जानिए कैसे बने देवीय शक्तिपीठ, और ये किस किस जगह पर हैं स्थित . . .

सनातन धर्म के 51 देवीय शक्ति पीठ बनने की पौराणिक कथाओं को जानिए . . .
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माता दुर्गा देवी के 51 शक्ति पीठ का हिन्दू धर्म में बहुद ज्यादा महत्व है। आपने इनके बारे में सुना जरूर होगा, किन्तु इन सभी शक्ति पीठ बनने के पीछे की वजह क्या है और ये किस किस स्थान पर स्थित हैं? इस बारे में अभी भी बहुत लोगों को जानकारी नहीं है। इसीलिए पौराणिक कथा के अनुसार आज हम आपको देवी के शक्ति पीठों के बनने की वजह के बारे में बताते हैं। साथ ही ये भी बताते हैं कि ये शक्ति पीठ किन किन स्थानों पर स्थित हैं।
अगर आप जगत जननी माता दुर्गा की अराधना करते हैं और अगर आप माता दुर्गा जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय भवानी, जय दुर्गा अथवा जय काली माता लिखना न भूलिए।
माता दुर्गा देवी के 51 शक्ति पीठ बनने के पीछे की जो पौराणिक कथा है उसके अनुसार भगवान शिव की पहली पत्नी सती के पिता दक्ष प्रजापति ने कनखल जिसको वर्तमान में उत्तराखण्ड प्रदेश के हरिद्वार शहर के नाम से जाना जाता है में बृहस्पति सर्व’ नाम का एक महा यज्ञ किया था। उस यज्ञ में भगवान ब्रम्हा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया था लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया था। लेकिन इसके बावजूद भगवान शिव की पत्नी जो कि दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं वह बिना आमंत्रित किये और अपने पति के रोकने के बावजूद उस यज्ञ में शामिल हो गयीं। उस समय यज्ञ स्थल पर सती ने अपने पिता से भगवान शिव को आमंत्रित न करने की वजह पूछी और अपनी नाराज़गी प्रकट की। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव को अपशब्द कहे। जिसके अपमान से पीड़ित होकर सती ने यज्ञ के अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी।
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देवाधिदेव महादेव, ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध की वजह से उनका तीसरा नेत्र खुल गया और वे क्रोध की वजह से तांडव करने लगे। इसके पश्चात भगवन शिव ने यज्ञस्थल पर पहुंच कर यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाला और कंधे पर उठा लिया और दुखी मन से वापस कैलाश पर्वत की ओर जाने लगे। इस दौरान देवी सती के शरीर के अंग जिन जगहों पर गिरे वह स्थान शक्ति पीठ कहलाये। जो कि वर्तमान समय में भी उन जगहों पर स्थित हैं और आज भी पूजे जाते हैं।
अब आपको बताते हैं कि किन जगहों पर स्थित हैं देवी के 51 शक्ति पीठ,
पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिले के किरीटकोण ग्राम में देवी सती का मुकुट गिरा और वे विमला कहलाईं।
उत्तर प्रदेश के वाराणसी काशी के मणिकर्णिका घाटमें देवी सती की मणिकर्णिका गिरी और वे विशालाक्षी और मणिकर्णी रूप में प्रसिद्ध हुईं।
तमिलनाडू के कन्याश्रम, भद्रकाली मंदिर, कुमारी मंदिरमें देवी की पीठ गिरी और वे श्रवणी कहलाईं।
