जिले में बनाये गये यात्री प्रतीक्षालयों की ओर मैं प्रशासन का ध्यान इस स्तंभ के माध्यम से दिलाना चाहता हूँ कि इन स्थानों का उपयोग शराबखोरी के लिये ज्यादा किया जा रहा है जिसके कारण खास तौर पर रात के समय इन प्रतीक्षालयों का उपयोग यात्री गण नहीं कर पाते हैं।
ध्यान देने वाली बात यह है कि लगभग-लगभग तमाम प्रतीक्षालयों में प्रकाश की उचित व्यवस्था नहीं की गयी है जिसके कारण ये रात के समय अंधेरे में ही डूबे रहते हैं। इन स्थानों पर अंधेरा होने के कारण मदिराप्रेमी इन्हें गोपनीय अहातोें के रूप में इस्तेमाल करते हैं। प्रमुख मार्ग पर स्थित होने के बाद भी पुलिस का ध्यान इन प्रतीक्षालयों में होने वाली गतिविधियों की ओर नहीं जा पाता है जो आश्चर्य जनक ही कहा जायेगा।
नयी आबकारी नीति के तहत जिले में अहाते बंद ही हो गये हैं। ऐसे में प्रशासन ने इस बात का ध्यान न तो रखा है और न दे रहा है कि शराबी, शराब खरीदकर उसे कहाँ पी रहे होंगे। सिवनी शहर में तो खुलेआम मदिरा गटकते हुए लोगों को देखा जा सकता है और यही हाल ग्रामीण क्षेत्रों में जाने पर भी दिखायी देता है। दूरस्थ अंचलों की स्थिति तो समझी जा सकती है लेकिन शहर में जिला मुख्यालय होने के बाद भी आबकारी विभाग या पुलिस के द्वारा, खुले में शराब गटकने वालों के विरूद्ध कोई कार्यवाही न किये जाने के कारण ऐसे मदिराप्रेमियों के हौसले बुलंदी पर पहुँच चुके हैं।
स्थिति यह है कि यदि कोई अकेला पुलिस कर्मी अपने कर्त्तव्य को निभाते हुए, खुले में शराब पीने वालों को ऐसा करने से मना करता है तो उसे शराब पीने वाले लोगों के द्वारा स्पष्ट तौर पर नज़रअंदाज कर दिया जाता है। इन हालातों में कोई कर्त्तव्यनिष्ठ कर्मी दोबारा किसी को खुले में शराब पीने से मना करने की पहल नहीं करता है जिसके कारण असामाजिक गतिविधियों को बढ़ावा ही मिलता दिखता है।
खुले में शराब पीने वालों से हटकर जो कुछ लोग एकांत पसंद करते हैं वे यात्री प्रतीक्षालय जैसे स्थानों का चयन करते हैं और वहाँ वे बेरोकटोक मदिरा सेवन करते हैं। यात्री प्रतीक्षालयों में प्रकाश की यदि सही तरीके से व्यवस्था कर दी जाये तो इन्हें शराबियों से बचाया जा सकता है और फिर यात्री इनका उपयोग कर पायेंगे। दरअसल इन प्रतीक्षालयों की ऊँचाई इतनी भी नहीं रखी गयी कि इनमें यदि बल्ब लगाया जाये तो उसे असामाजिक तत्व की पहुँच से दूर रखा जा सके।
प्रमुख चौक चौराहों पर बने प्रतीक्षालयों को यदि सीसीटीव्ही कैमरों की जद में रखा जाये तो इनके दुरूपयोग को काफी कुछ नियंत्रित किया जा सकता है। ग्रामीण अंचलों में जहाँ सीसीटीव्ही कैमरे नहीं लगे हैं उनके अलावा शहरी क्षेत्रों में इस तरह के प्रयास किये जाना चाहिये। वैसे यह भी कहना मुश्किल है कि जिले में जो सीसीटीव्ही कैमरे लगे हैं उनका सदुपयोग हो भी रहा है अथवा नहीं।
अ.मतीन खान

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