(अभिमनोज)
साइबर ठगी अब किसी गली-मुहल्ले में बैठे दो-चार लोगों का धंधा नहीं रहा। यह अपराध 21वीं सदी की सबसे संगठित और खतरनाक आपराधिक संरचनाओं में बदल चुका है, जिसमें तकनीक, लालच और बेरोजगारी—तीनों का त्रिकोण एक भयावह जाल रचता है। हाल ही में कंबोडिया में 150 भारतीय नागरिकों सहित 3000 से अधिक लोगों की गिरफ्तारी ने इस नेटवर्क की भयावहता को उजागर किया है। यह घटना न सिर्फ कानून व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि यह भी बताती है कि किस तरह भारतीय युवाओं को विदेशी कॉल सेंटरों के नाम पर ग्लोबल साइबर अपराध में झोंका जा रहा है। यह सिर्फ ठगी नहीं, एक “ग्लोबल क्राइम इकोनॉमी” है, जिसमें हर फोन कॉल के पीछे एक पूरी ‘इंडस्ट्री’ सक्रिय है। साइबर ठगी का नेटवर्क किसी बड़ी कंपनी जैसा ही है, जहां हजारों लोग काम करते हैं, यह राज कंबोडिया में 150 भारतीय सहित तीन हजार से अधिक लोगों की गिरफ्तारी के बाद खुला है.
मीडिया रिपोर्ट्स हैं कि 29 जून 2025 को गुरुग्राम साइबर पुलिस द्वारा दिल्ली एयरपोर्ट से पकड़ी गई गुजरात के सूरत की रहने वाली खुशबू नामक महिला कंबोडिया के नोम पेन्ह स्थित काल सेंटर में काम कर रही थी, जो करीब दो साल से साइबर ठगी के नेटवर्क से जुड़ी थी.
गुरुग्राम साइबर पुलिस रिमांड के दौरान सैकड़ों काल सेंटर में हजारों लोगों द्वारा ठगी करने की जानकारी सामने आने के बाद साइबर पुलिस ने इसकी जानकारी गृह मंत्रालय से साझा की थी, भारतीय गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय की गुजारिश पर कंबोडिया सरकार ने साइबर ठगी के मामलों में बड़ी कार्रवाई करते हुए 105 भारतीय सहित तीन हजार से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया.
उल्लेखनीय है कि गुरुग्राम में रहने वाली एक महिला से डिजिटल अरेस्ट के जरिए करीब तीन करोड़ की ठगी के मामले की जांच करते हुए, इसमें शामिल बैंक खाताधारक सहित कुल 16 लोगों को पकड़ा गया था, एक व्यक्ति ने पूछताछ में बताया था कि- उसने बैंक खाता दुबई में रहनेवाले अपने भाई के माध्यम से खुशबू को बेचा था, जिसके बाद पुलिस खुशबू पर नजर रख रही थी, गिरफ्तारी के बाद खुशबू से पूछताछ में पता चला था कि नोम पेन्ह में सैकड़ों काल सेंटर हैं, जहां भारत और पाकिस्तान सहित कई देशों के हजारों लोग इस नेटवर्क से जुड़े हैं.
इस दौरान ठगों के कामकाज करने के थ्री लेयर सिस्टम की जानकारी भी मिली थी, जिसके अनुसार पहले लेयर में बैठे लोग फोन करते है और दूसरे-तीसरे लेयर में बैठे लोग ठगी की वारदात को अंजाम देते हैं
इस मामले में पकड़ी गई खुशबू मोटी सैलरी, रहने खाने की सुविधा और हर ठगी के साथ इंसेटिव मिलने की व्यवस्था के साथ पहले लेयर में काम करती थी.
एसीपी साइबर क्राइम प्रियांशु दीवान के हवाले से खबरें हैं कि देश में संभवतया यह पहली बार हुआ था कि जब विदेश से साइबर ठगी के मामले में किसी एक्टिव कालर को पकड़ा गया!
