कौन सा कुंभ कितने अंतराल के बाद होता है, किस किस जगह के कुंभ को क्या नाम से जाना जाता है जानिए . . .

पूर्ण कुंभ, महाकुंभ, अर्ध कुंभ एवं सिंहस्थ के बारे में जानिए विस्तार से . . .
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जिस तरह के प्रमाण मिलते हैं उनके अनुसार कुंभ मेले का आयोजन प्राचीन काल से हो रहा है, लेकिन मेले का प्रथम लिखित प्रमाण महान बौद्ध तीर्थयात्री व्हेनसांग के लेख से मिलता है जिसमें छठवीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के शासन में होने वाले कुंभ का प्रसंगवश वर्णन किया गया है। कुंभ मेला सनातन धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, कुंभ मेले का आयोजन चार जगहों पर होता है जो हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक जैसे पवित्र स्थलों पर आयोजित होता है। इसे लेकर आमतौर पर मन में कई तरह के सवाल भी उठते हैं। जैसेः कुंभ की शुरुआत कब हुई, इसके प्रकार क्या हैं और इसका धार्मिक महत्व क्या है।
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जानिए प्रत्येक तीन वर्ष में आता है कुंभ,
जानकार विद्वानों के अनुसार उक्त चार स्थानों पर प्रत्येक तीन वर्ष के अंतराम में कुंभ का आयोजन होता है, इसीलिए किसी एक स्थान पर प्रत्येक 12 वर्ष बाद ही कुंभ का आयोजन होता है।
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जैसे उज्जैन में कुंभ का अयोजन हो रहा है, तो उसके बाद अब तीन वर्ष बाद हरिद्वार, फिर अगले तीन वर्ष बाद प्रयाग और फिर अगले तीन वर्ष बाद नासिक में कुंभ का आयोजन होगा। उसके तीन वर्ष बाद फिर से उज्जैन में कुंभ का आयोजन होगा। उज्जैन के कुंभ को सिंहस्थ कहा जाता है।
जानिए पूर्णकुंभ क्या है?
पूर्णकुंभ प्रत्येक 12 वर्षों में आयोजित होता है। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्षों के बराबर होते हैं। इसी कारण हर 12 वर्ष में किसी एक स्थल पर पूर्ण कुंभ का आयोजन होता है। उदाहरण के तौर पर यदि 12 वर्षों में हरिद्वार में पूर्णकुंभ हुआ, तो अगले 12 वर्षों बाद प्रयागराज में और इसी क्रम में अन्य स्थलों पर पूर्णकुंभ आयोजित होता है।
अब जानिए क्या है महाकुंभ,
महाकुंभ केवल प्रयागराज में प्रत्येक 144 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होता है। यह बारह गुणा बारह वर्ष की गणना के आधार पर होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, 12 कुंभों में से चार का आयोजन धरती पर और शेष आठ का आयोजन देवलोक में होता है। महाकुंभ का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अन्य सभी कुंभ से अधिक माना जाता है। इसके पूर्व वर्ष 2013 में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हुआ था। अगला महाकुंभ 138 वर्षों बाद आयोजित होगा। दरअसल, जब सूर्य, चंद्रमा, और बृहस्पति एक विशेष ज्योतिषीय स्थिति में होते हैं तब इन स्थानों पर मेले का आयोजन होता है। सामान्य कुंभ मेला हर तीन साल में होता है, अर्धकुंभ छह साल में और पूर्ण कुंभ बारह साल में आयोजित किया जाता है। जबकि, विशिष्ट महाकुंभ मेला 144 वर्षों में एक बार प्रयागराज में आयोजित होता है।
अब आपको बताते हैं कि कुंभ क्या है,
कलश को कुंभ कहा जाता है। कुंभ का अर्थ होता है घड़ा। इस पर्व का संबंध समुद्र मंथन के दौरान अंत में निकले अमृत कलश से जुड़ा है। देवता असुर जब अमृत कलश को एक दूसरे से छीन रह थे तब उसकी कुछ बूंदें धरती की तीन नदियों में गिरी थीं। जहां जब ये बूंदें गिरी थी उस स्थान पर तब कुंभ का आयोजन होता है। उन तीन नदियों में गंगा, गोदावरी और क्षिप्रा का समावेश है। प्रत्येक तीन वर्षों में इन चार स्थलों जिसमें हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन शामिल हैं यहां पर बारी बारी से कुंभ मेले का आयोजन होता है।
अब जानिए आखिर अर्धकुंभ क्या है?
अर्ध का अर्थ है आधा। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का आयोजन होता है। पौराणिक ग्रंथों में भी कुंभ एवं अर्ध कुंभ के आयोजन को लेकर ज्योतिषीय विश्लेषण उपलब्ध है। कुंभ पर्व हर 3 साल के अंतराल पर हरिद्वार से शुरू होता है। हरिद्वार के बाद कुंभ पर्व प्रयाग, नासिक और उज्जैन में मनाया जाता है। इसे छोटे स्तर का कुंभ माना जाता है। हालांकि, इसका महत्व भी कुंभ जितना ही होता है। अर्धकुंभ को लेकर भी भक्तों की श्रद्धा में कोई कमी नहीं होती। प्रयाग और हरिद्वार में मनाए जानें वाले कुंभ पर्व में एवं प्रयाग और नासिक में मनाए जाने वाले कुंभ पर्व के बीच में 3 सालों का अंतर होता है। यहां माघ मेला संगम पर आयोजित एक वार्षिक समारोह है।
अब आपको बताते हैं कि क्या होता है सिंहस्थ का मतलब?
