(डॉ. प्रितम भि. गेडाम)
(अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस विशेष 24 जनवरी 2025)
मनुष्य के जीवन की आधारशिला उसकी शिक्षा होती है, आज के आधुनिक युग में हम सभी शिक्षा का मोल बखूबी समझते हैं। दुनिया में किसी भी क्षेत्र का सर्वोच्च स्थान हम शिक्षा की योग्यता के आधार पर हासिल कर सकते हैं। साक्षरता और उच्च शिक्षा में लगातार वृद्धि के साथ, दुनिया भर में शिक्षा प्रणाली नई ऊंचाइयों पर पहुंच गई है। देश में भी नई शिक्षा प्रक्रिया को मजबूत बनाने के लिए नित नए उपक्रमों का क्रियान्वयन किया जा रहा है। तकनीकी ज्ञान, कौशल, मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है। हम दिन ब दिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रणाली के सुदृढ़ता का बखान तो कर रहे हैं, फिर भी भारत देश से विदेश पढ़ने जानेवाले विद्यार्थियों की संख्या हर साल बढ़ती ही जा रही है। 2024 में लगभग 13, 35,878 भारतीय छात्र विदेश में पढ़ रहे थे, 2023 में 13,18,955 छात्र थे, जबकि 2022 में 9,07,404 छात्र थे। जबकि इस तुलना में हमारे देश में विदेश से आने वाले छात्रों की संख्या बेहद कम है, जो ज्यादातर छात्र विशेषकर नेपाल, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और अन्य देशों से भारत आते है। ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन की 2021-22 रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर के 170 देशों के कुल 46,878 विदेशी नागरिक/छात्र भारत में विभिन्न पाठ्यक्रमों में नामांकित हैं। ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन के आंकड़ों के मुताबिक, 2023 में केवल 40,431 विदेशी छात्र उच्च शिक्षा के लिए भारत आए।
देश के बड़े शहरों और महानगरों के कुछ निजी शिक्षा संस्थान तो पांच सितारा होटल जैसे प्रतीत होते हैं। हाल ही में मैंने देश के महँगे स्कूली शिक्षा की वार्षिक फीस की जानकारी ली थी, जिससे पता चला कि हमारे देश में कुछ निजी स्कूल की वार्षिक फीस 15-20 लाख रुपये तक भी है। देश में सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली सेवा सुविधाओं का अध्ययन करने पर पता चलता है की, आज भी बड़ी संख्या में विद्यार्थी जगत शिक्षा के आधारभूत सुविधाओं से वंचित है। आज भी दुर्गम भागों, पहाड़ी क्षेत्रों में स्कूली बच्चे नदी, नाले, जंगली क्षेत्र पार करके स्कूल जाते है, क्योंकि पक्की सड़क, पुल या सरकारी परिवहन की सुविधा नहीं है। बहुत से सरकारी स्कूल में कंप्यूटर लैब, पुस्तकालय, खेल सामग्री, मैदान, पर्याप्त मेज कुर्सी, यांत्रिक उपकरण, बिजली, पिने का शुद्ध पानी भी नहीं है। अनेक स्कूल भवन जर्जर अवस्था में है, जिससे बहुत बार जानलेवा हादसे होने की खबरें भी देखने-सुनने को मिलती हैं। अक्सर देखा जाता है कि, काबिलियत होते हुए भी बेहतर सुख-सुविधाओं की कमी के कारण प्रतिभावान बच्चे अपने लक्ष्य से दूर रह जाते है।
राज्य मंत्री सुकांत मजूमदार ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी साझा की, कि अक्टूबर 2024 तक केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 5,182 शिक्षण पद रिक्त हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षण पदों के लिए रिक्तियों की दर 35 प्रतिशत से अधिक है, यहां तक कि आईआईटी और आईआईएम जैसे प्रमुख संस्थानों में भी शिक्षकों की कमी है, जो कुछ मामलों में 46 प्रतिशत तक है। फिलहाल पदभरती की राह देखते महाराष्ट्र राज्य के सरकारी अकृषक विश्वविद्यालयों में 1200 और महाविद्यालयों में 11000 स्वीकृत पद रिक्त हैं। दिसंबर 2023 तक, शिक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत में प्राथमिक और माध्यमिक स्तर के सरकारी स्कूलों में 8.4 लाख शिक्षक रिक्तियां थी। 2023 के शुरुआत में एक प्रमुख दैनिक के मुताबिक, देश में लगभग 1.2 लाख स्कूल एकल शिक्षक द्वारा चलाए जाते रहे हैं। सभी भारतीय स्कूलों की तुलना में यह अनुपात 8 प्रतिशत है, यह संख्या दर्शाती है कि छात्रों की बड़ी संख्या के कारण एक ही शिक्षक पर अत्यधिक बोझ है। कर्नाटक सरकार के स्कूल शिक्षा मंत्री मधु बंगारप्पा ने 19 दिसंबर, 2024 को विधानसभा को सूचित किया कि कर्नाटक राज्य में शिक्षकों के 59,772 रिक्त पद हैं। कर्नाटक राज्य के लगभग 6,158 सरकारी स्कूलों में एक-एक शिक्षक हैं, जो 1.38 लाख छात्रों की जिम्मेदारी संभालते है। 530 स्कूलों में 358 शिक्षक है परंतु यहां कोई छात्र नहीं हैं, राज्य के सरकारी शालाओं में छात्रों के नामांकन में भी गिरावट जारी है।
