जानिए कार्तवीर्य अर्जुन सहस्त्रबाहू महाराज के बारे में विस्तार से . . .
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कार्तवीर्य अर्जुन, सहस्रबाहु अर्जुन या सहस्रार्जुन के रूप में भी जाने जाते है, हिंदू धर्म में विष्णु के मानस प्रपुत्र तथा सुदर्शन के अवतार और धन और खोए कीर्ति, बल के देवता है। पुराणों के अनुसार उन्होंने सात महाद्वीपों एवं ब्रह्मांड पर विजय प्राप्त कर धर्मपूर्वक 85 हजार वर्षों तक शासन किया। उन्हें एक हजार हाथ वाले देवता और भगवान दत्तात्रेय नारायण के एक महान भक्त के रूप में वर्णित किया गया है जिनके सामने राक्षस राजा रावण चींटी के समान था।
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श्रीमदभागवत पुराण के 9 दशमलव 23 दशमलव 25 में कहा गया है कि पृथ्वी के अन्य शासक बलिदान, उदार दान, तपस्या, योगिक शक्तियों, विद्वानों के प्रदर्शन के मामले में कार्तवीर्य अर्जुन की बराबरी नहीं कर सकते न भूत न भविष्य। सम्राट अर्जुन की राजधानी माहिष्मति नर्मदा नदी के तट पर थी, जहां पर उन्होंने रावण के अलावा नागों के राजा कार्काेटक नाग को भी हराकर बंदी बना रखा था।
जानिए क्या था इनका मूल नाम,
कार्तवीर्य अर्जुन का मूल नाम अर्जुन था, कार्तवीर्य इन्हें राजा कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण कहा गया। अन्य नामों में, सहस्रबाहु अर्जुन, सहस्रबाहु कार्तवीर्य या सहस्रार्जुन इन्हें हज़ार हाथों के वरदान के कारण, हैहय वंशाधिपति, हैहय वंश में श्रेष्ठ राजा होने के कारण; माहिष्मति नरेश, माहिष्मति नगरी के राजा, सप्त द्वीपेश्वर, सातों महाद्वीपों के राजा होने के कारण, दशग्रीव जयी, रावण को हराने के कारण और राजराजेश्वर, राजाओं के राजा होने के कारण कहा गया।
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जानिए कितनी सेनाएं थीं कार्तवीर्य अर्जुन महाराज के पास,
कार्तवीय अर्जुन महाराज के पास एक हजार अक्षौहिणी सेनाएं थी। यह भी एक कारण है कि उनका नाम सहस्रबाहु था अर्थात् जिसके पास सहस्त्रबाहु अर्थात सहस्त्र सेनाएं (अक्षौहिणी वर्ग) में हों।
इस बार 08 नवंबर को राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन महाराज की जयंती है। वाल्मीकि रामायण में इनका वर्णन मिलता है। उसके अनुसार, प्राचीन काल में महिष्मती (वर्तमान महेश्वर) नगर के राजा कार्तवीर्य अर्जुन थे। उन्होंने भगवान विष्णु के अवतार दत्तात्रेय को प्रसन्न कर वरदान में उनसे 1 हजार भुजाएं मांग ली। इससे उसका नाम सहस्त्रबाहु अर्जुन हो गया।
जानें सहस्त्रबाहू अर्जुन से जुड़ी खास बातें,
एक बार रावण सहस्त्रबाहु अर्जुन को जीतने की इच्छा से उनके नगर गया। नर्मदा की जलधारा देखकर रावण ने वहां भगवान शिव का पूजन करने का विचार किया। जिस स्थान पर रावण पूजा कर रहा था, वहां से थोड़ी दूर सहस्त्रबाहु अर्जुन अपनी पत्नियों के साथ जलक्रीड़ा में मग्न था। अर्जुन ने खेल ही खेल में अपनी हजार भुजाओं से नर्मदा का प्रवाह रोक दिया।
जब रावण ने ये देखा तो उसने अपने सैनिकों को इसका कारण जानने के लिए भेजा। सैनिकों ने रावण को पूरी बात बता दी। रावण ने सहस्त्रबाहु अर्जुन को युद्ध के लिए ललकारा। नर्मदा के तट पर ही रावण और सहस्त्रबाहु अर्जुन में भयंकर युद्ध हुआ। अंत में सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को बंदी बना लिया।
जब यह बात रावण के पितामह (दादा) पुलस्त्य मुनि को पता चली तो वे सहस्त्रबाहु अर्जुन से रावण को छोडऩे के लिए निवेदन किया। सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को छोड़ दिया और उससे मित्रता कर ली। महाभारत के अनुसार, एक बार सहस्त्रबाहु अर्जुन अपनी सेना सहित जंगल से गुजर रहे थे। उस जंगल में ऋषि जमदग्नि का आश्रम था।