देश के हृदय प्रदेश मध्य प्रदेश के अमरकंटक में कमलाधव नाम के स्थान पर शोन नदी के किनारे एक गुफा में देवी सती का बायां नितंब गिरा और यहां मां काली स्घ्थापित हैं। वहीं, शोन्देश, अमरकंटक, मध्य प्रदेश में उनका दायां नितंब गिरा और नर्मदा नदी का उद्गम होने के कारण देवी नर्मदा कहलाईं।
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में नैना देवी मंदिर में शिवालिक पर्वत पर स्थित है। यहां देवी सती की आंख गिरी थी यहां देवी महिष मर्दिनी कहलाती हैं।
देवी सती की नासिका गिरी थी सुगंध बांग्लादेश में शिकारपुर बरिसल से 20 किलो मीटर दूर सोंध नदी के किनारे। यहां देवी सुनंदा कहलाती हैं।
अमरनाथ, पहलगांव, काश्मीर के पास देवी का गला गिरा था और वे यहां महामाया के रूप में स्थापित हैं।
ज्वाला जी, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश में हैं जहां देवी की जीभ गिरी थी उनका नाम पड़ा सिधिदा या अंबिका।
जालंधर, पंजाब में छावनी स्टेशन निकट देवी तलाब में उनका बांया वक्ष गिरा और वे यहां त्रिपुरमालिनी नाम से स्घ्थापित हुईं।
अम्बाजी मंदिर, गुजरात में देवी का हृदय गिरा था और वे यहां अम्बाजी कहलाईं।
रामगिरि, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश में दायां वक्ष गिरायहां देवी शिवानी के नाम से पूजी गयीं।
वृंदावन, भूतेश्वर महादेव मंदिर के पास उत्तर प्रदेश में देवी सती के केशों का गुच्छ और चूड़ामणि गिरी और यहां देवी उमा नाम से प्रसिद्ध हुईं।
शुचि, शुचितीर्थम शिव मंदिर के पास कन्याकुमारी, तमिल नाडु में ऊपरी दाढ़ गिरी और उनका नाम पड़ा देवी नारायणी।
पंचसागर में देवी सती की निचली दाढ़ गिरी और यहां देवी वाराही के नाम से जानी गयीं।
बांग्लादेश के करतोयतत, भवानीपुर गांव में देवी के बायें पैर की पायल गिरी और वे यहां अर्पण नाम से प्रसिद्ध हुईं।
श्रीशैलम, कुर्नूल जिला आंध्र प्रदेश में देवी सती के दायें पैर की पायल गिरी और यहां देवी स्घ्थापित हुईं देवी श्री सुंदरी के नाम से।
पश्चिम बंगाल के विभाष, तामलुक, पूर्व मेदिनीपुर जिला में देवी कपालिनी का मंदिर है यहां देवी सती की बायीं एड़ी गिरी थी।
प्रभास, जूनागढ़ जिला, गुजरात में देवी सती का आमाशय गिरा था और यहां वे चंद्रभागा के नाम से पूजी जाती हैं।
मध्य प्रदेश में भैरव पर्वत पर क्षिप्रा नदी के किनारे उज्जयिनी में देवी के ऊपरी होंठ गिरे थे यहां वे अवंति नाम से जानी जाती हैं।
जनस्थान, नासिक, महाराष्ट्र में देवी की ठोड़ी गिरी और देवी भ्रामरी रूप में स्थापित हुईं।
सर्वशैल राजमहेंद्री, आंध्र प्रदेश में उनके गाल गिरे और देवी को नाम मिला राकिनी और विश्वेश्वरी।
बिरात, राजस्थान में उनके बायें पैर की उंगली गिरी थी और यहां देवी अंबिका कहलाईं।
रत्नावली, हुगली, पश्चिम बंगाल में देवी सती का दायां कंधा गिरा और उनका नाम पड़ा देवी कुमारी।
मिथिला, भारत नेपाल सीमा पर देवी सती का बायां कंधा गिरा और देवी उम कहलाईं।
नलहाटी, बीरभूम, पश्चिम बंगाल में देवी के पैर की हड्डी गिरी और देवी का नाम पड़ा कलिका देवी।
कर्नाटक में देवी सती के दोनों कान गिरे और यहां देवी जय दुर्गा के नाम से जानी गयीं।
वक्रेश्वर पश्चिम बंगाल में देवी का भ्रूमध्य गिरा और वे कहलाईं महिष मर्दिनी।
