शुंभ, निशुंभ, रक्तबीज का वध कर माता कालरात्रि ने की थी देवताओं की रक्षा

नवरात्र का सातवां दिन, माता कालरात्रि के भक्तों को नहीं रहता आकाल मृत्यु का भय . . .
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सनातन धर्म में देवियो का बहुत महुत्व होता है। इसके साथ ही साल भर में पड़ने वाली नवरात्र के पर्व का विशेष महत्व है। साल में दो बार नवरात्र मनाए जाते हैं। एक चैत्र महीने में और दूसरा आश्विन महीने में। नवरात्र के दौरान माता रानी के नौ रूपों की पूजा और व्रत अलग अलग दिन करने का विधान है। विधान के अनुसार नवरात्र के सातवें दिन माता दुर्गा की सातवीं शक्ति माता कालरात्रि की पूजा अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि माता कालरात्रि की पूजा करने से साधक के सभी प्रकार का भय खत्म होते हैं।
अगर आप जगत जननी माता दुर्गा की अराधना करते हैं और अगर आप माता दुर्गा जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय भवानी, जय दुर्गा अथवा जय काली माता लिखना न भूलिए।
माता कालरात्रि की विधिवत रूप से पूजा अर्चना और उपवास करने से माता अपने भक्तों को सभी बुरी शक्तियां और काल से बचाती हैं अर्थात माता की पूजा करने के बाद भक्तों को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। माता के इसी स्वरूप से सभी सिद्धियां प्राप्त होती है इसलिए तंत्र मंत्र करने वाले माता कालरात्रि की विशेष रूप से पूजा अर्चना करते हैं। माता कालरात्रि को निशा की रात भी कहा जाता है।
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अब जानते हैं माता कालरात्रि की पूजा का महत्व,
असुरों और दुष्टों का संहार करने वाली माता कालरात्रि की पूजा करने और सच्चे मन से प्रार्थना करने पर सभी दुख दूर रहते हैं और जीवन और परिवार में सुख शांति का वास रहता है। शास्त्रों और पुराणों में बताया गया है कि माता कालरात्रि की पूजा व उपवास करने से सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है और आरोग्य की प्राप्ति होती है। माता कालरात्रि अपने भक्तों को आशीष प्रदान करती है और बल व आयु में वृद्धि होती है। माता कालरात्रि की पूजा रात्रि के समय में भी की जाती है। रात को पूजा करते समय ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चौ नमः मंत्र का सवा लाख बार जप करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
अब जनिए माता कालरात्रि के प्रकट होने की कथा के बारे में,
असुर शुंभ निशुंभ और रक्तबीज ने सभी लोगों में हाहाकार मचाकर रखा था, इससे परेशान होकर सभी देवता एक साथ मिलकर देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भोलेनाथ के पास पहुंचे और उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगे। तब भगवान भोलेनाथ ने माता पार्वती को अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। भगवान भोलेनाथ की बात मानकर माता पार्वती ने माता दुर्गा का स्वरूप धारण कर शुभ व निशुंभ दैत्यों का वध कर दिया। जब माता दुर्गा ने रक्तबीज का भी अंत कर दिया तो उसके रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। यह देखकर माता दुर्गा का अत्यंत क्रोध आ गया। क्रोध की वजह से माता का वर्ण श्यामल हो गया। इसी श्यामल रूप को से देवी कालरात्रि का प्राकट्य हुआ। इसके बाद माता कालरात्रि ने रक्तबीज समेत सभी दैत्यों का वध कर दिया और उनके शरीर से निकलने वाले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले अपने मुख में भर लिया। इस तरह सभी असुरों का अंत हुआ। इस वजह से माता को शुभंकरी भी कहा गया।
जानकार विद्वान बताते हैं कि पौराणिक कथा के अनुसार, नमुची नाम के राक्षस को इंद्र देव ने मार दिया था, जिसका बदला लेने के लिए शुंभ और निशुंभ नाम के दो दुष्ट राक्षसों ने रक्तबीज नाम के एक अन्य राक्षस के साथ देवताओं पर हमला कर दिया। देवताओं के वार से उनके शरीर से रक्त की जितनी बूंदे गिरीं, उनके पराक्रम से अनेक दैत्य उत्पन्न हुए। जिसके बाद बहुत ही तेजी से सभी राक्षसों ने मिलकर पूरे देवलोक पर कब्जा कर लिया।
देवताओं पर हमला कर विजय प्राप्त करने में रक्तबीज के साथ महिषासुर के मित्र चंड और मुंड ने उनकी मदद की थी, जिसका वध माता दुर्गा के द्वारा हुआ था। चंड-मुंड के वध के बाद सभी राक्षस गुस्से से भर गए। उन्होंनेमिलकर देवतों पर हमला कर दिया और उनको पराजित कर तीनों लोकों पर अपना राज स्थापित कर लिया और चारों ओर तबाही मचा दी।
राक्षसों के आतंक से डरकर सभी देवता हिमालय पहुंचे और देवी पार्वती से प्रार्थना की। माता पार्वती ने देवताओं की समस्या को समझा और उनकी सहायता करने के लिए चंडिका रूप धारण किया। देवी चंडिका शुंभ और निशुंभ द्वारा भेजे गए अधिकांश राक्षसों को मारने में सक्षम थीं। लेकिन चंड व मुंड और रक्तबीज जैसे राक्षस बहुत शक्तिशाली थे और वह उन्हें मारने में असमर्थ थीं। तब देवी चंडिका ने अपने शीर्ष से देवी कालरात्रि की उत्पत्ति की। माता कालरात्रि ने चंड व मुंड से युद्ध किया और अंत में उनका वध करने में सफल रही। माता के इस रूप को चामुंडा भी कहा जाता है।
