इस तरह करें द्वितीया का श्राद्ध, पितर होंगे प्रसन्न, देंगे आशीष . . .

दूसरे दिन के श्राद्ध का विधि विधान, एवं किसका किया जाएगा श्राद्ध!
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पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों को याद करना, उनके प्रति कृतघ्नता ज्ञापित करना, उन्हें प्रसन्न और संतुष्ट करना चाहिए ताकि आपका जीवन सुखमय, धन संपदा से भरपूर, बेटे, बेटियां, नाती पोतों से भरा निरोगी परिवार रहे। इसलिए पितृ पक्ष में हर दिन का अलग अलग महत्व है जब श्राद्ध किया जा सकता है। सवाल यही उठता है कि किस दिन किसका श्राद्ध करना उचित रहता है!
जानकार विद्वानों के अनुसार दूसरे दिन श्राद्ध के समय तिल और सत्तू से तर्पण करने का विधान है। सत्तू से तिल मिलाकर दक्षिण से परिक्रमा करते हुए इस मिश्रण का छिटका जाता है। साथ ही पिंडदानी को परिक्रमा के दौरान प्रार्थना करनी चाहिए कि जो भी पितर हैं वो इस सत्तू और तिल से तृप्त हो जाएं, फिर पितरों के नाम से जल चढ़ाकर प्रार्थना की जाती है।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा लिखना न भूलिए।
वहीं, मोक्ष नगरी मानी जाने वाली गया जी में, दूसरे दिन फल्गु स्नान का प्रावधान है। साथ ही प्रेतशिला जाकर ब्रम्हा कुंड और प्रेतशिला पर पिंडदान किया जाता है। वहां से रामशिला आकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान किया जाता है और फिर वहां से नीचे आकर काकबली स्थान पर काक, यम और स्वानबली नामक पिंडदान करना चाहिए।
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मोक्ष की नगरी गया में उत्तर दिशा की ओर लगभग 10 किलो मीटर की दूरी पर अवस्थित है प्रेतशिला। प्रेत शिला नाम से आभास होता है कि यह प्रेतों का पर्वत है। इस पर्वत पर यम देवता का स्थान माना जाता है। गया जाकर श्राद्ध करने वाले लोगों के लिए भी यह बड़ा विशिष्ट है। प्रेतशिला पहाड़ी के ऊपर एक छोटा सा यम देवता का देवालय है। उस मंदिर के परिसर में तीर्थ यात्री चावल तथा आटे का पिंडदान करते हैं। यहां पर पिंडदान करने से मृत आत्मा यम की यातना से मुक्त हो जाते हैं।
प्रेतशिला पहाड़ी के ऊपर मंदिर तथा उसका पार्श्व भाग जहां तीर्थयात्री पिंडदान करते हैं। उसका निर्माण कोलकाता के किसी धर्मनुरागी व्यवसायी ने 1974 में कराया था। इस पहाड़ के नीचे तीन कुंड हैं, जिन्हें सीताकुंड, निगरा कुंड और सुख कुंड कहा जाता है। इसके अतिरिक्त भगवान यम के मंदिर के नीचे समतल में एक चौथा कुंड है, जिसे रामकुंड कहा जाता है।
गया जी में पिण्डदान को लेकर जो मान्यता है वह हम आपको बताते हैं। जानकार विद्वानों के अनुसार एक कथा है कि अपने वनवास के दिनों में भगवान राम ने इस कुंड में स्नान किया था। इस स्थान पर भी पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है। यहां कुल मिलाकर पांच वेदियां है। प्रेतशिला, रामशिला, रामकुंड, ब्रम्हकुंड और कागबलि। ये संपूर्ण बेदिया पंच वेदी के नाम से प्रतिष्ठित हैं। गया श्राद्ध के निमित्त आने वाले तीर्थयात्री श्राद्ध क्रम में दूसरे दिन पंच वेदी पर पिंडदान करते हैं।
दूसरे दिन, किस तरह पिण्डदान करना चाहिए उसे लेकर विद्वानों का कहना है कि द्वितीय दिन स्नान कर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर प्रेतशिला सहित चार वेदियों पर जाना होता है। सर्वप्रथम प्रेतशिला पहुंचकर ब्रम्हकुंड में स्नान तर्पण कर पिंडदान करें। तीर्थों में श्रद्धा रखकर प्रणाम करके पवित्र जल से पवित्र स्थान पर बैठकर श्राद्ध पिंड दान करना चाहिए। ब्रम्हकुंड श्राद्ध करके प्रेतशिला पर 750 सीढ़ी चढ़कर ऊपर सत्तू से पिंडदान करें। अगर कोई चढ़ने में असमर्थ हो तो नीचे ही पिंडदान कर ले।
विद्वानों के अनुसार तिल और सत्तू अर्पित करते हुए यह प्रार्थना की जाती है, सत्तू में तिल मिलाकर अपसव्य से दक्षिण-पश्चिम होकर, उत्तर, पूरब इस क्रम से सत्तू को छिंटते हुए प्रार्थना करें कि हमारे कुल में जो कोई भी पितर प्रेतत्व को प्राप्त हो गए हैं, वो सभी तिल मिश्रित सत्तू से तृप्त हो जाएं। फिर उनके नाम से जल चढ़ाकर प्रार्थना करें। ब्रम्हा से लेकर चिट्ठाी पर्यन्त चराचर जीव, मेरे इस जल-दान से तृप्त हो जाएं। ऐसा करने से उनके कुल में कोई प्रेत नहीं रहता है।
