनुसूया के यहां त्रिदेवों के अंश से तीन पुत्रों के जन्म लेने का उल्लेख मिलता है।
पुराणों अनुसार इनके तीन मुख, छह हाथ वाला त्रिदेवमय स्वरूप है। चित्र में इनके पीछे एक गाय तथा इनके आगे चार कुत्ते दिखाई देते हैं। औदुंबर वृक्ष के समीप इनका निवास बताया गया है। विभिन्न मठ, आश्रम और मंदिरों में इनके इसी प्रकार के चित्र का दर्शन होता है।
दत्तात्रेय के शिष्यों के बारे में जानिए,
उनके प्रमुख तीन शिष्य थे जो तीनों ही राजा थे। दो यौद्धा जाति से थे तो एक असुर जाति से। उनके शिष्यों में भगवान परशुराम का भी नाम लिया जाता है। तीन संप्रदाय (वैष्णव, शैव और शाक्त) के संगम स्थल के रूप में भारतीय राज्य त्रिपुरा में उन्होंने शिक्षा दीक्षा दी। इस त्रिवेणी के कारण ही प्रतीकस्वरूप उनके तीन मुख दर्शाएं जाते हैं जबकि उनके तीन मुख नहीं थे।
मान्यता अनुसार दत्तात्रेय ने परशुरामजी को श्रीविद्या मंत्र प्रदान की थी। यह मान्यता है कि शिवपुत्र कार्तिकेय को दत्तात्रेय ने अनेक विद्याएं दी थी। भक्त प्रह्लाद को अनासक्ति योग का उपदेश देकर उन्हें श्रेष्ठ राजा बनाने का श्रेय दत्तात्रेय को ही जाता है।
दूसरी ओर मुनि सांकृति को अवधूत मार्ग, कार्तवीर्यार्जुन को तंत्र विद्या एवं नागार्जुन को रसायन विद्या इनकी कृपा से ही प्राप्त हुई थी। गुरु गोरखनाथ को आसन, प्राणायाम, मुद्रा और समाधि चतुरंग योग का मार्ग भगवान दत्तात्रेय की भक्ति से प्राप्त हुआ।
गुरु पाठ और जाप के बारे में जानिए,
दत्तात्रेय का उल्लेख पुराणों में मिलता है। इन पर दो ग्रंथ हैं अवतार चरित्र और गुरुचरित्र, जिन्हें वेदतुल्य माना गया है। इसकी रचना किसने की यह हम नहीं जानते। मार्गशीर्ष 7 से मार्गशीर्ष 14, यानी दत्त जयंती तक दत्त भक्तों द्वारा गुरुचरित्र का पाठ किया जाता है। इसके कुल 52 अध्याय में कुल 7491 पंक्तियां हैं। इसमें श्रीपाद, श्रीवल्लभ और श्रीनरसिंह सरस्वती की अद्भुत लीलाओं व चमत्कारों का वर्णन है।
दत्त पादुका की महिमा जानिए,
ऐसी मान्यता है कि दत्तात्रेय नित्य प्रातः काशी में गंगाजी में स्नान करते थे। इसी कारण काशी के मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका दत्त भक्तों के लिए पूजनीय स्थान है। इसके अलावा मुख्य पादुका स्थान कर्नाटक के बेलगाम में स्थित है। देशभर में भगवान दत्तात्रेय को गुरु के रूप में मानकर इनकी पादुका को नमन किया जाता है। हरि ओम,
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