महाशिवरात्रि की कहानी को जानिए विस्तार से . . .
वैसे तो हर माह शिवरात्रि का पर्व आता है पर महाशिवरात्रि का पर्व वर्ष में एक ही बार आता है। महाशिवरात्रि की कहानी हिंदू पौराणिक कथाओं में बहुत प्रचलित है, जिसमें विभिन्न किंवदंतियाँ और आख्यान इसके महत्व के बारे में जानकारी देते हैं। एक प्रमुख किंवदंती इस शुभ दिन पर भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव और उनकी अर्धांग्नी माता पार्वती जी के दिव्य विवाह का वर्णन करती है। ऐसा माना जाता है कि महाशिवरात्रि की रात को देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव ने तांडव का ब्रम्हांडीय नृत्य किया था, जो ब्रम्हांड के लयबद्ध निर्माण, संरक्षण और विनाश का प्रतीक है। संस्कृत में महाशिवरात्रि शब्द का अर्थ है देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव की बड़ी रात।
अब जानिए महाशिवरात्रि की कथा,
महाशिवरात्रि से जुड़ीं अनेक कथाएँ प्रचलित हैं इन्ही में से एक कथा के बारे में आपको बताते हैं। पौराणिक मान्यता है कि माता पार्वती ने देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव जी को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घनघोर तपस्या की थी। इस कथा के परिणामस्वरूप फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। उस समय से ही महाशिवरात्रि को अत्यंत पवित्र माना जाता है।
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इसके अतिरिक्त, गरुड़ पुराण में महाशिवरात्रि से जुड़ीं एक अन्य कथा का वर्णन मिलता है। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन एक निषादराज अपने श्वान के साथ शिकार पर गए किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला। थकान एवं भूख-प्यास से परेशान होकर वे एक तालाब के किनारे गए, जहाँ बिल्व वृक्ष के नीचे देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिवलिंग स्थापित था। अपने शरीर को आराम देने के लिए निषादराज ने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जो देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिवलिंग पर भी गिर गए। अपने पैरों को साफ़ करने के लिए उसने उन पर तालाब का जल छिड़का और जल की कुछ बून्दें देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिवलिंग पर भी गिर गई। ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे जा गिरा और जिसे उठाने के लिए वह देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिवलिंग के सामने झुके।
इस तरह अनजाने में ही उसने देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान महाशिवरात्रि पर देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव पूजा की प्रक्रिया पूरी कर ली। मृत्यु के उपरांत जब यमदूत उसे लेने के लिए आए, तब देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव जी के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया। इस प्रकार अज्ञानतावश महाशिवरात्रि पर किये गए देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव जी के पूजन से शुभ फल की प्राप्ति हुई, अपनी सोच और श्रद्धभाव द्वारा किये गए देवाधिदेव महादेव का पूजन कितना अधिक फलदायी सिद्ध होगा।
इसी तरह एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिवशंकर से पूछा, ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?
उत्तर में देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिवजी ने पार्वती को देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान महाशिवरात्रि के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- एक गाँव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान महाशिवरात्रि थी।
शिकारी ध्यानमग्न होकर देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान महाशिवरात्रि की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया।
अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल-वृक्ष के नीचे देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।
पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिन भर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।
एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी अर्थात हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूँगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब तुम मुझे मार लेना। शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गई।
कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, हे पारधी ! मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूँ। कामातुर विरहिणी हूँ। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी।
शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगाई, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, हे पारधी! मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊँगी। इस समय मुझे मत मार।
शिकारी हँसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे।
उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ। हे पारधी! मेरा विश्वास कर मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।
मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के आभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्व करेगा।
शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा।
मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।
उपवास, रात्रि जागरण तथा देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गए। भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।
थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देव लोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहा था। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।
अब जानिए देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान महाशिवरात्रि का ज्योतिषीय महत्व के बारे में,
वैदिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शंकर अर्थात स्वयं देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव ही चतुर्दशी तिथि के स्वामी हैं। यही वज़ह है कि प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्रों में चतुर्दशी तिथि को अत्यंत शुभ कहा गया है। गणित ज्योतिष की गणना के मुताबिक, महाशिवरात्रि के समय सूर्य उत्तरायण में होते हैं, साथ ही ऋतु-परिवर्तन भी हो रहा होता है।
विद्वानों के अनुसार ज्योतिष में, ऐसी भी मान्यता है कि चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अत्यंत कमज़ोर होते हैं और भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव ने चन्द्रमा को अपने मस्तक पर धारण किया हुआ है। अतः देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिवजी की पूजा एवं उपासना से व्यक्ति का चंद्र मज़बूत होता है जो मन का प्रतिनिधित्व करता है। अन्य शब्दों में कहें तो देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव जी के पूजन से इच्छा-शक्ति ढृंढ होती है, साथ ही अदम्य साहस का संचार होता है।
महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व जानिए,
हिन्दू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एक शक्ति है, एक रहस्यमय ऊर्जा, जिससे संपूर्ण जगत चलायमान है। हालांकि वैज्ञानिक भी अभी तक इसे कोई नाम नहीं दे पाए हैं। लेकिन यदि प्राचीन काल के संत मुनि-ऋषियों की मानें तो उन्होंने इस अज्ञात शक्ति को देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव कहा है। और वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो महाशिवरात्रि की रात्रि बहुत खास होती है।
मान्यतानुसार इस रात्रि ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार विद्यमान होता है कि हर मनुष्य के अंदर की ऊर्जा, प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर जाने लगती है। अर्थात् कहने का तात्पर्य यह हैं कि प्रकृति स्वयं ही मनुष्य को आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद कर रही होती है। अतः महाशिवरात्रि के दिन भगवान देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव का पूजन-आराधना करने के लिए व्यक्ति को एकदम सीधे बैठना पड़ता है, जिससे रीड की हड्डी मजबूत होती है तथा वह व्यक्ति जो सोचता हैं वो पा सकता है, यानी इस समयावधि में आप सुपर नेचर पावर का अहसास महसूस करते हैं।
अतः महाशिवरात्रि पर्व की विशेषता है कि सनातन धर्म के सभी प्रेमी इस त्योहार को मनाते हैं। महाशिवरात्रि के दिन भक्त जप, तप और व्रत रखते हैं और इस दिन भगवान के देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिवलिंग रूप के दर्शन करते हैं। इस पवित्र दिन पर देश के हर हिस्सों में शिवालयों में बेलपत्र, धतूरा, दूध, दही, शर्करा आदि से देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव जी का अभिषेक किया जाता है। देश भर में महाशिवरात्रि को एक महोत्सव के रुप में मनाया जाता है क्योंकि इस दिन देवों के देव महादेव का विवाह हुआ था।
देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव जी की साधना से जीवन में धन, धान्य, सुख, सौभाग्य, समृद्धि तथा ऐश्वर्य और आरोग्य की कमी कभी नहीं होती हैं। महाशिवरात्रि के दिन भक्ति-भाव से स्वयं एवं जगत के कल्याण के लिए भगवान भोलेनाथ की आराधना करनी चाहिए। अतः देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव ही वह ऊर्जा है, जो हर जीव के अंदर मौजूद है और इसी ऊर्जा के कारण ही हम सभी अपनी दैनिक गतिविधियां कर पाते हैं। हरि ओम,
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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