ठूंठ के मानिंद खड़े मुँह चिढ़ाते यातायात सिग्नल!

(लिमटी खरे)
शहर की यातायात व्यवस्था बदहाल है। शहर में यातायात नियंत्रित करने के लिये लगाये गये ट्रैफिक सिग्नल में से एक भी चालू नहीं है। नगर पालिका की पिछली परिषद के द्वारा दिसंबर 2013 में शहर के चार स्थानों पर ट्रैफिक सिग्नल संस्थापित कराये गये थे, जो आज तक आरंभ नहीं हो सके हैं। इनके पहले नगर पालिका के सामने ट्रैफिक सिग्नल लगाया गया था लेकिन वह भी बंद ही पड़ा हुआ है।
भाजपा शासित वर्तमान नगर पालिका परिषद का कार्यकाल पूरा हो चुका है। लगभग दो सालों से नगर पालिका परिषद में प्रशासक के बतौर जिलाधिकारी डॉ. राहुल हरिदास फटिंग ही पदस्थ हैं। शहर में नगर पालिका तिराहा के अलावा मुख्य मार्ग पर सर्किट हाउस चौराहा, कचहरी चौक, छिंदवाड़ा चौक एवं बाहुबली चौराहा पर लगभग लाखों रुपये की लागत से ट्रैफिक सिग्नल लगवाये गये थे।
इन यातायात सिग्नलों को आरंभ क्यों नहीं कराया जा सका है, इसकी पालिका के पास कोई ठोस वजह नहीं है। शहर में लगे पाँच में से चार सिग्नल मॉडल रोड पर ही लगे हुए हैं। मॉडल रोड का कार्य नियत सीमा से लगभग नौ वर्ष ज्यादा होने को आया है। मजे की बात तो यह है कि मॉडल रोड पर लगे चार में से एक भी यातायात सिग्नल चालू नहीं है।
शहर में लाखों रुपये खर्च कर लगाये गये ट्रैफिक सिग्नल के लंबे से ज्यादा समय होने के बाद भी आरंभ नहीं कराये जाने पर नागरिकों को भी आश्चर्य हो रहा है। सड़क किनारे ठूंठ के मानिंद खड़े ये सिग्नल्स देखकर लोगों के मन में पालिका के प्रति नाराजगी बढ़े तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिये।
कचहरी चौराहा पर बैंक है, वहाँ से कलेक्ट्रेट और न्यायालय जाने का रास्ता है, स्कूल के विद्यार्थी भी यहाँ से बहुतायत में निकलते हैं। यहाँ के यातायात सिग्नल बंद होने के कारण शालाओं की छुट्टी के समय जाम की स्थिति बन जाती है। यातायात सिग्नल के अभाव में अक्सर ही दुर्घटनाएं घटित होती हैं।
सिवनी शहर को लोग शटरों का शहर भी कहने लगे हैं। माना जाता है कि कमोबेश हर दूसरे घर में एक दुकान मिल जायेगी। शहर के मकानों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों की तुलना अगर की जाये तो रिहाईश से आधी दुकानें निकल जायेंगी। इतना ही नहीं सड़कों पर बेतरतीब खड़े वाहनों से यातायात बुरी तरह प्रभावित होता है।
नगर पालिका के सूत्रों का कहना है कि भाजपा शासित पिछली परिषद ने अपने कार्यकाल (2013) के अंतिम समय में आनन – फानन चार स्थानों पर ट्रैफिक सिग्नल्स लगाने का कार्य आरंभ किया था। सूत्रों का कहना है कि इसमें सिर्फ और सिर्फ कमीशन का ही खेल था। प्रति सिग्नल लगभग सात लाख रुपये की लागत से इन्हें लगवाया गया था। पिछली परिषद के द्वारा लगवाये गये ट्रैफिक सिग्नल्स को आरंभ कराने में नयी परिषद को शायद ही कोई फायदा मिल सके इसलिये, नयी परिषद इसको आरंभ करवाने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रही है।
मजे की बात तो यह है कि बंद पड़े ट्रैफिक सिग्नल में से बाहुबली चौक, सर्किट हाऊस चौराहे एवं कचहरी चौक से होकर जिला कलेक्टर, जिला पुलिस अधीक्षक, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत, मुख्य नगर पालिका अधिकारी, विधायक, नगर पालिका अध्यक्ष आदि रोज ही आना – जाना करते हैं। बावजूद इसके साल भर से शोभा की सुपारी बने इन ट्रैफिक सिग्नल्स को आरंभ कराने किसी ने भी सुध नहीं ली है।
सूत्रों का कहना है कि नगर पालिका इन यातायात सिग्नल्स को इसलिये भी आरंभ नहीं करा रही है क्योंकि इनके आरंभ होने के बाद पाँचों स्थान पर दिन भर यातायात पुलिस को उपस्थिति देना होगा। यातायात पुलिस वैसे भी कर्मचारियों की कमी से जूझती दिख रही है। इन परिस्थितियों में पाँच स्थानों पर यातायात पुलिस में पदस्थ कम से कम एक सिपाही या नगर सैनिक की तैनाती तो करना ही होगा। उधर यातायात पुलिस सूत्रों का कहना है कि अगर यातायात सिग्नल आरंभ होते हैं तो चौक-चौराहों पर पुलिस की तैनाती आसानी से की जाकर यातायात को नियंत्रित किया जा सकता है।
मजे की बात तो यह है कि लगभग ढाई साल पहले सांसद डॉ.ढाल सिंह बिसेन की अध्यक्षता में संपन्न हुई सड़क सुरक्षा समिति की बैठक में तत्कालीन जिलाधिकारी प्रवीण सिंह ने दस दिनों के अंदर यातायात सिग्नल चालू करने के स्पष्ट निर्देश दिये जाने के बाद भी साल दर साल यातायात सिग्नल्स यथावत न केवल बंद पड़े हुए हैं, वरन ठूंठ के मानिंद लोगों को मुँह चिढ़ा रहे हैं। इससे आजिज आ चुके लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि यातायात सिग्नल जिन खंबों पर लगे हैं, उन्हें ही निकाल दिया जाना चाहिये ताकि ये लोगों की आँखों में खटकते न रहें।
नगर पालिका के सूत्रों का कहना है कि नगर पालिका में मुख्य नगर पालिका अधिकारी से अगर इन सिग्नल्स के बारे में पूछा जाये तो उनका रटा रटाया जवाब होता है कि अभी चौराहों का विस्तारीकरण अधूरा है, जिसके चलते सिग्नल्स को आरंभ नहीं कराया गया है। चौराहों का विस्तारीकरण शायद पाँच सात सालों से लगातार ही जारी है, जिसके चलते इन सिग्नल्स को चालू नहीं करवाया गया है। यक्ष प्रश्न यही खड़ा है कि क्या सालों बाद भी चौक-चौराहों का विस्तारीकरण नहीं हो पाया है और इसके लिये आखिर कितना समय और नगर पालिका परिषद को चाहिये ताकि वह बंद पड़े यातायात सिग्नल्स को आरंभ करवा पाये . . .!