बेदर्द औलाद : करोड़ों का नाथ, अलविदा अनाथ

(हेमेन्द्र क्षीरसागर)

अनाथालय में अधिकांश संपन्न जनों के जन्मदाता क्यों रहते आज तलक समझ से परे है? वीभत्स उनके समर्पण को औलादों को तर्पण भी मुनासिब ना होना मानवता के लिए शर्मसार है। अफसोस, उत्तरप्रदेशवाराणसी के एक प्रसिद्ध साहित्यकार, श्रीनाथ खंडेलवाल का जीवन किसी उपन्यास की करुण कहानी जैसा बन गया। 400 से अधिक किताबें लिखने वाले और 80 करोड़ की संपत्ति के नाथ खंडेलवाल का 28 दिसंबर 2024 को अंतिम सांस लेकर अलविदा अनाथ हुए। यह दुर्भाग्य जनक, जिन्होंने अपनी लेखनी से हजारों दिलों को छुआ। उन महान साहित्यकार का जीवन उनके ही बेदर्द औलाद  की बेरुखी के कारण वृद्धाश्रम में खत्म हुआ। श्रीनाथ खंडेलवाल ने अपनी लेखनी से भारतीय साहित्य को समृद्ध किया।

श्रृंखला में उन्होंने शिव पुराण और मत्स्य पुराण जैसे अनमोल ग्रंथों का हिंदी अनुवाद किया। उनकी लिखी 3000 पन्नों की मत्स्य पुराण की रचना आज भी विद्वानों के बीच चर्चित है। उन्होंने न केवल धार्मिक ग्रंथों पर काम किया बल्कि आधुनिक साहित्य और इतिहास पर भी कई किताबें लिखीं। उनकी पुस्तकें हिंदी, संस्कृत, असमिया और बांग्ला जैसी भाषाओं में उपलब्ध हैं। जीवन के अंतिम दिनों में वे नरसिंह पुराण का अनुवाद पूरा करना चाहते थे, लेकिन उनकी यह अंतिम इच्छा अधूरी रह गई। यही नहीं उन्होंने अपने जिस बेटे-बेटी पर अपनी जिंदगी न्योछावर कर दी, उन्होंने ही उन्हें घर से निकाल दिया। गजब है जिस पिता ने अपनी औलादों के खातिर कितने जतन-यतन किये, उसे ही यातना मुकम्मल हुईं।

बेबसी, जिसके बाद से वो काशी कुष्ठ सेवा संघ के वृद्धाश्रम में रह रहे थे। कुछ महीने पहले उन्होंने अपनी दर्द भरी दास्तान साझा की थी। उन्होंने कहा था, मैंने अपनी पूरी जिंदगी अपनी औलाद के लिए लगाई। अब वे मेरे लिए अजनबी बन गए हैं। मेरे पास सब कुछ था, लेकिन आज मैं अकेला हूँ। विडंबना देखिए, जिनके शब्दों ने समाज को दिशा दी। उनके ही बच्चे उन्हें अपने घर में जगह नहीं दे सके। उनका बेटा एक व्यवसायी है और बेटी सुप्रीम कोर्ट में वकील, लेकिन उन्हों ने अपने पिता से मुँह मोड़ लिया।

अंतिम समय, जब श्रीनाथ खंडेलवाल हालत बिगड़ी, तो अस्पताल से परिजनों को सूचित किया गया। लेकिन बेटा बाहर होने का बहाना बनाकर नहीं आया, और बेटी ने फोन तक नहीं उठाया। तब उन्होंने औलाद रहते दुनिया को अनाथ बनकर अलविदा कहा। आखिरकार सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उनकी जिम्मेदारी ली। उनके शव का मणिकर्णिका घाट पर विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया। गमगीन, समाजिक जनों ने कहा, काश, दिवंगत की संतान ने यह देखा होता कि एक समय जो उनके लिए पहाड़ सा खड़ा था, उसे हमने कंधों पर उठाया। व्यथा, मां-बाप जैसे खून के रिश्तों को तार-तार करने घटित घटनाएं विचलित करती है। यथा पंच परिवर्तन के विचार कुटुम्ब प्रबोधन की ओर आगे बढ़ना होगा, तब ही पारिवारिक, सामाजिक और नाते-रिश्तो की मानवीय संवेदना क़ायम रहेंगी।

वस्तुत: श्रीनाथ खंडेलवाल की रचनाएं आज भी हमें प्रेरणा देती हैं। उनका जीवन हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि, आखिर क्यों समाज में माता-पिता को उनके ही बच्चों के द्वारा इस तरह त्याग दिया जाता है। लेकिन उनकी दर्दभरी कहानी हरदिल को झकझोरने के लिए काफी है। ऐसे में हर किसी की जुबान पर अब यही सवाल है- क्या ऐसी संतानों को संपत्ति के लिए अपने माता-पिता को त्यागने का अधिकार है? उनकी मृत्यु ने समाज के सामने कई सवाल खड़े कर दिए। वह धन, वैभव से पूरी तरह संपन्न होते हुए भी उन्हें अपने बेटा-बेटी के हाथों मुखाग्नि नसीब नहीं हुई। एक पुत्र-पुत्री के लिए इससे बड़ी बदनसीबी क्या होगी?

(साई फीचर्स)

AKHILESH DEUBY

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