यशोर, ईश्वरीपुर, खुलना जिला, बांग्लादेश में देवी सती के हाथ एवं पैर गिरे और देवी कहलाईं यशोरेश्वरी।
बीरभूमि, पश्चिम बंगाल में देवी सती के होंठ गिरे और यहां उनका नाम पड़ा फुल्लारा देवी।
नंदीपुर, पश्चिम बंगाल में देवी का हार गिरा और यहां देवी कहलाईं मां नंदनी।
श्री लंका में अज्ञात स्घ्थान पर देवी की पायल गिरी यहां वे इंद्रक्षी कहलाती हैं। कहा जाता है कि ये मंदिर ट्रिंकोमाली में है लेकिन पुर्तगाली बमबारी में ये ध्वस्त हो चुका है। इसका केवल एक स्तंभ ही यहां शेष है।
गुजयेश्वरी मंदिर, नेपाल, में पशुपतिनाथ मंदिर के साथ ही है। जहां देवी के दोनों घुटने गिरे थे। यहां देवी का नाम महाशिरा है।
मानस, कैलाश पर्वत, मानसरोवर, में तिब्बत के पास देवी सती का दायां हाथ गिरा था और यहां वे दाक्षायनी कहलाईं। इस मंदिर में देवी एक शिला के रूप में स्थापित हैं।
बिराज, उत्कल, उड़ीसा में देवी की नाभि गिरी और वे विमला के नाम से जानी गयीं।
गंडकी नदी के तट पर, पोखरा, नेपाल में मुक्तिनाथ मंदिर में देवी का मस्तक गिरा और वे यहां गंडकी चंडी कहलाईं।
बाहुल, अजेय नदी तट, केतुग्राम, कटुआ, वर्धमान जिला, में पश्चिम बंगाल से 8 किलो मीटर दूर बहुला देवी स्थापित हैं। बताया जाता है यहां देवी का बायां हाथ गिरा था।
उज्जनि, गुस्कुर स्टेशन से वर्धमान जिला, पश्चिम बंगाल में देवी सती की दायीं कलाई गिरी और वे यहां मंगल चंद्रिका के नाम से जानी गयीं।
माताबाढ़ी पर्वत शिखर, निकट राधाकिशोरपुर गाव, उदरपुर, त्रिपुरा में देवी का दायां पैर गिरा और देवी त्रिपुर सुंदरी कहलाईं।
छत्राल, चंद्रनाथ पर्वत शिखर, निकट सीताकुण्ड स्टेशन, बांग्लादेश में देवी सती की दांयी भुजा गिरी और उनको जाना गया देवी भवानी के नाम से।
त्रिस्रोत, सालबाढ़ी गांव, बोडा मंडल, जलपाइगुड़ी, पश्चिम बंगाल में देवी का बायां पैर गिरा और वे भ्रामरी देवी कहलाईं।
कामगिरि, कामाख्या, नीलांचल पर्वत, गुवाहाटी, असम में उनकी योनि गिरी और वे देवी कामाख्या रूप में प्रसिद्ध हुईं।
जुगाड़्या, खीरग्राम, वर्धमान जिला, पश्चिम बंगाल में उनका दायें पैर का अंगूठा गिरा और उनको यहां जाना गया देवी जुगाड्या के नाम से।
कालीपीठ, कालीघाट, कोलकाता में देवी के दायें पैर का अंगूठा गिरा और वे यहां मां कालिका के नाम से जानी गयीं।
प्रयाग, संगम, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में देवी सती के हाथ की अंगुली गिरी और वे यहां मां ललिता के नाम से जानी गयीं।
कालाजोर भोरभोग गांव, खासी पर्वत, जयंतिया परगना, सिल्हैट जिला, बांग्लादेश में देवी की बायीं जंघा गिरी और यहां देवी जयंती नाम से स्घ्थापित हुईं।
कुरुक्षेत्र, हरियाणा में देवी के पैर की एड़ी गिरी और यहां माता सावित्री का मंदिर स्घ्थापित हुआ।
मणिबंध, गायत्री पर्वत, पुष्कर, अजमेर में देवी की दो पहुंचियां गिरी थीं और यहां देवी का नाम पड़ा गायत्री।
श्री शैल, जैनपुर गांव, के पास सिल्हैट टाउन, बांग्लादेश में देवी का गला गिरा और यहां उनका नाम महालक्ष्मी है।
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(साई फीचर्स)