नवरात्र का पहला दिन, नवरात्र के पहले दिन होती है माता के शैलपुत्री स्वरूप की अराधना . . .
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सनातन धर्म के कैलेण्डर के अनुसार चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि सनातन धर्म में वासंतेय या चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो जाती है, जिसमें देवी माता के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें नव दुर्गा के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में नवरात्रि का महत्व बेहद खास माना जाता है।
अगर आप जगत जननी माता दुर्गा की अराधना करते हैं और अगर आप माता दुर्गा जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय भवानी, जय दुर्गा अथवा जय काली माता लिखना न भूलिए।
आईए जानते हैं कि कितने प्रकार की नवरात्रि साल भर में होती हैं,
पूरे साल में चार नवरात्रि आती हैं, पहली चैत्र नवरात्रि और दूसरी वासंतेय या चैत्र नवरात्रि विशेष रूप से मनाई जाती है। वैसे सनातन धर्म में साल में चार बार नवरात्रि मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार चैत्र और वासंतेय या चैत्र नवरात्रि के अलावा दो गुप्त नवरात्रि भी होती हैं। एक गुप्त नवरात्रि माघ महीने में और दूसरी आषाढ़ महीने में मनाई जाती है। चैत्र और वासंतेय या चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की सार्वजनिक रूप से पूजा की जाती है। जबकि गुप्त नवरात्रि में मां काली और दस महाविद्याओं की गुप्त रूप से पूजा की जाती है।
जानिए वर्ष 2025 में कब आरंभ होगी चैत्र नवरात्र,
इस बार पितृ पक्ष सितंबर में संपन्न हो रहे हैं और वासंतेय या चैत्र नवरात्रि की शुरूआत 30 मार्च को चैत्र नवरात्र मे शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होगी। इस दौरान घरों में मां दुर्गा की अराधना का पूरे विधि विधान के पूजन किया जाएगा। इसके लिए पूरे रीति रिवाज और मुहूर्त के अनुसार घरों में कलश स्थापना कर नौ दिनों तक माता की आराधना की जाएगी।
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आईए जानते हैं वर्ष 2025 में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त,
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत शनिवार 29 मार्च को शाम 04 बजकर 27 मिनट पर होगी। वहीं, 30 मार्च को प्रतिपदा तिथि दोपहर 12 बजकर 49 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान्य है। इसके लिए 30 मार्च को घटस्थापना की जाएगी। इसके साथ ही चैत्र नवरात्र की शुरुआत होगी।
अब जानिए घटस्थापना के समय के बारे में,
जानकार विद्वानों के अनुसार ज्योतिषीय गणना के अनुसार, 30 मार्च को घटस्थापना समय सुबह 6 बजकर 13 मिनट से लेकर 10 बजकर 22 मिनट तक है। इस समय में स्नान-ध्यान कर कलश स्थापना कर सकते हैं। इसके बाद अभिजीत मुहूर्त 12 बजकर 1 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 50 मिनट के मध्य भी कलश स्थापना कर सकते हैं। इन दो शुभ योग में घटस्थापना कर सकते हैं।
हर साल नवरात्रि के दौरान दिन के हिसाब से मां की सवारी तय की जाती है। अगर नवरात्रि की शुरुआत रविवार से हो रही है तो मां की सवारी हाथी मानी जाती है। अगर नवरात्रि की शुरुआत मंगलवार और शनिवार से हो रही है तो मां की सवारी घोड़ा होती है। वहीं अगर नवरात्रि की शुरुआत गुरुवार और शुक्रवार से हो रही है तो मां की सवारी डोली या पालकी होती है। साल 2025 में नवरात्रि की शुरुआत रविवार से हो रही है तो माता की सवारी हाथी है, जो बहुत शुभ माना गया है।
आईए अब जानते हैं वासंतेय या चैत्र नवरात्रि के पहले दिन किसकी पूजा की जाती है। वासंतेय या चैत्र या शारदेय नवरात्र के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता पार्वती पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और मां के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा देवी के मंडपो में पहले नवरात्र के दिन होती है। शैल का अर्थ है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। पार्वती के रूप में इनको देवाधिदेव महादेव भगवान शिव के पत्नी के रूप में भी जाना जाता है। आइए आपको बताते हैं मां शैलपुत्री की पूजाविधि, मंत्र और भोग के बारे में विस्तार से . . .
