शीत ऋतु में बीमारियों से करें बचाव

सर्दी में ठंडी चीजें जैसे आइस क्रीमठन्डे पेय एवं बासी भोजन का सेवन ना करेंज्यादा ठण्ड होने पर अच्छी तरह गरम कपड़े पहन ओढ़ कर ही बाहर निकलेंविशेष रूप से बच्चेबूढ़े लोग एवं औरतें खास ध्यान रखेंतापमान के घटने से इस समय रक्त गाढ़ा हो जाता हैइसलिए डायबिटीज,उच्च रक्त चाप एवं हृदय रोगियों को अतिरिक्त सावधानी रखनी चाहिए।

सर्दीजुकामखांसी होने पर निम्न घरेलु उपाय कर सकते हैं: 

एक गिलास गरम दूध में आधी चम्मच सोंठ पाउडर एवं चौथाई चम्मच हल्दी पाउडर डाल कर पीने से गले के दर्दखांसीजुकाम सर्दी में तुरंत आराम आ जाता है। सर्दीजुकाम एवं नाक बंद होने पर नमक के पानी से गरारे करना तथा गरम पानी में विक्स जैसी दवा या कर्पूर धारा डाल कर भाप लेना बहुत फायदेमंद है।

बार बार जुकाम होनाछींकें आनानाक बंद होना यदि लगातार होता रहे तो साइनोसाइटिस,दमा,टॉन्सी लायटिस की सम्भावना बढ़ जाती है एवं इन्फेक्शन कान के परदे तक पहुँच जाता हैजिससे जब तक अंग्रेजी दवाइयाँ खाते हैं आराम रहता हैदवाइयाँ बंद करते ही प्रॉब्लम दुबारा शुरू हो जाती है या डॉक्टर आॅपरेशन के लिए बोल देते हैं,कई बार आॅपरेशन के बाद भी प्रॉब्लम दुबारा शुरू हो जाती हैऐसी अवस्था में आयुर्वेद की दवायें लक्ष्मी विलास रसबसंत मालती रससितोपलादि चूर्णकंटकारी अवलेहगोजिव्ह्यादिगोदन्तीषड्बिन्दु आदि दवायें बहुत फायदेमंद होती हैंइनका सेवन आयुर्वेद डॉक्टर की सलाह से ही करें।

संतग्रीष्म और वर्षा देवी ऋतु हैं तो शरदहेमंत और शिशिर पितरों की ऋतु है। शिशिर में कड़ाके की ठंड पड़ती है।यह ऋतु स्वास्थ्य साधना की ऋतु हैं। इस ऋतु में पौष मास आता हैजो पुष्टि का मास है। इस मास की पूर्णिमा पुष्य नक्षत्र में आती हैइस लिए इसे पौष की संज्ञा दी गई है।

इस ऋतु को स्वास्थ्य बनाने का मौसम समझें और स्वास्थ्य बना ने का कोई भी उपाय तथा अवसर हाथ से न जाने देंउस व्यापारी की तरह जो अनुकूल समय में कमाई करने का कोई मौका नहीं छोड़ता।

इस ऋतु में दिन छोटे और रातें बड़ी होती हैंइसलिए शरीर को अधिक समय तक नींद और विश्राम मिलने के अलावा आहार को पचाने का समय भी ज्यादा मिलता है। जिससे पाचन शक्ति और भूख बढ़ जाती हैभोजन अत्यन्त सुस्वादु लगने लगता है और रसना उसका रस लेते हुए अघाती तक नहीं है। इसलिए शिशिर ऋतु में भूख सहना और रूखा-सूखा आहार लेना हानिकारक होता है। शिशिर ऋतु की अपनी अलग ही प्राकृतिक विलक्षणता है जिसका वर्णन एक कवि सेनापति अलौकिक रूप से इस प्रकार करते हैं:

सिसिर में ससि को सरूप वाले सविताऊ!

घाम हू में चाँदनी की दुति दमकति है!!

सेनापति होत सीतलता है सहज गुनी!

रजनी की झाँईं वासर में झलकति है!!

चाहत चकोर सूर ओर दृग छोर करि!

चकवा की छाती तजि धीर धसकति है!!

चंद के भरम होत मोद है कुमुदिनी को!

ससि संक पंकजनी फूलि न सकति है!!

शिशिर ऋतु में सूर्य भी चन्द्रमा के स्वरूप वाला हो जाता है और धूप में चाँदनी का भास होने लगता है। इस ऋतु में शीतलता सौ गुनी बढ़ जाती है जिसके कारण दिन में भी रात्रि का आभास सा होने लगता है। सूर्य को चन्द्रमा समझकर चकवा पक्षी उसी की ओर देखने में मग्न हो जाता है और चकवी की छाती धड़कने लगती है। कुमुदनी भी सूर्य को चन्द्र समझकर मुदित हो खिल उठती है और कमल सूर्य के चन्द्र होने की शंका के कारण खिल नहीं पाता।

मकर संक्रांति पर शीतकाल अपने यौवन पर रहता है। शीत के प्रतिकार हेतु तिलतेल आदि बताए गए हैं। शिशिर में ठंड बढ?े के कारण अनेक प्रकार के स्वास्थ्यवर्धक पाकमेवेदूधगुड़-मूंगफली आदि शरीर को पुष्ट करते हैं। नई फसल आने पर परमात्मा को पहले अर्पित करते हैंफिर उनका सेवन करना चाहिये। इस समय व्रत-त्योहारों में तिल का प्रयोग महत्वपूर्ण बताया गया है।

(साई फीचर्स)

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