भगवान कृष्ण के बलदाऊ की कथा, पूजन विधि एवं उनकी जयंति के बारे में जानिए

बलराम जयंती को माना गया है भक्तों के उत्सव का दिन
दरअसल, भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम की जन्मतिथि का उत्सव है बलराम जयंति। यह उत्सव हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। बलराम को कृष्ण के समान ही पूजनीय माना जाता है और उनके जीवन से जुड़ी कथाएं भी भक्तों के बीच प्रचलित हैं। बलराम जयंती, जिसे हल षष्ठी, ललही छठ, हर छठ, हल छठ, पीन्नी छठ या खमर छठ के नाम से भी जाना जाता है, भगवान बलराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। यह पर्व भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से एक या दो दिन पहले आता है। इस साल बलराम जयंति रविवार 25 अगस्त को मनाई जाएगी।
आईए आपको बताते हैं बलराम जी का परिचय, भगवान बलराम, जिन्हें बलदाऊ, बलभद्र और हलधर के नाम से भी जाना जाता है, भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, बलराम जी शेषनाग के अवतार माने जाते हैं। उनका जन्म द्वापर युग में हुआ था और वे अपने अद्वितीय बल और शक्ति के लिए प्रसिद्ध थे। बलराम जी का मुख्य अस्त्र हल और मूसल था, जिससे वे कृषि कार्यों में भी निपुण थे।
बलराम का जीवन और महत्व के बारे में कहा जाता है कि बलराम भगवान विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण के बड़े भाई थे। उनकी माता देवकी थीं। बलराम का जन्म रासलीला के दौरान हुआ था, जब कृष्ण को मथुरा से वृंदावन ले जाया जा रहा था। उनका पालन-पोषण यदुवंशी गोपियों ने किया।
बलराम जयंती का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। इस दिन भगवान बलराम की पूजा करने से साधक को सुख, सौभाग्य, यश-कीर्ति एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। विशेषकर महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं और अपनी संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं। नवविवाहित स्त्रियां संतान प्राप्ति के लिए उपवास करती हैं। बलराम का जीवन कृष्ण के जीवन से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है। वे कृष्ण के साथ ही वृंदावन में खेलते थे, गायों को चराते थे और राक्षसों से लड़ाई करते थे। उनके बल और शक्ति के कारण उन्हें बलराम नाम दिया गया। बलराम दाऊ को कृषि का देवता भी माना जाता है। उनके हाथ में हल और बैल होते हैं, जो कृषि से जुड़े हैं। वे किसानों के संरक्षक और आशीर्वाददाता माने जाते हैं।
आईए अब आपको बताते हैं कि बलराम जयंती का उत्सव किस प्रकार होता है। बलराम जयंती का उत्सव मुख्य रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। इस दिन भक्त बलराम के मंदिरों में जाते हैं, पूजा करते हैं और प्रसाद बांटते हैं। मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है।
बलराम जयंती के दिन भक्तों द्वारा कई तरह के अनुष्ठान किए जाते हैं। कुछ लोग व्रत रखते हैं, जबकि कुछ लोग अपने घरों में विशेष भोजन बनाते हैं। इस दिन बलराम की कथाओं का पाठ भी किया जाता है, जिसमें उनके जीवन के महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन होता है।बलराम जयंती का उत्सव भक्तों के लिए आध्यात्मिक अनुभव होता है। यह उन्हें भगवान बलराम के जीवन से प्रेरणा लेने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।
बलरामजी की अनेक कथाएं प्रचलित हैं। बलराम जी की कई पौराणिक कथाएं प्रसिद्ध हैं। बलरामजी की कथाएं हिंदू धर्म में प्रसिद्ध हैं। इन कथाओं में उनके बल, शक्ति और दयालुता का वर्णन होता है। कुछ प्रसिद्ध कथाएं इस प्रकार हैं।
एक कथा कालीय नाग की शांति से संबंधित है। कहा जाता है कि एक बार, बलराम वृंदावन में गायों को चराते हुए एक नदी के पास पहुंचे। वहां उन्होंने एक विशाल नाग, कालीय को देखा, जो नदी में पानी को प्रदूषित कर रहा था। बलराम ने कालीय को अपनी शक्ति से कुचल दिया और उसे शांति के लिए मना लिया।
इसी तरह हल से पर्वत का उखाड़ने की कथा भी प्रचलित है। इसके अनुसार एक बार, बलराम के भाई कृष्ण के साथ एक पर्वत को उठाने की प्रतिस्पर्धा हुई। कृष्ण ने पर्वत को अपनी छोटी उंगली से उठा लिया, लेकिन बलराम ने अपने हल से पर्वत को उखाड़ दिया।
