खानपान से बचें रोगों से

वर्षा ऋतु के तुरंत बाद ही शरद ऋतु शुरू हो जाती है. आश्विन और कार्तिक मास में शरद ऋतु का आगमन होता है. वर्षा ऋतु में प्राकृतिक रूप से पित्त दोष का संचय होता है.

शरद ऋतु दस्तक दे चुकी है. तो ऋतु बदलने के साथ साथ हमारा खान पान भी इसके अनुसार ही होना चाहिए. आज का हमारा लेख इसी पर आधारित है. इसमें हम बता रहे है कि शरद ऋतु में हमारा भोजन कैसा होना चाहिए. जिससे हम स्वस्थ के साथ इस ऋतु का भरपूर मजा ले सकते है.

खीर का सेवन: शरद ऋतु में सूर्य का ताप बहुत अधिक होता है. ताप के कारण पित्त दोष पैदा होता है. ऐसे में पित्त से पैदा होने वाले रोग पैदा होते है. पित्त की विकृति में चावल तथा दूध से बनी खीर का सेवन किया जाता है. शरद पूर्णिमा पर इसलिए खीर का विशेष सेवन किया जाता है.

पित्त को शांत करने वाले खाद्य पदार्थाे का सेवन: शरद ऋतु में पित्त शांत करने वाले पदार्थाे का सेवन अति आवश्यक होता है. शरद ऋतु में लाल चावलनये चावल तथा गेहूं का सेवन करना चाहिए. कडवे द्रव्यों से सिद्ध किये गये घी के सेवन से लाभ मिलता है. प्रसिद्ध महर्षि चरक और महर्षि सुश्रुत ने कहा है की शरद ऋतु में मधुरकडवे तथा कैसले पदार्थाे का सेवन करना चिहिए. दूधगन्ने के रस से बने खाद्यशहदचावल तथा मुंग आदि का सेवन लाभदायक होता है. कुछ विशेष जंगली जानवरों का मास भी गुणकारी होता है.

नम्बू तथा शहद के जल का सेवन: शरद ऋतु में चंद्रमा की किरणों में रखे गये भोजन को उत्तम माना गया है. सुबह के समय हल्के गर्म पानी में एक निम्बू का रस तथा शहद मिलाकर पीने से पित्त दोष का नाश होता है. शरद ऋतु में भोजन के बाद 1-2 केले खा सकते है. केला शरीर को पोषक तत्व तो देता ही है. साथ में पित्त दोष का दमन भी करता है. केला खाकर जल नहीं पीना चाहिए.

खुली छत पर ना सोयें: शरद ऋतु में दिन में तो गर्मी रहती है पर रात को ठण्ड होती है. ऐसे में रात को खुली छत पर नहीं सोना चाहिए. ओस पड़ने से सर्दीजुकाम तथा खांसी हो सकती है.

हेमंत ऋतु में कैसा हो खान पान

हेमंत ऋतु अथवा शीत ऋतु आगमन शरद ऋतु के समापन के साथ ही होने लगता है. शीतल हवा का प्रकोप बढ़ने लगता है. शीतल वायु के प्रकोप से शरीर की रुक्षता बढ़ने लगती है. शरीर में जठराग्नि बढ़ने से मेटाबोलिज्म प्रबल होने से भूख अधिक लगने लगती है. इससे सभी तरह के खाद्य पदार्थ आसानी से पाच जाते है.

शक्ति संचय की ऋतुदृ पाचन क्रिया तेज होने के कारण हेमंत ऋतु को शक्ति संचय की ऋतु भी कहा जाता है. इस ऋतु में खानपान पर नियन्त्रण रख कर शारीरिक व रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाया जा सकता है. भोजन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हेमंत ऋतु में अस्थमा या दमाखांसीसंधिशुलवातरक्तआमवातसर्दी जुकाम तथा गले के रोग तीव्र गति से पैदा होते है.

मधुर तथा लवण युक्त खाद्य पदार्थाे का सेवन: हेमंत ऋतु में सर्दी के प्रकोप से बचना चाहिए. मीठे तथा लवण रस वाले पदार्थाे का सेवन करना चाहिए. जठराग्नि प्रबल होने से नया अनाज भी आसानी से पच जाता है. अधिक प्रोटिन वाले पदार्थ सेवन कर सकते है. उडदराजमामुंगमोठ सब कुछ आसानी से पच जाता है.

