वर्ष में मानसून के अंत का प्रतीक भी माना जाता है शरद पूर्णिमा को . . .

जानिए शरद पूर्णिमा की पूजा विधि, कथा एवं मनाने का क्या है तरीका . . .
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शरद पूर्णिमा जिसे कुमार पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा, नवान्न पूर्णिमा, कोजाग्रत पूर्णिमा या कौमुदी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, दरअसल यह हिंदू चंद्र माह अश्विन जो अंग्रेजी कलेण्डर में सितंबर से अक्टूबर के मध्य की पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला एक धार्मिक त्योहार है, जो उस साल में बारिश के बाद मानसून के मौसम के अंत का प्रतीक है। इस दिन देवी लक्ष्मी के एक रूप कोजागोरी लक्ष्मी की मूर्ति की पूजा की जाती है। पूर्णिमा की रात भारतीय उप महाद्वीप के विभिन्न सांस्कृतिक क्षेत्रों में अलग अलग तरीकों से मनाई जाती है। हर महीने में पूर्णिमा का पर्व बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता हैं। आश्विन माह में पड़ने वाली पूर्णिमा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। शुभ तिथि पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विशेष पूजा अर्चना करने का विधान है। मान्यता है कि उपासना करने से विष्णु जी की कृपा बनी रहती है और जातक को सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
इस दिन, राधा कृष्ण, शिव पार्वती और लक्ष्मी नारायण जैसे कई हिंदू दिव्य देवी देवताओं के जोड़ों की पूजा चंद्र देवता के साथ की जाती है, और उन्हें फूल और खीर जिसे चावल, शक्कर, मेवों और दूध से बनाया जाता है, को अर्पित किया जाता है। मंदिरों में देवताओं को आमतौर पर सफेद रंग के कपड़े पहनाए जाते हैं जो चंद्रमा की चमक को दर्शाते हैं। कई लोग इस रात पूरे दिन उपवास रखते हैं।
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अब जानिए शरद पूर्णिमा की कथा के संबंध में . . . शरद पूर्णिमा की कथाः पूर्णिमा के व्रत का सनातन धर्म में बहुत महत्व है। हर महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि पर व्रत करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। मां लक्ष्मी और श्रीहरि की इसी कृपा को प्राप्त करने के लिए एक साहूकार की दोनों बेटियां हर पूर्णिमा को व्रत किया करती थीं। इन दोनों बेटियों में बड़ी बेटी पूर्णिमा का व्रत पूरे विधि विधान से और पूरा व्रत करती थी। वहीं छोटी बेटी व्रत तो करती थी लेकिन नियमों को आडंबर मानकर उनकी अनदेखा करती थी।
विवाह योग्य होने पर साहूकार ने अपनी दोनों बेटियों का विवाह कर दिया। बड़ी बेटी के घर समय पर स्वस्थ संतान का जन्म हुआ। संतान का जन्म छोटी बेटी के घर भी हुआ लेकिन उसकी संतान पैदा होते ही दम तोड़ देती थी। दो तीन बार ऐसा होने पर उसने एक ब्राम्हण को बुलाकर अपनी व्यथा कही और धार्मिक उपाय पूछा। उसकी सारी बात सुनकर और कुछ प्रश्न पूछने के बाद ब्राम्हण ने उससे कहा कि तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, इस कारण तुम्हारा व्रत फलित नहीं होता और तुम्हे अधूरे व्रत का दोष लगता है। ब्राम्हण देव की बात सुनकर छोटी बेटी ने पूर्णिमा व्रत पूरे विधि विधान से करने का निर्णय लिया।
लेकिन पूर्णिमा आने से पहले ही उसने एक बेटे को जन्म दिया। जन्म लेते ही बेटे की मृत्यु हो गई। इस पर उसने अपने बेटे शव को एक पीढ़े जिसे आम बोलचाल की भाषा में पटा भी कहते हैं, पर रख दिया और ऊपर से एक कपड़ा इस तरह ढक दिया कि किसी को पता न चले। फिर उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया। जैसे ही बड़ी बहन उस पीढ़े पर बैठने लगी, उसके लहंगे की किनारी बच्चे को छू गई और वह जीवित होकर तुरंत रोने लगा। इस पर बड़ी बहन पहले तो डर गई और फिर छोटी बहन पर क्रोधित होकर उसे डांटने लगी कि क्या तुम मुझ पर बच्चे की हत्या का दोष और कलंक लगाना चाहती हो! मेरे बैठने से यह बच्चा मर जाता तो?
