कब मनाया जाना उचित होगा महाशिवरात्रि! जानिए पूजन महूर्त आदि विस्तार से . . .
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महाशिवरात्रि सनातन धर्म का एक प्रमुख और महत्वपूर्ण त्यौहार है जिसमें भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव की पूजा करता है और इसका सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है। इस शुभ अवसर पर दुनिया भर में लाखों लोग प्रार्थना, उपवास और पारंपरिक अनुष्ठान करते हैं। जैसे-जैसे चाँद ढलता है और रात होती है, भक्त भक्ति में डूब जाते हैं, आशीर्वाद और आध्यात्मिक नवीनीकरण की तलाश करते हैं।
महाशिवरात्रि का पावन पर्व फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व पर विशेष रूप से जिस समय त्रयोदशी और चतुर्दशी का मेल होता है अर्थात त्रयोदशी समाप्त होकर चतुर्दशी शुरू होती है वही समय महाशिवरात्रि का विशेष पुण्यकाल होता है। इस काल में भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव के निमित्त विशेष पूजा, अर्चना, जाप अनुष्ठान रुद्राभिषेक आदि किया जाता है, इस बार 26 फरवरी महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा।
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
महाशिवरात्रि केवल धार्मिक अनुष्ठानों से कहीं बढ़कर है, यह गहरे प्रतीकों और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यह अंधकार पर प्रकाश की विजय और आध्यात्मिक ज्ञान की खोज का प्रतीक है। सजावट, पवित्र मंत्रों और धूपबत्ती से सजे मंदिर पवित्रता और श्रद्धा का माहौल बनाते हैं, जिससे भक्तों के बीच एकता की भावना बढ़ती है।
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पिछले कुछ दशकों में महाशिवरात्रि का उत्सव विकसित हुआ माना जा सकता है, जो समुदायों को उत्सव मनाने के लिए एक साथ लाता है। इस त्यौहार का पालन विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरीके से किया जाता है, जो विविध सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों और परंपराओं को दर्शाता है। भौगोलिक सीमाओं के बावजूद, दुनिया भर के भक्त उत्सव में भाग लेते हैं, जो महाशिवरात्रि के सार्वभौमिक आकर्षण को रेखांकित करता है।
देवों के देव महादेव के विवाह उत्सव का दिन कितना भव्य होगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। वहीं, इस दिन किए गए सभी कार्य सिद्ध होते हैं, और इस दिन रुद्राभिषेक तथा महामृत्युंजय मंत्रों का जाप करने से अधिक लाभ प्राप्त होता है।
आईए जानते हैं महाशिवरात्रि के शुभ महूर्त के बारे में,
साल का सबसे खास और पवित्र दिन महाशिवरात्रि का होता है। इस दिन महादेव और माता पार्वती का विवाह उत्सव मनाया जाता है। हर बार देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान महाशिवरात्रि त्रयोदशी के बाद चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस बार पंचांग के अनुसार, 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि का व्रत मनाया जाएगा। इस दिन महाशिवरात्रि का व्रत रखने वाले श्रद्धालु 26 फरवरी को व्रत करेंगे और अगले दिन, 27 फरवरी को सुबह 8 बजकर 23 मिनिट के बाद पारण करेंगे।
विद्वानों के अनुसार 26 फरवरी को उदयकालीन तिथि के समय त्रयोदशी रहेगी, लेकिन सुबह 11 बजकर 8 मिनिट पर त्रयोदशी समाप्त होकर चतुर्दशी आरंभ हो जाएगी। पूरे दिन और मध्यरात्रि तक चतुर्दशी ही व्याप्त रहेगी। 26 फरवरी बुधवार को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाएगा। 26 फरवरी को प्रातः काल से ही भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव का अभिषेक शुरू हो जाएगा। 26 फरवरी महाशिवरात्रि के दिन सुबह 11 बजकर 8 मिनिट पर त्रयोदशी और चतुर्दशी का मेल होगा और इस समय देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान महाशिवरात्रि का पुण्यकाल शुरू होता है। विशेष रूप से सुबह 11 बजकर 8 मिनट के बाद भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव का जलाभिषेक अवश्य करें। जो भक्त कांवड़ लेकर आते हैं उन्हें भी सुबह 11 बजकर 8 मिनिट पर भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव का अभिषेक पूजन आवश्यक करना चाहिए।
जानकार विद्वानों के अनुसार व्रत का विशेष महत्व 26 फरवरी को ही रहेगा। 26 फरवरी को शाम छह बजकर 19 बजे से लेकर रात नौ बजकर 26 मिनट तक पूजन का पहला समय है। दूसरा पहर का पूजन समय 26 फरवरी को रात 9ः26 बजे से 27 फरवरी को अर्धरात्रि 12 बजकर 34 मिनिट तक, तीसरे पहर में 27 फरवरी को अर्धरात्रि से शुरू होकर सुबह 3 बजकर 41 मिनिट तक और चौथे पहर में पूजन का समय 27 फरवरी को सुबह 6 बजकर 48 तक है।
जानिए रुद्राभिषेक और महामृत्युंजय जाप का मिलता लाभ,
वहीं जानकार विद्वान बताते हैं कि, इस देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान महाशिवरात्रि के मौके पर भद्रा का साया रहेगा लेकिन इसका कोई भी प्रभाव नहीं होगा। दरअसल, उन्होंने कहा कि जो खुद देवों के देव महादेव है उनका कौन क्या बिगाड़ सकता है। दुनिया के दाता महादेव और माता पार्वती का वार्षिक विवाह उत्सव है। वहीं इस दिन हमें महादेव और माता का पूजन करना चाहिए साथ ही रुद्राभिषेक और महामृत्युंजय का जाप करना चाहिए।
हिन्दू धर्म शास्त्रों में प्रदोष काल यानी सूर्यास्त होने के बाद और रात्रि होने के मध्य की अवधि, मतलब सूर्यास्त होने के बाद के 2 घंटे 24 मिनट की अवधि को प्रदोष काल कहा जाता है। और इसी समय भगवान आशुतोष प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते है। इसी समय सभी के प्रिय भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था।
