सीएए के समर्थन में रैली से उपजा अनावश्यक विवाद!

(लिमटी खरे)

देश के हृदय प्रदेश के राजगढ़ जिले में रविवार को जो भी हुआ वह वाकई शर्मसार करने के लिए पर्याप्त ही माना जाएगा। राजगढ़ में नागरिका संशोधन कानून के समर्थन में आयोजित रैली के दौरान राजगढ़ की उप जिलाधिकारी प्रिया वर्मा के साथ कथित तौर पर अभद्रता किए जाने के बाद विवाद बढ़ा और जिलाधिकारी निधि निवेदिता के द्वारा एक व्यक्ति को थप्पड़ मारे जाने के फोटो और वीडियोज भी सोशल मीडिया पर चल रहे हैं। इस तरह की घटना आखिर घटी क्यों! क्या राजगढ़ प्रशासन के सूचना तंत्र को पक्षाघात हो गया! क्या इतनी तादाद में लोगों की भीड़ पलक झपकते ही जुट गई थी! कुछ ही क्षणों में आखिर स्थितियां इतनी विस्फोटक कैसे हो गईं थीं कि जिलाधिकारी को खुद ही सड़कों पर उतरकर मोर्चा संभालना पड़ा, क्या उनके अधीनस्थ मातहत इस स्थिति से निपटने के लिए तैयार नहीं थे!

