जानिए भगवान महावीर की जयंति के संबंध में विस्तार से . . .

अहिंसा परमो धर्म : यही है भगवान महावीर का अमर संदेश
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महावीर स्वामी जयंती जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की जयंती के रूप में मनाई जाती है। यह पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को आता है, जो आमतौर पर मार्च या अप्रैल माह में पड़ता है। यह दिन जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है।
माना जाता है कि जैन शब्द जिन शब्द से बना है, जिसका अर्थ है जीतने वाला, विजयी होने वाला। जैन ग्रंथों के अनुसार, यह धर्म अनंत काल से माना जाता रहा है और यह सबसे पुराना और प्रचलित धर्मों में एक है।
अगर आप भगवान महावीर स्वामी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में ‘जय जिनेंद्र‘, ‘जय महावीर‘ लिखना न भूलिए।
हिंदू धर्म में जैसे दीपावाली, महाशिवरात्रि, जन्माष्टमी आदि पर्व खास होते हैं वैसे ही महावीर जयंती जैन समुदाय के लिए सबसे पवित्र पर्वों में से एक है और इस पर्व का विशेष महत्व है। इस पर्व को जैन धर्म और संस्कृति के 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर की जयंती के रूप में मनाया जाता है।
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आईए जानते हैं कि वर्ष 2025 में इस साल महावीर जयंती कब है,
महावीर स्वामी का जन्म 599 ईसा पूर्व में हुआ था। आपका जन्म बिहार राज्य के वैशाली (वर्तमान में कुंडलग्राम) में हुआ था। उनके बचपन का नाम वर्धमान था। वे राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे। महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की आयु में सांसारिक जीवन को त्याग दिया और सत्य, अहिंसा, ब्रम्हचर्य, अस्तेय और अपरिग्रह जैसे महान सिद्धांतों को अपनाते हुए आत्मज्ञान की खोज में निकल पड़े।
जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार महावीर भगवान ने लगातार 12 साल कठोर तपस्या की थी। उन्होंने मौन तप और जप किया, स्वंय के केश लुंचित (तोड़े) किए, अपनी इंद्रियों पर काबू पाया और फिर ज्ञान प्राप्त किया था। भगवान महावीर के उपदेश आज भी व्यक्ति को आत्मानुशासन, संयम और नैतिकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। उन्होंने 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की और अंततः कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया। इसके पश्चात उन्होंने जीवन भर लोगों को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया।
हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक साल चैत्र मास के 13वें दिन यानी चैत्र शुक्ल की त्रयोदशी तिथि को महावीर जयंती बड़े ही आस्था के साथ मनाई जाती है। महावीर जयंती 10 अप्रैल 2025 को मनाई जाएगी। इस दिन प्रभात फेरी, शोभा यात्रा आदि का आयोजन किया जाता है। स्वर्ण और रजत कलशों से महावीर स्वामी का अभिषेक किया जाता है तथा शिखरों पर ध्वजा चढ़ाई जाती है।
महावीर जयंती का महत्व जानिए,
महावीर स्वामी जयंती न केवल जैन समुदाय के लिए, बल्कि समस्त मानवता के लिए प्रेरणादायक है। इस दिन को मनाकर लोग भगवान महावीर के बताए मार्गों की याद करते हैं और उनके सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेते हैं। अहिंसा, करुणा, क्षमा और सच्चाई जैसे मूल्यों को बढ़ावा देने का यह एक श्रेष्ठ अवसर होता है।
