जानिए नागा साधुओं का इतिहास, जीवन, साधु बनने की प्रक्रिया, नियम आदि विस्तार से . . .

नागा साधुओं को लेकर सभी के मन में रहती है जिज्ञासा, जानिए सब कुछ . . .
आप देख, सुन और पढ़ रहे हैं समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की साई न्यूज के धर्म प्रभाग में विभिन्न जानकारियों के संबंद्ध में . . .
यह सच है कि सभी साधुओं में नागा साधुओं को सबसे ज्यादा हैरत और अचरज से देखा जाता है। यह आम जनता के बीच एक कौतुहल का विषय होते है। यदि आप यह सोचते है की नागा साधु बनना बड़ा आसान है तो यह आपकी गलत सोच है। नागा साधुओं का प्रशिक्षण सेना के कमांडों की ट्रेनिंग से भी ज्यादा कठिन होता है, उन्हें दीक्षा लेने से पूर्व खुद का पिंड दान और श्राद्ध तर्पण करना पड़ता है।
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
कहा जाता है कि प्राचीन काल के अखाड़ों में नाग साधुओं को मठो की रक्षा के लिए एक योद्धा की तरह तैयार किया जाता था। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा की मठों और मंदिरों की रक्षा के लिए इतिहास में नाग साधुओं ने कई लड़ाइयां भी लड़ी है। आज इस लेख में हम आपको नागा साधुओं के बारे में उनके इतिहास से लेकर उनकी दीक्षा तक सब-कुछ विस्तारपूर्वक बताएंगे।
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सबसे पहले जानते हैं नागा साधु के एक संन्यासी के रूप में उनका कठिन जीवन,
नागा साधु हिंदू धर्म के सबसे कठोर तपस्वियों में से एक माने जाते हैं। वे अपने नग्न शरीर, लंबे जटायुक्त बालों और भस्म से शरीर को ढकने के लिए जाने जाते हैं। नागा साधु बनना एक साधारण कार्य नहीं है, बल्कि एक कठिन साधना है जिसमें कई वर्षों का समय लगता है।
नागा साधु बनने की प्रक्रिया जानिए,
नागा साधुओं के संबंध में जो भी जानकारी अब तक उपलब्ध हुई है उसके अनुसार दीक्षा से पहले के बारे में सबसे पहले आपको बताते हैं, नागा साधु बनने से पहले एक व्यक्ति को कई वर्षों तक कठोर तपस्या करनी होती है। इसमें ब्रम्हचर्य का पालन, सेवा कार्य करना और गुरु की आज्ञा का पालन करना आदि इसमें शामिल होता है।
इसके बाद आती है पिंडदान की बारी, दीक्षा से पहले व्यक्ति को अपना पिंडदान करना होता है। यह एक हिंदू संस्कार है जिसमें व्यक्ति अपने मृत पूर्वजों को श्रद्धांजलि देता है और अपने पुराने जीवन को त्याग देता है।
अब जानिए वस्त्रों के त्याग के बारे में, नागा साधु वस्त्रों का त्याग कर देते हैं और केवल भस्म को ही अपने शरीर पर मलकर या लगाकर इससे अपने शरीर को ढकते हैं।
भोजन और निद्रा के बारे में जानिए, नागा साधु भिक्षा पर निर्भर रहते हैं और एक दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं। वे जमीन पर सोते हैं और किसी भी प्रकार के आराम का त्याग कर देते हैं।
मंत्र और ध्यान के संबंध में कहा जाता है कि नागा साधु अपने गुरु द्वारा दिए गए मंत्र का जाप करते हैं और ध्यान करते हैं।
नागा साधुओं का जीवन कैसा होता है यह जानिए,
नागा साधुओं का जीवन बहुत ही कठोर और अनुशासित होता है। वे जंगलों में या मठों में रहते हैं और अपने जीवन को धर्म और आध्यात्म को समर्पित कर देते हैं। वे समाज से अलग रहते हैं और संसार के मोह माया से दूर रहते हैं।
नागा साधुओं का महत्व जानिए,
नागा साधु हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे धर्म और संस्कृति की रक्षा करते हैं और लोगों को धार्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। कुंभ मेले जैसे धार्मिक आयोजनों में नागा साधुओं की विशेष भूमिका होती है।
नागा साधुओं के बारे में कुछ रोचक तथ्य जानिए,
नागा साधुओं का इतिहास बहुत पुराना है।
नागा साधुओं को विभिन्न अखाड़ों में विभाजित किया गया है।
नागा साधुओं को युद्ध कला में भी पारंगत माना जाता है।
नागा साधुओं की संख्या धीरे धीरे कम हो रही है।
नाग साधुओं के नियम जानिए,
वर्त्तमान में भारत में नागा साधुओं के कई प्रमुख अखाड़े है। वैसे तो हर अखाड़े में दीक्षा के कुछ अपने नियम होते हैं, लेकिन कुछ कायदे ऐसे भी होते हैं, जो सभी दशनामी अखाड़ों में एक जैसे होते हैं।
सबसे पहले जानिए बम्हचर्य के पालन के संबंध में,
कोई भी आम आदमी जब नागा साधु बनने के लिए आता है, तो सबसे पहले उसके स्वयं पर नियंत्रण की स्थिति को परखा जाता है। उससे लंबे समय ब्रम्हचर्य का पालन करवाया जाता है। इस प्रक्रिया में सिर्फ दैहिक ब्रम्हचर्य ही नहीं, मानसिक नियंत्रण को भी परखा जाता है। अचानक किसी को दीक्षा नहीं दी जाती। पहले यह तय किया जाता है कि दीक्षा लेने वाला पूरी तरह से वासना और इच्छाओं से मुक्त हो चुका है अथवा नहीं।
