श्राद्धकर्म में कुशा, चावल, काली तिल और जौ का क्यों होता है प्रयोग!
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इस साल श्राद्ध कल्प पक्ष की शुरुआत, भादों की पूर्णिमा से हो चुकी है। आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रथमा को पहला श्राद्ध था और अब अमावस्या पर इसकी समाप्ति होगी। कहा जाता है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ धरती पर अपने वंशजों से मिलने आते हैं व उन्हें आर्शीवाद भी प्रदान करते हैं। पितृ पक्ष में पितरों के लिए पिंड दान, तर्पण अथवा श्राद्ध करने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। इसके लिए कुछ विशेष नियम भी बनाए गए हैं और नियमों के अनुसार श्राद्ध के समय कुशा पहनने, तर्पण के समय जल में चावल, जौ और काले तिल का उपयोग करने व पिंडदान के समय चावल का इस्तेमाल करने का बहुत महत्व है।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
आईए अब सिलसिलेवार जानते हैं एक एक वस्तु जो पितृ कर्म में उपयोग में आती है का महत्व और प्रयोग . . . सबसे पहले जानते हैं कि आखिर इस कर्म के लिए कुशा आवश्यक क्यों है,
जानकार विद्वानों का कहना है कि श्राद्ध कर्म में सबसे महत्वपूर्ण अवयव कुशा है। श्राद्ध कर्म में कुशा को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। माना जाता है कि भगवान विष्णु के वराह अवतार के रोम धरती पर गिरे और कुशा बन गए। कुशा को तेज का प्रतीक भी माना जाता है जिससे हर क्षण तेजोमय तरंगें निकलती हैं। इन तरंगों के प्रभाव से श्राद्ध स्थस पर रज तम गुणों का प्रभाव कम हो जाता है, जिससे कि नकारात्मक शक्तियों के अनिष्ट कारी प्रभाव कम हो जाते हैं। यह भी माना जाता है कि कुश पितरों को मार्ग दिखाता है। श्राद्ध में समूल कुश का प्रयोग करना चाहिए। मान्यता के अनुसार कुशा घास शीतलता व पवित्रता प्रदान करती है इसलिए इसे पवित्री घांस भी कहा जाता है, और कहा जाता है कि कुशा पहनने के बाद इंसान श्राद्ध व पूजन कार्य करने के लिए पवित्र हो जाता है। इसलिए शास्त्रों में कर्म काण्ड के दौरान कुशा घांस पहनने का जिक्र है।
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अब जानिए काले तिल के संबंध में, दरअसल, काले तिल को यम का प्रतीक माना जाता है। पितृ पक्ष में श्राद्ध के दौरान तिल का प्रयोग भी जरूरी होता है।। क्योंकि तिल की उत्पत्ति भी विष्णु जी से हुई है। ये नारायण के पसीने से निकला है। ऐसे में इससे पिंडदान करने से मृतक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। तिल से भी निकलने वाली रज तम तरंगे मृत्यलोक में भटक रही पितर आत्माओं को श्राद्धस्थल तक बुलाने में सहयोगी होती है। श्राद्ध स्थल पर तिल छिड़क दिए जाते हैं, जिससे यह एक निश्चित क्षेत्र बन जाता है, जिसमें वही पितृ आत्माएं आती हैं, जिनका आव्हान किया जा रहा है। काले तिल पितर की तृप्ति का साधन हैं, इसलिए पितृ इसे ग्रहण करके तृप्त हो जाते हैं।
अब जानिए चावल अर्थात अक्षत के संबंध में, पितर आत्माओं की तृप्ति के लिए उन्हें अक्षत अर्पण किया जाता है। अक्षत जीवन का आधार है और धन धान्य का पहला प्रतीक है। पितरों को चावल की खीर अर्पित की जाती है। इसमें मिला हुआ मिष्ठान्न रस का और दूध चेतना का प्रतीक व स्त्रोत है। पितर इन्हें पाकर संतुष्ट होते हुए इसी प्रकार परिपूर्ण रहने का आशीर्वाद देते हैं। खीर खाना उनकी हर अतृत्प इच्छा की पूर्ति का संकेत है।
अब जानिए जौ के उपयोग के संबंध में, जौ यानी यव अनाजों में सर्व श्रेष्ठ है। यह सोने के तरह ही शुद्ध और खरा है। इसलिए यह उन तमोगुणी वैभव का प्रतीक है, जिनके प्रति मनुष्य जीवन रहते लालायित रहते हैं। इनके प्रति जीवन रहते मोह नहीं कम हो पाता और मृत्यु के बाद भी यह इच्छा अतृप्त ही रह जाती है। तर्पण में जो का प्रयोग पितरों को वैभव की संतुष्टि देता है। इसके साथ ही जौ नकारात्मक शक्तियों को दूर रखता है। इसलिए श्राद्ध पूजन में जौ का प्रयोग किया जाता है। जौ दान को महादान भी कहा जाता है।
आईए अब जानते हैं नाराज पितरों को प्रसन्न करने के दस उपायों के बारे में, हमारे पितृ या पूर्वज कई प्रकार के होते हैं। उनमें से बहुतों ने तो दूसरा जन्म ले लिया और बहुतों ने पितृलोक में स्थान प्राप्त कर लिया है। पितृलोक में स्थान प्राप्त करने वाले हर वर्ष श्राद्ध पक्ष में अपने वंशजों को देखने आते हैं और उस वक्त वे उन्हें आशीर्वाद देते या श्राप देकर चले जाते हैं।
इन्हें प्रसन्न करने के लिए प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें। श्राद्ध पक्ष में अच्छे से श्राद्ध कर्म करें। गरीब, अपंग व विधवा महिला को दान जरूर दीजिए। इस दौरान भगवत गीता का सातवां अध्याय या मार्कण्डेय पुराणांतर्गत पितृ स्तुति जरूर करें। पितृ पक्ष की तेरस, चौदस, अमावस्या और पूर्णिमा तिथि के दिन गुड़ घी की धूप दें। मांस और मदिरा से दूर रहें और महिलाओं का सम्मान करें। अगर संभव हो तो घर का वास्तु ठीक करवाएं, या घर को साफ सुथरा रखें। केसर या चंदन का तिलक ललाट पर लगाएं। गुरू ग्रह को को प्रसन्न रखने के उपाय करें एवं गया जी जाकर या किसी सरोवर, नदी के किनारे तर्पण एवं पिण्डदान अवश्य करें।
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