जानिए महावीर जयंती पर क्या क्या होते हैं आयोजन,
महावीर जयंती के अवसर पर जैन मंदिरों को सजाया जाता है और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान महावीर की प्रतिमा के साथ शोभा यात्रा वाला जुलूस निकाला जाता है, जिसे रथ यात्रा कहा जाता है। इसमें श्रद्धालु भजन-कीर्तन करते हैं और धार्मिक ग्रंथों का पाठ किया जाता है। कई जगहों पर प्रवचन, ध्यान और सत्संग का आयोजन भी होता है।
इसके साथ ही, इस दिन को लोग सेवा कार्यों जैसे कि जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और दवाइयाँ प्रदान करके भी मनाते हैं। रक्तदान शिविर, पशुओं की देखभाल और पर्यावरण की रक्षा जैसे कार्यों का आयोजन किया जाता है।
अब जानिए भगवान महावीर स्वामी के 5 सिद्धांतों के बारे में,
महावीर स्वामी ने समाज के लोगों के कल्याण के लिए संदेश दिए थे। इसमें उन्होंने 5 सिद्धांत बताए सत्य, अहिंसा, अस्त्य, अपरिग्रह, ब्रम्हचर्य का पालन करना, जैन धर्म इसी का पालन करता है। महावीर के अनुयायियों के लिए मुक्ति का मार्ग त्याग और बलिदान ही है लेकिन इसमें जीवात्माओं की बलि शामिल नहीं है।
पहले सिद्धांत अहिंसा के बारे में माना जाता है कि किसी भी जीव को किसी भी प्रकार से हानि न पहुंचना ही अहिंसा है। भगवान महावीर ने सिर्फ शारीरिक हिंसा ही नहीं, बल्कि वाणी और विचारों की हिंसा से भी बचने की सीख दी। हर जीव के प्रति करुणा और दयाभाव रखना सबसे बड़ा धर्म माना जाता है।
दूसरा सिद्वांत सत्य माना जाता है जिसके अनुसार, हमेशा सच बोलना और किसी भी परिस्थिति में झूठ से बचना। सत्य का पालन करने से आत्मा शुद्ध होती है और समाज में नैतिकता बनी रहती है। आज के समय में जब लोग छल-कपट का सहारा लेते हैं, सत्य का महत्व और भी बढ़ जाता है।
तीसरा सिद्धांत अस्तेय अर्थात चोरी न करना है, इसके अनुसार बिना अनुमति किसी भी चीज़ को लेना चोरी माना जाता है। भगवान महावीर ने सिखाया कि हमें केवल उतना ही लेना चाहिए जितना हमारी आवश्यकता हो। अनैतिक तरीकों से संपत्ति अर्जित करना आत्मा को कलुषित करता है।
भगवान महावीर का चौथा सिद्धांत ब्रम्हचर्य है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इंद्रियों पर संयम रखना और अनैतिक इच्छाओं से दूर रहना। आत्मसंयम ही आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है। मन, वचन और कर्म से पवित्रता बनाए रखना चाहिए।
आपका पांचवा सिद्धांत है अपरिग्रह, अर्थात, धन और वस्तुओं के प्रति मोह न रखना। ज्यादा संपत्ति और भौतिक चीजों का संग्रह मनुष्य को लालची बना देता है। संतोष ही सबसे बड़ी संपत्ति है।
जानिए महावीर जयंती का पर्व कैसे मनाया जाता है?
महावीर जयंती पर जैन समुदाय के लोग भगवान महावीर की प्रतिमा का अभिषेक (जल और दूध से स्नान) करते हैं। इस दिन जैन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और धार्मिक प्रवचन होते हैं। कुछ स्थानों पर महावीर स्वामी की शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें श्रद्धालु भगवान के उपदेशों का प्रचार करते हैं। इस दिन जैन अनुयायी दान-पुण्य और सेवा कार्यों में भी भाग लेते हैं। गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र दान की जाती हैं। जैन धर्म में इस दिन अहिंसा का विशेष पालन किया जाता है, इसलिए कई लोग इस दिन शाकाहार अपनाने का संकल्प लेते हैं।
जानिए महावीर स्वामी की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक क्यों हैं?