जानिए आखिर गया जी में ही क्यों पिंडदान?ः गया जी शहर को भगवान विष्णु का नगर माना जाता है, जिसे लोग विष्णु पद के नाम से भी जानते हैं। यह मोक्ष की भूमि कहलाती है। विष्णु पुराण के अनुसार यहां पूर्ण श्रद्धा से पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें मोक्ष मिलता है। मान्यता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रूप में उपस्थित रहते हैं, इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहते हैं।
ऐसी मान्यताएं हैं कि त्रेता युग में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता राजा दशरथ के पिंडदान के लिए यहीं आये थे और यही कारण है की आज पूरी दुनिया अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए आती है।
गया श्राद्ध का क्रम 1 दिन से लेकर 17 दिनों तक का होता है। 1 दिन में गया श्राद्ध कराने वाले लोग विष्णुपद फल्गु नदी और अक्षय वट में श्राद्ध पिंडदान कर सुफल देकर यह अनुष्ठान समाप्त करते हैं। वह एक दृष्टि गया श्राद्ध कहलाता है। वहीं, 7 दिन के कर्म केवल सकाम श्राद्ध करने वालों के लिए है। इन 7 दिनों के अतिरिक्त वैतरणी भसमकुट, गो प्रचार आदि गया आदि में भी स्नान-तर्पण-पिंडदानादि करते हैं। इसके अलावा 17 दिन का भी श्राद्ध होता है।
पितृ पक्ष के दूसरे दिन करें किन लोगों का श्राद्ध किया जाना चाहिए यह जानिए . . ., आपके घर में दिन लोगों की मृत्यु कृष्ण या शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हुई हो। उनका आज श्राद्ध, तर्पण किया जाएगा। इसे दूज श्राद्ध के नाम से भी जानते हैं।
जानिए कौन लोग कर सकते हैं श्राद्ध? श्राद्ध घर का पुत्र, पौत्र, भांजा कोई भी कर सकता है। इसके साथ ही जिसके घर में पुरुष नहीं है। ऐसे में पुत्री का पति यानी दामाद कर सकता है।
आईए जानते हैं कि कैसे करें पितरों का तर्पण दूसरे दिन के श्राद्ध में जल के अलावा तिल और सत्तू से तर्पण किया जाता है। सबसे पहले सत्तू में तिल मिलाकर दक्षिण-पश्चिम दिशा में सत्तू को छिड़कते हुए अपने पितरों को याद करें। इसके बाद जल अर्पित कर दें। ऐसा करने से पितर तृप्त हो जाते हैं।
जल से पितरों का तर्पण कर रहे हैं, तो जल में थोड़ा सा गंगाजल, दूध, काले तिल,फूल, अक्षत आदि डाल दें। इसके बाद हाथ में कुशा ले लें। इसके बाद अंजलि से धीरे-धीरे तीन बार पितरों को तर्पण करें। इसके साथ ही पितरों का मनन करते हुए मंत्र
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम।।
का पाठ करें। इस मंत्र को जोर जो से अथवा मन में भी बोला जा सकता है।
दूसरे दिन किन्हें भोजन कराया जाना चाहिए, इस बारे में विद्वानों का मत है कि पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने के बाद कौआ, चींटी, गाय और कु्त्ते के लिए भोजन निकाल दें। इसके साथ ही ब्राम्हणों को भी भोजन कराएं।
तक चलते वाले इस पितृपक्ष में पितरों की शांति और मुक्ति के लिए तर्पण और पिंडदान किया जाता है। श्राद्ध की सोलह 16 तिथियों का अलग अलग महत्व है। इन तिथियों में उनका श्राद्ध तो किया ही जाता है जिनकी तिथि विशेष में मृत्यु हुई है इसी के साथ हर तिथि का अपना खास महत्व भी है। द्वितीया श्राद्ध कर्म से मिलती है प्रेतयोनि से मुक्ति।
अब जानिए कि किस तरह किया जाना चाहिए श्राद्ध, जिनका भी स्वर्गवास द्वितीया तिथि को हुआ है तो उनका श्राद्ध कर्म इस दिन करना चाहिए। दूसरे दिन के श्राद्ध के समय तिल और सत्तू के तर्पण का विधान है। सत्तू में तिल मिलाकर अपसव्य से दक्षिण-पश्चिम होकर, उत्तर-पूरब इस क्रम से सत्तू को छिंटते हुए प्रार्थना करें। प्रार्थना में कहें कि मारे कुल में जो कोई भी पितर प्रेतत्व को प्राप्त हो गए हैं, वो सभी तिल मिश्रित सत्तू से तृप्त हो जाएं। फिर उनके नाम और गोत्र का उच्चारण करते हुए जल सहित तिल मिश्रित सत्तू को अर्पित करें। फिर प्रार्थना करें कि ब्रम्हा से लेकर चिट्ठाी पर्यन्त चराचर जीव, मेरे इस जल-दान से तृप्त हो जाएं। तिल और सत्तू अर्पित करके प्रार्थना करने से कुल में कोई भी प्रेत नहीं रहता है।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)