सबसे पहले जानते हैं माता शैलपुत्री के स्वरूप के बारे में,
माता शैलपुत्री का स्वरूप बेहत शांत और सरल है। माता के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में कमल शोभायमान रहता है। माता अपने नंदी नामक बैल पर सवार होकर संपूर्ण हिमालय पर विराजमान हैं इसलिए माता शैलपुत्री को वृषोरूढ़ा और उमा के नाम से भी जाना जाता है। यह वृषभ वाहन शिवा का ही स्वरूप है और शैलपुत्री समस्त वन्य जीव जंतुओं की रक्षक भी हैं। माता शैलपुत्री ने घोर तपस्या करके ही भगवान शिव को प्रसन्न किया था। शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं, जो योग, साधना, तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं। मां अपने भक्तों की हमेशा मनोकामना पूरी करती हैं और साधक का मूलाधार चक्र जागृत होने में सहायता मिलती है।
आईए आपको बताते हैं कि किस तरह की जाए माता शैलपुत्री की पूजा,
वासंतेय या चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन ब्रम्हमुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत स्वच्छ वस्त्र धारण करें और फिर चौकी को गंगाजल से साफ करके मां दुर्गा की मूर्ति या फोटो स्थापित करें। पूरे परिवार के साथ विधि विधान के साथ कलश स्थापना की जाती है। घट स्थापना के बाद मां शैलपुत्री का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें। माता शैलपुत्री की पूजा षोड्शोपचार विधि से की जाती है। इनकी पूजा में सभी नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आव्हान किया जाता है। इसके बाद माता को कुमकुम और अक्षत लगाएं। इसके बाद सफेद, पीले या लाल फूल माता को अर्पित करें। माता के सामने धूप, दीप जलाएं और पांच देसी घी के दीपक जलाएं। इसके बाद माता की आरती उतारें और फिर शैलपुत्री माता की कथा, दुर्गा चालिसा, दुर्गा स्तुति या दुर्गा सप्तशती आदि का पाठ करें। इसके बाद परिवार समेत माता के जयकारे लगाएं और भोग लगाकर पूजा को संपन्न करें। शाम के समय में भी माता की आरती करें और ध्यान करें।
वहीं कुछ जानकार विद्वान यह भी बताते हैं कि नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा का विधान है, इसलिए माता की पूजा के लिए इनके चित्र या प्रतिमा को एक चौकी पर लाल या सफेद वस्त्र बिछाकर स्थापित करें। मां शैलपुत्री को सफेद वस्तु बेहद प्रिय हैं, इसलिए मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र या सफेद फूल, मिठाई अर्पित करें। नवरात्रि के प्रथम दिन उपासना में साधक अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। शैलपुत्री का पूजन करने से मूलाधार चक्र जागृत होता है और अनेक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। जीवन के समस्त कष्ट, क्लेश और नकारात्मक शक्तियों के नाश के लिए एक पान के पत्ते पर लौंग सुपारी मिश्री रखकर मां शैलपुत्री को अर्पण करें।
आईए जानते हैं माता शैलपुत्री की कथा के बारे में,
माता शैलपुत्री से जुड़ी एक कहानी का उल्लेख यहां करना आवश्यक है। प्राचीनकाल में जब माता सती के पिता प्रजापति दक्ष यज्ञ कर रहे थे तो उन्होंने सारे देवताओं को इस यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन अपने जामाता देवाधिदेव महादेव भगवान शिव और अपनी पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। लेकिन सती की अपने पिता के यज्ञ में जाने की बहुत इच्छा थी। उनकी व्यग्रता देख भगवान शंकर जी ने कहा कि संभवतः प्रजापति दक्ष हमसे रुष्ट हैं इसलिए उन्होंने हमें आमंत्रित नहीं किया होगा। शंकरजी के इस वचन से सती संतुष्ट नहीं हुई और जाने के लिए अड़ गई। उनकी जिद देखकर भगवान शंकर ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी। सती जब अपने पिता के घर पहुंची तो सिर्फ उनकी माता ने ही उन्हें स्नेह दिया। बाकी सदस्यों ने उनसे ठीक से बात नहीं की और व्यंग्यात्मक छींटाकशी भी की। प्रजापति दक्ष ने भी भगवान शंकर के प्रति कुछ बातें कहीं जो सती को उचित नहीं लगी। अपने पति का तिरस्कार होता देख उन्होंने योगाग्नि से अपने आप को भस्म कर लिया। जब शंकर को सती के भस्म होने के बारे में पता चला तो वे क्रोधित हो गए और उन्होंने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करवा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ और वे फिर से उनकी पत्नी बन गईं।
जानिए माता शैलपुत्री को कौन सी चीजें प्रिय हैं,
पर्वतराज हिमालय की पुत्र होने के कारण माता की पूजा और भोग में सफेद चीजों का ज्यादा प्रयोग करें। माता को सफेद फूल और सफेद वस्त्र ही अर्पित करें। इसके साथ ही माता को सफेद मिष्ठान का ही भोग लगाएं। माता शैलपुत्री की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है और घर में धन धान्य की कमी नहीं होती है। माता के इस स्वरूप को जीवन में स्थिरता और दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है। शैल का अर्थ होता है पत्घ्थर और पत्घ्थर को सदैव अडिग माना जाता है।
जानते हैं कि आखिर वासंतेय या चैत्र नवरात्रि का क्या है महत्व,
वासंतेय या चैत्र नवरात्रि का महत्व इसलिए है क्योंकि इसी समय देवताओं ने दैत्यों से परास्त होकर और आद्या शक्ति की प्रार्थना की थी। देवताओं की पुकार सुनकर देवी मां का प्रकट हुई थी। उनके इसी प्राकट्य से दैत्यों के संघार करने पर देवी मां की स्तुति देवताओं ने की थी। उसी उपलक्ष्य में वासंतेय या चैत्र नवरात्रि मनाया जाता है।
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(साई फीचर्स)

लगभग 18 वर्षों से पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। दैनिक हिन्द गजट के संपादक हैं, एवं समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के लिए लेखन का कार्य करते हैं . . .
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