पितृ पक्ष में अपने पितरों को कैसे करें प्रसन्न . . .
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हर साल पितृ पक्ष को पितरों के प्रति आदर, श्रृद्धा, कृतघ्नता आदि के लिए जाना जाता है। पितृ पक्ष में श्रद्धा पूर्वक पितरों का स्वागत, पूजन, अर्चन, तर्पण, पिण्डदान आदि करने से पितर प्रसन्न होते हैं और अशीष देकर धरती से बिदा होते हैं। अलग अलग विद्वानो के द्वारा पितृ पक्ष में पूजन विधि के बारे में प्रथक प्रथक राय हो सकती है। आईए हम आज आपको इस संबंध में पूरी जानकारी से आवगत कराते हैं, ताकि आप अपने पूर्वजों को प्रसन्न और तृप्त कर सकें।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
जानकार विद्वानों के अनुसार पुराणों में जो वर्णन मिलते हैं उनके अनुसार सबसे बड़ा पुत्र अपने पिता तथा अन्य पूर्वजों का श्राद्ध तथा पिंडदान कर सकता है। यदि बड़ा पुत्र न हो या उसके द्वारा तर्पण किया जाना संभव न हो तो, छोटा पुत्र भी इस विधि को पूरा कर सकता है। पुत्रों की अनुपस्थिति में भांजा, भतीजा या पोता इस विधि को पूरा कर सकता है।
विद्वानों का मानना है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म के रूप में पिंडदान, तर्पण तथा ब्राम्हण भोज ये तीन मुख्य कार्य किये जाते हैं। सर्वप्रथम दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके बैठे क्योंकि दक्षिण दिशा पितरों की दिशा मानी जाती है तथा जनेऊ को दाएं कंधे पर रखकर गाय की दूध, धान, शहद, घी एवं शक्कर को मिलाकर पिंडों का निर्माण करें और इन्हें अत्यंत श्रद्धा भाव से अपने पितरों को अर्पित करना ही पिंडदान कहलाता है।
इसके अलावा तर्पण करते समय जल में काले तिल, कुश तथा सफेद पुष्प मिलाकर विधि पूर्वक पूजा संपन्न करें। इस सबके लिए जानकार आचार्यों के सानिध्य में अगर आप इस काम को करते हैं तो आपसे भूल होने की गुंजाईश नहीं के बराबर ही होती है। तर्पण तथा पिंडदान के बाद तीसरा कार्य भी पूरा करें जो कि ब्राम्हण भोजन का कार्य है।
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पितृ पक्ष के इस 16 दिन के दौरान यदि आपके घर में कोई भी अनजान या पहचान के भी या कोई पशु, पक्षी या कोई भिक्षुक कोई भी आपके द्वार पर आये तो उन्हें भोजन अवश्य कराए। किसी भी प्रकार से उनका तिरस्कार न करें। पितृ पक्ष के दौरान मांस, शराब जैसी चीजों का सेवन न करें।
ऐसा कहा गया है कि श्राद्ध कर्म दोपहर के समय कुश के आसन पर बैठकर करें। दोपहर के समय कुतुप बेला होती है जो सामान्यतः साढ़े बारह बजे से एक बजे के बीच का समय होता है। इस दौरान एक थाली में कौवा, गाय, कुत्ता तथा दूसरी थाली में पितरों के लिए भोजन रखें।
इसके बाद अपने पितरों का स्मरण करें तथा जिन पितृ देव के लिए आप श्राद्ध कर रहें हैं उनको याद करते हुए, इस मंत्र का 3 बार उच्चारण करें,
ओम देवाभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
नमः स्वध्याये स्वाहायै नित्यमेव भवन्तु ते।।
यदि आपसे इतना सब कुछ कर सकना संभव न हो तो केवल एक लोटे में थोड़ा जल तथा काले तिल, जौ मिलाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके तर्पण कर सकते हैं। यदि भोजन पकाना आपसे किसी प्रकार से संभव न हो तो आप फल तथा मिठाई का भी दान कर सकते हैं।
आईए जानिए कि पितृ पक्ष में दान का महत्व क्या होता है,
जिस तरह हम किसी भी शुभ कार्य या पुण्य तिथियों में दान दक्षिणा का कार्य करते हैं उसी प्रकार पितृपक्ष के दौरान पितरों के मन की शांति के लिए कुछ चीजों का दान महत्वपूर्ण माना जाता है। पितृपक्ष के दौरान 10 वस्तुओं का दान महत्वपूर्ण है, इसमें गाय, भूमि, वस्त्र, काला तिल, सोना, घी, गुड़, धान, चाँदी, नमक, इन वस्तुओं का दान पितरों को तृप्ति प्रदान करता है। पितरों के तर्पण करने से पूर्व सर्वप्रथम दिव्य पितृ तर्पण करना होता है, उसके बाद देव तर्पण करें फिर उसके बाद ऋषि तर्पण किया जाता है फिर दिव्य मनुष्य तर्पण करने के बाद ही स्वयं पितृ तर्पण किये जाने की परंपरा है।
जानकार विद्वान बताते हैं कि इन विधियों के बाद पितृ चाहे किसी भी प्रकार की योनि में क्यों न हो वह आपके द्वारा किये गए श्राद्ध का अंश स्वीकार कर लेंगे। इससे पितृ को संतुष्टि मिलती है तथा उन्हें विभिन्न प्रकार की निकृष्ट योनियों से मुक्ति मिलती है, तथा उनकी आत्मा मुक्त होकर उच्च योनि में चली जाती है।
वहीं, विद्वानों का यह भी मत है कि पितरों का श्राद्ध न करना उनको दुःख पहुँचाने जैसा ही है, इससे आपको पितरों का श्राप भी मिल सकता है। यही कारण है कि ब्रम्ह पुराण, विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, वायु पुराण, गरुड़ पुराण, मनु स्मृति तथा महाभारत जैसे महान ग्रंथों में भी श्राद्ध एवं तर्पण से प्राप्त फलों का वर्णन किया गया है।
आईए अब जानते हैं कि पितरों की प्रसन्न कैसे किया जाए,
पितरों को प्रसन्न करने के लिए पूरी श्राद्ध के साथ तर्पण और पिंडदान करें, मनुष्य की सच्ची श्रद्धा भाव से पितृ प्रसन्न होते हैं। पितरों की पूजा के दौरान आपने जो भोजन पांच जीवों के लिए निकाला है, उसे पूजा खत्म होने के बाद इन जीवों को खिलाना चाहिए। देव, पीपल, गाय, कुत्ता और कौवे को अन्न और जल देने से पितृ प्रसन्न होते हैं। इसी के साथ मछलियों और चींटियों को भी अन्न देना चाहिए।
पितृपक्ष में ब्राम्हण को भोज कराने का बहुत महत्व होता है। इस दौरान ब्राम्हाण को सम्मान पूर्व घर में आमंत्रित करें और भोजन के साथ यथा संभव दान दक्षिणा भी जरुर दें। ब्राम्हणों को भोजन कराने और दान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
पितृपक्ष के दौरान अपने द्वार पर पितरों के लिए दीपक जरुर जलाएं। पितरों के लिए दीपक दक्षिण दिशा में जालाना चाहिए। इससे वह प्रसन्न होते हैं। पितृपक्ष के दौरान घर में सात्विक भोजन बनाएं और वहीं खाएं, मास मदिरा से दूरी बनाकर रखें। अगर आप इन सभी चीजों को ध्यान में रखकर पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करते हैं तो आपकी परेशानियों का अंत होता है और पितृ प्रसन्न होते हैं।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
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