इस पर छोटी बहन ने उत्तर दिया, यह बच्चा मरा हुआ तो पहले से ही था। दीदी, तुम्हारे तप और स्पर्श के कारण तो यह जीवित हो गया है। पूर्णिमा के दिन जो तुम व्रत और तप करती हो, उसके कारण तुम दिव्य तेज से परिपूर्ण और पवित्र हो गई हो। अब मैं भी तुम्हारी ही तरह व्रत और पूजन करूंगी। इसके बाद उसने पूर्णिमा व्रत विधि पूर्वक किया और इस व्रत के महत्व और फल का पूरे नगर में प्रचार किया। जिस प्रकार मां लक्ष्मी और श्रीहरि ने साहूकार की बड़ी बेटी की कामना पूर्ण कर सौभाग्य प्रदान किया, वैसे ही हम पर भी कृपा करें।
अब जानिए शरद पूर्णिमा की पूजा विधि के बारे में, सुबह स्नान के बाद घर के मंदिर की सफाई करें। ध्यान पूर्वक माता लक्ष्मी और श्रीहरि की पूजा करें। फिर गाय के दूध में चावल की खीर बनाकर रख लें।
लक्ष्मी माता और भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए लाल कपड़ा या पीला कपड़ा चौकी पर बिछाकर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा इस पर स्थापित करें। तांबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढंकी हुई लक्ष्मी जी की स्वर्णमयी मूर्ति की स्थापना कर सकते हैं। भगवान की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाएं, धूप करें। इसके बाद गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत और रोली से तिलक लगाएं।
तिलक करने के बाद सफेद या पीली मिठाई से भोग लगाएं। लाल या पीले पुष्प अर्पित करें। माता लक्ष्मी को गुलाब का फूल अर्पित करना विशेष फलदाई होता है। शाम के समय चंद्रमा निकलने पर मिट्टी के 100 दीये या अपनी सामर्थ्य के अनुसार दीये गाय के शुद्ध घी से जलाएं। इसके बाद खीर को कई छोटे बर्तनों में भरकर छलनी से ढककर चंद्रमा की रोशनी में रख दें। फिर पूरी रात तड़के 3 बजे तक, इसके बाद ब्रम्ह मुहूर्त शुरू हो जाता है, जागते हुए विष्णु सहस्त्रनाम का जप, श्रीसूक्त का पाठ, भगवान श्रीकृष्ण की महिमा, श्रीकृष्ण मधुराष्टकम् का पाठ और कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। पूजा की शुरुआत में भगवान गणपति की आरती अवश्य करें।
अगली सुबह ब्रम्ह मुहूर्त में स्नान करके उस खीर को मां लक्ष्मी को अर्पित करें और प्रसाद रूप में वह खीर घर परिवार के सदस्यों में बांट दें। इस प्रकार जगतपालक और ऐश्वर्य प्रदायिनी की पूजा करने से सभी मनवांछित कार्य पूरे होते हैं। साथ ही हर तरह के कर्ज से मुक्ति मिलती है।
जानकार विद्वानों के अनुसार शरद पूर्णिमा उस रात को मनाई जाती है जब कृष्ण और ब्रज की गोपियों के बीच रासलीला जो एक गोलाकार नृत्य था से हुई थी। इस दिव्य नृत्य में भाग लेने के लिए, शिव ने गोपीश्वर महादेव का रूप धारण किया। ब्रम्ह पुराण, स्कंद पुराण, ब्रम्ह वैवर्त पुराण और लिंग पुराण में इस रात्रि का विशाद वर्णन मिलता है। यह भी माना जाता है कि इस पूर्णिमा की रात को देवी लक्ष्मी मनुष्यों के कार्यों को देखने के लिए पृथ्वी पर अवतरित होती हैं।
कोजागरी पूर्णिमा कोजागरा व्रत के पालन से संबंधित है। लोग दिन भर उपवास रखने के बाद चांदनी में यह व्रत करते हैं। इस दिन धन की हिंदू देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है क्योंकि यह उनका जन्म दिन माना जाता है। बारिश के देवता इंद्र की उनके हाथी ऐरावत के साथ पूजा भी की जाती है। यह दिन भारत, बांग्लादेश और नेपाल के विभिन्न क्षेत्रों में सनातन धर्म का पालन करने वाले हिंदुओं द्वारा अलग अलग तरीके से मनाया जाता है।
