वैक्सीन से बनी एंटिबॉडीज घटा रहा है कोरोना का डेल्टा वेरियेंट!

(विनीता विश्वकर्मा)
पुणे (साई)। कोरोना वायरस का डेल्टा वेरियेंट वैक्सीन से बनी एंटिबॉडीज पर हावी हो जा रहा है। भारतीय आर्युविज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने पता लगाया है कि कोविशील्ड वैक्सीन लेने वाले डेल्टा वेरियेंट से संक्रमित हो रहे हैं तो उनमें से कुछ लोगों की एंटिबॉडीज कमजोर पड़ जा रही है। ऐसे में एक्सपर्ट वैक्सीन की तीसरी डोज दिए जाने का भी सुझाव दे रहे हैं।

पुराने कोरोना से 4.5 गुना तक खतरनाक है डेल्टा वेरियेंट?
आईसीएमआर ने पाया कि D614G म्यूटेशन वाले पुराने सार्स-कोव-2 वर्जन के मुकाबले डेल्टा वर्जन कोविशील्ड की पहली डोज से बनी एंटिबॉडीज को 4.5 गुना जबकि दूसरी डोज के बाद बनी एंटिबॉडीज को 3.2 गुना कम कर देता है। देश में पिछले साल कोविड-19 महामारी के शुरुआती दौर में D614G म्यूटेशन पाया गया था। आईसीएमआर में महामारी और संक्रामक बीमारी विभाग के प्रमुख डॉ. समीरन पांडा ने कहा, ‘इस तरह की जानकारी से टीकाकरण अभियान की रणनीति तय करने में मदद मिलेगी। कोविड-19 के खिलाफ संभवतः तीसरी डोज लगाने की जरूरत भी सामने आ सकती है।’

क्या कहता है ICMR का रिसर्च
आईसीएमआर ने डेल्टा वेरियेंट के असर का पता लगाने के लिए कोविशील्ड की एक या दोनों डोज ले चुके स्वस्थ लोगों का सीरम सैंपल जमा किया। जिन्होंने कोरोना से संक्रमित होकर ठीक होने के बाद कोविशील्ड की एक या दोनों डोज ले चुके थे, उनका भी सीरम सैंपल लिया गया। फिर टीका लेने के बाद संक्रमित हुए लोगों का सीरम सैंपल जुटाया गया। रिसर्च टीम में शामिल नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरॉलजी की डॉक्टर प्रज्ञा यादव ने कहा कि संक्रमण से ठीक होकर टीका लेने वालों और टीका लेने के बाद संक्रमित होने वालों में, कभी संक्रमित नहीं हुए लेकिन कोविशील्ड की एक या दो डोज ले चुके लोगों के मुकाबले ज्यादा एंटिबॉडीज पाई गई।

किन्हें दी जाए वैक्सीन की तीसरी डोज
डॉ. पांडा ने कहा, ‘इससे संकेत मिलता है कि जिन्हें कोविड हुआ, उनमें कोरोना वायरस ने वैक्सीन की पहली डोज की तरह काम किया। इस तरह महामारी से उबरने के बाद दोनों डोज लेने के बाद उनमें तीन बार एंटिबॉडीज बनी। उसी तरह, जो लोग संक्रमित नहीं थे, लेकिन कोविशील्ड की एक या दोनों डोज लेने के बाद संक्रमित हो गए, उनमें भी कभी संक्रमित नहीं हुए, लेकिन कोविशील्ड की एक या दो डोज लेने वालों के मुकाबले ज्यादा एंटिबॉडीज पाई गई।’ ऐसे में यह कहा जा सकता है कि जो लोग वैक्सीन डोज लेने से पहले या बाद में, कभी कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं हुए, उन्हें कोविशील्ड की तीसरी डोज देने की भी जरूरत है तभी उनमें संक्रमित होकर ठीक होने के बाद टीका लेने वालों या टीका लेने के बाद संक्रमित होने वाले लोगों के बराबर एंटिबॉडीज विकसित हो पाएगी।

‘लांब्‍डा’ वेरिएंट का पहला केस अगस्‍त, 2020 में पेरू से सामने आया। इसके ज्‍यादातर केस अभी साउथ अमेरिकन देशों- पेरू, चिली, अर्जेंटीना आदि में मिले हैं। ‘लांब्‍डा’ के स्‍पाइक प्रोटीन में बहुत सारे म्‍यूटेशंस हुए हैं जिससे इसकी संक्रामकता पर असर हो सकता है। हालांकि WHO के मुताबिक, म्‍यूटेशंस को पूरी तरह समझने के लिए और रिसर्च की जरूरत है।

पेरू में इस वेरिएंट ने कहर बरपा रखा है। WHO के अनुसार, अप्रैल से पेरू में जितने मामले सामने आए हैं, उनमें से 81 प्रतिशत के पीछे यही वेरिएंट है। चिली में मई और जून के बीच पॉजिटिव मिले सैम्‍पल्‍स में से 31% में यही वेरिएंट मिला है। पब्लिक हेल्‍थ इंग्‍लैंड के अनुसार, यूके में इसके छह मामलों का पता चला है और सारे विदेशी यात्राओं से जुड़े हुए हैं।

डर इस बात का है कि कहीं यह वेरिएंट अभी तक सामने आए वेरिएंट्स से ज्‍यादा संक्रामक और घातक तो नहीं है। जिस तरह से कुछ देशों में इसका प्रसार बढ़ा है, उसे देखते हुए इस दिशा में रिसर्च तेज कर दी गई है।

कोरोना वायरस के बाकी वेरिएंट्स की तरह ‘लांब्‍डा’ को भी सिर्फ लक्षणों के आधार पर नहीं पहचाना जा सकता। लक्षण बाकी वेरिएंट्स जैसे ही हैं। ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (NHS) के मुताबिक, बुखार, लगातार खांसी आना, गंध और स्‍वाद न आना लक्षण हो सकते हैं। इनमें से कोई न कोई एक लक्षण मरीज में रहता है।

WHO ने कहा है कि ‘लांब्‍डा’ वेरिएंट में संक्रामकता और ऐंटीबॉडीज के प्रति प्रतिरोध ज्‍यादा है। वैक्‍सीन से इस वेरिएंट से बचने में कितनी मदद मिलती है, इसपर रिसर्च की जरूरत है। हालांकि यूके के स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारी कहते हैं कि अभी इस बात के सबूत नहीं हैं कि वैक्‍सीन कम असरदार है।

अभी तक तो नहीं। हालांकि दुनियाभर में जिस तेजी से यह फैल रहा है, विदेशी यात्राओं को लेकर बेहद सावधान रहने की जरूरत है। एक्‍सपर्ट्स के मुताबिक, अंतरराष्‍ट्रीय एयर ट्रेवल खोलने से ‘लांब्‍डा’ समेत कई नए वेरिएंट्स के भारत पहुंचने का खतरा है।

डॉ. यादव ने कहा कि जो हाल ही में कोविड से उबरे हैं, उनके लिए वैक्सीन की एक डोज ही पर्याप्त है। उन्होंने कहा कि जो कभी संक्रमित नहीं हुए, उन लोगों में कोविशील्ड से एंटिबॉडीज विकसित हुई है, इक्के-दुक्के लोग ही हैं जिनमें वैक्सीन लेने के बाद भी एंटिबॉडी नहीं बनी।