अंतरराष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्टों से उजागर हुई गंभीर सच्चाई
कंबोडिया में हुई इस बड़ी कार्रवाई की पुष्टि खुद Khmer Times और Phnom Penh Post जैसे स्थानीय मीडिया ने की है, जिनके अनुसार नोम पेन्ह, प्रेय वेंग और सिहानोकविल जैसे इलाकों में फैले कॉल सेंटरों पर छापे मारकर 3,000 से अधिक लोगों को पकड़ा गया, जिनमें 150 भारतीय, दर्जनों चीनी, पाकिस्तानी और अफ्रीकी नागरिक शामिल हैं। ये सभी “ऑनलाइन स्कैम फैक्ट्रियों” में काम कर रहे थे।
Reuters की एक रिपोर्ट के अनुसार, कई पीड़ितों ने बताया कि उन्हें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर “कस्टमर सपोर्ट एग्जीक्यूटिव”, “वर्क फ्रॉम एशिया” या “फॉरेन जॉब” के नाम से लालच दिया गया था। लेकिन वहां पहुंचने के बाद उनके पासपोर्ट ज़ब्त कर लिए गए और उन्हें ठगी करने के लिए मजबूर किया गया।
South China Morning Post ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में दावा किया कि इन स्कैम सेंटरों में जबरन श्रम और मानव तस्करी के संकेत भी मिले हैं। कई गिरफ्तार युवक-युवतियों को वहां बंधुआ मजदूर की तरह रखा गया था, और लक्ष्य पूरा न होने पर उन्हें धमकियां दी जाती थीं।
Al Jazeera ने इसे “Asia’s digital sweatshops” यानी डिजिटल गुलामी के कारखाने बताया है, जहाँ तकनीक का इस्तेमाल वैश्विक साइबर अपराध को व्यवस्थित और अदृश्य बनाए रखने में किया जाता है।
ये रिपोर्टें बताती हैं कि यह कोई तात्कालिक या स्थानीय अपराध नहीं, बल्कि एक ऐसा बड़े पैमाने का ट्रांसनेशनल रैकेट है जिसमें दर्जनों देशों की भागीदारी या अनभिज्ञता दोनों शामिल हो सकती हैं।
यह महज़ ठगी नहीं, एक कॉर्पोरेट मॉडल है
कंबोडिया के ये साइबर कॉल सेंटर दिखने में किसी बीपीओ से अलग नहीं होते। वहां एचआर से लेकर ट्रेनिंग टीम, डेली टारगेट, परफॉर्मेंस बोनस, रहने-खाने की सुविधा, और हर ठगी पर मिलने वाला “इंसेंटिव” तक तय रहता है।
तीन लेयर की यह व्यवस्था बहुत सुनियोजित है:
पहली लेयर में कॉलर होते हैं, जो भारत में “डिजिटल अरेस्ट”, केवाईसी अपडेट, या फर्जी बैंक अधिकारी बनकर फोन करते हैं।
दूसरी लेयर में वो तकनीकी लोग होते हैं जो पीड़ित के फोन या लैपटॉप को रिमोट एक्सेस लेकर फर्जी वेबसाइट्स और लिंक के ज़रिए उन्हें निर्देशित करते हैं।
तीसरी लेयर में ट्रांजैक्शन मैनेजर्स होते हैं, जो देश-विदेश में बंटे खातों में पैसा ट्रांसफर, क्रिप्टो या गिफ्ट कार्ड्स में बदलकर गायब कर देते हैं।
विदेशों में पल रहा है भारत की छवि को बदनाम करने वाला गिरोह
खुशबू की गिरफ्तारी पहली बार थी, जब विदेश में काम कर रही किसी एक्टिव कॉलर को भारत लाया गया। एसीपी साइबर क्राइम प्रियांशु दीवान के अनुसार, खुशबू से हुई पूछताछ में जो सच सामने आया वह चौंकाने वाला था—सैकड़ों कॉल सेंटर नोम पेन्ह और अन्य एशियाई देशों में चल रहे हैं, जिनमें भारत और पाकिस्तान सहित अफ्रीका के भी युवाओं को भर्ती किया गया है।
