जिलाध्यक्षों की गुहार से राहुल शायद समझ गए – ‘भूखे भजन न होए गोपाला . . .‘
(लिमटी खरे)
आधी सदी से ज्यादा समय तक देश पर राज करने वाली अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की दुर्दशा शायद ही किसी से छिपी हो। लोकसभा की 543 में सीटों में से सिर्फ 99 सीट पर ही कांग्रेस काबिज है। वहीं राज्य सभा में महज 27 सांसद उसके पास हैं। इसके अलावा महज तीन राज्यों में ही कांग्रेस सत्ता में है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती दिख रही है, यह कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगा।
वैसे तो कांग्रेस के अध्यक्ष मल्किार्जुन खरगे हैं, पर सोशल मीडिया पर जिस तरह की चर्चाओं का बाजार गर्म रहता आया है उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि कांग्रेस में सत्ता की धुरी राहुल गांधी के इर्द गिर्द ही घूमती दिखाई देती है। कांग्रेस की दशा सुधारने, दिशा देने और नई जान फूंकने के लिए राहुल गांधी लगातार ही प्रयासरत दिखाई देते हैं, किन्तु सियासत के जानकारों का मानना है कि राहुल गांधी को इस तरह के सलाहकारों ने घेर रखा है कि वे चाहकर भी अपने प्रयासों को परवान नहीं चढ़वा पा रहे हैं।
एक समय था जब कहा जाता था कि गांव गांव में कांग्रेस सांसे लिया करती है। देश का कोई भी गांव ऐसा नहीं था जहां कांग्रेस का झंडा उठाने वालों की फौज न हो। मनमोहन सिंह के दस साल के प्रधानमंत्रित्व काल में बेलगाम मंत्रियों की कारगुजारियों से उपजे असंतोष को उस वक्त अण्णा हजारे ने थामा और जिस तरह जयप्रकाश के नेतृत्व में हुए आंदोलन के बाद इंदिरा गांधी को सत्ता छोड़नी पड़ी थी, उसी तरह 2014 में कांग्रेस को केंद्र से बेदखल होना पड़ा। यद्यपि इंदिरा गांधी ने समय रहते अपने आप को संभाल लिया था पर 2014 के बाद कांग्रेस सीधे उस ढलान पर चली जा रही है जहां से निकलना उसके लिए बहुत कठिन साबित होता दिख रहा है।
बहरहाल, हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की उपस्थिति में राहुल गांधी के द्वारा देश भर के जिला कांग्रेस अध्यक्षों से संवाद किया गया। देश भर के 36 राज्यों में 700 के लगभग जिला कांग्रेस कमेटियां अस्तित्व में हैं। जिलों से आए कांग्रेसियों ने अपनी बातें बेबाकी से रखीं, पर उनकी बातों का औचित्य तो तब है जबकि कांग्रेस के आला नेता उनकी बातों पर विचार करते हुए कोई ठोस निर्णय पर पहुंचें।
कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि जिलाध्यक्षों के द्वारा इस दौरान राहुल गांधी के सामने अपनी ‘मन की बात‘ रखी। कुछ का कहना था कि जिला स्तर के कार्यक्रमों में स्थानीय बड़े कद के नेता नहीं पहुंचते हैं, जिससे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता है। उन्होंने अपेक्षा व्यक्त की है कि ऊपर से ही स्पष्ट और कड़े निर्देश जारी किए जाएं ताकि जिला स्तर के कार्यक्रमों में वहां के बड़े नेता और कांग्रेस की सरकार के दौरान रहे प्रभारी मंत्री आवश्यक रूप से उपस्थित रहें।
सूत्रों ने बताया कि इसके अलावा कार्यकारिणी, ब्लाक, वार्ड के अध्यक्षों की नियुक्ति के अधिकार भी जिलाध्यक्षों ने मांगे। उनका यह भी कहना था कि प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारी कभी भी जिलास्तर के नेताओं से यह नहीं पूछते कि उनका संगठन धनाभाव में कैसे चल पा रहा है! वे तो बस फरमान दर फरमान ही जारी करते रहते हैं। जब भी किसी भी स्तर के चुनावों की टिकिट पर रायशुमारी हो तब जिलाध्यक्ष की राय को पूरी अहमियत दी जाना चाहिए। सांसद, विधायक की तरह ही जिलाध्यक्षों का कार्यकाल भी पांच साल का किए जाने की वकालत भी इस दौरान की गई। इसके अलावा जिलाध्यक्षों को किसी भी चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाई जाए।
सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंउिया को बताया कि इस दौरान सबसे अहम बात यह सामने आई कि जिला स्तर के संगठन के संचालन में धनाभाव से निपटने की योजना बनाई जाना चाहिए। वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस के पास अब न तो केंद्र में सरकार है और न ही ज्यादा राज्यों में ही सरकारें हैं, इन परिस्थितियों में कांग्रेस के लिए फंड एकत्र करना एक बड़ा मसला बनकर खड़ा हुआ है। वहीं, दूसरी ओर राहुल गांधी के समक्ष कांग्रेस अध्यक्षों के द्वारा जिला स्तर पर संगठन चलाए जाने के लिए फंड की व्यवस्था करने की बात कही गई। इसके लिए जिलाध्यक्षों के द्वारा यह सुझाव भी दिए गए कि सांसदों और विधायकों को अपने वेतन का एक भाग जिलों के संगठन के संचालन के लिए हर माह देने के निर्देश दिए जाने चाहिए।
जिलाध्यक्षों के द्वारा कही गई बात बिल्कुल सोलह आना सही ही है, क्योंकि प्रदेश और राष्ट्रीय इकाई के द्वारा जिला इकाईयों को धरना प्रदर्शन आदि के कार्यक्रम तो भेज दिए जाते हैं किन्तु इन्हें अमली जामा पहनाने के लिए आवश्यक धनराशि नहीं भेजी जाती है जिससे ये प्रदर्शन होते तो हैं, पर अधिकांश जगहों पर कागजों पर ही ये संपन्न हो जाते हैं। इस तरह कांग्रेस की रीढ़ को मजबूत कैसे किया जाएगा, यह यक्ष प्रश्न भी खड़ा हुआ है।
अब लाख रूपए का सवाल यही खड़ा हुआ है कि इस तरह की जमीनी हकीकत देश भर के 700 से ज्यादा जिलाध्यक्षों के द्वारा अपने नेता के समक्ष रखे जाने, जमीनी हकीकत से रूबरू होने के बाद भी भी अगर कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व अपनी कार्यप्रणाली में अमूल चूल परिवर्तन नहीं लाता है तो केंद्र और राज्यों में सत्ता में लौटने का उसका बनता मानस देखकर संस्कृत का एक शलोक यहां ठीक बैठती नजर आती है, जो है ‘न दिवा स्वप्नं कुर्यात‘ जिसका अर्थ होता है कि ‘दिन में सपने नहीं देखना चाहिए . . .‘
(साई फीचर्स)

43 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं. दिल्ली, मुंबई, नागपुर, सिवनी, भोपाल, रायपुर, इंदौर, जबलपुर, रीवा आदि विभिन्न शहरों में विभिन्न मीडिया संस्थानों में लम्बे समय तक काम करने का अनुभव, वर्तमान में 2008 से लगातार “समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया” के ‘संस्थापक संपादक’ हैं.
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया देश की पहली डिजीटल न्यूज एजेंसी है. इसका शुभारंभ 18 दिसंबर 2008 को किया गया था. समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया में देश विदेश, स्थानीय, व्यापार, स्वास्थ्य आदि की खबरों के साथ ही साथ धार्मिक, राशिफल, मौसम के अपडेट, पंचाग आदि का प्रसारण प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है. इसके वीडियो सेक्शन में भी खबरों का प्रसारण किया जाता है. यह पहली ऐसी डिजीटल न्यूज एजेंसी है, जिसका सर्वाधिकार असुरक्षित है, अर्थात आप इसमें प्रसारित सामग्री का उपयोग कर सकते हैं.
अगर आप समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को खबरें भेजना चाहते हैं तो व्हाट्सएप नंबर 9425011234 या ईमेल samacharagency@gmail.com पर खबरें भेज सकते हैं. खबरें अगर प्रसारण योग्य होंगी तो उन्हें स्थान अवश्य दिया जाएगा.