भारत में मध्यम वर्ग के लिए एक चार-पहिया वाहन खरीदना केवल एक साधन नहीं, बल्कि अपने अनेक सपनों में से एक का पूरा हो जाने का प्रतीक होता है। यह सपना मेहनत, बचत और कई बार लंबे समय के आर्थिक नियोजन का परिणाम होता है। लेकिन नीतियां, विशेष रूप से वाहनों की मियाद को लेकर बनाए गए नियम, भारी-भरकम कर और रास्तों पर चलने पर देय पथकर, इस वर्ग विशेष के सपनों को रौंदे जा रहे हैं। निजी वाहन मालिकों, खासकर मध्यम वर्ग के बीच, वाहनों की 10 और 15 साल की उम्र सीमा और अनिवार्य स्क्रैप नीति को लेकर नाराजगी बढ़ रही है। यह नीति न केवल आर्थिक बोझ बढ़ाती है, बल्कि मध्यम वर्ग की हमेशा से जूझती हुई जिंदगी को और जटिल बनाती है, खासकर तब जब आय और रोजगार की अनिश्चितता पहले ही उनकी परेशानियों को बढ़ा रही है।
वाहन खरीदते समय मध्यम वर्ग को कई तरह के करों का (बेशक कुछ रियायती) सामना करना पड़ता है। वाहनों पर लगने वाले जीएसटी (Goods and Services Tax) और उत्पाद कर (Excise Duty) लगभग 20 से 40% तक पहुंच जाते हैं। इसके अलावा, रजिस्ट्रेशन के समय एकमुश्त रोड टैक्स, ग्रीन सेस, शिक्षा सेस, स्वच्छता सेस, और अन्य शुल्क भी चुकाए जाने होते हैं। पेट्रोल और डीजल पर भारी उत्पाद शुल्क और विक्रय कर, नियमित प्रदूषण नियंत्रण जांच का खर्च, और सड़कों पर अप्रत्याशित टोल वसूली और वाहन चालन के दौरान मामूली गलतियों पर भारीभरकम चालान मध्यम वर्ग की जेब पर दोहरा बोझ डालते हैं। एक ओर टैक्स लेकर सड़कों के रखरखाव का दावा किया जाता है, तो दूसरी ओर टोल के नाम पर अतिरिक्त वसूली होती है। इतने करों के बाद भी वाहन को 15 साल (पेट्रोल) या 10 साल (डीजल) की उम्र सीमा के मियादी कानून के आधार पर स्क्रैप करना एक वर्ग विशेष के लिए तुषाराघात से कम नहीं है।
पर्यावरण संरक्षण के नाम पर वाहनों की उम्र सीमा निर्धारित की गई है, जिसके तहत पुरानी गाड़ियों को एक समय के बाद स्क्रैप करना अनिवार्य है। हालांकि, इस नीति में दी जाने वाली सब्सिडी, मात्र 30-40 हजार रुपये है, जो नई गाड़ी खरीदने के खर्च की तुलना में नगण्य है। मध्यम वर्ग, जो पहले ही भारी कर और लोन के बोझ तले दबा होता है, के लिए यह सब्सिडी उसके सपनों के मर जाने का एक दस्तावेज मात्र होता है। दूसरी ओर, स्क्रैप की गई गाड़ियों का इंजन याब्तो जनरेटर के रूप में उपयोग हो रहा होता है, टायर, बैटरी व अन्य एक्सेसरीज का पुनः उपयोग हो ही रहा होता है। इस पूरी प्रक्रिया का लाभ स्क्रैप डीलर उठा रहे होते हैं, न कि वाहन मालिक। यह नीति न केवल मध्यम वर्ग के लिए आर्थिक नुकसान का कारण बन रही है, बल्कि स्क्रैप डीलरों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय बन गई है जो एक गिरोह उद्योग के रूप में फल फूल रहा है। वर्तमान में आय और रोजगार की अनिश्चितता से जूझ रहे मध्यम वर्ग के लिए यह नीति और भी असुविधाजनक साबित हो रही है।
इस सबके साथ कमजोर पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी मध्यम वर्ग को परेशान कर रहा हैं। भारतीय रेलवे, जो कभी मध्यम और निम्न वर्ग की रीढ़ थी, अब तेजी से व्यवसायीकरण की ओर बढ़ रही है। सामान्य और स्लीपर क्लास की बोगियां धीरे-धीरे कम हो रही हैं, जबकि महंगी वातानुकूलित और प्रीमियम ट्रेनों की संख्या बढ़ रही है। ये कुछ गाड़ियां समय पर चलती जरूर हैं, लेकिन इनका किराया मध्यम वर्ग की जेब पर भारी पड़ता है। बसों और अन्य सार्वजनिक परिवहन साधनों की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। ऐसे में निजी वाहन न केवल सुविधा, बल्कि मजबूरी बन गया है। लेकिन स्क्रैप नीति और भारी करों के कारण निजी वाहन रखना भी अब मध्यम वर्ग के लिए चुनौतीपूर्ण हो चला है।
