कितना समय लगता है एक नागा साधु को बनने में . . . .
नाग साधु बनने के लिए इतनी कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है कि शायद कोई आम आदमी इसे पार ही नहीं कर पाए। नागाओं को सेना की तरह तैयार किया जाता है। उनको आम दुनिया से अलग और विशेष बनना होता है। इस प्रक्रिया में सालों लग जाते हैं।
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जानिए कैसे बनते हैं नागा साधु?
जानकारों का मानना है कि अखाड़े का संन्यासी बनने के लिए एक संकल्प पूरा करना होता है। यह संकल्प एक दशक से अधिक या यह कहा जाए कि 12 साल का होता है। यह संकल्प लेने वाला ब्रम्हचारी कहलाता है। ब्रम्हचर्य के दौरान उस ब्रम्हचारी को अखाड़े के नियम और परंपराएँ सिखाई जाती हैं। इस ब्रम्हचारी को दौरान गुरु की सेवा करनी होती है। जब ब्रम्हचारी का 12 साल का संकल्प पूरा हो जाता है तो आने वाले कुंभ में नागा साधु के रूप में दीक्षा दी जाती है।
शुरुआत में संन्यास की दीक्षा गुरु के द्वारा दी जाती है। मंत्रोच्चार आदि से शरीर पर समस्त चीजों को धारण करवाया जाता है। इसके बाद विजय संस्कार संपन्न किया जाता है। विजय संस्कार में संन्यास लेने वाले उसका पिंडदान और अन्य आहुतियाँ करवाकर उसे सांसारिक मोह माया से विरक्त कर दिया जाता है। आहूति दीक्षा मिलने के बाद नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
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इस संस्कार के दौरान धर्म ध्वज के नीचे सभी साधुओं को एकत्रित किया जाता है और फिर नागा साधु की दीक्षा दी जाती है। इस दौरान एक अलग गुरु बनाया जाता है, जो दिगंबर होता है। इसके बाद अच्छे नागाओं की अखाड़ों में उसे काम करने के लिए भेजा जाता है। नागा संन्यासी आमतौर पर हाथ में त्रिशूल, तलवार, शंख लिए होते हैं और गले एवं शरीर में रुद्राक्ष आदि धारण करते हैं।
अब जानिए, कौन सी प्रक्रियाओं से एक नागा को गुजरना होता है ब्रम्हचारी को,
सबसे पहले नंबर आता है तहकीकात का, जब भी कोई व्यक्ति साधु बनने के लिए किसी अखाड़े में जाता है, तो उसे कभी सीधे सीधे अखाड़े में शामिल नहीं किया जाता। अखाड़ा अपने स्तर पर यह पता करने का प्रयास करता है कि वहां आया व्यक्ति साधु क्यों बनना चाहता है? उस व्यक्ति की तथा उसके परिवार की संपूर्ण पृष्ठभूमि देखी जाती है। अगर अखाड़े को ये लगता है कि वह साधु बनने के लिए सही व्यक्ति है, तो ही उसे अखाड़े में प्रवेश की अनुमति मिलती है। अखाड़े में प्रवेश के बाद उसके ब्रम्हचर्य की परीक्षा ली जाती है। इसमें 6 महीने से लेकर 12 साल तक लग जाते हैं। अगर अखाड़ा और उस व्यक्ति का गुरु यह निश्चित कर ले कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है फिर उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है।
इसके बाद नंबर आता है महापुरुष का, अगर व्यक्ति ब्रम्हचर्य का पालन करने की परीक्षा से सफलतापूर्वक गुजर जाता है, तो उसे ब्रम्हचारी से महापुरुष बनाया जाता है। उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं। ये पांच गुरु पंच देव या पंच परमेश्वर (शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश) होते हैं। इन्हें भस्म, भगवा, रूद्राक्ष आदि चीजें दी जाती हैं। यह नागाओं के प्रतीक और आभूषण होते हैं।
