दिल्ली हाट रंगों के जीवंत प्रदर्शन, जटिल हस्तशिल्प और लोक संगीत की उत्साही ध्वनियों के साथ जीवंत है क्योंकि जनता के लिए शिल्प समागम मेला 2024 आरंभ हो गया है। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा 5 से 15 नवंबर तक आयोजित यह अनोखा मेला भारत की पारंपरिक शिल्प की असाधारण टेपेस्ट्री (चित्कारी किया हुआ कपड़ा) का जश्न मनाता है। यह उन कारीगरों का सम्मान करता है जिनके कुशल हाथ भारतीय विरासत की आत्मा को जीवंत करते हैं।
दिल्ली हाट में शिल्प समागम मेला 2024 भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता का उदाहरण प्रस्तुत करता है, जिसमें 16 राज्यों के कारीगरों को 105 स्टालों पर एक साथ लाया जाता है। इनमें से प्रत्येक अद्वितीय और पारंपरिक हस्तशिल्प का प्रदर्शन करता है जो उनकी क्षेत्रीय विरासत का प्रतिनिधित्व करता है। इस वर्ष का मेला भारत की कलात्मक विरासत का ज्वलंत चित्रण है, जिसमें उत्तर, दक्षिण, उत्तर-पूर्व और पश्चिमी क्षेत्रों के उत्पादों के स्टाल लगाए गए हैं, जो सामूहिक रूप से प्रत्येक क्षेत्र के विशिष्ट सौंदर्य, शिल्प कौशल और सांस्कृतिक बारीकियों को दर्शाते हैं।
धातु शिल्प, लकड़ी की कलाकृतियाँ, बेंत और बांस के उत्पाद, मिट्टी के बर्तन, वस्त्र इत्यादि के प्रदर्शन के माध्यम से, मेला न केवल भारत की विविध कलात्मक परंपराओं को उजागर करता है, बल्कि साझा मंच प्रदान करके एकता की भावना को भी बढ़ावा देता है, जहाँ सभी पृष्ठभूमि और क्षेत्रों के कारीगर एक साथ आते हैं। अनुसूचित जाति (एससी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), स्वच्छता कार्यकर्ता और दिव्यांग व्यक्तियों जैसे हाशिए वाले समूहों के प्रतिनिधित्व सहित विभिन्न समुदायों की यह सामंजस्यपूर्ण सभा, समावेशिता और सांस्कृतिक गौरव के प्रति मेले की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है। इससे प्रत्येक कारीगर को अपने काम को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों दर्शकों के सामने प्रस्तुत करने के लिए सम्मानजनक स्थान मिलता है।
रणनीतिक समर्थन के माध्यम से कारीगरों को सशक्त बनाना
भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने कारीगरों को अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने और बेचने के लिए महत्वपूर्ण मंच प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मंत्रालय ने 2001 से, विशेष रूप से अनुसूचित जाति, पिछड़े वर्ग और सफाई कर्मचारियों के कारीगरों और शिल्पकारों के लिए दिल्ली हाट, भारत अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला (आईआईटीएफ), और सूरजकुंड शिल्प मेला में प्रदर्शनियों का आयोजन किया है। मंत्रालय के शीर्ष निगमों द्वारा प्रबंधित विभिन्न योजनाओं के तहत, लाभार्थियों को इन प्रदर्शनियों में मुफ्त स्टॉल प्रदान किए जाते हैं। यह पहल न केवल हाशिए पर रहने वाले समूहों का समर्थन और सशक्तिकरण करती है, बल्कि कारीगरों को शहरी और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में मूल्यवान अनुभव भी प्रदान करती है। इससे उन्हें मेट्रो क्षेत्रों और बड़े शहरों में ग्राहकों के व्यवहार को समझने में मदद मिलती है।