इन युवाओं को लालच दिया जाता है—मोटी सैलरी, विदेश में रहना, नया जीवन, और कम समय में अमीर बनने का सपना। अधिकांश भर्ती सोशल मीडिया, संदिग्ध एजेंट्स और “वर्क फ्रॉम एब्रॉड” स्कीम के जरिए होती है। दुखद यह है कि बहुत से युवक-युवतियाँ अपनी जानकारी के बिना ही अपराध में फंसे होते हैं, और बाद में मजबूरी में सक्रिय भागीदार बन जाते हैं।
सरकार और जांच एजेंसियों की भूमिका और चुनौतियाँ
गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय की संयुक्त कार्यवाही के बाद कंबोडिया सरकार को मजबूर होना पड़ा कि वह इन साइबर गिरोहों के खिलाफ कार्रवाई करे। भारत की ओर से मिली ठोस खुफिया सूचना, खासतौर से गुरुग्राम साइबर सेल की तत्परता ने इस कार्रवाई की नींव रखी।
इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि अब साइबर क्राइम केवल देशीय नहीं रहा, यह अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक समन्वय की माँग करता है। केवल भारतीय कानून से इसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता, बल्कि देशों के बीच सहयोग संधियों (Mutual Legal Assistance Treaties – MLATs) और संयुक्त ऑपरेशनों की जरूरत है।
गहराई से सोचने की ज़रूरत
इस पूरी घटना के केंद्र में कई असहज प्रश्न हैं:
1- क्या युवाओं को रोजगार के अभाव ने इस दलदल की ओर ढकेला?
2- क्या हमारे समाज में त्वरित सफलता पाने की भूख इतनी तेज़ हो गई है कि उसे अपराध का रास्ता भी सहज लगने लगे?
3- क्या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और मैसेजिंग ऐप्स पर “फ्रीलांस” या “वर्क फ्रॉम होम” जॉब के नाम पर चल रहे विज्ञापन भी साजिश का हिस्सा हैं?
4- यह नेटवर्क केवल ठगी का ही नहीं, बल्कि मानव तस्करी, डेटा चोरी, और भविष्य की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाला औद्योगिक अपराध भी है।
अब क्या करना होगा?
साइबर क्राइम को आतंकवाद के समान श्रेणी में समझा जाना चाहिए क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करता है।
भारत को युवाओं को डिजिटल साक्षरता, साइबर नैतिकता और रोजगार के वैकल्पिक अवसरों से लैस करना होगा।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्राथमिकता देते हुए संयुक्त जांच एजेंसियां बनानी होंगी, ताकि ऐसे नेटवर्क का मूल तक पहुंचा जा सके।
कंबोडिया की गिरफ्तारी सिर्फ एक छापा नहीं था—यह भारत समेत पूरे विश्व को चेतावनी थी कि अपराध अब तकनीक की आड़ में बॉर्डर पार कर चुका है।
सवाल सिर्फ इतना नहीं कि 3 करोड़ ठगे गए—सवाल यह है कि हम कितने अनजान, असहाय और असंगठित हैं इस नए दौर की संगठित साइबर ठगी के सामने।
अब अगर हम नहीं चेते, तो अगली गिरफ्तारी की खबर किसी और शहर से, किसी और मासूम से, और किसी और ‘खुशबू’ के जरिए आएगी… लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
संपर्क :17/23 दत्त ड्यूप्लेक्स ,स्पोर्ट्स क्लब के सामने
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मोबाइल : 9200000912
(साई फीचर्स)

हर्ष वर्धन वर्मा का नाम टीकमगढ़ जिले में जाना पहचाना है. पत्रकारिता के क्षेत्र में लंबे समय तक सक्रिय रहने के बाद एक बार फिर पत्रकारिता में सक्रियता बना रहे हैं हर्ष वर्धन वर्मा . . .
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