भगवान महावीर द्वारा दिया गया अहिंसा, सत्य और अपरिग्रह का संदेश आज के समय में भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना हजारों साल पहले था। वर्तमान समय में जब दुनिया में हिंसा, लोभ और असहिष्णुता बढ़ रही है, महावीर स्वामी का संदेश हमें शांति और सद्भाव की ओर ले जाता है।
उन्होंने हमें सिखाया कि हर जीव का सम्मान करना चाहिए, बिना भेदभाव के सभी के साथ समानता और प्रेम का व्यवहार करना चाहिए। अगर हम उनके सिद्धांतों को अपनाएं, तो दुनिया अधिक शांतिपूर्ण और समृद्ध बन सकती है।
भगवान महावीर स्वामी के बारे में एक कथा का उल्लेख भी मिलता है जिसमें कहा गया है कि जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने युवावस्था में ही संन्यास धारण कर विश्व को करुणा रूपी नए धर्म से परिचित कराया।
स्थूल, सूक्ष्म, त्रस, स्थावर सब जीवों पर करुणापूर्ण हृदय लिए प्रभु की ध्यान साधना तथा तपस्या अविराम बढ़ रही थी। संगम नामक एक देव भगवान महावीर की इस करुणा, शांति के संबंध में शंकालु थे। उन्हें लगता था कि इनकी ये करुणा अनुकूलताओं के रहते ही बहती है। यदि स्थितियां प्रतिकूल हो जाएं तो इनकी करुणा का जलाशय सूख जाएगा। वह नहीं जानता था कि भगवान महावीर के लिए करुणा एक सहज स्फुरणा थी, कोई परिस्थितजन्य घटना नहीं। विकारों के हेतु विद्यमान होने पर भी जिनके चित्त में विकार पैदा नहीं होते, वही धीर और वीर होते हैं। महावीर दो दिन के उपवास के बाद भिक्षा लेने नगर में गए।
संगम देव ने ऐसा वातावरण बना दिया कि भगवान महावीर भोजन नहीं ले पाए और वे वापिस अपने एकांत स्थल पर आकर ध्यान लीन हो गए। उसने उस रात भगवान महावीर को भिन्न-भिन्न ढंग से चौदह प्रकार के असहाय कष्ट दिए। भगवान महावीर समता पूर्वक प्रत्येक अत्याचार को देखते रहे। न यह सोचा कि वह ऐसा क्यों कर रहा है और न ही यह कि ये अत्याचार रुक जाए तो अच्छा होगा। इस तरह संगम देव केवल एक दिन के लिए नहीं, छह महीने तक भगवान महावीर को सताते रहे। उन्हें आहार-पानी लाने नहीं दिया। इतना ही नहीं संगम देव लोगों में जाकर भगवान महावीर के बारे में झूठ फैलाते, उन्हें चोर बताते, पर भगवान महावीर मन से पूर्ण निराकुल और प्रतिक्रियाविहीन बने रहते।
छह माह बाद संगम देव ने माफी मांगी और कहा कि अब मैं आपको परेशान नहीं करूंगा। और यह भी कितनी गजब बात थी कि जो भगवान महावीर छह माह तक परेशान नहीं हुए थे, आज उनके हृदय में एक परेशानी थी। हृदय से वह परेशानी भगवान महावीर के नयनों में उतर आई। दोनों आंखें नम हो गईं। आंखों से टपकते आंसू देखने के लिए छह महीने तक प्रतीक्षारत संगम देव के लिए यह अप्रत्याशित था। वह सोच रहा था कि क्यों आज कष्ट मुक्ति के क्षणों में भगवान महावीर अश्रुयुक्त हैं।
संगम को यह पहेली समझ नहीं आई। जिसे भगवान महावीर ने इस तरह सुलझाया। वह बोले, संगम तेरे कारण मेरे जन्मों के कर्म कट गए, पर मेरे कारण तूने जन्म-जन्मों के कर्म बांध लिए। जब ये कर्म उदय में आएंगे, तब तुझे पीड़ा होगी। उस पीड़ा से मेरा हृदय करुणा से भीग गया और आंखें गीली हो गईं। मेरे आंसू दर्द के नहीं, करुणा के हैं।
भगवान महावीर स्वामी का जीवन और शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी हजारों वर्ष पहले थीं। उनका संदेश हमें यह सिखाता है कि सच्चा सुख बाहरी साधनों में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और अहिंसा में है। महावीर जयंती हमें एक बार फिर उनके मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है दृ एक ऐसा मार्ग जो करुणा, समता और सच्चाई से परिपूर्ण है। हरि ओम,
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अखिलेश दुबे

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