भगवान शिव का वर पाकर आतातायी हुए कामासुर को नियंत्रित किया था विकट महाराज ने

कामासुर नामक राक्षस का आतंक समाप्त करने रखा था गणेशजी ने विकट स्वरूप . . .
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गणनायक भगवान श्री गणेश जी को प्रथम पूज्य का दर्जा प्राप्त है। इसलिए कोई भी पूजा या अनुष्ठान हो या किसी देवता की आराधना की शुरुआत, सबसे पहले भगवान गणपति का स्मरण, उनका विधिवत पूजन किया जाता है। इनकी पूजा के बिना कोई भी मांगलिक कार्य को शुरू नहीं किया जाता है। इसीलिए किसी भी कार्यारम्भ के लिए श्री गणेश मुहावरा जैसा बन गया है। शास्त्रों में इनकी पूजा सबसे पहले करने का स्पष्ट आदेश है।
आईए अब जानते हैं कि भगवान श्री गणेश जी ने विकट स्वरूप क्यों व किसलिए धारण किश था।
जानकार विद्वानों के अनुसार भगवान विष्णु ने एक बार जलंधर के विनाश के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया था। उसके बाद जलंधर का एक पुत्र हुआ कामासुर। कामासुर ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने त्रिलोक विजय का वरदान दे दिया था। वरदान पाकर कामासुर ने देवताओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिया। असुर से परेशान होकर सभी देवताओं ने भगवान गणेश का ध्यान किया और राक्षस से मुक्ति की प्रार्थना की। तब भगवान गणेश ने विकट अवतार लिया। इस अवतार में भगवान गणेश मोर पर विराजित होकर आए और कामासुर को पराजित कर दिया।
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जानकार विद्वान बताते हैं कि प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार, कामा आसुर भगवान विष्णु का अंश था। जब विष्णु जलन्धर के वध के लिए वृंदा का तप नष्ट करने पहुंचे तो उनके शुक्र से एक अत्यंत तेजस्वी असुर पैदा हुआ। कामाग्नि से पैदा होने के कारण उसका नाम कामासुर हुआ। कामासुर ने बाद में दैत्यगुरु शुक्राचार्य से शिक्षा प्राप्त की और ब्रम्हाण्ड पर विजय करने का मन बनाया। गुरु शुक्राचार्य ने शिष्य से खुश होकर विजय पाने के लिए भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कड़ी तपस्या करने का सुझाव दिया।
इसके उपरांत कामासुर ने भगवान् शिव के पंचाक्षरी मंत्र का जाप करते हुए कठोर तपस्या की, जिससे अन्न, जल त्याग के कारण उसका शरीर जीर्ण शीर्ण हो गया। उसकी इस तपस्या से खुश होकर देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव जी प्रकट हुए और वर मांगने को कहा। उसने कामना की कि वह ब्रम्हाण्ड का स्वामी, शिवभक्ति और मृत्युन्जयी होने का वरदान प्रदान किया जाए। वरदान मिलने के बाद अहंकार में चूर कामासुर ने पृथ्वी के समस्त राजाओं को पराजित कर, स्वर्ग पर भी अधिकार कर लिया। तब महर्षि मुद्गल के मार्ग दर्शन में सभी देवी, देवता और ऋषि मुनि ने कामासुर से छुटकारा पाने के लिए भगवान श्री गणेश जी की उपासना की। इस तरह भगवान श्री गणेश जी ने उपासना से प्रसन्न होकर विकट अवतार लिया।
भगवान श्री गणेश जी के विकट स्वरूप ने मयूर पर सवार होकर सभी देवी देवताओं के साथ मिलकर कामासुर की राजधानी को घेर लिया और युद्ध किया। इस घमासान युद्ध में कामासुर के दोनों पुत्र मारे गए। कामासुर भी जान गया कि उसका अंत नजदीक है। विकट के गुस्से से बचने के लिए उसने माफी मांगी और अपने अस्त्र शस्त्र त्याग उनकी शरण में आ गया, जिससे उसके प्राण बच गए।
आप जानते हैं कि गणेशजी की पूजा वैदिक और अति प्राचीन काल से की जाती रही है। गणेशजी वैदिक देवता हैं क्योंकि ऋग्वेद यजुर्वेद आदि में गणपति के मन्त्रों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। शिवजी, विष्णुजी, दुर्गाजी, सूर्यदेव के साथ साथ गणेशजी का नाम हिंदू धर्म के पांच प्रमुख देवों (पंच देव) में शामिल है।
गण का अर्थ है, वर्ग, समूह, समुदाय और ईश का अर्थ है स्वामी। शिवगणों और देवगणों के स्वामी होने के कारण इन्हें गणेश कहते हैं।
शिवजी को गणेशजी का पिता, पार्वतीजी को माता, कार्तिकेय (षडानन) को भ्राता, ऋद्धि सिद्धि (प्रजापति विश्वकर्मा की कन्याएं) को पत्नी, क्षेम और लाभ को गणेशजी का पुत्र माना गया है।
श्री गणेशजी के बारह प्रसिद्ध नाम शास्त्रों में बताए गए हैं इसमें समुख, एकदंत, कपिल, गजकर्ण, लम्बोदर, विकट, विध्नविनाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र गजानन आदि हैं। वैसे भगवान श्री गणेश के अन्य नाम भी बहुत प्रचलित हैं।
अगर आप बुद्धि के दाता भगवान गणेश की अराधना करते हैं और अगर आप एकदंत भगवान गणेश के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय गणेश देवा लिखना न भूलिए।
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