अब सेवा कार्य के बारे में जानिए,
ब्रम्हचर्य व्रत के साथ ही दीक्षा लेने वाले के मन में सेवाभाव होना भी आवश्यक है। यह माना जाता है कि जो भी साधु बन रहा है, वह धर्म, राष्ट्र और मानव समाज की सेवा और रक्षा के लिए बन रहा है। ऐसे में कई बार दीक्षा लेने वाले साधु को अपने गुरु और वरिष्ठ साधुओं की सेवा भी करनी पड़ती है। दीक्षा के समय ब्रम्हचारियों की अवस्था प्रायः 17 या 18 वर्ष से कम की नहीं रहा करती और वे ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य वर्ण के ही हुआ करते हैं।
दीक्षा के पहले जो सबसे महत्वपूर्ण कार्य है, वह है खुद का श्राद्ध और पिंडदान करना। इस प्रक्रिया में साधक स्वयं को अपने परिवार और समाज के लिए मृत मानकर अपने हाथों से अपना श्राद्ध कर्म करता है। इसके बाद ही उसे गुरु द्वारा नया नाम और नई पहचान दी जाती है।
नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती। अगर वस्त्र धारण करने हों, तो सिर्फ गेरुए रंग के वस्त्र ही नागा साधु पहन सकते हैं। वह भी सिर्फ एक वस्त्र, इससे अधिक गेरुए वस्त्र नागा साधु धारण नहीं कर सकते। नागा साधुओं को शरीर पर सिर्फ भस्म लगाने की अनुमति होती है। भस्म का ही श्रंगार किया जाता है।
नागा साधुओं को विभूति एवं रुद्राक्ष धारण करना पड़ता है, शिखा सूत्र (चोटी) का परित्याग करना होता है। नागा साधु को अपने सारे बालों का त्याग करना होता है। वह सिर पर शिखा भी नहीं रख सकता या फिर संपूर्ण जटा को धारण करना होता है।
नागा साधुओं को रात और दिन मिलाकर केवल एक ही समय भोजन करना होता है। वो भोजन भी भिक्षा मांग कर लिया गया होता है। एक नागा साधु को अधिक से अधिक सात घरों से भिक्षा लेने का अधिकार है। अगर सातों घरों से कोई भिक्षा ना मिले, तो उसे भूखा रहना पड़ता है। जो खाना मिले, उसमें पसंद नापसंद को नजर अंदाज करके प्रेमपूर्वक ग्रहण करना होता है।
नागा साधु सोने के लिए पलंग, खाट या अन्य किसी साधन का उपयोग नहीं कर सकता। यहां तक कि नागा साधुओं को गादी पर सोने की भी मनाही होती है। नागा साधु केवल पृथ्वी पर ही सोते हैं। यह बहुत ही कठोर नियम है, जिसका पालन हर नागा साधु को करना पड़ता है।
दीक्षा के बाद गुरु से मिले गुरुमंत्र में ही उसे संपूर्ण आस्था रखनी होती है। उसकी भविष्य की सारी तपस्या इसी गुरु मंत्र पर आधारित होती है।
अन्य नियम भी जान लीजिए,
बस्ती से बाहर निवास करना, किसी को प्रणाम न करना और न किसी की निंदा करना तथा केवल संन्यासी को ही प्रणाम करना आदि कुछ और नियम हैं, जो दीक्षा लेने वाले हर नागा साधु को पालन करना पड़ते हैं।
नागा साधुओं को आजीवन निर्वस्त्र रहना होता है. वस्त्रों को वे सांसारिक जीवन और आडंबर का प्रतीक मानते हैं।
नागा साधुओं को भस्म और रूद्राक्ष धारण करना होता है. भस्म और रूद्राक्ष ही एक तरह से इनके वस्त्र होते हैं।
नागा साधुओं को सोने के लिए बिस्तर का भी उपयोग नहीं करना होता. वे जमीन पर ही सोते हैं।
नागा साधुओं को भिक्षा में मिला भोजन ही ग्रहण करना होता है. अगर किसी दिन उन्हें भोजन नहीं मिलता है, तो उन्हें बिना खाए ही रहना पड़ता है।
नागा साधुओं को किसी अन्य व्यक्ति के समक्ष सिर नहीं झुकाना होता और ना ही किसी की निंदा करनी होती।
नागा साधुओं को गुरु से मिले गुरुमंत्र में ही संपूर्ण आस्था रखनी होती है।
नागा साधुओं के कई संप्रदाय होते हैं, जैसे शैव, वैष्णव और उदासीन संप्रदाय।
नागा साधु बनने के लिए 12 साल की कठिन तपस्या करनी पड़ती है।
नागा साधु बनने से पहले अपने बीते हुए सांसारिक जीवन का त्याग करने के लिए स्वयं का पिंडदान करना होता है।
नागा साधु हिंदू धर्म के सबसे अधिक तपस्वियों में से एक माने जाते हैं। वे अपनी कठोर तपस्या, नग्न शरीर, लंबे जटायुक्त बालों और भस्म से शरीर को ढकने के लिए जाने जाते हैं। नागा साधु बनना एक साधारण कार्य नहीं है, बल्कि एक कठिन साधना है जिसमें कई वर्षों का समय लगता है। यह साधना कई कठोर नियमों और परंपराओं पर आधारित होती है। हरि ओम,
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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PREETI BHOSLE

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