जानकार विद्वानों के अनुसार सिंहस्थ का संबंध सिंह राशि से है। सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है। इसके अलावा सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुंभ पर्व का आयोजन गोदावरी के तट पर नासिक में होता है। इसे महाकुंभ भी कहते हैं, क्योंकि यह योग 12 वर्ष बाद ही आता है। इस कुंभ के कारण ही यह धारणा प्रचलित हो गई की कुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक 12 वर्ष में होता है, जबकि यह सही नहीं है।
कुंभ का पर्व किन चार जगहों पर संपन्न होता है जानिए,
सबसे पहले जानिए हरिद्वार में कुंभ के संबंध में,
पहले उत्तर प्रदेश का अंग रहे और अब उत्तराखण्ड की धर्मनगरी हरिद्वार का सम्बन्ध मेष राशि से है। कुंभ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुंभ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का भी आयोजन होता है।
अब जानिए प्रयाग में कुंभ के बारे में,
जानकार विद्वान बताते हैं कि उत्तर प्रदेश के इलहाबाद शहर जो अब प्रयागराज के नाम से जाना जाता है में आयोजित होने वाले प्रयाग कुंभ का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह 12 वर्षाे के बाद गंगा, यमुना एवं सरस्वती के संगम पर आयोजित किया जाता है। ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तब कुंभ मेले का आयोजन प्रयाग में किया जाता है। वहीं, अन्य मान्यता अनुसार मेष राशि के चक्र में बृहस्पति एवं सूर्य और चन्द्र के मकर राशि में प्रवेश करने पर अमावस्या के दिन कुंभ का पर्व प्रयाग में आयोजित किया जाता है। एक अन्य गणना के अनुसार मकर राशि में सूर्य का एवं वृष राशि में बृहस्पति का प्रवेश होनें पर कुंभ पर्व प्रयाग में आयोजित होता है।
अब आपको बताते हैं महाराष्ट्र प्रदेश के नासिक में होने वाले कुम्भ के संबंध में,
12 वर्षों में एक बार सिंहस्थ कुंभ मेला नासिक एवं त्रयम्बकेश्वर में आयोजित होता है। सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुंभ पर्व गोदावरी के तट पर नासिक में होता है। अमावस्या के दिन बृहस्पति, सूर्य एवं चन्द्र के कर्क राशि में प्रवेश होने पर भी कुंभ पर्व गोदावरी तट पर आयोजित होता है।
अब जानिए देश के हृदय प्रदेश मध्य प्रदेश की उज्जयनी अर्थात उज्जैन में संपन्न होने वाले कुंभ के संबंध में,
सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर यह पर्व उज्जैन में होता है। इसके अलावा कार्तिक अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र के साथ होने पर एवं बृहस्पति के तुला राशि में प्रवेश होने पर मोक्षदायक कुंभ उज्जैन में आयोजित होता है।
कुंभ की कथा जानिए,
दरअसल, अमृत पर अधिकार को लेकर देवता और दानवों के बीच लगातार बारह दिन तक युद्ध हुआ था। जो मनुष्यों के बारह वर्ष के समान हैं। अतएव कुंभ भी बारह होते हैं। उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और आठ कुंभ देवलोक में होते हैं।
समुद्र मंथन की कथा में कहा गया है कि कुंभ पर्व का सीधा सम्बन्ध तारों से है। अमृत कलश को स्वर्गलोक तक ले जाने में जयंत को 12 दिन लगे। देवों का एक दिन मनुष्यों के 1 वर्ष के बराबर है। इसीलिए तारों के क्रम के अनुसार हर 12वें वर्ष कुंभ पर्व विभिन्न तीर्थ स्थानों पर आयोजित किया जाता है।
युद्ध के दौरान सूर्य, चंद्र और शनि आदि देवताओं ने कलश की रक्षा की थी, अतः उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, तब कुंभ का योग होता है और चारों पवित्र स्थलों पर प्रत्येक तीन वर्ष के अंतराल पर क्रमानुसार कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
अर्थात अमृत की बूंदे छलकने के समय जिन राशियों में सूर्य, चंद्रमा, बृहस्पति की स्थिति के विशिष्ट योग के अवसर रहते हैं, वहां कुंभ पर्व का इन राशियों में गृहों के संयोग पर आयोजन होता है। इस अमृत कलश की रक्षा में सूर्य, गुरु और चन्द्रमा के विशेष प्रयत्न रहे थे। इसी कारण इन्हीं गृहों की उन विशिष्ट स्थितियों में कुंभ पर्व मनाने की परम्परा है।
अमृत की ये बूंदें चार जगह गिरी थी, जिसमें प्रयाग एवं हरिद्वार में पुण्य सलिला माता गंगा नदी में, नासिक की गोदावरी नदी, मध्य प्रदेश के उज्जैन की क्षिप्रा नदी इसमें शामिल है। सभी नदियों का संबंध माता गंगा से है। गोदावरी को गोमती गंगा के नाम से पुकारा जाता है। क्षिप्रा नदी को भी उत्तरी गंगा के नाम से जानते हैं, यहां पर गंगा गंगेश्वर की आराधना की जाती है।
जानिए कब कौन सा कुंभ होता है?
कुंभ का आयोजन प्रत्येक तीन वर्षों में चारों स्थलों में बारी बारी से होता है। अर्धकुंभ का आयोजन छह वर्षों में हरिद्वार और प्रयागराज में होता है। पूर्णकुंभ का आयोजन 12 वर्षों में हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक, उज्जैन में होता है। महाकुंभ का आयोजन 144 वर्षों में केवल प्रयागराज में एवं सिंहस्थ का आयोजन उज्जैन और नासिक में सिंह राशि के योग पर होता है। हरि ओम,
अगर आप भगवान शिव जी, भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में ओम नमः शिवाय, जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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