सावन के उपरांत भाद्रपद महीने में भी रखना चाहिए इस तरह की सावधानियां . . .

जानिए भादों महीने में क्या क्या बताया गया है निषिद्ध!
सावन और भादों दोनों ही महीने बारिश का काल विशेष रूप से माना जाता है। इन दोनों ही महीनों का पुरातन, सांस्कृतिक, धार्मिक आदि का विशेष महत्व होता है। वर्तमान में भाद्रपद महीना चल रहा है। आईए जानते हैं कि इस महीने में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।
जानकार विद्वानों के अनुसार शरीर की शुद्धि और पवित्रता के लिए एक वक्त का भोजन ही करना चाहिए। इस माह में सभी तरह की सुख सुविधाओं का त्याग कर देना चाहिए और पलंग पर सोना भी छोड़ देना चाहिए। जमीन पर चटाई बिछाकर उस पर सोना चाहिए। असत्य वचन बोलना, कड़वे वचन कहना, विश्वासघात करना, ईष्या करान, क्रोध करना यह सभी त्याग देना चाहिए। किसी भी तरह के मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए। भाद्रपद में लहसुन, प्याज, शहद, गुड, दही-भात, मूली, बैंगन, कच्ची चीजें, मांस और मछली सहित किसी भी प्रकार का तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। तैलीय एवं अधिक मसालेदार चीजें खाने से बचना चाहिए। विद्वानों की मानें तो इस माह में नारियल का तेल नहीं इस्तेमाल करना चाहिए। इससे संतान सुख में कमी आती है। भाद्रपद के महीने में नशीले पदार्थों तंबाकू, गुटखा, सिगरेट व शराब आदि का सेवन करने से बचें। इस समय शारीरिक संबंधों से बचना चाहिए।
आईए जानते हैं कि भाद्रपद माह में क्या कर सकते हैं। इस महीने में भगवान विष्णु जी, श्रीकृष्ण जी, गणेशजी, माता पार्वती और शिवजी का ध्यान करना चाहिए। ऐसा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। भादों के महीने में पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। आलस्य दूर करने के लिए इस महीने शीतल जल से स्नान करना चाहिए। भादों के महीने में गरीबों को दान देना चाहिए। श्रीकृष्ण को तुलसी दल अर्पित करना और इसे दूध में उबालकर पीना लाभदायक माना गया है। इस माह में मक्खन खाने से उम्र बढ़ती है। शारीरिक बल प्राप्त करने के लिए भाद्र मास में पंचगव्य अर्थात दूध, दही, घी गोमूत्र, गोबर का प्रयोग करें।
अब जानते हैं कि भाद्रमास का क्या महत्व है। जानकार विद्वानों का मानना है कि भाद्र माह में दही न खाएं, लेकिन दही से पूरे मास भगवान कृष्ण को पंचामृत से स्नान कराने से मनोकामना पूरी होती हैं। जिन लोगों को संतान सुख नहीं है , उन लोगों को इस माह या तो कृष्ण का जन्म कराना चाहिए या कृष्ण जी के जन्मोत्सव में शामिल ना चाहिए। इस महीने आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए श्रीमद भगवद गीता का पाठ शुभ परिणाम देता है। इस महीने में लड्डू गोपाल और शंख की स्थापना से घर में धन और सम्पन्नता आती है।
इस महीने में आप विद्या, बुद्धि और ज्ञान के लिए इस माह श्री गणेश की उपासना करें। पीले रंग के भगवान् गणेश की स्थापना करें। हर दिन उनको दूर्वा और मोदक का भोग लगायें। पूरे माह ब्रम्हाचर्य का पालन करें। हर प्रकार की बाधा का नाश होगा। पूरे मास भगवान श्रीकृष्ण को तुलसी दल अर्पित करें। इस माह आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए श्रीमद्भगवदगीता का पाठ करना चाहिए। मन को शुद्ध करने के लिए यह माह बेहद उपयोगी है। इस माह पलंग पर शयन नहीं करना चाहिए। जमीन पर चटाई बिछाकर शयन करना चाहिए। इस माह किसी से झूठ न बोलें। इस माह तेल से बनी चीजों का सेवन करने से बचना चाहिए। इस माह एक समय भोजन करना चाहिए।
