“गरबा की पवित्रता और परंपरा को बनाए रखें: संस्कृति का सम्मान, समाज का दायित्व!”

(निकेश पदमाकर)

गरबा नवरात्रि के दौरान मनाया जाने वाला एक पारंपरिक नृत्य, माँ दुर्गा की आराधना का महत्वपूर्ण हिस्सा है और हमारी समृद्ध हिंदू संस्कृति का प्रतीक है। परंतु आजकल गरबे का स्वरूप बदल गया है, और कहीं न कहीं यह अपने पवित्र उद्देश्य और सांस्कृतिक मूल्यों से दूर होता जा रहा है। आधुनिकता के इस दौर में, गरबे का व्यवसायीकरण और पश्चिमी प्रभाव इसके मूल भाव को प्रभावित कर रहे हैं।

गरबा को उसके मूल उद्देश्य से कैसे जोड़ा जाए?

  1. पारिवारिक रिश्तों की अनिवार्यता: गरबा में युवक-युवतियों की भागीदारी तभी स्वीकार की जाए जब वे वास्तविक पारिवारिक रिश्तों में हों, जैसे भाई-बहन, पति-पत्नी, माता-पिता और बच्चे। मुंहबोले रिश्तों की अनुमति नहीं होगी। इस नियम से गरबा का पवित्र वातावरण और सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा होगी।
  2. पारंपरिकता को बढ़ावा: गरबे में पारंपरिक गीत-संगीत, वेशभूषा और नृत्य शैलियों का उपयोग किया जाए ताकि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को अगली पीढ़ी तक पहुंचाया जा सके। यह हमारी संस्कृति के प्रति गर्व को प्रोत्साहित करेगा और इसे जीवित रखेगा।
  3. भक्ति, आनंद, और सामूहिकता: गरबा केवल नृत्य का नाम नहीं है, यह भक्ति, समर्पण, और सामूहिक एकता का पर्व है। इसे पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाया जाना चाहिए ताकि समाज में प्रेम, सद्भावना और भाईचारे का संदेश फैल सके
  4. आयोजक की जिम्मेदारियाँ:
  5. समय का पालन: आयोजकों को समय का विशेष ध्यान रखना चाहिए, विशेषकर देर रात्री तक चलने वाले गरबा कार्यक्रमों में। कार्यक्रम की समाप्ति का समय पूर्वनिर्धारित करना और उसका पालन सुनिश्चित करना आवश्यक है।
  6. कार्यक्रम की मर्यादा और सुरक्षा का ध्यान: आयोजक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कार्यक्रम की मर्यादा का कड़ाई से पालन हो और सभी सुरक्षा प्रबंध पूरी तरह लागू हों। इसमें अनुशासन बनाए रखना, सभी नियमों का पालन करना, और गरबा स्थल पर सुरक्षा प्रबंधों की पूरी व्यवस्था सुनिश्चित करना शामिल है। सुरक्षा के तहत आपातकालीन सेवाओं और प्राथमिक चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता भी सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि सभी लोग सुरक्षित और आरामदायक माहौल में गरबा का आनंद ले सकें।

निकेश पदमाकर का मानना है कि हम सबका कर्तव्य है कि हम अपने सांस्कृतिक उत्सवों को उनके वास्तविक रूप में मनाएं और अगली पीढ़ी को भी इसकी महत्ता समझाएं। गरबा एक पवित्र और सांस्कृतिक परंपरा है, और इसे उसी गरिमा के साथ बनाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।

आइए, इस नवरात्रि गरबे की पवित्रता को बनाए रखें और अपनी संस्कृति का सम्मान करें!

जय माँ दुर्गा!

(साई फीचर्स)