जानिए गणपति महाराज के लंबोदर अवतार के बारे में विस्तार से . . .

आखिर भगवान श्री गणेश को क्यों कहा जाता है लंबोदर . . .
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भगवान श्री गणेश के वैसे तो अनेक नाम हैं, पर उनका लंबोदर नाम उनके भक्तों को ज्यादा भाता है। क्या आपको पता है कि भगवान गणेश का नाम लंबोदर कैसे पड़ा। दरअसल, इसे लेकर तरह तरह की कथाएं प्रचलित हैं। आईए हम उन कथाओं में से कुछ कथाएं आपको सुनाते हैं।
पुराणों के मुताबीत कई अलग अलग कथाएं प्रचलित है। एक कथा के अनुसार एक असुर जिसका नाम अंधकासुर था। उसने अपनी कठिन तपस्या से भगवान सूर्य को प्रसन्न कर लिया था। साथ ही उसने सूर्य देव से यह वरदान भी प्राप्त कर लिया जिससे उसे तीनों लोकों में कोई पराजित न कर सके।
अगर आप बुद्धि के दाता भगवान गणेश की अराधना करते हैं और अगर आप एकदंत भगवान गणेश के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय गणेश देवा लिखना न भूलिए।
भगवान सूर्यदेव से वरदान पाकर अंधकासुर अपने गुरु शुक्राचार्य के पास गया। फिर शुक्राचार्य से आशीर्वाद पाकर तीनों लोकों पर विजय पाने के लिए निकाला। जिसके बाद अपनी सेना के साथ अंधकासुर ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। फिर सभी देवताओं ने भी उसका मुकाबला करने की कोशिश की लेकिन वे इस काम में सफल नहीं हो सके।अंधकासुर ने समस्त देवताओं को उनके ही साम्राज्य से बाहर कर दिया और स्वर्ग की राजगद्दी अपने वश में कर लिया।
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यह देखकर इंद्र सहित अन्य सभी देवता गण बहुत दुखी हुए। फिर उन्होंने विघ्नहर्ता गणेश जी की आराधन की। जिसके बाद भगवान गणेश अपने लंबोदर स्वरूप में देवताओं के समक्ष प्रकट हुए और देवताओं की इस व्यथा सुनकर बहुत अधिक गुस्से में आ गए। फिर लंबोदर रूपी भगवान गणेश क्रोधासुर के पास गए और उसे युद्ध के लिए ललकारा। लंबोदर के साथ क्रोधासुर का भीषण युद्ध हुआ। देवतागण भी असुरों का संहार करने में लगे रहे। देखते ही देखते क्रोधासुर के बड़े-बड़े योद्धा मूर्छित होकर जमीन पर गिरने लगे। यह देखकर क्रोधासुर भी दुखी होकर लंबोदर के चरणों में गिर गया और भक्ति-भाव से उनकी स्तुति करने लगा। जिसके बाद लंबोदर ने उसे अभयदान दे दिया। इस घटना के बाद भगवान गणेश के लंबोदर अवतार की पूजा होने लगी।
इसके अलावा भगवान गणेश को लेकर कई प्रकार की पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। किसी में उनके गज स्घ्वरूप के बारे में बताया गया है तो कहीं उनके लंबे कानों की महिमा का वर्णन है। हम आपको बताने जा रहे हैं गणेशजी के लंबोदर बनने के पीछे कौन सी कथा है।
एक बार भगवान शंकर अपनी पत्नि माता पार्वती को जीवन और मृत्यु चक्र के बारे में बता रहे थे। भगवान नहीं चाहते थे उनकी और माता पार्वती के बीच की ये बातें कोई और सुने। इसके लिए उन्होंने कैलाश पर्वत पर एक गुप्त स्थान को चुना और यहां आकर वह अपनी अर्द्धांगिनी को जीवन और मृत्यु से जुड़ी कहानियां सुनाने लगे। इसके लिए उन्होंने गणेशजी को एक द्वारपाल के रूप में तैनात कर दिया कि कोई उनकी बातें सुनने के लिए अंदर गुफा में न आने पाए। पिता की आज्ञा मानकर भगवान गणेश एकदम तत्परता के साथ द्वारपाल के रूप में वहां पर तैनात हो गए।
