भगवान शिव का प्रिय है बिल्व पत्र, जानिए बेल पत्र या बिल्व पत्र की महिमा के बारे में . . .
सावन का महीना हो और देवाधिदेव महादेव भगवान शिव को अर्पित किए जाने बेल या बिल्व पत्र की चर्चा न हो तो बात अधूरी सी ही लगती है। बेल का पेड़, पत्ते और फल सभी बहुत ही गुणकारी माने गए हैं। सावन का महीना और भगवान शिव की पूजा, इन दोनों को जोड़ने वाली कड़ी है बिल्वपत्र। यह पवित्र पत्ता न केवल शिव भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि आयुर्वेद में भी इसके कई गुण बताए गए हैं। आइए जानते हैं कि बिल्वपत्र क्यों है इतना खास? आईए जानते हैं बेल पत्र के बारे में विस्तार से।
बिल्वपत्र के तीन पत्ते ब्रम्हा, विष्णु और महेश – त्रिमूर्ति का प्रतीक माने जाते हैं। बिल्व पत्र का पत्ता देवाधिदेव भगवान शिव के तीसरे नेत्र से भी जोड़ा जाता है जो ज्ञान और विनाश का प्रतीक है। शास्त्रों के अनुसार बिल्व का वृक्ष देवताओं का निवास माना जाता है।
जानकार विद्वानों के अनुसार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रची गई बिल्वाष्टक स्तुति ने बताया गया हैं कि बेलपत्तेे सत्व, रज और तमोगुण की तरफ संकेत करते हैं, इसलिए इन पत्तेों को त्रिगुणाकार रुप कहा जाता हैं। जिस समय हम सारी सृष्टि का विचार करते है यह तीन तत्वों से परिपूर्ण नजर आती हैं। एक तरफ स्त्री, पुरुष तथा नपुंसक हैं तो दूसरी तरफ मनुष्य, देव तथा राक्षस, वहीं, जलचर, नभचर तथा थलचर वहीं कहा जाता है कि इस सृष्टि का सृजन, पालन तथा संहार भी तीन देवता ही करते है, जो ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश के नाम से पुकारे जाते हैं।
जानकार विद्वानों के अनुसार जैसे बिल्व की पत्तियां जाल से जुड़ी है उसी प्रकार यह सारा त्रीत्व चेतना से जुड़ा हुआ हैं। बिल्व पत्र को त्रिनेत्र की संज्ञा भी दी गई हैं। इसी विवेक के नेत्र (तीसरी आंख) से शिव जी कामदेव शमन करते हैं। इसलिए भी भगवान शिव को बिल्व पत्र अर्पण करना चाहिए। पुराणों में श्रावण मास में भगवान शंकर की पूजा अर्चना को शुभ फलदायी बताया गया है।
शिव अभिषेक में नैवेद्य के रूप में बिल्व पत्रों का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के प्रिय बिल्व साक्षात महादेव स्वरूप है तथा बिल्व पत्र में तीनों लोक के तीर्थ स्थापित हैं। नियमित रूप से बिल्व पत्रों से भगवान शिव का अभिषेक करने वाला उपासक अंततोगत्वा शिवलोक को प्राप्त होकर शिवमय हो जाता है। लिंगपुराण में वर्णित है कि यदि उपासक को शिव अभिषेक हेतु नूतन बिल्व पत्र की प्राप्ति न हो तो वह अर्पित किये हुए बिल्व पत्र को धोकर सच्चे मन से शिव अर्चना में प्रयोग भी कर सकते हैं। शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय बिल्वपत्र चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है। बिल्वपत्र चढ़ाने से मन शांत होता है और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
कहा जाता है कि घर में बिल्व का पेड़ लगाना शुभ माना जाता है। वहीं, बिल्व वृक्ष के नीचे पूजा करने से पुण्य मिलता है। तत्वज्ञान की प्राप्ति के लिए उपासक को बिल्व वृक्ष की जड़ के पास सुबह और शाम के समय दीपक प्रज्वलित करना शुभ बताया गया है। ऐसा माना गया है कि जो व्यक्ति बिल्व वृक्ष का रोपण करता है, उसके कुल में कई पीढिय़ों तक लक्ष्मी निवास करती है। देवाधिदेव महादेव भगवान शिव जी के अभिषेक हेतु तीन, पांच, अथवा सात के समूह वाले बिल्व पत्र का प्रयोग कल्याणकारी है। इनमें पांच अथवा सात पत्रों के समूह की विशिष्टता है।
जानकार विद्वानों का कहना है कि ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव की उपासना करने वाले साधकों को जिस मंत्र के साथ बिल्व पत्र तोड़कर भगवान शिव को अर्पित करने चाहिए वह है
अमृतोद्धव श्रीवृक्ष महादेवप्रियरू सदा। गृहमि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात।
वहीं, आयुर्वेद के अनुसार बिल्वपत्र में कई औषधीय गुण होते हैं। यह पाचन में मदद करता है और शरीर को ठंडक पहुंचाता है। आयुर्वेद में इसे कई बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। जानकारों की मानें तो बिल्ववृक्ष के सात पत्तेे प्रतिदिन खाकर थोड़ा पानी पीने से स्वप्न दोष की बीमारी से छुटकारा मिलता है। इस प्रकार यह एक औषधि के रूप में काम आता है। बिल्वपत्र उत्तम वायुनाशक, कफ निस्सारक व जठराग्निवर्धक है। चतुर्मास में उत्पन्न होने वाले रोगों का प्रतिकार करने की क्षमता बिल्वपत्र में है।