देश के हृदय प्रदेश में रविवार को भारतीय जनता पार्टी के द्वारा केद्र सरकार के द्वारा लाए गए नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में रैली का आयोजन किया गया। जिले में धारा 144 प्रभावी बताई जा रही है। अगर धारा 144 लागू थी तो किसी तरह की रैली की अनुमति दी ही नहीं जा सकती है। और अगर निषेधाज्ञा लागू थी तो इतनी तादाद में लोग एक साथ एकत्रित कैसे हो गए! यह बात निश्चित तौर पर शोध का ही विषय मानी जा सकती है। इस तरह की घटनाएं अगर घटती हैं तो निश्चित तौर पर प्रशासन पर उंगली उठना लाजिमी ही है।
रविवार को रैली के दौरान हंगामा बढ़ा। आरोप है कि भाजपा के कार्यकर्ता अति उत्साह में उद्वेलित हो गए और मौके पर कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए तैनात दल के साथ उप जिलाधिकारी प्रिया वर्मा भी मौजूद थीं। भाजपा कार्यकर्ताओं के द्वारा उनके साथ कथित तौर पर बदसलूकी की गई। उनको किसी के द्वारा पीछे से लात भी मारी गई। अमूमन इस तरह की रैलियों या विवाद अथवा भीड़भाड़ पर अगर पुलिस या प्रशासन नियंत्रण का प्रयास करता है तो इसकी बाकायदा वीडियोग्राफी भी अनेक एंगल्स से कराई जाती है। मौके पर मीडिया के कैमरे भी ऑन रहते हैं। सोशल मीडिया का जादू जब सर चढ़कर बोल रहा है तब अनेक मोबाईल पर भी वीडियो बनाए ही जा रहे होंगे। काफी लोग सोशल मीडिया पर लाईव भी रहे ही होंगे। वास्तव में क्या हुआ यह बात तो निष्पक्ष जांच के बाद ही सामने आएगी, पर प्रशासन के साथ एवं प्रशासन के द्वारा जिस तरह का बर्ताव किया गया, वह शायद ही कोई उचित माने।
जिस तरह की व्यवस्थाएं या प्रशासनिक ढांचा जिलों में है उसके अनुसार जिलाधिकारी (जिला दण्डाधिकारी) से लेकर अतिरिक्त जिलाधिकारी (अतिरिक्त जिला दण्डाधिकारी), अनुविभागीय अधिकारी राजस्व (अनुविभागीय दण्डाधिकारी) के पास दण्डाधिकारी के अधिकार होते हैं। इसके अलावा तहसीलदार एवं नायब तहसीलदार के पास कार्यपालक दण्डाधिकारी के अधिकार होते हैं। अमूमन यही देखा गया है कि इस तरह के प्रदर्शनों आदि में अनुविभागीय अधिकारी राजस्व स्तर के अधिकारी को ही कानून एवं व्यवस्था नियंत्रण करने के लिए पाबंद किया जाता है। हालात बिगड़ने पर एडीएम और अगर फिर भी काबू में हालात न आ रहे हों तो डीएम सड़को ंपर उतरते हैं।
जिस तरह की बातें सामने आ रही हैं उसके अनुसार उप जिलाधिकारी प्रिया वर्मा के द्वारा प्रदर्शन कर रहे लोगों को पहले घर घर जाकर समझाया गया, फिर मौके पर भी समझाया जा रहा था, इसी बीच किसी के द्वारा उनके साथ बदसलूकी की गई। एक अखबार के अनुसार जब वे लोगों को समझा रहीं थीं, उसी समय कार्यपालक दण्डाधिकारी और उनके कपड़े भी लोगों के द्वारा खींचे गए, इसके बाद वहां से लोग भागने लगे और किसी ने उनकी पीठ पर लात भी मारी। अखबार के अनुसार प्रिया वर्मा के अनुसार ये लोग 19 तारीख को ही रैली निकालने पर अमादा थे। इनसे 116 के बाण्ड भरवाए जाने के बाद भी इनके द्वारा हुड़दंग मचाई गई। पिछले साल 26 जनवरी को खुजनेर में हुई घटना के बाद इस साल 26 जनवरी के बाद ही इस तरह के प्रदर्शन की अनुमति प्रशासन के द्वारा दिए जाने की बात भी कही जा रही थी।
इसी बीच, राजगढ़ की जिलाधिकारी निधि निवेदिता के द्वारा एक व्यक्ति को कथित रूप से चांटे मारे जाने के फोटो और वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। अगर किसी के द्वारा कानून के खिलाफ जाकर काम किया जा रहा है तो उसे जगह पर दण्ड नहीं दिया जा सकता है। इसके लिए कानूनी प्रावधानों के तहत ही काम किया जाना न्याय संगत होगा। अगर कहीं कानून को तोड़ने की बात भी सामने आई थी तो कार्यपालक दण्डाधिकारी के अलावा अन्य दण्डाधिकारियों के द्वारा लाठी चार्ज जैसे आदेश दिए जा सकते थे, पर भीड़ को तितर बितर करने के लिए किसी अधिकारी के द्वारा अगर सरेआम चांटे मारे जाएं तो इसे क्या माना जाएगा!
इस घटना के बाद जैसी की उम्मीद थी इस मामले में प्रदेश में विपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी को बैठे बिठाए एक मुददा हाथ लग गया है। अब भाजपा के आला नेताओं सहित छुटभैया नेता भी सोशल मीडिया पर प्रशासन की कार्यवाही के बहाने प्रदेश सरकार को घेरते नजर आ रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इसे लोकतंत्र का सबसे काला दिन निरूपित कर रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान इसके पहले प्रदेश में एक दशक से ज्यादा मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनके द्वारा कही गई बात को लोग गंभीरता से लेंगे, इसलिए उन्हें भी अपनी वाणी और शब्दों में संयम बरतने की जरूरत है। वैसे उनका प्रश्न लाजिमी है कि क्या जिलाधिकारी को यह निर्देश मिले थे कि रैली में शामिल लोगों की पिटाई की जाए!
जिस तरह की बातें निकलकर सामने आ रही हैं उससे तो यही लग रहा है कि जल्दबादी में अपनी गलति छिपाने के लिए राजगढ़ प्रशासन के द्वारा रैली के दौरान मारपीट की गई। यक्ष प्रश्न यही है कि क्या प्रशासन के पास इतने संसाधन नहीं थे कि पहले से घोषित रैली का आयोजन रूकवा दिया जाता! क्या प्रशासन का सूचना और खुफिया तंत्र इतना कमजोर हो गया है कि उसे यह भनक नहीं लग पाई कि रैली के दौरान इस तरह विवाद की स्थिति भी निर्मित हो सकती है! अगर रैली के पहले बाण्ड भरवाए गए थे, नेताओं को समझाईश दी गई थी तो फिर इतनी तादाद में लोग रैली के रूप में सामने कैसे आ गए!
निश्चित तौर पर यह घटना देश के हृदय प्रदेश के नाम को राष्ट्रीय स्तर की सुर्खियों तक ले जाएगी। इसके बाद पक्ष विपक्ष की सियासत इस मामले में आरंभ हो जाएगी। घटना क्या थी! क्यों घटी! क्या इसे रोका जा सकता था! क्या क्या बातें थीं, जिन्हें एहतियातन अगर पहले ही कर लिया जाता तो इस तरह की स्थिति से क्या बचा जा सकता था! जैसे ज्वलंत प्रश्न तो अब सियासी उफान में मंझधार में ही फंसे रह जाएंगे।
ज्यादा शोर शराबा होने पर इसकी न्यायिक जांच के आदेश भी शायद कर दिए जाएं। जांच का निष्कर्ष आने में महीनों लग जाएंगे, और जब इसका फैसला आएगा तब तक लोग इस घटना को ही भूल चुके होंगे, पर फौरी तौर पर तो इस तरह की घटना से राजगढ़ प्रशासन सहित प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगते ही दिख रहे हैं। (लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)
(साई फीचर्स)