लिमटी की लालटेन 124
(लिमटी खरे)
बदलाव प्रकृति का नियम है। सारी चीजें स्थायी नहीं होती हैं। समय के साथ जैसे कालचक्र घूमता है वैसे वैसे परंपराएं, रहन सहन, चाल चलन, खान पान आदि जैसी चीजें बदलती जाती हैं। कोरोनाकाल में भी बहुत सारी चीजों में तब्दीली आपके सामने साफ दिखाई दे रही है। आज मास्क आपकी वेषभूषा का अंग बन चुका है तो शारीरिक दूरी रखना आप नही ंभूलते।
देश में तरह तरह की योजनाओं को बनाने के लिए नीति आयोग, राज्यों के योजना आयोगों आदि जिम्मेदार विभागों के द्वारा तरह तरह के सर्वेक्षण कराए जाते हैं। इन सर्वेक्षणों के आधार पर ही केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा जनता के लिए हितकारी योजनाएं बनाई जाती हैं। देश के निवासी हर रोज अपना कितना समय किस काम में देते हैं, इसको लेकर अभी तक किसी तरह का सर्वेक्षण नहीं कराया गया था।
यह पहली ही बार हुआ होगा कि सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के द्वारा 2019 में जनवरी माह से दिसंबर तक की समयावधि में देश में छः साल से अधिक आयुवर्ग के बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक से चर्चा कर यह पता करने का प्रयास किया गया है कि वे दिन में कितना समय किस काम को देते हैं।
इस सर्वेक्षण के प्रथम चरण इकाई में 09 हजार 945 जिसमें से 05 हजार 947 ग्रामीण क्षेत्रों एवं 03 हजार 998 नगरीय क्षेत्रों में इसका विस्तार किया गया था। इस तरह इसकी जद में 82 हजार 897 ग्रामीण और 55 हजार 902 नगरीय इस तरह कुल 01 लाख 38 हजार 799 परिवार आए थे। इसमें 06 साल एवं इससे अधिक आयुवर्ग के ग्रामीण परिवेश के 02 लाख 73 हजार 195 एवं नगरीय क्षेत्र के 01 लाख 74 हजार 55 इस तरह कुल 04 लाख 47 हजार 250 व्यक्तियों से बातचीत की गई थी। इसमें अंडमान निकोबार द्वीप समूहों के उन ग्रामीण क्षेत्रों जहां पहुंचना दुष्कर था को छोछ़कर संपूर्ण भारत में किया गया था।
इस सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि एक भारतीय हर दिन औसतन 552 मिनिट अर्थात 09 घंटे 12 मिनिट विश्राम करता है अर्थात निंद्रामग्न रहता है। ग्रामीण क्षेत्रों के पुरूष इससे दो मिनिट ज्यादा अर्थात 554 मिनिट सोता है। सोने की विधा में महिलाएं पुरूष से आगे ही प्रतीत हुईं हैं इस सर्वेक्षण में, वे 557 मिनिट अर्थात पुरूषों से पांच मिनिट ज्यादा समय देती हैं। शहरी क्षेत्रों में महिलाओं को 552 मिनिट तो पुरूषों को 534 मिनिट ही सोने का वक्त मिल पाता है।
इस सर्वेक्षण में एक बात और निकलकर सामने आई है कि पुरूष सोने की सारी कसर खाने में निकाल देते हैं। ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं रोजाना खाने पर 94 मिनिट देतीं हैं तो पुरूष इससे कहीं ज्यादा 103 मिनिट इस पर देते हैं। वहीं शहरी क्षेत्रों में महिलाएं खाने पर 97 तो पुरूष 101 मिनिट देते हैं। परिवार के सदस्यों की देखभाल करने के मामले में महिलाओं का बहुत ज्यादा समय इस काम में लग जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं इस काम में हर दिन 301 मिनिट टर्था लगभग 05 घंटे तो पुरूष महल 98 मिनिट ही देते हैं। टीवी, देखना, मोबाईल पर बात करना, सोशल मीडिया, खेलकूद आदि गतिविधियों में एक व्यक्ति का औसत साझा समय लगभग 165 मिनिट है। लगभग इतना ही समय सोशलाईजिंग, बातची, सामूहिक सहभागिता, धार्मिक कार्याे में लोग व्यतीत करते हैं।
एक हिसाब से इस तरह की गतिविधियों पर इस तरह का सर्वेक्षण देश की परिस्थितियों में पारिवारिक और सामाजिक जीवन का आईना माना जा सकता है। इससे यह स्पष्ट भी होता है कि देश का निवासी गैर आर्थिक गतिविधियों में किस तरह उलझा रहता है। वैसे आज के युवा को स्मार्ट फोन पर घंटों समय बिताते देखा जा सकता है। कोरोनाकाल में अगर इस तरह के सर्वेक्षण को कराया जाता तो उसके परिणाम भी सरकारों को बहुत कुछ सोचने समझने, नई नीतियों को बनाने में कारगर साबित हो सकते थे। कोरोनाकाल में लॉकडाऊन के दौरान पुरूष जब घर में रहे तब महिलाओं की नींद किस तरह हराम रहीं। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस तरह के सर्वेक्षण हर साल होते रहें तो समाज और परिवार के अंदर बनते बिगड़ते समीकरणों में उतार चढ़ाव, बदलाव की झलक भी इससे मिल सकती है।
आप अपने घरों में रहें, घरों से बाहर न निकलें, घर से निकलते समय मास्क का उपयोग जरूर करें, सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी को बरकरार रखें, शासन, प्रशासन के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करें। अगर आपको लिमटी की लालटेन पसंद आ रही हो तो आप इसे लाईक, शेयर व सब्सक्राईब अवश्य करें। हम लिमटी की लालटेन का 123वां एपीसोड लेकर जल्द हाजिर होंगे, तब तक के लिए इजाजत दीजिए . . .
(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)
(साई फीचर्स)

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