कहा जाता है कि शिवलिंग पर प्रतिदिन बिल्वपत्र चढ़ाने से सभी समस्याएं दूर हो जातीं हैं। साधक को जीवन में कभी भी पैसों की कोई समस्या नहीं रहती है। शास्त्रों मे वर्णित है कि जिन स्थानों पर बिल्ववृक्ष हैं वह स्थान काशी तीर्थ के समान पूजनीय और पवित्र है। ऐसी जगह जाने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। गंध, फूल, धतूरे से जो बिल्ववृक्ष की जड़ की पूजा करता है, उसे संतान और सभी सुख मिल जाते हैं। बिल्व की जड़ के पास किसी शिव भक्त को घी सहित अन्न या खीर दान देता है, वह कभी भी धनहीन या दरिद्र नहीं होता, क्योंकि यह श्रीवृक्ष भी पुकारा जाता है यानी इसमे देवी लक्ष्मी का भी वास होता है।
अब आईए हम आपको बताते हैं कि बिल्व पत्र को कब नहीं तोड़ना चाहिए। जानकार विद्वानों का मत है कि चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति और सोमवार तथा प्रतिदिन दोपहर के बाद बिल्वपत्र नहीं तोडऩा चाहिए। ऐसा करने पर पत्तियां तोडऩे वाला व्यक्ति पाप का भागी बनता है।
शास्त्रों के अनुसार बिल्व का वृक्ष उत्तर पश्चिम में हो तो यश बढ़ता है, उत्तर दक्षिण में हो तो सुख शांति बढ़ती है और बीच में हो तो मधुर जीवन बनता है। घर में बिल्ववृक्ष लगाने से परिवार के सभी सदस्य कई प्रकार के पापों के प्रभाव से मुक्त हो जाते हैं। इस वृक्ष के प्रभाव से सभी सदस्य यशस्वी होते हैं, समाज में मान सम्मान मिलता है। बिल्ववृक्ष के नीचे शिवलिंग पूजा से सभी मनोकामना पूरी होती है। बिल्व की जड़ का जल अपने सिर पर लगाने से उसे सभी तीर्थों की यात्रा का पुण्य पा जाता है।
पुराणों के अनुसार रविवार के दिन और द्वादशी तिथि पर बिल्ववृक्ष का विशेष पूजन करना चाहिए। इस पूजन से व्यक्ति से ब्रम्हहत्या जैसे महापाप से भी मुक्त हो जाता है। बिल्वपत्र अखंडित और ताजा होना चाहिए। शिवलिंग पर बिल्वपत्र को उल्टा चढ़ाना चाहिए।
जानकारों के अनुसार बिल्व पत्र अखंडित हों एवं चढ़ते समय अंगूठा, मध्यमा एवं तर्जनी से सीधा पकड़ें, शिवलिंग पर चढ़ते समय बिल्व पत्र उल्टा चढ़ाएँ। बिल्व पत्र चढाने का अपना अलग विधि विधान है यदि विधि विधान से बेलपत्र अर्पित नहीं किया जाता है तो ऐसे पूजा का कोई फल नहीं मिलता है।
महत्वपूर्ण बात यह है प्रायः हम सभी लोगों के मन में यह प्रश्न तो आता ही है, कि बेलपत्र शिवलिंग पर कैसे चढ़ाए और शिवलिंग पर विल्वपत्र चढ़ाने से क्या होता है। शिवलिंग पर बिल्वपत्र उल्टा चढ़ाए या सीधा इत्यादि तरह के प्रश्न व्यक्ति के मन में आते है।
जानकारों का अनुसार बेलपत्र का दो भाग क्रमशः इस प्रकार होता है। एक तरफ खुरदरा अर्थात उभरा हुआ होता है और दूसरा भाग एकदम कोमल अर्थात चिकना होता है। बेलपत्र का उभरा हुआ भाग जोकि उल्टा होता है और जो कोमल भाग होता है वह सीधा भाग होता है। इसलिए बेलपत्र को शिवलिंग पर कोमल भाग चढ़ाना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि बिल्वपत्र का चिकना भाग सीधा होता है और खुरदुरा भाग उल्टा होता है। बिल्वपत्र का उल्टा भाग शिवलिंग पर भूलकर भी अर्पित नहीं करना चाहिए। ध्यान देने योग्य बात यह है, की शिवलिंग पर बेलपत्र चढाते समय उभरा भाग ऊपर की तरफ और जो कोमल अर्थात सीधा भाग शिवलिंग की तरफ होना चाहिए।
शिव अभिषेक में बिल्व पत्र अर्पित करते समय जो मंत्र का उच्चारण मंगलमयी व मोक्षकारी है वह है,
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्र च त्रिधायुतम,
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम।
वैसे ऊॅ नमः शिवाय का मंत्र सबसे उपयुक्त माना गया है।
इस माह में अगर आप देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव की अराधना करते हैं तो भोलेनाथ बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। अगर आप भोलेनाथ के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में हर हर महादेव लिखना न भूलिए।
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