जानिए कब है मत्स्य द्वादशी, किस तरह होता है मत्स्य द्वादशी का पूजन पाठ . . .
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मत्स्यावतार इसमें मत्स्य का अर्थ होता है मछली का, भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है जो उनके दस अवतारों में से सबसे पहला अवतार है। इस अवतार में भगवान विष्णु ने इस संसार को भयानक जल प्रलय से बचाया था। साथ ही उन्होंने हयग्रीव नामक दैत्य का भी वध किया था जिसने वेदों को चुराकर सागर की गहराई में छिपा दिया था।
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
मत्स्य नारायण और मनु के बारे में जानिए,
एक बार इस पृथ्वी पर मनु नामक पुरुष हुए। वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे। एक बार वे सुबह के समय सूर्यनारायण को अर्घ्य दे रहे थे तभी एक मछली नें उनसे कहा कि आप मुझे अपने कमंडल में रख लो। दया और धर्म के अनुसार इस राजा ने मछली को अपने कमंडल में ले लिया और घर की ओर निकले, घर पहुँचते तक वह मत्स्य उस कमंडल के आकार का हो गया, राजा नें इसे एक पात्र पर रखा परंतु कुछ समय बाद वह मत्स्य उस पात्र के आकार की हो गई। अंत में राजा नें उसे समुद्र में डाला तो उसने पूरे समुद्र को ढँक लिया।
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विद्वान् राजा समझ गया कि यह कोई साधारण मछली नहीं है, अवश्य ही यह कोई देव है और राजा ने मछली रुपी देव से अपने असली रूप में आने की प्रार्थना की। राजा की प्रार्थना पर नारायण प्रकट हुए और राजा से बोले कि हे . . . राजन आज से सात दिन बाद पृथ्वी पर जल प्रलय होगी। सम्पूर्ण पृथ्वी जलमग्न हो जायेगी तो आप एक बड़ी सी नाव का निर्माण कर सप्त ऋषियों तमाम तरह के बीजों, पशु पक्षियों के जोड़ों के साथ उस नाव में बैठ जाएँ। समय आने पर मैं बड़ी मछली बनकर आप की नाव के निकट आउंगी तो आप वासुकि नाग की रस्सी मेरे सींग पर डाल देना मैं स्वयं आप और आपकी नाव को इस जल प्रलय से बाहर सुरक्षित स्थान तक ले जाऊंगा।
भगवान के निर्देशानुसार राजा ने समस्त सामग्री एकत्र कर नाव का निर्माण कर उसमें सभी चीजों और सप्त ऋषियों के साथ बैठ गए। नियत तिथि पर जल प्रलय हुई, चारों तरफ जल ही जल दिखाई पड़ता था। नाव में बैठे राजा बहुत डरे हुए थे तो सप्त ऋषियों ने राजा को ढाढ़स बंधाया और नारायण की प्रतीक्षा करने को कहा।
कुछ समय पश्चात् एक बड़ी मछली नाव के इर्द गिर्द चक्कर लगाने लगी इस मछली के मस्तक पर एक बड़ा सींग दृष्टिगोचर हो रहा था और राजा ने जैसे भगवान ने चंी।म ही निर्देश दिया था वासुकि नाग की रस्सी बना इस सींग पर डाल दी। अब यह मछली नाव को अपार जल में इधर उधर घुमाती रही और राजा सत्यव्रत, मनु मत्स्य रुपी नारायण से प्रश्न करते रहे और मत्स्य रुपी नारायण उनके इन प्रश्नों का उत्तर देते रहे। मत्स्य भगवान और राजा सत्यव्रत, मनु के बीच यह संवाद मत्स्य पुराण के रूप में सनातनधर्मियों के बीच स्थित है। मत्स्यावतार में ही नारायण ने हयग्रीव नामक दानव से वेदों का उद्धार भी किया और हयग्रीव का वध कर वेद पुनः परमपिता ब्रम्हा जी की दिए।
इस तरह किया सृष्टि का निर्माण,
