जानिए, किस दिन माता के किस शक्ति स्वरूप का होता है पूजन और क्यों . . .

शारदेय नवरात्र 03 अक्टूबर से, जानिए नौ दिनों में माता के नौ स्वरूपों के बारे में . . .
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सनातन धर्म में जगत जननी माता दुर्गा के नौ स्वरूपों का पूजन अर्चन साल में दो बार बहुत धूमधाम से किया जाता है, जिसे नवदुर्गा कहा जाता है। माता भगवती के नौ मुख्य रूप है जिनकी विशेष पूजा व साधना नवरात्रि के दौरान और वैसे भी विशेष रूप से की जाती है। इन नवों या नौ दुर्गा देवियों को पापों की विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परन्तु यह सब एक हैं और सभी परम भगवती दुर्गा जी से ही प्रकट होती है।
अगर आप जगत जननी माता दुर्गा की अराधना करते हैं और अगर आप माता दुर्गा जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय भवानी, जय दुर्गा अथवा जय काली माता लिखना न भूलिए।
दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अन्तर्गत देवी कवच स्तोत्र में एक श्लोक में नवदुर्गा के नाम दिए गए हैं। यह श्लोक है,
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रम्हचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रम्हणैव महात्मना।।
अब जगत जननी माता दुर्गा के नौ स्वरूपों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
दुर्गाजी पहले स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। नवरात्र पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएँ हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएँ हाथ में कमल सुशोभित है। यही सती के नाम से भी जानी जाती हैं।
नवरात्रि का पहला दिन माता शैलपुत्री को समर्पित होता है। यह दिन पीले रंग से जुड़ा है, जो हमारे जीवन में उत्साह, चमक और प्रसन्नता लाता है। हिंदू धर्म में पीले रंग का बड़ा महत्व है। इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।
नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रम्हचारिणी की पूजा अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रम्ह का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रम्हचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता ने घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात ब्रम्हचारिणी नाम से अभिहित किया। कहते है माँ ब्रम्हचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।
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नवरात्रि का दूसरा दिन माता ब्रम्हचारिणी को समर्पित है। माता को हरा रंग पसंद है तो इस दिन हरे रंग के वस्त्र पहनकर पूजा करनी चाहिए। यह रंग जीवन में विकास, सद्भाव और ऊर्जा लाता है।
माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन मणिपूर चक्र में प्रविष्ट होता है। इस देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुगन्धियों का अनुभव होता है और कई तरह की ध्वनियाँ सुनाई देने लगती हैं।
नवरात्रि के तीसरा दिन माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। माता अपने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करती है। इस दिन भूरे या ग्रे रंग के वस्त्र पहनकर माता की पूजा करनी चाहिए। यह रंग बुराई को नष्ट कर जीवन में दृढ़ संकल्प को जगाता है।
नवरात्र पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में अवस्थित होता है। नवरात्रि में चौथे दिन देवी को कुष्माण्डा के रूप में पूजा जाता है। अपनी मन्द, हल्की हँसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रम्हाण्ड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्माण्डा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अन्धकार ही अन्धकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत हास्य से ब्रम्हाण्ड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।
नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्मांडा की आराधना की जाती है। इस दिन नारंगी रंग की वस्त्र पहनकर माता की पूजा करने से वे प्रसन्न होती हैं और जीवन में प्रसन्नता का आशीर्वाद देती हैं। यह रंग खुशी और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।
नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। इस देवी की चार भुजाएँ हैं। यह दायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बायीं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है।
नवरात्रि का पांचवा दिन माता स्कंदमाता को समर्पित होता है। इस दिन सफेद रंग बड़ा शुभ माना जाता है। ये रंग जीवन में शांति, पवित्रता, ध्यान और सकारात्मकता को फैलाता है।
माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। नवरात्रि में छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है।
नवरात्रि के छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा की जाती है। यह देवी का सबसे शक्तिशाली स्वरूप होता है। इन्हें युद्ध की देवी के नाम से भी जाना जाता है। माता के इसी स्वरूप ने महिषासुर का वध भी किया था। इस दिन लाल रंग पहनकर माता की पूजा करनी चाहिए। यह रंग उत्साह और उमंग का प्रतीक माना जाता है।
माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्रार चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रम्हाण्ड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। कहा जाता है कि कालरात्रि की उपासना करने से ब्रम्हाण्ड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं।
नवरात्रि के सातवें दिन माता कालरात्रि की पूजा की जाती है। इनके नाम का मतलब है काल की मृत्यु। इस स्वरूप को राक्षसों का नाश करने वाला माना जाता है। माता की पूजा नीला रंग पहनकर करनी चाहिए। क्योंकि माता के इस रूप को सांवले और निडर रूप में दर्शाया गया है।
माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। नवरात्रि में आठवें दिन महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है। नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चन्द्र और कुन्द के फूल से दी गई है। अष्टवर्षा भवेद गौरी यानी इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र श्वेत हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। इनकि चार भुजाएँ हैं और वाहन वृषभ है इसीलिए वृषारूढ़ा भी कहा गया है इनको। इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बाएँ हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शान्त है।
नवरात्रि के आठवें दिन माता महागौरी की पूजा की जाती है। इस दिन गुलाबी वस्त्र पहनकर माता की पूजा करनी चाहिए। जो व्यक्ति देवी के इस स्वरूप की पूजा करता है, उसे जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। यह रंग आशा, आत्मशोधन और सामाजिक उत्थान का प्रतीक माना जाता है।
माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन शास्त्रीय विधि विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। इस देवी के दाहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है। इनका वाहन सिंह है और यह कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। नवरात्र में यह अन्तिम देवी हैं। हिमाचल के नन्दापर्वत पर इनका प्रसिद्ध तीर्थ है।
नवरात्रि के आखिरी दिन सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। इस दिन बैंगनी रंग के वस्त्र पहनकर माता की पूजा करनी चाहिए। माता सिद्धिदात्री शक्ति प्रदान करने वाली देवी मानी जाती है। यह रंग महत्वकाक्षाओं का प्रतीक माना जाता है।
अगर आप जगत जननी माता दुर्गा की अराधना करते हैं और अगर आप माता दुर्गा जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय भवानी, जय दुर्गा अथवा जय काली माता लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)