माता कालरात्रि ने सभी राक्षसों का वध कर दिया, लेकिन वह अब भी रक्तबीज का वध नहीं कर पाई थीं। रक्तबीज को ब्रह्मा भगवान से एक विशेष वरदान प्राप्त था कि यदि उसके रक्त की एक बूंद भी जमीन पर गिरती है, तो उसके बूंद से उसका एक और हमशक्ल पैदा हो जाएगा। इसलिए, जैसे ही माता कालरात्रि रक्तबीज पर हमला करती रक्तबीज का एक और रूप उत्पन्न हो जाता। माता कालरात्रि ने सभी रक्तबीज पर आक्रमण किया, लेकिन सेना केवल बढ़ती चली गई।
जैसे ही रक्तबीज के शरीर से खून की एक बूंद जमीन पर गिरती थी, उसके समान कद का एक और महान राक्षस प्रकट हो जाता था। यह देख माता कालरात्रि अत्यंत क्रोधित हो उठीं और रक्तबीज के हर हमशक्ल दानव का खून पीने लगीं। माता कालरात्रि ने रक्तबीज के खून को जमीन पर गिरने से रोक दिया और अंततः सभी दानवों का अंत हो गया। बाद में, उन्होंने शुंभ और निशुंभ को भी मार डाला और तीनों लोकों में शांति की स्थापना की।
जानिए माता के स्वरूप के बारे में,
महाविनाशक गुणों से दुष्टों और असुरों का संहार करने वाली दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि है। माता का यह स्वरूप कालिका का अवतार यानी काले रंग का है और अपने विशाल केश चारों दिशाओं में फैलाती हैं। चार भुजा वाली माता, जो वर्ण और वेश में अर्द्धनारीशवर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं। माता के तीन नेत्र हैं और उनकी आंखों से अग्नि की वर्षा भी होती है। माता का दाहिना उपर उठा हाथ वर मुद्रा में है तो नीचे दाहिना वाला अभय मुद्रा में। बाएं वाले हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में खड़क तलवार सुशोभित है। इनकी सवारी गर्दभ यानी गधा है, जो समस्त जीव जंतुओं में सबसे ज्यादा मेहनती और निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालराात्रि को लेकर इस संसार में विचरण कर रहा है।
माता कालरात्रि का प्रिय भोग क्या है,
महासप्तमी के दिन माता कालरात्रि को गुड़ और गुड़ से बनी चीजें जैसे मालपुआ का भोग लगाया जाता है। इन चीजों का भोग लगाने से माता प्रसन्न होती हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। पूजा के समय माता को 108 गुलदाउदी फूलों से बनी माला अर्पित करें।
जानिए माता कालरात्रि पूजा विधि,
माता दुर्गा की इस शक्ति को कालरात्रि कहा जाता है। माता की पूजा से आरोग्य की प्राप्ति होती है और नकारात्मक शक्तियों से छुटकारा मिलती है। माता अपने भक्तों को आशीष प्रदान करती हैं और शत्रुओं का संहार करती हैं। परिवार में सुख शांति आती है। चलिए आपको बताते हैं कि किस तरह से माता की पूजा करनी चाहिए। माता कालरात्रि की पूजा अन्य दिनों की तरह ही की जाती है। महासप्तमी की पूजा सुबह और रात्रि दोनों समय की जाती है। माता की पूजा लाल कंबल के आसन पर बैठकर करें। स्थापित प्रतिमा या तस्वीर के साथ आसपास गंगाजल से छिड़काव करें। इसके बाद घी का दीपक जलाकर पूरे परिवार के साथ माता के जयकारे लगाएं। इसके बाद रोली, अक्षत, गुड़हल का फूल आदि चीजें अर्पित करें। साथ ही अगर आप अग्यारी करते हैं तो लौंग, बताशा, गुग्गल, हवन सामग्री अर्पित करनी चाहिए। माता कालरात्रि को गुड़हल के फूल चढ़ाएं जाते हैं और गुड़ का भोग लगाया जाता है। इसके बाद कपूर या दीपक से माता की आरती उतारें और पूरे परिवार के साथ जयकारे लगाएं। सुबह शाम आरती के बाद दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ कर सकते हैं और माता दुर्गा के मंत्रों का भी जप करना चाहिए। लाल चंदन की माला से मंत्रों का जप करें। अगर लाल चंदन नहीं है तो रुद्राक्ष की माला से भी माता के मंत्रों का जप कर सकते हैं।
माता कालरात्रि की पूजा करने के लिए सुबह जल्द जगना चाहिए। स्नान करके साफ स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। मान्यता है कि माता को लाल रंग पसंद है। इसलिए माता को लाल रंग का वस्त्र अर्पित करना चाहिए। माता को स्नान कराने के बाद फूल चढ़ाना चाहिए। माता को मिठाई, पंच मेवा और 5 प्रकार का फल अर्पित करना चाहिए। माता कालरात्रि को रोली कुमकुम लगाना चाहिए।
माता कालरात्रि का मंत्र ओम कालरात्र्यै नमः है।
अगर आप जगत जननी माता दुर्गा की अराधना करते हैं और अगर आप माता दुर्गा जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय भवानी, जय दुर्गा अथवा जय काली माता लिखना न भूलिए।
यहां बताए गए उपाय, लाभ, सलाह और कथन आदि सिर्फ मान्यता और जानकारियों पर आधारित हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि किसी भी मान्यता या जानकारी की समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के द्वारा पुष्टि नहीं की जाती है। यहां दी गई जानकारी में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों, दंतकथाओं, किंवदंतियों आदि से संग्रहित की गई हैं। आपसे अनुरोध है कि इस वीडियो या आलेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया पूरी तरह से अंधविश्वास के खिलाफ है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
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(साई फीचर्स)