लगभग 142.86 करोड़ लोगों की आबादी के साथ देश की शिक्षा प्रणाली भी उतनी ही विशाल है। डेलॉइट की येएसएसई 2023 रिपोर्ट के अनुसार, शैक्षणिक वर्ष 2021-22 में, भारत में प्री-प्राइमरी स्तरों सहित स्कूल में 26.52 करोड़ छात्रों का नामांकन था। देश में औसत छात्र-शिक्षक अनुपात 23:1 है। लद्दाख जैसे कुछ केंद्र शासित प्रदेश में अनुकरणीय अनुपात 7:1 तक कम बताया है, जबकि बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे अन्य राज्यों ने क्रमशः 45:1, 33:1 और 29:1 के उच्च अनुपात की सूचना दी है, जो क्षेत्रीय असमानताओं को उजागर करता है। लगभग 7.7 प्रतिशत प्री-प्राइमरी, 4.6 प्रतिशत प्राइमरी और 3.3 प्रतिशत अपर-प्राइमरी स्कूल ऐसे शिक्षकों को नियुक्त करते हैं जो आवश्यक योग्यताएं पूरी नहीं करते हैं। निजी स्कूलों में 69 प्रतिशत शिक्षक और कई सरकारी शिक्षा संस्थानों में संविदात्मक शर्तों पर शिक्षक काम करते हैं, मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि परिणामस्वरूप, उन्हें नौकरी की सुरक्षा या वित्तीय स्थिरता नहीं मिलती है। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार, अधिकतर शिक्षक रिक्तियाँ ग्रामीण क्षेत्रों में केंद्रित है, जहाँ खराब बुनियादी ढांचा और मूलभूत सुविधाओं की कमी एक चुनौतीपूर्ण कार्य का वातावरण पैदा करती है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार द्वारा भर्ती किए गए लगभग 40 प्रतिशत शिक्षकों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षण की कमी है। विश्व आर्थिक मंच 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की शिक्षा की गुणवत्ता दुनिया में 90वें स्थान पर है। भारत के शिक्षा मंत्रालय 2021 के अनुसार, भारत के सभी सरकारी स्कूलों में से केवल 4.8 प्रतिशत के पास पर्याप्त बुनियादी ढांचा है, जिसमें कक्षाएँ, पुस्तकालय और कंप्यूटर लैब शामिल हैं, इसने शिक्षा के क्षेत्र में एक असमान स्तर का खेल तैयार किया है, शहरी क्षेत्रों के छात्रों के पास ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों की तुलना में बेहतर संसाधन और अवसर हैं।
देश के सरकारी शिक्षण व्यवस्था में योग्यतापूर्ण शिक्षकों के पद रिक्त होने की समस्या बहुत है, जिससे कार्यरत शिक्षकों पर अधिक भार पड़ता है, जिस कारण विद्यार्थियों के शैक्षणिक गुणवत्ता पर सबसे ज्यादा बुरा असर पड़ता है ग्रामीण क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा अभी भी बहुत दूर है, केन्द्रीय विद्यालय संगठन, नवोदय विद्यालय, आर्मी पब्लिक स्कूल जैसे शिक्षा संस्थान एक विशेष स्तर, नीति-नियम, गुणवत्ता बनाये हुए हैं, लेकिन बहुत से राज्य सरकार और स्थानीय सरकार द्वारा संचालित स्कूल बुनियादी सुविधाओं की कमी से भी जूझते नजर आते हैं। विश्व की उच्चतम शिक्षा संस्थानों के जब नाम लेते हैं तो देश के संस्थान कहीं नहीं दिखते। देश के नब्बे प्रतिशत से अधिक सरकारी कर्मचारी अपने बच्चों को निजी शिक्षा संस्थानों में ही पढ़ाने को प्राथमिकता देते है, आख़िर ऐसा क्यों होता है? कर्मचारी नौकरी सरकारी करते हैं, लेकिन सरकारी शिक्षा संस्थानों पर भरोसा न करके निजी शिक्षा संस्थानों पर यकीन किया जाता है। अगर लोगों को निजी संस्थानों पर इतना ही भरोसा है तो फिर उसके अनुरूप सरकारी शिक्षा संस्थान विकसित क्यों नहीं हो रहे हैं? क्या हो अगर सभी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी, कमिश्नर, जनप्रतिनिधि, नेता अर्थात सरकार से वेतन पाने वाले प्रत्येक व्यक्ति अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाये, या फिर ऐसा नियम बन जायें तो, शायद देश के सरकारी स्कूल की स्थिति रातों रात बदल सकती है। एक समान गुणवत्ता स्तर की शिक्षा सुविधा सबको मिलेगी, शिक्षा में अमीर-गरीब जैसा कोई भेद नहीं रहेगा। बेहतर शिक्षा बेहतर जीवन का मजबूत स्तंभ कहलाते हैं। मनुष्य को कला-गुणों, कौशल, संस्कार, सुजान नागरिक में बदलने की जिम्मेदारी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की होती है। इसी के आधार पर मनुष्य जीवनयापन का बेहतर साधन चुनकर अच्छा मुकाम हासिल कर समाज, देश-दुनिया में नाम कमाते हैं, प्रत्येक मनुष्य के शिक्षा का उसकी आने वाली कई पीढ़ियों पर इसका सीधा असर पड़ता है। गरीबी के दलदल से निकलने का शिक्षा यह बेहतर मार्ग होता है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रत्येक छात्र का अधिकार है, किसी भी समस्याओं या आर्थिक तंगी से यह अधिकार छीनना नहीं चाहिए।
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(साई फीचर्स)
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