आस्था, संस्कृति और सौहार्द का महापर्व है भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा

जानिए इस साल कब है भगवान जगन्नाथ जी की पवित्र रथयात्रा . . .

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भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर कुछ किलोमीटर पर संस्कृति, भाषा और परम्पराओं में एक अद्भुत विविधता देखने को मिलती है। इसी विविधता के बीच, कुछ पर्व ऐसे हैं जो देश की सीमाओं को लांघकर वैश्विक पटल पर अपनी पहचान बनाते हैं। ऐसा ही एक महापर्व है भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा। ओडिशा प्रदेश के पुरी अथवा जगन्नाथ पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का यह वार्षिक उत्सव न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, कला और सहिष्णुता का एक जीवंत प्रतीक भी है।
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
इसका पृष्ठभूमि और महत्व जानिए,
जगन्नाथ रथयात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आरंभ होती है। यह नौ दिवसीय उत्सव भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र अथवा बलराम और बहन सुभद्रा को समर्पित है। इस अवसर पर, तीनों देव विग्रहों को भव्य और विशाल रथों पर आरूढ़ कर पुरी के मुख्य मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक लाया जाता है। गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है। यहाँ वे सात दिनों तक प्रवास करते हैं, जिसके बाद बहुड़ा यात्रा जिसे वापसी यात्रा भी कहा जाता है वह संपन्न होती है, और वे वापस अपने मुख्य मंदिर लौट आते हैं।
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यह यात्रा केवल एक धार्मिक जुलूस नहीं है, बल्कि यह जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र का भी प्रतीक है। भगवान जगन्नाथ को भगवान विष्णु का ही एक रूप माना जाता है, जो ब्रम्हांड के पालक हैं। बलभद्र जीी शक्ति और कृषि के देवता हैं, और सुभद्रा जी को शुभता और समृद्धि की देवी माना जाता है। इस यात्रा के माध्यम से, इन देवताओं को आम जनता के बीच लाया जाता है, जिससे हर कोई उनके दर्शन कर सके और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सके, चाहे उनकी सामाजिक स्थिति कुछ भी हो।
रथों का निर्माण कैसे होता है, यह एक अनुपम कला और भक्ति का संगम है,
रथयात्रा का सबसे आकर्षक और महत्वपूर्ण पहलू है तीनों रथों का निर्माण। ये रथ हर साल नए सिरे से बनाए जाते हैं और इनमें लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। रथों के निर्माण में किसी भी धातु की कील या पेंच का इस्तेमाल नहीं होता। यह अपने आप में एक अभियांत्रिकी और कला का अद्भुत नमूना है।
सबसे पहले जानते हैं नंदीघोष अर्थात भगवान जगन्नाथ जी के रथ के संबंध में,
नंदीघोष रथ की यह विशेषता होती है कि यह सबसे बड़ा और सबसे ऊँचा रथ होता है। इसमें सोलह पहिए होते हैं और इसे पीले तथा लाल रंग के वस्त्रों से सजाया जाता है। इस रथ की ऊँचाई लगभग 45 फीट होती है। इसे गरुड़ध्वज या कपिध्वज भी कहा जाता है।
अब जानिए तालध्वज अर्थात बलभद्र जी के रथ के बारे में,
यह दूसरा सबसे बड़ा रथ होता है, जिसमें चौदह पहिए होते हैं। इसे हरे और लाल रंग के वस्त्रों से सजाया जाता है और इसकी ऊँचाई लगभग 43 फीट होती है। इसे लांगुलध्वज या हलध्वज भी कहा जाता है।
अब आपको बताते हैं देवदलन अर्थात सुभद्रा जी के रथ के संबंध में,
यह सबसे छोटा रथ होता है, जिसमें बारह पहिए होते हैं। इसे काले या नीले और लाल रंग के वस्त्रों से सजाया जाता है और इसकी ऊँचाई लगभग 42 फीट होती है। इसे पद्मध्वज या दर्पदलन भी कहा जाता है।
