जानिए भीष्म द्वादशी का पुण्य व्रत कब रखा जाएगा फरवरी 2025 में . . .
भीष्म द्वादशी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो माघ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह को समर्पित है। इस दिन लोग उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और व्रत रखते हैं।
हिंदू धर्म में माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी कहते हैं। इस साल भीष्म द्वादशी रविवार 09 फरवरी 2025 को है। मान्यता है कि इस दिन भीष्म पितामाह के निमित्त तर्पण व पिंडदान आदि किया जाता है। ज्योतिष आचार्य पंडित विश्वनाथ ने कहा कि धर्म ग्रंथों में माघ मास का विशेष महत्व बताया गया है। इस महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी कहते हैं।
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महाभारत में अर्जुन ने भीष्म पितामह को बाणों की शैय्या पर लिटा दिया था। उस समय सूर्य दक्षिणायन था। इसलिए, भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया और माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन अपने प्राण त्यागे। इसके 3 दिन बाद ही द्वादशी तिथि पर भीष्म पितामह के लिए तर्पण और पूजन की परंपरा प्रथा है। द्वादशी के दिन पिंड-दान, तर्पण, ब्राम्हण भोज और दान-पुण्य करना शुभ माना जाता है।
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मान्यता के अनुसार, इस महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म पितमाह ने अपनी देह त्यागी थी। इसके बाद द्वादशी तिथि पर युधिष्ठिर सहित पांडवों ने उनके आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान आदि संस्कार किए थे। पुराणों के अनुसार, इस तिथि पर पितरों की शांति के लिए दान, तर्पण, ब्राम्हण भोज आदि कार्य जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
जानिए इस साल कब मनाई जाएगी भीष्म द्वादशी?
इस वर्ष भीष्म द्वादशी 09 फरवरी 2025 को रविवार के दिन मनाई जाएगी। द्वादशी तिथि आरंभ 08 फरवरी 2025, 20ः15 से होगा। जबकि, द्वादशी की समाप्ति 09 फरवरी 2025 को होगी। अतः उदया तिथि के अनुसार, भीष्म द्वादशी 09 फरवरी रविवार को मनाई जाएगी।
भीष्म द्वादशी की पूजा विधि जानिए,
भीष्म द्वादशी के दिन सुबह उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर भीष्म पितामह की तस्वीर या मूर्ति को एक चौकी पर स्थापित करें। उन्हें फूल, अक्षत, चंदन आदि अर्पित करें। फिर धूप-दीप जलाकर उनकी आरती करें।
इसके बाद भीष्म पितामह की कथा का पाठ करें या सुनें। आप ष्विष्णु सहस्रनामष् का पाठ भी कर सकते हैं। फिर उन्हें तिल, जौ और जल से तर्पण करें।
अंत में ब्राम्हणों को भोजन कराएं और उन्हें दान-दक्षिणा दें। आप अपनी श्रद्धा के अनुसार गरीबों को भी दान कर सकते हैं।
भीष्म द्वादशी पर करें तिल का दान करने से क्या होता है जानिए,
भीष्म द्वादशी का दिन तिलों के दान की महत्ता भी दर्शाता है। इस दिन में तिलों से हवन करना। पानी में तिल दाल कर स्नान करना और तिल का दान करना ये सभी अत्यंत उत्तम कार्य बताए गए हैं। तिल दान करने से अपने जीवन में खुशियों का आगमन होता है। सफलता के दरवाजे खुलते हैं। बता दें कि तिल के दान का फल अग्निष्टोम यज्ञ के समान होता है। तिल दान देने वाले को गोदान करने का फल मिलता है।
भीष्म द्वादशी का व्रत कैसे रखें यह जानिए,
भीष्म द्वादशी के दिन व्रत रखना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन फलाहार या केवल दूध और फल का सेवन करें। अन्न का सेवन न करें। व्रत के दौरान आप भगवान विष्णु और भीष्म पितामह का ध्यान करें। आप उनके मंत्रों का जाप भी कर सकते हैं।
अब भीष्म द्वादशी की कथा जानिए,
बहुत समय पहले, हस्तिनापुर के राजा शांतनु ने गंगा नदी के किनारे घूमते हुए एक सुंदर कन्या देखी। उस कन्या का नाम सत्यवती था और वह एक मछुआरे की बेटी थी। राजा शांतनु को सत्यवती से प्रेम हो गया और उन्होंने उससे विवाह करने का प्रस्ताव रखा।
सत्यवती के पिता ने राजा शांतनु के सामने एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि यदि सत्यवती का पुत्र हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बनेगा, तो वे अपनी बेटी का विवाह राजा से करने के लिए तैयार हैं।
राजा शांतनु ने सत्यवती के पिता की शर्त को स्वीकार कर लिया और उनसे विवाह कर लिया। सत्यवती ने दो पुत्रों को जन्म दिया।
एक दिन राजा शांतनु ने अपने पुत्र देवव्रत को बुलाया और उसे हस्तिनापुर का युवराज बनाने की घोषणा की। देवव्रत ने अपने पिता की बात मान ली और हस्तिनापुर का युवराज बन गया।
कुछ समय बाद राजा शांतनु का निधन हो गया। देवव्रत ने हस्तिनापुर की राजगद्दी संभाली। उन्होंने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए भीष्म प्रतिज्ञा की। उन्होंने आजीवन ब्रम्हचारी रहने और हस्तिनापुर की रक्षा करने का प्रण लिया।
देवव्रत को भीष्म के नाम से जाना जाने लगा। वे एक महान योद्धा थे और उन्होंने महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ से युद्ध किया।
महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ने पांडवों के खिलाफ युद्ध किया। वे अर्जुन के बाणों से घायल हो गए और बाणों की शय्या पर लेट गए। उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने तक अपने प्राण नहीं त्यागे। माघ शुक्ल द्वादशी के दिन भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागे। इसलिए इस दिन को भीष्म द्वादशी के रूप में मनाया जाता है।
भीष्म द्वादशी का महत्व जानिए,
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भीष्म पितामह ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ से युद्ध किया था। वे एक महान योद्धा थे और उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा के कारण आजीवन ब्रम्हचारी रहने का व्रत लिया था। जब वे बाणों की शय्या पर थे, तब उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने तक अपने प्राण नहीं त्यागे। माघ शुक्ल द्वादशी के दिन उन्होंने अपने प्राण त्यागे थे। इसलिए इस दिन को भीष्म द्वादशी के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन लोग गंगा स्नान करते हैं और भीष्म पितामह को तर्पण करते हैं। वे पितरों की आत्मा की शांति के लिए भी प्रार्थना करते हैं। इस दिन दान-पुण्य करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
भीष्म द्वादशी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। यह दिन भीष्म पितामह को समर्पित है, जो महाभारत के एक महान योद्धा थे। इस दिन लोग उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और व्रत रखते हैं।
भीष्म द्वादशी के दिन गंगा स्नान करना और भीष्म पितामह को तर्पण करना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन दान-पुण्य करना भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह त्योहार हमें भीष्म पितामह के त्याग, बलिदान और कर्तव्यनिष्ठा की याद दिलाता है।
भीष्म द्वादशी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो हमें अपने पितरों और महापुरुषों का स्मरण कराता है। यह दिन हमें धर्म, न्याय और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। हमें इस दिन भीष्म पितामह के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए और उनके आदर्शों का पालन करना चाहिए। हरि ओम,
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)

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