पंजाब की लोकप्रियता का प्रतीक माना जाता है लोहड़ी पर्व को . . .

जानिए क्यों मनाया जाता है जनवरी माह में लोहड़ी के पर्व को . . .
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लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है। यह मकर संक्रान्ति के एक दिन पहले मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति की पूर्वसंध्या पर इस त्यौहार का उल्लास रहता है। आम तौर पर इस पर्व की रात्रि में किसी खुले स्थान में परिवार एवं आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बनाकर बैठते हैं तथा इस समय रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि खाकर पर्व मनाते हैं।
लोहड़ी पंजाबियों का प्रमुख त्योहार है, जो सर्दियों के मौसम में मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में धूमधाम से मनाया जाता है। लोहड़ी का त्योहार मुख्य रूप से रबी की फसल की कटाई के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह त्योहार आग के चारों ओर नाचते-गाते हुए मनाया जाता है। लोहड़ी के दिन लोग अलाव जलाते हैं और उसके चारों ओर नाचते-गाते हैं। लोग अलाव में मूंगफली, रेवड़ी, गजक, पॉपकॉर्न आदि डालते हैं।
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी, गुरूनानक देव जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः, जय गुरूनानक देव लिखना न भूलिए।
लोहड़ी का त्योहार मुख्य रूप से सिख समुदाय द्वारा मनाया जाता है, लेकिन अन्य समुदायों के लोग भी इस त्योहार को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। लोहड़ी का त्योहार मुख्य रूप से 13 जनवरी को मनाया जाता है, लेकिन कई जगहों पर यह त्योहार 14 जनवरी को भी मनाया जाता है। लोहड़ी के दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं। लोग एक-दूसरे को लोहड़ी की शुभकामनाएं देने के लिए गीत गाते हैं और नृत्य करते हैं।
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लोहड़ी पौष के अंतिम दिन, सूर्यास्त के बाद माघ संक्रांति से पहली रात को यह पर्व मनाया जाता है। यह प्रायः 12 या 13 जनवरी को पड़ता है। यह मुख्यतः पंजाब का पर्व है, यह द्योतार्थक एक्रॉस्टिक शब्द लोहड़ी की पूजा के समय व्यवहृत होने वाली वस्तुओं के द्योतक वर्णों का समुच्चय जान पड़ता है, जिसमें ल को लकड़ी, ओह अर्थात गोहा या सूखे उपले जिन्हें कण्डे भी कहा जाता है, एवं ड़ी जिसे रेवड़ी कहा जाता है से मिलकर लोहड़ी के प्रतीक हैं। श्वतुर्यज्ञ का अनुष्ठान मकर संक्रांति पर होता था, संभवतः लोहड़ी उसी का अवशेष है। पूस-माघ की कड़कड़ाती सर्दी से बचने के लिए आग भी सहायक सिद्ध होती है, यही व्यावहारिक आवश्यकता लोहड़ी को मौसमी पर्व का स्थान देती है। पूर्ण परमात्मा की सद्द भक्ति ही सुख दायक है।
लोहड़ी से संबद्ध परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि प्रागैतिहासिक गाथाएँ भी इससे जुड़ गई हैं। दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है। इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को माँ के घर से त्योहार वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फलादि भेजा जाता है। यज्ञ के समय अपने जामाता शिव का भाग न निकालने का दक्ष प्रजापति का प्रायश्चित्त ही इसमें दिखाई पड़ता है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में खिचड़वार और दक्षिण भारत के पोंगल पर भी, जो लोहड़ी के समीप ही मनाए जाते हैं-बेटियों को भेंट जाती है।
लोहड़ी से 20 से 25 दिन पहले ही बालक एवं बालिकाएँ लोहड़ी के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं। संचित सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है। मुहल्ले या गाँव भर के लोग अग्नि के चारों ओर आसन जमा लेते हैं। घर और व्यवसाय के कामकाज से निपटकर प्रत्येक परिवार अग्नि की परिक्रमा करता है। रेवड़ी और कहीं कहीं मक्की के भुने दाने अग्नि की भेंट किए जाते हैं तथा ये ही चीजें प्रसाद के रूप में सभी उपस्थित लोगों को बाँटी जाती हैं। घर लौटते समय लोहड़ी में से दो चार दहकते कोयले, प्रसाद के रूप में, घर पर लाने की प्रथा भी है।
जिन परिवारों में लड़के का विवाह होता है अथवा जिन्हें पुत्र प्राप्ति होती है, उनसे पैसे लेकर मुहल्ले या गाँव भर में बच्चे ही बराबर बराबर रेवड़ी बाँटते हैं। लोहड़ी के दिन या उससे दो चार दिन पूर्व बालक बालिकाएँ बाजारों में दुकानदारों तथा पथिकों से मोहमाया या महामाई जो लोहड़ी का ही दूसरा नाम है, के पैसे माँगते हैं, इनसे लकड़ी एवं रेवड़ी खरीदकर सामूहिक लोहड़ी में प्रयुक्त करते हैं। शहरों के शरारती लड़के दूसरे मुहल्लों में जाकर लोहड़ी से जलती हुई लकड़ी उठाकर अपने मुहल्ले की लोहड़ी में डाल देते हैं। यह लोहड़ी व्याहना कहलाता है। कई बार छीना झपटी में सिर फुटौवल भी हो जाती है। मँहगाई के कारण पर्याप्त लकड़ी और उपलों के अभाव में दुकानों के बाहर पड़ी लकड़ी की चीजें उठाकर जला देने की शरारतें भी चल पड़ी हैं।