इन सभी रथों का निर्माण वसंत पंचमी के दिन से शुरू होता है और इसमें सैकड़ों कुशल बढ़ई, चित्रकार और कारीगर कई महीनों तक काम करते हैं। प्रत्येक रथ में एक विशिष्ट ध्वज, सारथी, घोड़े और द्वारपाल होते हैं। रथों पर देवी-देवताओं, गंधर्वों और अन्य पौराणिक आकृतियों के जटिल और सुंदर चित्र उकेरे जाते हैं, जो उड़िया कला और संस्कृति का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
छेर पहरा क्या है जानिए, दरअसल यह महाराज का विनम्र समर्पण माना जाता है,
रथयात्रा के आरंभ से पहले एक अत्यंत महत्वपूर्ण रस्म होती है जिसे छेर पहरा कहा जाता है। इस रस्म में पुरी के गजपति महाराज जो शाही वंशज होते हैं, स्वयं सोने की झाड़ू से रथों के मार्ग को साफ करते हैं। यह क्रिया इस बात का प्रतीक है कि राजा भी भगवान का एक विनम्र सेवक है और सभी मनुष्य भगवान के समक्ष समान हैं, चाहे उनका सामाजिक या आर्थिक स्तर कुछ भी हो। यह परंपरा भगवान जगन्नाथ को पतित पावन अर्थात पतितों का उद्धार करने वाला के रूप में दर्शाती है, जो सभी के लिए सुलभ हैं। यह समानता और विनम्रता का एक शक्तिशाली संदेश देता है।
रथयात्रा का मार्ग और आयोजन को जानिए,
रथयात्रा पुरी के मुख्य श्री जगन्नाथ मंदिर से शुरू होती है। लाखों श्रद्धालु, भक्त और पर्यटक इस अद्वितीय आयोजन को देखने और रथों को खींचने के लिए एकत्रित होते हैं। रथों को खींचना एक अत्यंत पवित्र कार्य माना जाता है, और ऐसा माना जाता है कि जो कोई भी रथों को खींचने में मदद करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यात्रा का मार्ग लगभग तीन किलोमीटर लंबा होता है, जो मुख्य मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक जाता है। रथों को भक्तों द्वारा खींचा जाता है, और इस दौरान पूरा वातावरण भगवान के जयकारों और कीर्तन से गूँज उठता है। ढोल, मंजीरे और शंखनाद की ध्वनि से उत्सव का माहौल और भी जीवंत हो उठता है।
गुंडिचा मंदिर में प्रवास और वापसी यात्रा जिसे बहुड़ा यात्रा भी कहा जाता है के बारे में जानिए,
सात दिनों तक गुंडिचा मंदिर में प्रवास के दौरान, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को विभिन्न अनुष्ठानों और भोगों के साथ पूजा जाता है। यह समय भक्तों के लिए गुंडिचा मंदिर में देवताओं के दर्शन करने का एक विशेष अवसर होता है। यहाँ उन्हें अपनी मौसी के घर मेहमान के रूप में माना जाता है।
सात दिनों के बाद, बहुड़ा यात्रा होती है, जहाँ तीनों देव विग्रह उसी मार्ग से वापस अपने मुख्य मंदिर लौट आते हैं। इस वापसी यात्रा का भी उतना ही महत्व है जितना मुख्य रथयात्रा का।
जानिए सुनाबेशा क्या है, दरअसल स्वर्ण आभूषणों से सज्जित देव विग्रह होता है यह,
रथयात्रा के अंतिम चरण में, जब देवता अपने मुख्य मंदिर लौट आते हैं, तो एक और भव्य अनुष्ठान होता है जिसे सुनाबेशा कहा जाता है। इस अवसर पर, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को सोने के विशाल आभूषणों से सजाया जाता है। ये आभूषण अत्यंत मूल्यवान होते हैं और इसमें सैकड़ों किलोग्राम सोना लगा होता है। सुनाबेशा के दौरान देवताओं की छवि अत्यंत अलौकिक और दिव्य प्रतीत होती है, और लाखों भक्त इस दृश्य को देखने के लिए लालायित रहते हैं। यह अवसर देवताओं की महिमा और ऐश्वर्य का प्रदर्शन करता है।
रथयात्रा का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व जानिए,
जगन्नाथ रथयात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि इसका गहरा सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व भी हैः
सार्वभौमिकता और समानता के बारे में जानते हैं, यह यात्रा जाति, पंथ या सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना सभी लोगों के लिए खुली है। यह सबका साथ, सबका विकास के भारतीय आदर्श को दर्शाता है। भगवान जगन्नाथ को अछूतों के भगवान के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि वे सभी के लिए सुलभ हैं।
कला और शिल्प का संरक्षण के बारे में जानिए, रथों का निर्माण, देवताओं का श्रृंगार, और यात्रा के दौरान प्रदर्शित होने वाली कलाकृतियाँ उड़िया कला और शिल्प की समृद्ध परंपरा को जीवित रखती हैं।