इस पहल का प्रभाव व्यापक और परिवर्तनकारी रहा है। इन प्रदर्शनियों के माध्यम से, कई लाभार्थियों को महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त हुआ है, विशेष रूप से दिल्ली हाट में, जहां प्रतिभागियों ने उल्लेखनीय बिक्री की है। इससे वे विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से प्राप्त ऋण चुकाने में सक्षम हुए हैं।
संगीत, नृत्य और कहानी कहने का मिश्रण
शाम के समय, मेला भारत की प्रदर्शन कलाओं के लिए जीवंत मंच बन जाता है। प्रत्येक शाम, आगंतुकों को पारंपरिक नृत्य प्रदर्शन, लोक संगीत और कहानी सुनने का मौका मिलता है जो भारत की अमूर्त विरासत की समृद्धि को प्रतिबिंबित करता है। ये प्रदर्शन प्रदर्शित शिल्पों में जान फूंक देते हैं, जिससे आगंतुकों को न केवल कलात्मकता बल्कि प्रत्येक टुकड़े के पीछे की सांस्कृतिक विरासत का अनुभव होता है। शाम के कार्यक्रम इस बात की याद दिलाते हैं कि शिल्प समागम सिर्फ एक मेले से कहीं अधिक है; यह भारत की जीवित सांस्कृतिक विरासत के माध्यम से एक यात्रा है।
मूल में समावेशिता: भारत के सभी समुदायों का प्रतिनिधित्व
समावेशिता शिल्प समागम 2024 के केंद्र में है। कुशल कारीगरों के साथ-साथ, मेले में हाशिए पर रहने वाले समुदायों के शिल्पकार भी शामिल हैं। इनमें सफाई कर्मचारी और अनुसूचित जाति के सदस्य शामिल हैं, जो समाज के हर वर्ग को आवाज देते हैं। समावेशिता को बढ़ावा देकर, मेला इन कारीगरों को अपने काम पर गर्व करने का अधिकार देता है। ऐसी मान्यता और वित्तीय सहायता को बढ़ावा देता है जो अकसर उन्हें नहीं मिलती। ऐसे प्लेटफार्मों के माध्यम से, शिल्प समागम सशक्तिकरण का प्रतीक बन जाता है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक कारीगर की कला को महत्व दिया जाए और हर कहानी को सुना जाए।
कारीगर: भारतीय विरासत की आत्मा
औद्योगीकरण से प्रेरित दुनिया में, शिल्प समागम के कारीगर हस्तनिर्मित परंपराओं की सुंदरता और पीढ़ियों से चले आ रहे ज्ञान के प्रमाण के रूप में काम करते हैं। ये कारीगर भारत की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षक हैं, जो अपने समुदायों के लिए अद्वितीय तकनीकों और शैलियों को संरक्षित करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि भारत की परंपराएँ कायम रहें। शिल्प समागम इन अमूल्य परंपराओं को बनाए रखने और उन्हें जीवन में लाने वाले कारीगरों का सम्मान करने का आंदोलन है।
एक स्थायी प्रभाव: जहां कला दिल से मिलती है
जैसे ही आगंतुक स्टालों पर टहलते हैं, तैयार की गई प्रत्येक वस्तु सिर्फ एक उत्पाद से कहीं अधिक होती है; यह इतिहास का एक टुकड़ा है, एक समुदाय के जीवन का प्रतिबिंब है, और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है। दिल्ली हाट में शिल्प समागम 2024 लोगों को भारत के कारीगरों की कहानियों, कौशल और परंपराओं में डूबने की अनुमति देता है, जिससे भारतीय कला और संस्कृति को परिभाषित करने वाली समृद्ध विविधता के लिए गहरी सराहना को बढ़ावा मिलता है।
यह मेला उत्सव, आदान-प्रदान और इस बात का वादा है कि ये जीवंत शिल्प फलते-फूलते रहेंगे। इस मेले के माध्यम से, भारत अपने कारीगरों, समग्रता के चैंपियनों का सम्मान करता है, और हमें याद दिलाता है कि विविधता में एकता की भावना है – ऐसी भावना जो भारत की विरासत को जीवित और हमेशा विकसित रखती है।
(साई फीचर्स)
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