बलराम और रेवती की कथाएं भी कम प्रचलित नहीं हैं। इनके अनुसार बलराम के विवाह की कथा भी प्रसिद्ध है। उनकी पत्नी रेवती का जन्म बहुत देर से हुआ था, जिसके कारण बलराम को उनके विवाह के लिए बहुत समय इंतजार करना पड़ा। बलराम जी की पत्नी रेवती थीं, जो राजा रेवत की पुत्री थीं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, रेवती का कद बहुत ऊंचा था और बलराम जी ने अपने हल से उनके कद को सामान्य किया था। अंततः, बलराम और रेवती का विवाह हुआ और वे एक सुखी जीवन व्यतीत किया।
वहीं, बलराम और दुर्याेधन की कथा में महाभारत के युद्ध में बलराम जी ने तटस्थ रहने का निर्णय लिया था, लेकिन वे दुर्याेधन के गुरु थे और उन्हें गदा युद्ध की शिक्षा दी थी। वहीं कहा जाता है कि बलराम और यदुवंश का विनाश का भी उल्लेख कहीं कहीं मिलता है। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद जब यदुवंश का विनाश होने लगा, तब बलराम जी ने योग समाधि लेकर अपने शरीर का त्याग कर दिया था।
बलराम जी की पूजा विधि के बारे में विद्वानों का कहना है कि बलराम जयंती के दिन भगवान बलराम की पूजा विशेष विधि से की जाती है। इस दिन प्रातःकाल स्नान करके व्रत का संकल्प लिया जाता है। पूजा स्थल को स्वच्छ करके भगवान बलराम की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है। इसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प आदि से भगवान की पूजा की जाती है। बलराम जी को विशेष रूप से हल्दी और चंदन का लेप लगाया जाता है और उन्हें सफेद वस्त्र अर्पित किए जाते हैं।
बलराम की पूजा विधि सामान्यतः इस प्रकार होती है जिसमें मंदिर की सफाई की जाती है। मंदिर को साफ-सुथरा कर दिया जाता है। इसके उपरांत सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है, क्योंकि वे सभी की शुरुआत करते हैं। तदोपरांत बलरामजी की मूर्ति को जल से स्नान कराया जाता है, फिर उन्हें पुष्प, चंदन, तुलसी आदि अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद बलराम जी की आरती की जाती है, जिसमें भजन-कीर्तन गाया जाता है। पूजा के बाद प्रसाद वितरित किया जाता है, जिसे भक्तों द्वारा ग्रहण किया जाता है।
देश में बलराम जी के अनेक मंदिर हैं जहां बलदाऊ की पूजा की जाती है। भारत में कई प्रमुख मंदिर हैं जहां बलराम जी की पूजा की जाती है। इनमें से कुछ प्रमुख मंदिरों में मथुरा का बलदेव मंदिर है। यह मंदिर भगवान बलराम को समर्पित है और यहां हर साल बलराम जयंती बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इसके अलावा वृंदावन का दाऊजी मंदिर भी है। यह मंदिर भी भगवान बलराम को समर्पित है और यहां बलराम जयंती के अवसर पर विशेष पूजा और उत्सव का आयोजन किया जाता है। जगन्नाथ पुरी का बलभद्र मंदिर ओडिशा के पुरी में स्थित है और यहां भी बलराम जयंती का पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
बलराम जयंती का महत्व हिंदू धर्म में अत्यधिक है। यह उत्सव भक्तों को भगवान बलराम के जीवन से प्रेरणा लेने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है। बलराम की कथाएं हमें बल, शक्ति, दयालुता और धर्म के महत्व को समझने में मदद करती हैं। बलराम जयंती का उत्सव एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उत्सव है, जो भारत की समृद्ध धार्मिक परंपरा का एक हिस्सा है। यह उत्सव भक्तों के जीवन में खुशी, शांति और आध्यात्मिक उन्नति लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
बलराम जयंती का सामाजिक महत्व भी अत्यधिक है। इस दिन लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं और समाज में भाईचारे और एकता का संदेश फैलाते हैं। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में इस दिन कृषि कार्यों का विशेष महत्व होता है और किसान भगवान बलराम की पूजा करके अच्छी फसल की कामना करते हैं।
बलराम जयंती के अवसर पर विशेष आयोजन
बलराम जयंती के अवसर पर विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है। कई स्थानों पर रथ यात्रा और झांकियों का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें भगवान बलराम की जीवन कथाओं का प्रदर्शन किया जाता है।
इस माह में अगर आप भगवान बलराम जी का स्मरण करते हैं तो आप कमेंट बाक्स में जय बलदाऊ लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)