पर्यटन को बढ़ावा भी इसके जरिए मिलता है यह यात्रा दुनिया भर से लाखों पर्यटकों को आकर्षित करती है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।
सामाजिक सद्भाव मजबूत होता है इससे, यह उत्सव विभिन्न समुदायों और धर्मों के लोगों को एक साथ लाता है, जिससे सामाजिक सद्भाव और एकता को बढ़ावा मिलता है।
पारिस्थितिक चेतना के बारे में जानिए, रथों का निर्माण प्राकृतिक सामग्री से होता है, और यह पर्यावरण के प्रति सम्मान का संदेश भी देता है।
पौराणिक कथाएं और विश्वास के बारे में जानिए,
जगन्नाथ रथयात्रा से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं और लोककथाएं हैं। एक लोकप्रिय कथा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपनी मौसी गुंडिचा के घर जाने की इच्छा व्यक्त करते हैं। इस इच्छा को पूरा करने के लिए ही रथयात्रा का आयोजन किया जाता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान कृष्ण के देह त्याग के बाद, उनके शव को दाह संस्कार के लिए ले जाया गया। लेकिन उनके हृदय अर्थात ब्रम्हपदार्थ का दाह संस्कार नहीं हो सका। इसे समुद्र में विसर्जित कर दिया गया और बाद में यह एक लकड़ी के लट्ठे के रूप में पुरी के तट पर बहकर आया। इसी लकड़ी से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों का निर्माण किया गया था, लेकिन वे अधूरी रह गईं, क्योंकि भगवान विश्वकर्मा जो देवताओं के वास्तुकार, शिल्पकार माने जाते हैं, ने एक शर्त पर काम शुरू किया था कि उन्हें कोई बाधित न करे। राजा इंद्रद्युम्न ने अधीर होकर उन्हें बाधित कर दिया, जिससे मूर्तियाँ अधूरी रह गईं। यह अधूरापन ही इन मूर्तियों की विशिष्टता है।
जगन्नाथ रथयात्रा एक ऐसा महापर्व है जो सदियों से भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को जीवंत रखे हुए है। यह आस्था, भक्ति, कला, संस्कृति और सामाजिक सद्भाव का एक अनूठा संगम है। यह उत्सव हमें सिखाता है कि भगवान सभी के लिए सुलभ हैं, और विनम्रता, समानता और प्रेम ही सच्ची भक्ति का मार्ग है। हर साल, जब पुरी की सड़कों पर लाखों भक्तों की भीड़ जय जगन्नाथ! के उद्घोष के साथ रथों को खींचती है, तो यह दृश्य भारत की आत्मा और उसकी अविनाशी सांस्कृतिक विरासत का प्रमाण होता है। यह सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है, जो हमें प्रेम, करुणा और एकता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। हरि ओम,
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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आशीष कौशल

आशीष कौशल का नाम महाराष्ट्र के विदर्भ में जाना पहचाना है. पत्रकारिता के क्षेत्र में लगभग 30 वर्षों से ज्यादा समय से सक्रिय आशीष कौशल वर्तमान में समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के नागपुर ब्यूरो के रूप में कार्यरत हैं . समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया देश की पहली डिजीटल न्यूज एजेंसी है. इसका शुभारंभ 18 दिसंबर 2008 को किया गया था. समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया में देश विदेश, स्थानीय, व्यापार, स्वास्थ्य आदि की खबरों के साथ ही साथ धार्मिक, राशिफल, मौसम के अपडेट, पंचाग आदि का प्रसारण प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है. इसके वीडियो सेक्शन में भी खबरों का प्रसारण किया जाता है. यह पहली ऐसी डिजीटल न्यूज एजेंसी है, जिसका सर्वाधिकार असुरक्षित है, अर्थात आप इसमें प्रसारित सामग्री का उपयोग कर सकते हैं. अगर आप समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को खबरें भेजना चाहते हैं तो व्हाट्सएप नंबर 9425011234 या ईमेल samacharagency@gmail.com पर खबरें भेज सकते हैं. खबरें अगर प्रसारण योग्य होंगी तो उन्हें स्थान अवश्य दिया जाएगा.