विद्वानों का कहना है कि इस मास कई त्योहार आते हैं। संतान सुख की प्राप्ति के लिए कान्हा के जन्मोत्सव में शामिल होना चाहिए। कृष्ण पक्ष द्वादशी को वत्स द्वादशी कहते है। इसमें गाय-बछड़े का पूजन किया जाता है। यह पर्व बच्चों की सुख-शांति से जुड़ा है। इस मास के शुक्ल पक्ष, एकादशी को देवझूलनी एकादशी मनाते है। इस व्रत में भगवान विष्णु की उपासना का विधान है। इस माह गुड़ का सेवन नहीं करना चाहिए और न ही किसी अन्य व्यक्ति के दिए हुए पके चावल खाने चाहिए। नारियल के तेल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। नहीं तो घर में दरिद्रता आती हैं।
अब जानिए भाद्रपद माह के प्रमुख व्रत त्योहारों के बारे में। 22 अगस्त 2024 को कजरी तीज, हेरंब संकष्टी चतुर्थी, 24 अगस्त 2024 को बलराम जयंती, 25 अगस्त 2024 को भानु सप्तमी, 26 अगस्त 2024 को श्री कृष्ण जन्माष्टमी, 27 अगस्त 2024 को दही हांडी, 29 अगस्त 2024 को अजा एकादशी, 31 अगस्त 2024 को प्रदोष व्रत- 31 अगस्त 2024 रहेगा। इसके साथ ही 2 सितंबर 2024 को भाद्रपद अमावस्या, 6 सितंबर 2024 को हरतालिका तीज एवं वराह जयंती, 4 सितंबर 2024 को गणेश चतुर्थी, 8 सितंबर 2024 को ऋषि पंचमी, 10 सितंबर 2024 को ललिता सप्तमी, 11 सितंबर 2024 को महालक्ष्मी व्रत आरंभ एवं राधा अष्टमी, 14 सितंबर 2024 को परिवर्तिनी एकादशी, 15 सितंबर 2024 को प्रदोष व्रत एवं वामन जयंती, 16 सितंबर 2024 को विश्वकर्मा पूजा एवं कन्या संक्रांति, 17 सितंबर 2024 को अनंत चतुर्दशी, पूर्णिमा श्राद्ध, गणेश विसर्जन एवं 18 सितंबर 2024 को पितृ पक्ष प्रारंभ, आंशिक चंद्र ग्रहण रहेगा।
कजली या कजरी तीज के बारे में जानें, भाद्रपद कृष्ण तृतीया को कज्जली तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस त्यौहार को राजस्थान के कई क्षेत्रों में विशेष रूप से मनाया जाता है। यह माना जाता है कि इस पर्व का आरम्भ महाराणा राजसिंह ने अपनी रानी को प्रसन्न करने के लिये किया था।
भाद्रपद मास में आने वाला अगला पर्व कृष्ण अष्टमी या जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है। यह उपवास पर्व उत्तरी भारत में विशेष महत्व रखता है। पूरे भारत में जन्माष्टमी बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन में व्रत रखकर श्रद्धालु रात 12 बजे तक नाना प्रकार के सांस्कृतिक व आध्यात्मिक आयोजन करते हैं। इस दिन के लिए मंदिरों की सजावट हफ्तों पहले से शुरू हो जाती है। इस मौके पर मथुरा में विशेष आयोजन किए जाते हैं। आधी रात को कृष्ण का जन्म होता है। गोविंद की पूजा-अर्चना के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है और भक्त व्रत खोलते हैं।
इसी तरह अजा एकादशी के बारे में जानिए, भाद्रपद माह की कृष्ण एकादशी को अजा एकादशी कहा जाता है। वहीं, भाद्रपद मास की अमावस्या पितृ शांति के लिये पिंड दान, तर्पण आदि धर्म कर्म के कामों के लिये काफी शुभ फलदायी मानी जाती है। इसके अलावा हरतालिका तीज, गौरी हब्बा के बारे में बताते हैं। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गौरी हब्बा नामक पर्व भी मनाया जाता है। यह पर्व दक्षिण भारतीय राज्यों आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडू में विशेष रूप से मनाया जाता है। इसमें माता पार्वती के रूप गौरी की पूजा की जाती है।
भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्थ तिथि को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्री गणेश की पूजा, उपवास व आराधना का शुभ कार्य किया जाता है। पूरे दिन उपवास रख श्री गणेश को लड्डूओं का भोग लगाया जाता है। प्राचीन काल में इस दिन लड्डूओं की वर्षा की जाती थी, जिसे लोग प्रसाद के रूप में लूट कर खाया जाता था। गणेश मंदिरों में इस दिन विशेष धूमधाम रहती है। गणेश चतुर्थी को चन्द्र दर्शन नहीं करने चाहिए। विशेष कर इस दिन उपवास रखने वाले उपासकों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए, अन्यथा उपवास का पुण्य प्राप्त नहीं होता है।
भाद्रपद माह की शुक्ल पंचमी को ऋषि पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन महिलाएं सप्त ऋषियों की पूजा करती हैं व उपवास रखती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रजस्वला दोष से मुक्त होकर पवित्रता पाने के लिये भी यह उपवास किया जाता है। यह तिथि हरतालिका तीज के दो दिन तो गणेश चतुर्थी से अगले दिन मनाई जाती है।
जब-जब भगवन श्री कृष्ण का नाम आता है, तब उनके साथ राधा जी का नाम अपने आप ही आ जाता है। राधा-कृष्ण का नाम नहीं पूरा ब्रम्हाांड है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के 15 दिनों बाद ही राधा जी जन्मदिन आता है और इसे राधा अष्टमी का पर्व रूप मे मनाया जाता है।
भाद्रपद, शुक्ल पक्ष, एकादशी तिथि, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में देवझूलनी एकादशी मनाई जाती है। देवझूलनी एकादशी में विष्णु जी की पूजा, व्रत, उपासना करने का विधान है। देवझूलनी एकादशी को पदमा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन विष्णु देव की पाषाण की प्रतिमा अथवा चित्र को पालकी में ले जाकर जलाशय से स्थान करना शुभ माना जाता है। इस उत्सव में नगर के निवासी विष्णु गान करते हुए पालकी के पीछे चल रहे होते है। उत्सव में भाग लेने वाले सभी लोग इस दिन उपवास रखते है।
भाद्रपद माह में आने वाले पर्वों की श्रंखला में अगला पर्व अनन्त चतुर्दशी के नाम से प्रसिद्ध है। भाद्रपद चतुर्दशी तिथि, शुक्ल पक्ष, पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में यह उपवास पर्व इस वर्ष मनाया जाता है। इस पर्व में दिन में एक बार भोजन किया जाता है। यह पर्व भगवान विष्णु के अनन्त स्वरूप पर आधारित है। इस दिन ऊँ अनन्ताय नमः का जाप करने से विष्णु जी प्रसन्न होते है।
इस माह में अगर आप बुद्धि के दाता भगवान गणेश की अराधना करते हैं और अगर आप एकदंत भगवान गणेश के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय गणेश लिखना न भूलिए।
यहां बताए गए उपाय, लाभ, सलाह और कथन आदि सिर्फ मान्यता और जानकारियों पर आधारित हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि किसी भी मान्यता या जानकारी की समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के द्वारा पुष्टि नहीं की जाती है। यहां दी गई जानकारी में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों, दंतकथाओं, किंवदंतियों आदि से संग्रहित की गई हैं। आपसे अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया पूरी तरह से अंधविश्वास के खिलाफ है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
(साई फीचर्स)