बट सावित्री व्रत कथा को जानिए विस्तार से . . .
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वट सावित्री व्रत की कथा जानिए,
पौराणिक कथा के अनुसार, भद्र देश के एक राजा थे, जिनका नाम अश्व पति था। उनके संतान न थी। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए मंत्र जाप के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियां दीं। माना जाता है कि यह सिलसिला अठारह वर्षों तक चलता रहा। इसके बाद स्वयं सावित्री देवी प्रकट हुईं और वरदान दिया कि राजन, तुम्हें एक तेजस्वी कन्या प्राप्त होगी। देवी सावित्री के आशीर्वाद से जन्म लेने के कारण राजा ने उस कन्या का नाम सावित्री ही रखा। कन्या बड़ी होकर अत्यंत सुन्दर और गुणवान हुई। लेकिन राजा सावित्री के लिए योग्य वर न मिलने के कारण दुखी थे। उन्होंने स्वयं अपनी पुत्री को वर ढूंढने के लिए भेजा।
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश का राजा द्युमत्सेन रहता था, क्योंकि उसका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने उन्हें अपना पति चुना। जब ऋषिराज नारद को इस बात का पता चला तो वे राजा अश्वपति के पास पहुँचे और उनसे बोले, हे राजन! आप क्या कर रहे हो? सत्यवान गुणवान, धर्मात्मा और बलवान है, लेकिन उसकी उम्र बहुत कम है, वह अल्पायु है। एक वर्ष बाद ही सत्यवान की मृत्यु हो जायेगी। नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति बहुत चिंतित हुए।
जब सावित्री ने उससे कारण पूछा तो राजा ने कहा, पुत्री, तुमने जिस राजकुमार को अपना वर चुना है, वह अल्पायु है। तुम्हें किसी और को अपना जीवनसाथी चुन लेना चाहिए। इस पर सावित्री ने कहा कि पिताजी, आर्य लड़कियाँ अपने पति से एक ही बार विवाह करती हैं, राजा एक ही बार आदेश देता है और पंडित एक ही बार वचन देते हैं तथा कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है।सावित्री जिद पर अड़ गई और बोली, मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी। बेटी की जिद के आगे हार गया पिता राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से किया।
ससुराल पहुंचते ही सावित्री अपने सास-ससुर की सेवा करने लगी। समय बीतता चला गया। नारद मुनि ने सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में सावित्री को पहले ही बता दिया था। जैसे-जैसे दिन करीब आता गया, सावित्री अधीर होती गई। वह बेचौन होने लगी। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया था। नारद मुनि द्वारा बताई गई निश्चित तिथि पर पितरों की पूजा की जाती थी।
प्रतिदिन की भाँति सत्यवान, सावित्री के साथ जंगल में लकड़ी काटने गये। जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गया। तभी उनके सिर में तेज दर्द होने लगा, सत्यवान दर्द से व्याकुल होकर पेड़ से नीचे उतर गये। सावित्री को अपना भविष्य समझ आ गया। सावित्री ने सत्यवान का सिर अपनी गोद में रख लिया और उसे सहलाने लगी। तभी वहां यमराज आते दिखे। यमराज सत्यवान को अपने साथ ले जाने लगे। सावित्री भी उसके पीछे-पीछे चल दी। यमराज ने सावित्री को समझाने की बहुत कोशिश की कि यह विधि का विधान है और इसे बदला नहीं जा सकता। लेकिन सावित्री इसे मानने को तैयार नहीं हुई।
यमराज ने सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देखकर सावित्री से कहा कि हे देवी, तुम धन्य हो। मुझसे कोई वरदान मांगो।
पहले वरदान के रूप में सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, आप उन्हें दिव्य ज्योति प्रदान करें। यमराज ने कहा कि ऐसा ही होगा। अब वापस जाओ लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान का पीछा करती रही। यमराज ने कहा देवी आप वापस जाइये। सावित्री ने कहा भगवन मुझे अपने पति के पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है। अपने पति का अनुसरण करना मेरा कर्तव्य है। यह सुनकर उसने फिर उससे दूसरा वर माँगने को कहा।
दूसरे वरदान के रूप में सावित्री ने कहा कि हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुनः प्राप्त कर लो। यमराज ने भी सावित्री को यह वरदान दिया और कहा कि अब तुम लौट जाओ। लेकिन सावित्री आगे-पीछे होती रही।
यमराज ने सावित्री से तीसरा वरदान मांगने को कहा, तीसरे वरदान के रूप में सावित्री ने 100 संतान और सौभाग्य का वरदान मांगा। यमराज ने भी सावित्री को यह वरदान दिया। सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्र होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण बख्शने पड़े। यमराज अन्तर्धान हो गये और सावित्री उसी वटवृक्ष के पास आयी जहाँ उसके पति का शव पड़ा था। सत्यवान के प्राण लौट आये। दोनों ख़ुशी-ख़ुशी अपने राज्य की ओर चल दिये। जब दोनों घर पहुंचे तो देखा कि माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है। इस प्रकार सावित्री-सत्यवान सदैव राज्य का सुख भोगते रहे। हरि ओम,
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)

लगभग 18 वर्षों से पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। दैनिक हिन्द गजट के संपादक हैं, एवं समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के लिए लेखन का कार्य करते हैं . . .
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