जानिए किस तरह हुए थे न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज प्रकट!
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कायस्थ वंश के लोग श्रीवास्तव, वर्मा, अर्गल, माथुर, खरे न जाने कितने उपनाम से पहचाने जाते हैं। पर क्या आपको पता है कि न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज के पुत्रों के उपनाम जिसे अंग्रेजी में सरनेम कहा जाता है कैसे पड़े, आईए आज हम आपको इसकी कथा बताते हैं,
अगर आप भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी की अराधना करते हैं और अगर आप भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय चित्रगुप्त देवा, जय श्री चित्रगुप्त महाराज लिखना न भूलिए।
सनातन परंपरा में दीपावली के आखिरी दिन न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज पूजा की जाती है। न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज को यमराज धर्मराज जी के लेखाकार या मुंशी माना जाता है, जो कि सभी प्राणियों के पाप पुण्य का लेखा जोखा रखने वाले माने जाते हैं।
हर साल भाई दूज के दिन ही न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज पूजा मनाई जाती है। इस दिन को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज की पूजा की जाती है। न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जी का जन्म ब्रम्हाजी के अंश से हुआ है। वह उनकी काया से उत्पन्न हुए थे, इसलिए कायस्थ कहलाए। इसी तरह उनकी संतानों के जरिए जो वंश आगे बढ़ा और जो जाति बनी वह कायस्थ कहलाई। न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जी की जन्म कथा भी अद्भुत है।
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जानकार विद्वानों के अनुसार परम सत्ता के आदेश पर सृष्टि की रचना के बाद भगवान ब्रम्हाजी ने धर्मराज यमराज जी को आदेश दिया कि वह जीवों को उनके कर्म के आधार पर फल प्रदान करें। इस पर यमराज जी ने ब्रम्हाजी से विनती की कि हे भगवान आपकी आज्ञा शिरोधार्य है, मैं अपनी क्षमता के अनुसार इसका पालन करूंगा। लेकिन पूरी सृष्टि में जीव और उनकी देह अनंत हैं। देशकाल ज्ञात अज्ञात आदि भेदों से कर्म भी अनंत हैं। उनमें कर्ता ने कितने किए, कितने भोगे, कितने शेष हैं और कैसा उनका भोग है तथा इन कर्मों के भी मुख्य व गौण भेद से अनेक हो जाते हैं। साथ ही कर्ता ने कैसे किया, स्वयं किया या दूसरे की प्रेरणा से किया आदि कर्म चक्र महागहन हैं। अतः मैं अकेला किस प्रकार इस भार को उठा सकूंगा। इसलिए आप मुझे कोई ऐसा सहायक दीजिए जो शीघ्रकारी, धार्मिक, न्यायकर्ता, बुद्धिमान, लेख कर्म में अग्रणी, चमत्कारी, तपस्वी, ब्रम्हानिष्ठ और वेद शास्त्र का ज्ञाता हो।
धर्मराज यमराज महाराज की बात सुनकर ब्रम्हाजी ने उनकी आवश्यकता को समझते हुए उन्हें ऐसा सहयोगी देने की बात कही। इसके बाद ब्रम्हाजी तपस्या में लीन हो गए। जब एक हजार साल की तपस्या के बाद उन्होंने आंखें खोलीं तो सामने एक दैवीय आभामंडल से युक्त एक पुरुष को देखा, जिनके हाथ में कलम और दवात थी। ब्रम्हाजी ने उनसे पूछा कि आप कौन हैं? इस पर वह दैवीय पुरुष बोले हे देव! मैं आपके शरीर से प्रकट हुआ हूं। इसलिए आप ही मुझे कोई नाम दीजिए। साथ ही मुझे आदेश दें कि मुझे क्या करना है। इस पर ब्रम्हाजी मुस्कुराए और बोले कि तुम मेरे शरीर से प्रकटे हो इसलिए तुम्हारा नाम कायस्थ न्याय के देवता धर्मराज चित्रगुप्त है। तुम प्राणीमात्र के कर्मों का लेखा जोखा रखने में धर्मराज यमराज जी का सहयोग करोगे।
ब्रम्हाजी की आज्ञा से न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज, यमलोक के राजा यमराज जी के प्रमुख सहायक बने। फिर ऋषि सुशर्मा की पुत्री इरावती से उनका विवाह हुआ। इरावती से इनके 8 पुत्र हुए। इनका दूसरा विवाह मनु की पुत्री दक्षिणा से हुआ। इनसे भगवान न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज के 4 पुत्र उत्पन्न हुए। भगवान न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज के ये सभी 12 पुत्र पृथ्वी लोक पर बसे। इनके नाम चारु, सुचारु, चित्र, मतिमान, हिमवान, चित्रचारु अरुण, अतीन्द्रिय, भानु, विभानु, विश्वभानु और वीर्य्यावान हैं। चारु मथुराजी गए इसलिए वह माथुर कहलाए। सुचारु गौड़ बंगाले गए इसलिए वह गौड़ कहलाए। चित्र ने र्भी नदी के किनारे वास किया इसलिए वह भटनागर कह लाए। भानु श्रीवास नगर में बसे इसलिए श्रीवास्तव कहलाए। इस प्रकार भगवान न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज के जिस पुत्र ने जिस जगह निवास किया, उनके नाम के साथ जगह का नाम जुड़ गया और इसी तरह कायस्थ समाज की उत्पत्ति हुई।
जानिए न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जी की जन्म कथा,
पुराणों में वर्णित है कि सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला जिस पर एक पुरुष आसीन था। ये ब्रम्हा जी कहलाए। इन्होंने सृष्ट की रचना के क्रम में देव असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री पुरूष पशु पक्षी को जन्म दिया। इसी क्रम में यमराज जी का भी उदय हुआ जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था। धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की मांग ब्रम्हा जी से की तो ब्रम्हा जी ध्यानलीन हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरुष उत्पन्न हुआ। इस पुरुष का जन्म ब्रम्हा जी की काया से हुआ था अतः ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज पड़ा।
जानिए यह है न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज पूजा का प्रभाव,
न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल है। ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलती है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज की पूजा का विधान है। इस दिन भगवान न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज और यमराज की मूर्ति स्थापित करके अथवा उनकी तस्वीर रखकर श्रद्धा पूर्वक सभी प्रकार से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर एवं भांति भांति के पकवान, मिष्ठान एवं नैवेद्य सहित इनकी पूजा करें। और फिर जाने अनजाने हुए अपराधों के लिए इनसे क्षमा याचना करें। यमराज और न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है। हरि ओेम,
अगर आप भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी की अराधना करते हैं और अगर आप भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय चित्रगुप्त देवा, जय श्री चित्रगुप्त महाराज लिखना न भूलिए।
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