जल प्रलय के बाद सृष्टि में जब जल ही जल था तब ठोस भूमि की स्थापना के लिए भगवान मत्स्य सागर के तल में जाकर र्मिीी लाए। इस र्मिीी को जल में मिलाकर जैसे दूध से दही बनाते हैं उसी प्रकार से जल से ठोस भूमि का निर्माण किया गया। और इस तरह सृष्टि के फिर से निर्माण हो सका। इसलिए सृष्टि के निर्माता और रक्षक मत्स्य भगवान को मत्स्य जयंती पर श्रद्धालुजन विशेष रूप से स्मरण करते हैं और पूजते हैं।
मत्स्य नारायण और हयग्रीवासुर की कथा जानिए,
एक बार सृष्टि रचियेता ब्रम्हा जी ने वेदों का निर्माण किया। ब्रम्हादेव के निद्रामग्न होने के पश्चात् हयग्रीवासुर नाम का एक दैत्य वेदों को चुराकर ले गया जिससे संसार में पाप और अधर्म छा गया। ब्रम्हादेव ने ये बात भगवान विष्णु को बताई। उन्होंने हयग्रीवासुर का वध करने के लिए एक बड़ी मत्स्य का रूप ले लिया और समुद्र में जाकर हयग्रीव के पहरेदारों को मारकर उसके कारागार से वेदों को छुड़ा लिया और हयग्रीवासुर की सेना समेत हयग्रीवासुर को भी मार डाला और वेदों को अपने मुंह में रखकर समुद्र से बाहर आ गए और वेद वापिस ब्रम्हाा जी को सौंप दिए।
मत्स्य रूप में करते हैं भगवान निवास,
मत्स्य भगवान के बारे में पुराणों में बताया गया है कि कार्तिक मास में भगवान विष्णु जल में मत्स्य रूप में निवास करते हैं। यही वजह है कि बहुत से श्रद्धालु कार्तिक मास में मछली खाना बंद कर देते हैं। भगवान मत्स्य के प्रति आभार और श्रद्धा प्रकट करने के लिए श्रद्धालुजन चौत्र शुक्ल द्वितीया तिथि को मत्स्य जयंती मनाते हैं।
हिंदू धर्म में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से विष्णु देव की अराधना करता है श्री हरि उसकी सदैव रक्षा करते हैं। यही वजह है कि विष्णु देव को जगत का पालनहार भी कहा जाता है। भगवान विष्णु ने मनुष्यों की रक्षा के लिए सबसे पहले धरती पर मत्स्य अवतार लिया था, जिस दिन भगवान विष्णु ने अवतार लिया था उसे मत्स्य द्वादशी के नाम से जाना जाता है।
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मत्स्य द्वादशी मनाई जाती है, जो इस साल 12 दिसंबर को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु के पहले अवतार मत्स्य रूप के पूजन का विधान है।
मत्स्य द्वादशी पूजा विधि जानिए,
मत्स्य द्वादशी के दिन सुबह उठकर स्नान करें, इसके बाद पूजा घर की साफ सफाई करें। सफाई करने के बाद एक साफ आसन पर पीला वस्त्र बिछाकर विष्णु देव की प्रतिमा को स्थापित करें। फिर उन्हें चंदन, हल्दी, फूल और धूप अर्पित करें। बाद में भगवान विष्णु को भोग लगाकर विष्णु के मंत्रों का जाप करें और फिर आरती करें। आरती के बाद अपने घर परिवार के लोगों को प्रसाद वितरित करके श्रद्धा पूर्वक प्रसाद ग्रहण करें। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से इस दिन भगवान विष्णु की अराधना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और भगवान विष्णु सभी परेशानियों से उसकी रक्षा करते हैं।
मत्स्य द्वादशी व्रत से मिलते हैं ये लाभ
पौराणिक मान्यताओं को अनुसार, जो महिलाएं सच्चे मन से मत्स्य द्वादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु की अराधना करती हैं, उनकी मनचाही इच्छा पूरी होती है। पति और संतान को उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है, साथ ही घर में भी सुख शांति आती है। इसके साथ ही मत्स्य द्वादशी का व्रत रखने से मनुष्य को ब्रम्ह लोक की प्राप्ति होती है। हरि ओम,
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