आखिर कहां से मिले थे बुद्धि विनायक भगवान गणेश को आयुध . . .

पाताल लोक के राजा कैस बने प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश
हिंदू धर्म में वैसे तो बहुत से देवी-देवता पूजनीय है लेकिन प्रथम पूज्य भगवान गणेश को ही माना जाता है। माता पार्वती और भगवान शिव के छोटे पुत्र हैं भगवान गणेश, जिन्हें माता-पिता और देवताओं के द्वारा प्रथम पूज्य होने का आशीर्वाद प्रदान किया गया। धार्मिक ग्रंथों में गणपति से जुड़ी बहुत सी पौराणिक कथाएं मिलती हैं जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं। कथाओं में ऐसा उल्लेख है कि भगवान गणेश का जन्म माता पार्वती के उबटन से हुआ, और भगवान शिव द्वारा उन्हें गज का सर लगाया गया। जिससे उन्हें यह रूप मिला। इसलिए भगवान गणेश को गजानन भी कहा जाता है। भगवान गणेश की कथाओं का वर्णन अनेक ग्रंथों में मिलता है। गणेश से जुड़ी कई ऐसी कथाएं हैं जो कृष्ण लीलाओं से भी मिलती जुलती हैं। इन सभी लीलाओं का वर्णन मुद्गल पुराण, गणेश पुराण और शिव पुराण में मिलता है। तो आज हम आपको भगवान गणेश से जुड़ी कुछ ऐसी ही रोचक कथाओं के बारे में बताने जा रहे हैं। हम आपको भगवान गणेश से जुड़ी ऐसी ही रोचक कथा के बारे में बताएंगे कि भगवान गणेश कैसे पाताल लोक के राजा बने। तो चलिए जानते हैं इस कथा के विषय में।
आपने भी भगवान गणेश से जुड़ी कई कथाओं के बारे में सुना होगा, लेकिन शायद बहुत कम लोग जानते हैं कि भगवान गणेश पाताल लोक के राजा भी हैं। कथा के अनुसार एक बार गणपति ऋषि मुनियों के पुत्रों के साथ पाराशर ऋषि के आश्रम में खेल रहे थे। तभी वहां कुछ नाग कन्याएं आ गई। नाग कन्याएं गणेश को आग्रह पूर्वक अपने लोक लेकर जाने लगीं। भगवान गणेश भी उनका आग्रह ठुकरा नहीं पाए, और उनके साथ चले गए। नाग लोक पहुंचने पर नागकन्याओं ने उनका हर तरह से स्वागत सत्कार किया।
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तभी वहां नागराज वासुकी ने भगवान गणेश को देखा। नागराज वासुकी ने भगवान गणेश को देखा और उनका रूप देखकर उपहास करने लगे। भगवान गणेश को जब इस बात का आभास हुआ कि वो उनका मजाक उड़ा रहे हैं तो गणेश जी को क्रोध आ गया। उन्होंने वासुकी के फन पर पैर रख दिया और उसके मुकुट को स्वयं पहन लिया। भगवान गणेश को क्रोध आ गया, उन्होंने वासुकी के फन पर पैर रख दिया और उनके मुकुट को भी स्वयं पहन लिया। वासुकी की दुर्दशा देखकर उनके बड़े भाई शेषनाग भी वहां आ गए। उन्होंने हुंकार भरते हुए कहा किसने उनके भाई वासुकी के साथ इस तरह का व्यवहार किया है। जब भगवान गणेश शेषनाग के सामने आए तो वे उन्हें पहचान गए और उनका अभिवादन करने लगे। वासुकी द्वारा किये गये अपमान का बदला लेते हुए गणेश जी ने वासुकी को अपने पैरों तले तो दबाया ही साथ ही शेषनाग द्वारा नागलोक यानि पाताललोक के राजा भी घोषित किये गये। शेषनाग भगवान गणेश की शक्तियों के बारे में जानते थे। तो इस तरह से शेषनाग ने गणेश जी को पाताल लोक का राजा बनाया।
आईए अब हम आपको बताते हैं कि भगवान गणपति को आखिर कहां से मिले अस्त्र-शस्त्र?