मध्यम वर्ग आज एक ऐसी स्थिति में है, जहां न तो वह आसानी से निजी वाहन का उपयोग कर सकता है और न ही विश्वसनीय और किफायती पब्लिक ट्रांसपोर्ट का सहारा ले सकता है। रिजर्व रेल्वे टिकट लेना आज एक जंग जीतने सा हो गया है सेवा शुल्क, तत्काल शुल्क जीएसटी देने के बाद टिकट मिल गया तो ठीक वरना जमा पैसे भी शुल्क काट कर एक हफ्ते बाद वापस होते हैं। स्क्रैप कायदे के तहत गाड़ी को नियत समय पर खत्म करना पड़ता है भले ही वह अच्छी स्थिति में हो या कम चली हो, मध्यम वर्ग को या तो भारी-भरकम खर्च उठाकर नई गाड़ी खरीदनी पड़ती है या अपने सपनों और सुविधाओं को मार देना होता है। यह न केवल आर्थिक बोझ बढ़ा रहा है, बल्कि मानसिक तनाव का कारण भी बनता जा रहा है, खासकर तब जब आय और रोजगार की अनिश्चितता पहले ही उनकी परेशानियों को बढ़ा रही है। दूसरी ओर, पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी और महंगाई के कारण लोग निजी वाहनों पर निर्भर रहने को मजबूर हैं। सुबह शाम दो बार गाड़ी चमकाने वाले इस वर्ग को स्क्रैप कर देने का दर्द का अंदाजा लगाना जरा मुश्किल है।
इस समस्या का समाधान केवल कठोर नियम लागू करने में नहीं, बल्कि संतुलित और जन-केंद्रित नीतियों के लागू करने में है, होना ये चाहिए कि –
वाहनों की उम्र सीमा को लचीला बनाए – उम्र के बजाय वाहन की स्थिति और प्रदूषण स्तर को आधार बनाया जाए। अगर गाड़ी नियमित मेंटेनेंस और पीयूसी जांच में पास हो रही है, और वह एक नियत किलोमीटर नहीं चली है तो उसे स्क्रैप करने की बाध्यता खत्म की जाए।
करों में राहत – जीएसटी और उत्पाद कर की भारी दर को कम किया जाए, और रोड टैक्स, टोल, और ग्रीन टैक्स जैसे दोहरे करों को तर्कसंगत बनाया जाए या शिथिल किया जाए।
स्क्रैप नीति में प्रोत्साहन- स्क्रैप नीति में दी जाने वाली मामूली सब्सिडी को बढ़ाकर नई गाड़ी खरीदने के लिए पर्याप्त आर्थिक सहायता दी जाए।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट को जन-सुलभ बनाएं- रेलवे में सामान्य और स्लीपर क्लास की बोगियों की संख्या बढ़ाई जाए, किराए को किफायती रखा जाए, और बस सेवाओं को नियमित, सुलभ और विश्वसनीय बनाया जाए। टिकट बुकिंग प्रक्रिया को सुगम और पारदर्शी बनाया जाए।
स्क्रैप प्रक्रिया में पारदर्शिता- स्क्रैप किए गए वाहनों के पुनः उपयोग किए जाने योग्य पुर्जों का लाभ स्क्रैप डीलरों के बजाय वाहन मालिकों को मिल सकने का चयन उपलब्ध हो।
मध्यम वर्ग भारत की अर्थव्यवस्था और समाज की रीढ़ है। नीतियां ऐसी होनी चाहिए जो इस वर्ग को सशक्त बनाएं, न कि उस पर अतिरिक्त बोझ डालें। वाहनों पर भारी कर, अप्रत्याशित पथ कर, अपर्याप्त स्क्रैप सब्सिडी, और स्क्रैप नीति से होने वाला नुकसान मध्यम वर्ग के लिए अन्यायपूर्ण है। साथ ही, आय और रोजगार की अनिश्चितता के बीच यह नीति उनकी परेशानियों को और बढ़ा रही है। यह समय है कि इन नीतियों पर पुनर्विचार हो और मध्यम वर्ग की आकांक्षाओं और जरूरतों को ध्यान में रखकर समाधान निकालने के प्रयास हों। एक मजबूत, किफायती और जन-सुलभ पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम, तर्कसंगत कर नीतियां, और लचीली स्क्रैप नीति ही इस समस्या का स्थायी हल हो सकती हैं। मध्यम वर्ग का सपना केवल एक गाड़ी नहीं, बल्कि सम्मान और सुविधा के साथ जीने का हक भी है, जिसे सुनिश्चित किया ही जाना चाहिए।
युगल पाण्डेय,
नागपुर
(लेखक भारत की एक ख्यातिलब्ध कंपनी में वरिष्ठ प्रबंधक हैं)
(साई फीचर्स)

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