जानिए भगवान जगन्नाथ जी को क्या चढ़ाकर आप उन्हें कर सकते हैं प्रसन्न!

जानिए भगवान जगन्नाथ जी को कौन कौन सी चीजें पसंद हैं, जिनके जरिए आप उन्हें कर सकते हैं प्रसन्न!
भगवान जगन्नाथ जी की छेरा रस्म के बारे में जानिए विस्तार से . . .
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जगन्नाथ पुरी में विराजे भगवान जगन्नाथ जी की लीलाएं अपरंपार ही हैं। भगवान जगन्नाथ जी पर करोड़ों अरबों लोगों की आस्था है। जगन्नाथ जी की रथ यात्रा में भीड़ देखकर आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि वे कितनी जबर्दस्त आस्था के साथ इस रथयात्रा का हिस्सा बनते हैं। इतना ही नहीं देश भर में भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा बहुत ही धूमधाम से निकाली जाती है। आईए आज हम आपको बताते हैं कि भगवान जगन्नाथ जी को क्या पसंद है और जगन्नाथ के भात को जगत पसारे हाथ की कहावत क्यों प्रसिद्ध है।
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
भगवान जगन्नाथ को खिचड़ी, मालपुआ, और फल जैसे प्रसाद बहुत पसंद हैं। इसके अलावा, उन्हें नीम का चूर्ण भी अर्पित किया जाता है, खासकर रथ यात्रा के दौरान यह सब कुछ चढ़ाया जाता है।
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भगवान जगन्नाथ को पसंद आने वाले प्रसाद है खिचड़ी, भगवान जगन्नाथ को खिचड़ी बहुत प्रिय है, और इसे उनका प्रमुख प्रसाद माना जाता है।
रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ को मालपुआ का भोग लगाया जाता है। फलों में भगवान जगन्नाथ जी को अखरोट, अमरूद, नारियल, अंगूर और आम जैसे फल भी भगवान जगन्नाथ को पसंद हैं। एक कथा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ को नीम का चूर्ण भी अर्पित किया जाता है, खासकर 56 भोग के बाद उन्हें अर्पित किया जाता है। इसके अलावा अन्य प्रसाद में भगवान जगन्नाथ जी को सूखे मेवे, लड्डू और अन्य मिठाईयां भी अर्पित की जाती हैं।
भगवान जगन्नाथ की उनके मंदिर से पुरी, ओडिशा के गुंडिचा मंदिर तक की यात्रा को जीवंत जगन्नाथ रथ यात्रा के साथ मनाया जाता है। इस दस दिवसीय उत्सव के दौरान जीवन के सभी क्षेत्रों से भक्त परमात्मा से जुड़ने के लिए इकट्ठा होते हैं, जो स्वर्ग से सांसारिक क्षेत्र तक की दिव्य यात्रा का प्रतीक है।
ऐसा माना जाता है कि रथयात्रा में भाग लेकर, विशेष रूप से रथों को खींचकर, भक्त अपने पापों का प्रायश्चित कर सकते हैं और आध्यात्मिक योग्यता प्राप्त कर सकते हैं। दुनिया भर में लाखों लोग इस त्योहार से प्रभावित हैं, जो सद्भाव, भक्ति और आध्यात्मिक विकास की भावना का प्रतीक है। इस वर्ष जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जून 2025 को मनाई जाएगी।
पवित्र रथों की रस्सियों को पकड़कर भक्त उत्सुकता से जगन्नाथ रथ यात्रा में भाग लेने का इंतजार करते हैं। यह कार्य अत्यंत शुभ, महान आध्यात्मिक योग्यता और आशीर्वाद प्रदान करने वाला माना जाता है। आइए समझते हैं कि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ की रस्सी को छूना क्यों शुभ माना जाता है।
जानिए, रथयात्रा की रस्सी को छूना क्यों माना जाता है शुभ?