एक बार भगवान शिव कैलाश त्यागकर वन में जाकर रहने लगे। एक दिन शिव से मिलने विश्वकर्मा आए। उस समय गणेश जी की आयु मात्र 6 वर्ष थी। गणेश ने विश्वकर्मा से कहा कि मुझसे मिलने आए हो तो मेरे लिए क्या उपहार लेकर आए हो। विश्वकर्मा ने कहा-भगवन, मैं आपके लिए क्या उपहार ला सकता हूं। आप तो स्वयं सच्चिदानंद हो। विश्वकर्मा ने गणपति का वंदन किया और उनके सामने भेंट स्वरुप कुछ वस्तुएं रखीं, जो उनके हाथ से बनी हुई थीं। ये वस्तुएं थीं एक तीखा अंकुश, पाश और पद्म।
इतने आयुध पाकर गणपति को बहुत प्रसन्नता हुई। इन आयुधों से सबसे पहले 6 साल के गणेश ने अपने मित्रों के साथ खेलते हुए एक दैत्य वृकासुर का संहार किया था।
एक बार भगवान शिव के मन में एक बड़े यज्ञ के अनुष्ठान का विचार आया। विचार आते ही वे शीघ्र यज्ञ प्रारंभ करने की तैयारियों में जुट गए। सारे गणों को यज्ञ अनुष्ठान की अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंप दी गई। सबसे बड़ा काम था यज्ञ में सारे देवताओं को आमंत्रित करना। आमंत्रण भेजने के लिए पात्र व्यक्ति का चुनाव किया जाना था, जो समय रहते सभी लोकों में जाकर वहां के देवताओं को ससम्मान निमंत्रण दे आए। ऐसे में किसी ऐसे व्यक्ति का चयन किया जाना था, जो तेजी से जाकर ये काम कर दे, लेकिन भगवान शिव को ये भी डर था कि कहीं आमंत्रण देने की जल्दी में देवताओं का अपमान न हो जाए। इसलिए उन्होंने इस काम के लिए गणेश का चयन किया।
गणेश बुद्धि और विवेक के देवता हैं। वे जल्दबाजी में भी कोई गलती नहीं करेंगे, ये सोचकर शिव ने गणपति को बुलाया और उन्हें समस्त देवी-देवताओं को आमंत्रित करने का काम सौंपा। गणेश ने इस काम को सहर्ष स्वीकार किया, लेकिन उनके साथ समस्या यह थी कि उनका वाहन चूहा था, जो बहुत तेजी से चल नहीं सकता था।
गणेश जी ने काफी देर तक चिंतन किया कि किस तरह सभी लोकों में जाकर आदरपूर्वक सारे देवताओं को यज्ञ में शामिल होने का आमंत्रण दिया जाए। बहुत विचार के बाद उन्होंने सारे आमंत्रण पत्र उठाए और पूजन सामग्री लेकर ध्यान में बैठे शिव के सामने बैठ गए। गणेश ने विचार किया कि यह तो सत्य है कि सारे देवताओं का वास भगवान शिव में है। उनको प्रसन्न किया तो सारे देवता प्रसन्न हो जाएंगे। ये सोचकर गणेश ने शिव का पूजन किया और सारे देवताओं का आह्वान करके सभी आमंत्रण पत्र शिव को ही समर्पित कर दिए। सारे आमंत्रण देवताओं तक स्वतः पहुंच गए और सभी यज्ञ में नियत समय पर ही पहुंच गए। इस तरह गणेश ने एक मुश्किल काम को अपनी बुद्धिमानी से आसान कर लिया।
अगर आप बुद्धि के दाता भगवान गणेश की अराधना करते हैं और अगर आप एकदंत भगवान गणेश के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय गणेश लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)