सहस्त्रबाहु ऋषि जमदग्नि के आश्रम में थोड़ी देर आराम करने के लिए इच्छा से रूक गया। ऋषि जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी, जो सभी इच्छाएं पूरी करती थी। उसकी सहायता से ऋषि जमदग्नि ने सहस्त्रबाहु और उसके सैनिकों का राजसी स्वागत किया। कामधेनु का चमत्कार देखकर सहस्त्रबाहु बलपूर्वक उसे अपने साथ ले गए। उस समय आश्रम में ऋषि जमदग्नि के पुत्र परशुराम नहीं थे। परशुराम जब आश्रम में आए, तो उन्हें सहस्त्रबाहु अर्जुन के अत्याचार के बारे में पता चला। यह सुनकर परशुराम क्रोधित हो उठे। वे कंधे पर अपना परशु रखकर माहिष्मती की ओर चल पड़े।
सहस्त्रबाहु अभी माहिष्मती के मार्ग में ही था, कि परशुराम उसके पास जा पहुंचे। सहस्त्रबाहु महाराज ने जब यह देखा के परशुराम महाराज उनसे युद्ध करने आ रहे हैं तो उसने उनका सामना करने के लिए अपनी सेनाएं खड़ी कर दीं।
परशुराम महाराज ने अकेले ही सहस्त्रबाहु महाराज की पूरी सेना का सफाया कर दिया। अंत में स्वयं सहस्त्रबाहु परशुराम से युद्ध करने के लिए आए। परशुराम ने उसके हजार भुजाओं को अपने फरसे से काट डाला और सहस्त्रबाहु अर्जुन का वध कर दिया। इस घटना का प्रतिशोध लेने के लिए सहस्त्रबाहु अर्जुन के पुत्रों ने बाद में ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया। अपने निर्दाेष पिता की हत्या से क्रोधित होकर परशुराम महाराज ने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहिन कर दिया था।
कलवार (अथवा शौण्डिक, कलाल, कलार) एक भारतीय जाति है जिसके लोग ऐतिहासिक रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और उत्तर एवं मध्य भारत के अन्य भागों में पाये जाते हैं। पारम्परिक रूप से शराब बनाने के व्यवसाय से जुड़े हैं लेकिन 20वीं सदी के आरम्भ में कलवार लोगों ने इस व्यवसाय को छोड़कर अपने समुदाय के संस्कृतीकरण करने का संकल्प लिया। भारत और नेपाल में निवास करने वाली एक समुदाय (जाति) है जो पारम्परिक रूप से कलाल (शराब/ मद्य) के निर्माण और विक्रय में संलग्न रही है। भारत में ये लोग मुख्यतः उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा तथा मध्य भारत के कुछ भागों के निवासी हैं। 20वीं शताब्दी में इनके कुछ संगठनों ने अपने परम्परागत व्यवसाय को त्यागकर नये कार्य करने का निर्णय लिया।
जानिए इनका इतिहास,
चूँकि उनके शराब बनाने और विक्रय करने का वंशानुगत व्यवसाय तुच्छ माना जाता है, इसके अतिरिक्त प्राचीन काल में दक्षिण एशिया की जाति व्यवस्था में कलाल को निम्न वर्ग में माना जाता था, यह स्थिति तब बदल गयी जब कलाल प्रमुख जस्सा सिंह की 18वीं सदी में राजनीतिक शक्ति बढ़ी। जस्सा सिंह ने अपनी पहचान को अहलुवालिया के रूप में ही रखा जो उनके पैदाइशी गाँव का नाम है। इसी नाम से उन्होंने कपूरथला राज्य की स्थापना की।
जस्सा सिंह से प्रेरित होकर अन्य सिख कलालों ने अहलुवालिया उपनाम को स्वीकार कर लिया और अपने पारम्परिक व्यवसाय को छोड़ दिया। शराब के निर्माण और विक्रय पर ब्रितानी प्रशासनिक उपनिवेश द्वारा लगाये गये नियमों ने इस प्रक्रिया को और तेजी से कम कर दिया और 20वीं सदी की शुरुआत में अधिकतर कलालों ने पुस्तैनी व्यवसाय को छोड़ दिया। इसी समय से अहलुवालिया लोगों ने अपनी स्थिति को खत्री अथवा राजपूत मूल के रूप में प्रस्तुत करना आरम्भ कर दिया।
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(साई फीचर्स)