कुछ देर बाद वहां इंद्रदेव अन्य देवताओं की टोली के साथ वहां पहुंच गए और भगवान शंकर से भेंट करना चाहते थे इसलिए वे देवाधिदेव महादेव के पास जाने करने लगे, किंतु पिता की आज्ञा के अनुसार, गणेशजी इंद्र और बाकी देवताओं को वहां जाने से रोकने लगे। गणेशजी के व्घ्यवहार को देखकर इंद्र देवता को क्रोध आ गया और देखते ही देखते इंद्र देव और गणेशजी के बीच युद्ध छिड़ गया।
अब युद्ध में गणेशजी ने इंद्र देवता को तो पराजित कर दिया। लेकिन युद्ध करते-करते वह थक और उन्हें भूख लग गई। तब उन्घ्होंने ढेर सारे फल खाए और खूब सारा गंगाजल पिया। भूख-प्यास अधिक लगने के कारण वह खाते गए खाते और पानी पीते गए और देखते ही देखते उनका उदर बड़ा होता चला गया। तब उनके पिता शंकरजी की दृष्टि उन पर पड़ी तो उनके लंबे उदर को देखकर वह उन्हें लंबोदर पुकारने लगे। जब से भगवान गणेशजी के कई नामों में एक लंबोदर भी जुड़ गया और गजानन लंबोदर कहलाने लगे।
कहा जाता है कि भगवान गणेश जी की पूजा से व्यक्ति के सभी दुखों का अंत हो जाता है। इसलिए भक्त इनकी पूजा विधि-विधान से करता है। भक्तों का ख्याल रखने की वजह से इनके बहुत सारे नामकरण हुए हैं। इन्हीं में से एक नाम लंबोदर है।
ब्रम्हपुराण में मिलता के अनुसार गणेश जी माता पार्वती का दूध दिन भर पीते रहते थे। उनके इस आदत को देखकर पिता शंकर ने एक दिन विनोदी भाव में कह दिया कि तुम इतना दूध पीते हो कहीं लंबोदर न हो जाओ। भगवान शंकर के इस कथन के बाद से गणेश जी का नाम लंबोदर पड़ गया।
सप्ताह के सातों दिन किसी न किसी देवी-देवता की पूजा होती है। इसी तरह बुद्धवार के दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है। गणेश जी को बुद्धि और तीव्र समझ का देवता माना जाता है। गणेश पूजा से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति, खुशहाली और समृद्धि का आगमन होता है। इनकी पूजा से व्यक्ति के सभी दुखों का अंत हो जाता है। इसलिए भक्त इनकी पूजा विधि-विधान से करता है। भक्तों का ख्याल रखने की वजह से इनके बहुत सारे नामकरण हुए हैं। इन्हीं में से एक नाम लंबोदर है। आज हम जानेंगे की इनका नाम लंबोदर क्यों पड़ा।
भगवान गणेश को मोदक बहुत ही प्रिय है। मोदक प्रेमी गणेश जी का पेट बहुत बड़ा है। इसी वजह से उन्हें लंबोदर भी कहा जाता है। सभी के मन में सवाल उठता है कि उनका यह नाम कैसे पड़ा? इस कारण का वर्णन ब्रम्हपुराण में मिलता है। इसके अनुसार गणेश जी बाल अवस्था में माता पार्वती का दूध दिन भर पीते रहते थे। उनके इस आदत को देखकर पिता शंकर ने एक दिन विनोदी भाव में कह दिया कि तुम इतना दूध पीते हो कहीं लंबोदर न हो जाओ। भगवान शंकर के इस कथन के बाद से गणेश जी का नाम लंबोदर पड़ गया।
इसके अलावा गणेश जी के लंबोदर होने के पीछे एक और कारण बताया जाता है। जिसके अनुसार भगवान गणेश सभी अच्छी और बुरी बातों को पचा लेते हैं। इसी वजह से उनको लंबोदर के नाम से जाना जाता है।
अगर आप बुद्धि के दाता भगवान गणेश की अराधना करते हैं और अगर आप एकदंत भगवान गणेश के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय गणेश देवा लिखना न भूलिए।
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