अब बारी आती है अवधूत की, महापुरुष के बाद नागाओं को अवधूत बनाया जाता है। इसमें सबसे पहले उसे अपने बाल कटवाने होते हैं। इसके लिए अखाड़ा परिषद की रसीद भी कटती है। अवधूत रूप में दीक्षा लेने वाले को खुद का तर्पण और पिंडदान करना होता है। ये पिंडदान अखाड़े के पुरोहित करवाते हैं। ये संसार और परिवार के लिए मृत हो जाते हैं। इनका एक ही उद्देश्य होता है सनातन और वैदिक धर्म की रक्षा।
इसके बाद किया जाता है लिंग भंग, इस प्रक्रिया के लिए उन्हें 24 घंटे नागा रूप में अखाड़े के ध्वज के नीचे बिना कुछ खाए पीए ही खड़ा होना पड़ता है। इस दौरान उनके कंधे पर एक दंड और हाथों में मिट्टी का बर्तन होता है। इस दौरान अखाड़े के पहरेदार उन पर नजर रखे होते हैं। इसके बाद अखाड़े के साधु द्वारा उनके लिंग को वैदिक मंत्रों के साथ झटके देकर निष्क्रिय किया जाता है। यह कार्य भी अखाड़े के ध्वज के नीचे किया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद वह नागा साधु बन जाता है।
नागाओं के पद और अधिकार नागा साधुओं के कई पद होते हैं। एक बार नागा साधु बनने के बाद उसके पद और अधिकार भी बढ़ते जाते हैं। नागा साधु के बाद महंत, श्रीमहंत, जमातिया महंत, थानापति महंत, पीर महंत, दिगंबरश्री, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर जैसे पदों तक जा सकता है।
आईए सबसे पहले जानते हैं कि कौन होते हैं नागा साधु?
नागा का अर्थ होता है नग्न। अपने नाम की तरह ये साधु संत निर्वस्त्र रहते हैं और अपने शरीर पर भस्म रगड़ते हैं। इनका जुड़ाव प्रकृति से होता है और ये भगवान शिव के उपासक होते हैं। नागा साधुओं का जीवन त्याग, तपस्या और आत्मज्ञान का बेहतरीन उदाहरण है। हालांकि एक नागा साधु बनने के लिए दीक्षा की लंबी प्रक्रिया होती है। जिसके लिए बहुत सी चीजों को त्यागना पड़ता है।
नागा साधुओं का इतिहास जानिए,
नागा साधुओं की उत्पत्ति का इतिहास वैदिक काल से जुड़ा है। 8वीं शताब्दी में भगवान आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म की रक्षा करने के लिए अखाड़ों की स्थापना की थी। इसी दौरान नागा साधुओं को भी संगठित किया गया। इसके बाद इन्हें अलग अलग अखाड़ों में विभाजित किया गया , जिससे यह धर्म और संस्कृति पर बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा हो सके।
जानिए, नागा साधुओं होते हैं बेहतर योद्धा,
नागा साधुओं ने आध्यात्मिक मोर्चाे के साथ युद्ध के मैदान में अहम भूमिका निभाई है। इन्होंने सनातन की रक्षा के लिए कई जंगे लड़ी है। बता दें कि मुगल आक्रमणों के समय नागा साधुओं ने हिंदू तीर्थ स्थलों और मंदिरों की बचाने के लिए कई बार हथियार उठाए हैं और अपना रक्त बहाया है। उनकी संगठित सेना और युद्ध कौशल ने कई बार धर्मस्थलों को विनाश से बचाया। इसके अलावा नागा साधुओं ने हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में हिस्सा लिया। हरि ओम,
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(साई फीचर्स)
लगभग 18 वर्षों से पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। दैनिक हिन्द गजट के संपादक हैं, एवं समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के लिए लेखन का कार्य करते हैं . . .
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