यही वजह है, कि प्रदोष काल में देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव जी की पूजा या देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान महाशिवरात्रि में औघड़दानी भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव का जागरण करना विशेष कल्याणकारी कहा गया है। हमारे सनातन धर्म में 12 ज्योतिर्लिंग का वर्णन है। कहा जाता है कि प्रदोष काल में महाशिवरात्रि तिथि में ही सभी ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था। हिन्दू धर्मशास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि महाशिवरात्रि का व्रत करने वाले साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जगत में रहते हुए मनुष्य का कल्याण करने वाला व्रत है महाशिवरात्रि। इस व्रत को रखने से साधक के सभी दुखों, पीड़ाओं का अंत तो होता ही है साथ ही मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है।
महाशिवरात्रि पूजा विधि जानिए,
महाशिवरात्रि के अवसर पर अपने आराध्य देव को प्रसन्न करने हेतु भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव की पूजा करने के लिए मिट्टी के बने लोटे द्वारा पानी या दूध से देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव जी के शिवलिंग का अभिषेक करें। इसके पश्चात देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव के शिवलिंग पर बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि अर्पित करने चाहिए। यदि घर के निकट कोई देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव मंदिर नहीं है, तो घर में ही मिट्टी का देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान का शिवलिंग बनाकर पूजन करना चाहिए।
इस दिन शिवपुराण का पाठ तथा महामृत्युंजय मंत्र या देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव के पंचाक्षर मंत्र ओम नमः शिवाय का जप करना चाहिए। महाशिवरात्रि की रात जागरण करने की भी परंपरा है।
शास्त्रों के अनुसार, महाशिवरात्रि की पूजा निशीथ काल में करना सर्वश्रेष्ठ होता है। इस दिन देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव भक्त चारों प्रहरों में से किसी भी पहर में अपनी सुविधानुसार पूजा कर सकते हैं।
महाशिवरात्रि की रात्रि समस्त देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव मंदिर ओम नमः शिवाय के उच्चारण से गूंज उठते हैं तथा सभी भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव के सम्मान में भक्ति गीत गाते हैं।
महाशिवरात्रि का इतिहास जानिए,
जानकार विद्व़ानों के अनुसार हिंदू धर्म के हज़ारों देवताओं में से भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव को धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक के रूप में प्रमुख स्थान प्राप्त है। हिंदू त्रिदेवों में अक्सर उन्हें विध्वंसक के रूप में दर्शाया जाता है, साथ ही ब्रम्हा, निर्माता और विष्णु, संरक्षक के रूप में, देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव को ब्रम्हांडीय विघटन और पुनर्जनन में उनकी भूमिका के लिए सम्मानित किया जाता है, उनका पूजन किया जाता है। फिर भी, अपनी ब्रम्हांडीय ज़िम्मेदारियों से परे, देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव में शुभता, परोपकार और गहन ज्ञान सहित कई अन्य गुण भी समाहित हैं। उनकी प्रतिमा, जिसमें उलझे हुए बाल, माथे पर तीसरी आंख, उनके बालों को सुशोभित करने वाला अर्धचंद्र और गले में लिपटा हुआ सांप शामिल है, उनकी पारलौकिक प्रकृति और समय, मृत्यु और ब्रम्हांड पर उनके प्रभुत्व का प्रतीक है।
महाशिवरात्रि का महत्व जानिए,
महाशिवरात्रि के पर्व को भोलेनाथ के भक्त अत्यंत हर्षाेर्ल्लास, भक्ति एवं श्रद्धाभाव के साथ मनाते हैं। इस दिन सभी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव भक्त अपने आराध्य का आशीर्वाद और कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत रखते हैं और रात्रि के समय जागरण करते हैं। यह पर्व हिन्दू धर्म के अन्य त्यौहारों से बिल्कुल विपरीत रात के दौरान मनाया जाता है। इसके विपरीत महाशिवरात्रि का पर्व उपवास तथा ध्यान के द्वारा जीवन में व्याप्त अंधेरे एवं बाधाओं को नियंत्रित करने के रूप में चिन्हित है। महाशिवरात्रि का समय अंत्यंत शुभ होता है क्योंकि इस दिन भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव और आदिशक्ति की दिव्य शक्तियां एक साथ आती हैं। इस दिन महाशिवरात्रि व्रत का पालन, भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव का पूजन एवं ध्यान, आत्मनिरीक्षण, सामाजिक सद्भाव आदि देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव मंदिरों में किया जाता है।
महाशिवरात्रि से सम्बंधित कई पौराणिक मान्यताएं हैं। लिंग पुराण में महाशिवरात्रि के महत्व का वर्णन किया गया है जिसके अंर्तगत महाशिवरात्रि व्रत करने तथा भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव व उनके प्रतीकात्मक प्रतीकों जैसे लिंगम के महत्व का विस्तारपूर्वक वर्णन हैं। ऐसी मान्यता है कि, इस रात को महादेव ने तांडव नृत्य का प्रदर्शन किया था जो सृजन और विनाश की अतिशक्तिशाली और दिव्य अभिव्यक्ति है।
वहीं, एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था इसलिए यह दिन विवाहित जोड़ों द्वारा सुखी-वैवाहिक जीवन और अविवाहित कन्याओं द्वारा एक अच्छे पति की कामना करने के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है। हरि ओम,
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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