मेवों का सेवन: हेमंत ऋतु में सूखे मेवों का सेवन शरीर को शक्ति देता है. काजूबादामकिशमिशअखरोटपिस्तेचिरोंजी आदि सेवन करने से शरीर को शक्ति मिलती है. गाय का घीतिल का तेल से बने व्यंजन खा सकते है. दाल व सब्जी में शुद्ध घी का प्रयोग कर सकते है.

अम्लीय व तीक्ष्ण पदार्थ ना खाएं: हेमंत ऋतु में हरी सब्जिय बहुत अधिक होती है. गाजरमूलीचुकंदरप्याजटमाटरलौकीशलजमपालकमेथीबथुआ आदि इस्तेमाल कर सकते है. सब्जियों का सलाद व सूप बहुत लाभदायक होता है. इन सबके साथ अदरकनिम्बूतुलसीकाली मिर्चलौंग का इस्तेमाल करके लाभ उठा सकते है. गुड की गज्जकतिल की रेवड़ियों का आनंद ले सकते है. कटुअम्लीय तथा तीक्ष्ण पदार्थाे के सेवन से बचना चाहिए. शीतल जल व आइसक्रीम का सेवन हानिकारक हो सकता है. दूषित व बासी खाने से बचना चाहिए. हेमंत ऋतु में मीठेउष्ण व स्निग्ध (वसा युक्त) खाद्य पदार्थाे का खूब सेवन कर सकते है. सौंठमेथी दानागोंद व तिल के लड्डू शरीर को गर्मी देने के साथ संधिसुलआमवात व वात रक्त की समस्या से बचाते है.

सूर्याेदय से पहले जागना चाहिए: सूर्याेदय के साथ बिस्तर से उठकर उनी कपड़े पहनकर घुमने के लिए जाना चाहिए. अगर व्यायाम नहीं कर सकते तो तेज कदमों से जरुर चले.

शिशिर ऋतु में कैसा हो खान पान

जैसे ही हेमंत ऋतु समाप्त होती है. शिशिर ऋतु का आगमन हो जाता है. शिशिर ऋतु में सर्दी का प्रकोप अपने उफान पर होता है. शिशिर ऋतु के बाद गर्मी का आगमन होता है. इसलिए शिशिर ऋतु को संधिकाल की ऋतु कहा गया है. ऐसे मौसम में आहार विहार में जरा सी भी लापरवाही बहुत से रोगों को जन्म दे सकती है.

मीठेचिकने तथा नर्म पदार्थ खाएं: शिशिर ऋतु में कोष्ठ की अग्नि प्रबल होकर कोष्ठों व आँतों के रस का शोषण करती है. इस ऋतु में मीठेवसा युक्त तथा उष्ण पदार्थाे का सेवन करना चाहिए. घी तथा दूध के सेवन से शरीर में वसा की पूर्ति होती है. शिशिर ऋतु की जलवायु त्वचा को शुष्क कर देती है. इसलिए शरीर की तेल मालिश करके हल्के गर्म पानी से स्नान करने से शरीर में वसा बनी रहती है.

बादी तथा ठन्डे आहार नहीं लेने चाहिए: वातावरण में शीतलता बने रहने के कारण पाचन क्रिया प्रबल बनी रहती है और गरिश्ठ पदार्थ भी आसानी से पच जाते है. शीतल वातावरण होने के कारण संधिसूल आमवात की विकृति के चलते रोगी को बहुत दर्द होता है. ऐसे में शीतल वातकारक पदार्थ सेवन नही करने चाहिए. शीतल वायु के सम्पर्क तथा शीतल पदार्थाे के सेवन से संधिशूल तीव्र होता है. संधिशूल जोड़ो का दर्द होता है.

नये अनाज व सब्जियों का सेवन: शिशिर ऋतु में नये चावलगेहूंचनाराजमाछोलेमुंग आदि का सेवन कर सकते है. मौसमी फल सेब,संतराअनानासखजूर और पालकटमाटरगाजरपत्तागोभीशलजममूलीप्याजलौकी आदि सब्जियों का सेवन करना चाहिए. तिलगुडसौंठ तथा मेथी के लड्डू शीतल वायु से रक्षा करते है. शरीर में गर्मी आती है. उडद की दाल में मेथी दाना तथा लहसुन जरुर इस्तेमाल करें. मेथी व लहसुन वात विकृति से रक्षा करता है. शिशिर ऋतु में सूखे मेवेकाजूपिस्ताबादामअखरोटमूंगफली आदि शरीर में शक्ति तथा गर्मी लाते है.

(साई फीचर्स)