वहीं, बंगाल, त्रिपुरा और असम में इस रात को कोजागरी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। बंगाली में कोजागरी का मतलब होता है जो जाग रहा है। ऐसा माना जाता है कि देवी लक्ष्मी इस रात लोगों के घर आती हैं, जाँचती हैं कि वे जाग रहे हैं या नहीं, और उन्हें तभी आशीर्वाद देती हैं जब वे जाग रहे हों।
भारत के उत्तरी और मध्य राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में रात के समय खीर बनाई जाती है और रात भर खुली छत वाली जगह पर चांदनी में रखी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस रात, चंद्रमा की किरणें अमृत जिसे अमरता का अमृत माना जाता है को लेकर आती हैं, जिसे खीर में इकट्ठा किया जाता है। खीर को अगले दिन प्रसाद के रूप में खाया जाता है। साथ ही, इस रात देवी लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है।
कुछ बंगाली जनजातियों के लिए, यह दिन निश्चित दिन से कुछ दिन पहले या बाद में मनाया जाता है, विशेष रूप से द्याओ, ब्रम्हो और कुमुलांग परंपराओं में, विभिन्न परंपराओं के अनुसार यह निर्धारित किया जाता है कि कौन से दिन उत्सव के लिए शुभ हैं।
महाराष्ट्र में इसे कोजागिरी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। लोग मसाला दूध बनाते हैं और इसे चांदनी के नीचे रखते हैं, क्योंकि माना जाता है कि चांद की किरणें अमृत लेकर आती हैं। गुजरात के कई हिस्सों में चांदनी रात में गरबा किया जाता है।
बिहार के मिथिला क्षेत्र में नवविवाहित दूल्हे के घर में विशेष उत्सव मनाया जाता है। दूल्हे का परिवार दुल्हन के परिवार से उपहार में मिले पान और मखाना को अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों में बांटता है।
ओडिशा में इस दिन अविवाहित महिलाएं अपने लिए उपयुक्त वर अर्थात पति जिसे स्थानीय लोक कुमार भी कहते हैं को पाने की लोकप्रिय मान्यता के साथ उपवास रखती हैं। इस त्यौहार के अवसर पर अविवाहित महिलाएं चंद्रमा की पूजा करती हैं। पूजा सुबहसुबह चंद्रमा के अस्त होते ही नए वस्त्र पहनकर शुरू होती है। एक कुला जो बांस की बुनी हुई पट्टियों से बनी टोकरी होती है, में चावल के पूड़े, गन्ना, पान के पत्ते, सुपारी, खीरे, नारियल और सात अन्य फल जैसे सेब या केले भरे जाते हैं। शाम को फिर से पूर्णिमा की पूजा की जाती है और उपासक तले हुए धान और कुला के फलों से दही और गुड़ के साथ एक पकवान तैयार करके तुलसी के पौधे के सामने चंद्र देव को अर्पित करके अपना उपवास तोड़ते हैं। इसके बाद युवतियां पूर्णिमा की रोशनी में खेल खेलती हैं और गीत गाती हैं।
नेपाल में, इस दिन को कोजाग्रत पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है और यह 15दिवसीय दशईं त्योहार समारोह का समापन करता है। कोजाग्रत का नेपाली में अनुवाद जागने वाला होता है। पूर्वी भारत की परंपराओं के समान, नेपाली हिंदू पूरी रात जागकर देवी लक्ष्मी को श्रद्धा अर्पित करते हैं। यह अपने रिश्तेदारों से दशईं टीका प्राप्त करने का अंतिम दिन भी माना जाता है।
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(साई फीचर्स)