जगन्नाथ रथ यात्रा की रस्सियों को पकड़ना एक अत्यंत पूजनीय कार्य है, माना जाता है कि यह पापों को शुद्ध करता है और भक्तों को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त करता है। यह परमात्मा से सीधा संबंध है, जो उन्हें भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद प्राप्त करने की अनुमति देता है। भक्त इस दिव्य जुलूस में भाग लेना एक दुर्लभ सौभाग्य मानते हैं।
यह त्यौहार विभिन्न संस्कृतियों और पृष्ठभूमियों के लोगों को एकजुट करता है, जिससे भक्ति और आनंद का साझा अनुभव बनता है। रथों को खींचकर, भक्तों का मानना है कि वे परमात्मा के करीब आ रहे हैं, और यह वास्तव में एक उत्थानकारी अनुभव है जो दिल और आत्मा को छू जाता है।
रथयात्रा की रस्सी को छूने के आध्यात्मिक लाभ जानिए,
ऐसा माना जाता है कि रथ यात्रा उत्सव में भाग लेने या रथ की रस्सी पकड़ने से भी भगवान जगन्नाथ का अपार आशीर्वाद मिलता है। ऐसा माना जाता है कि यह पवित्र कार्य आध्यात्मिक योग्यता और दैवीय कृपा प्रदान करता है।
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, जिन भक्तों ने रथ की रस्सी पकड़ रखी है, उन्हें भगवान जगन्नाथ व्यक्तिगत रूप से दर्शन देते हैं और मृत्यु के समय उन्हें अंतिम दर्शन देते हैं। यह गहन विश्वास लाखों भक्तों को रथ यात्रा की ओर आकर्षित करता है, जो दिव्य संबंध का अनुभव करने और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उत्सुक हैं, जिन्हें भगवान जगन्नाथ के उपासक गहराई से संजोते हैं।
जानिए, क्या है छेरा की रस्म?
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पुरी के जगन्नाथ मंदिर से निकलेगी और गुंडीचा मंदिर तक जाएगी। इस यात्रा के पहले दिन छेरा की रस्म की जाती है। लेकिन, छेरा की रस्म होती क्या है।
प्राचीन काल से एक परंपरा चली आ रही है जिसके दौरान उड़ीसा के महाराज सोने की झाड़ू से रथ की सफाई करते हैं। इस सोने की झाड़ू से रथ की सफाई करने की प्रक्रिया को छेरा की रस्म कहा जाता है और उसके बाद रथ यात्रा शुरू होती है, फिर भक्त भगवान के रथ को खींचते हैं। इसके बाद 1 जुलाई को हेरा पंचमी की रस्म की जाएगी। 4 जुलाई को रथ यात्रा गुंडिचा मंदिर से भगवान जगन्नाथ के प्रमुख मंदिर में जाएगी जिसे जिसे बहुड़ा कहा जाता है। फिर, 5 जुलाई को भगवान जगन्नाथ मुख्य मंदिर वापिस आएंगे, जहां उनका भव्य स्वागत किया जाएगा।
अब जानिए आखिर क्यों निकाली जाती है रथ यात्रा?
स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने एक दिन नगर देखने की इच्छा व्यक्त की। तब जगन्नाथ और बलभद्र अपनी बहन को रथ पर बिठाकर नगर दिखाने निकले। इस यात्रा के दौरान वे अपनी मौसी गुंडिचा के घर गए और वहां सात दिनों तक रुके। तभी से जगन्नाथ रथ यात्रा की परंपरा शुरू हुई।
जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ यह एक प्रसिद्ध कहावत है जिसका अर्थ है कि भगवान जगन्नाथ के प्रसाद, यानी भात (चावल) को खाने के लिए पूरा संसार उत्सुक है, या फिर भगवान जगन्नाथ की कृपा से सभी को भोजन मिले। यह एक प्रार्थना भी है कि भगवान जगन्नाथ सभी के अन्न भंडार भरे रखें और कोई भी भूखा न सोए।
यह कहावत भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के दौरान विशेष रूप से लोकप्रिय होती है, जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं और भक्तों को प्रसाद वितरित किया जाता है। यह कहावत भगवान जगन्नाथ की महिमा और उनके प्रसाद की महत्ता को दर्शाती है। यह एक लोकगीत या भजन का भी हिस्सा हो सकता है, जो भगवान जगन्नाथ की स्तुति में गाया जाता है। हरि ओम,
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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मनोज राव

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