लोहड़ी का त्यौहार पंजाबियों तथा हरयानी लोगो का प्रमुख त्यौहार माना जाता है। यह लोहड़ी का त्यौहार पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू काश्मीर और हिमांचल में धूम धाम तथा हर्षाेलाससे मनाया जाता हैं। यह त्यौहार मकर संक्राति से एक दिन पहले 13 जनवरी को हर वर्ष मनाया जाता हैं।
लोहड़ी का त्योहार मुख्य रूप से घरों में मनाया जाता है, लेकिन लोग सार्वजनिक स्थानों पर भी लोहड़ी का त्योहार मनाते हैं। लोहड़ी के दिन लोग अपने घरों के सामने अलाव जलाते हैं और उसके चारों ओर नाचते-गाते हैं। लोग अलाव में मूंगफली, रेवड़ी, गजक, पॉपकॉर्न आदि डालते हैं। लोग अलाव के चारों ओर नाचते-गाते हुए भंगड़ा और गिद्दा करते हैं। लोहड़ी के दिन लोग एक-दूसरे को लोहड़ी की शुभकामनाएं देने के लिए गीत गाते हैं और नृत्य करते हैं।
लोहड़ी का त्योहार मुख्य रूप से खुशी और उल्लास का त्योहार है। इस त्योहार पर लोग एक-दूसरे से मिलते हैं और गले लगते हैं। लोग एक-दूसरे को लोहड़ी की शुभकामनाएं देते हैं और खुशियां बांटते हैं। लोहड़ी का त्योहार मुख्य रूप से परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर मनाया जाता है। लोग लोहड़ी के दिन अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर खाना खाते हैं और बातचीत करते हैं।
लोहड़ी का त्योहार मुख्य रूप से सर्दियों के मौसम में मनाया जाता है। इस त्योहार पर लोग अलाव के पास बैठकर गर्म होते हैं। लोग अलाव के पास बैठकर गीत गाते हैं और नृत्य करते हैं। लोग अलाव के पास बैठकर एक-दूसरे से बातचीत करते हैं। लोहड़ी का त्योहार मुख्य रूप से सर्दियों के मौसम में मनाया जाता है, इसलिए इस त्योहार पर लोग गर्म कपड़े पहनते हैं।
लोहड़ी का त्योहार मुख्य रूप से पंजाब की संस्कृति का प्रतीक है। इस त्योहार पर लोग पंजाबी संस्कृति को जीवित रखते हैं। लोहड़ी का त्योहार मुख्य रूप से पंजाब की पहचान है। इस त्योहार पर लोग पंजाबी संस्कृति को दुनिया भर में फैलाते हैं।
लोहड़ी का त्यौहार और दुल्ला भाटी की कहानी जानिए
लोहड़ी को दुल्ला भाटी की एक कहानी से भी जोड़ा जाता हैं। लोहड़ी की सभी गानों को दुल्ला भाटी से ही जुड़ा तथा यह भी कह सकते हैं कि लोहड़ी के गानों का केंद्र बिंदु दुल्ला भाटी को ही बनाया जाता हैं। दुल्ला भाटी मुगल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था। उस समय संदल बार के जगह पर लड़कियों को गुलामी के लिए बल पूर्वक अमीर लोगों को बेच जाता था जिसे दुल्ला भाटी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न की मुक्त ही करवाया बल्कि उनकी शादी हिन्दू लडको से करवाई और उनकी शादी की सभी व्यवस्था भी करवाई। दुल्ला भाटी एक विद्रोही था और जिसकी वंशावली भाटी थी। उसके पूर्वज भाटी शासक थे जो की संदल बार में था अब संदल बार पाकिस्तान में स्थित है। वह सभी पंजाबियों का नायक था। हरि ओम,
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी, गुरूनानक देव जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः, जय गुरूनानक देव लिखना न भूलिए।
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आशीष कौशल

आशीष कौशल का नाम महाराष्ट्र के विदर्भ में जाना पहचाना है. पत्रकारिता के क्षेत्र में लगभग 30 वर्षों से ज्यादा समय से सक्रिय आशीष कौशल वर्तमान में समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के नागपुर ब्यूरो के रूप में कार्यरत हैं . समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया देश की पहली डिजीटल न्यूज एजेंसी है. इसका शुभारंभ 18 दिसंबर 2008 को किया गया था. समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया में देश विदेश, स्थानीय, व्यापार, स्वास्थ्य आदि की खबरों के साथ ही साथ धार्मिक, राशिफल, मौसम के अपडेट, पंचाग आदि का प्रसारण प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है. इसके वीडियो सेक्शन में भी खबरों का प्रसारण किया जाता है. यह पहली ऐसी डिजीटल न्यूज एजेंसी है, जिसका सर्वाधिकार असुरक्षित है, अर्थात आप इसमें प्रसारित सामग्री का उपयोग कर सकते हैं. अगर आप समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को खबरें भेजना चाहते हैं तो व्हाट्सएप नंबर 9425011234 या ईमेल samacharagency@gmail.com पर खबरें भेज सकते हैं. खबरें अगर प्रसारण योग्य होंगी तो उन्हें स्थान अवश्य दिया जाएगा.