निष्क्रिय युवा नेत्तृत्व के कारण भविष्य की धूमिल उम्मीदें!

 

 

सिवनी जिला लगातार ही अन्य जिलों की अपेक्षा पिछड़ता सा दिख रहा है। लोग हैरान-परेशान हैं लेकिन यहाँ का ढीला ढाला नेत्तृत्व अपनी ही धुन में मगन है। जनता के सामने विकास की उम्मीद धूमिल सी पड़ती जा रही है।

नेशनल हाइवे क्रमाँक-7 (वर्तमान एन.एच.44) जो अब फोरलेन में तब्दील होता जा रहा है इस पर वर्षों बाद भी यातायात सुचारू रूप नहीं ले पाया है। सिवनी से होकर गुजरने वाला यह प्रमुख सड़क मार्ग माना जाता है लेकिन फोरलेन के इसी हिस्से में संभवतः सबसे धीरे कार्य निपटाया जा रहा है। सड़क मार्ग के अलावा यहाँ रेल मार्ग का भी विकल्प हुआ करता था लेकिन वर्तमान में वह भी कई वर्षों से बंद पड़ा हुआ है।

नैरोगेज़ को ब्रॉडगेज़ में तब्दील करने के लिये इस मार्ग को बंद किया गया है लेकिन यह क्या, इसका निर्माण कार्य भी सिवनी के खण्ड में ही सबसे धीरे संपादित किया जा रहा है और जनप्रतिनिधियों के द्वारा इस संबंध में ठोस प्रयास नहीं किये जा रहे हैं। उन्हें सब कुछ सामान्य ही लग रहा है। ऐसा लगता है जैसे सिवनी के जनप्रतिनिधियों में या तो ऊर्जा की कमी है और या फिर वे अपनी ऊर्जा का सही उपयोग नहीं कर पा रहे हैं जिसके चलते लोगों को आवश्यक सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं।

सिवनी के कई जनप्रतिनिधि कहने को तो युवा हैं लेकिन युवाओं में जिस तरह का जोश जनसेवा के प्रति होना चाहिये वह इनमें दूर-दूर तक दिखायी नहीं देता है। इस स्थिति के कारण यह कहा जा सकता है कि सिवनी के भविष्य की उम्मीदें भी आसपास के अन्य जिलों की अपेक्षा ज्यादा सुनहरी नहीं हैं।

इन जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता के कारण ऐसा लगता है जैसे सिवनी जिला ठेकेदारों के लिये स्वर्ग बन गया हो। यहाँ किसी भी ठेकेदार के द्वारा मनमाने तरीके से ही कार्य किया जाता है और उस विषय में कोई आवाज उठाता भी नहीं दिखता है। सिवनी का कटंगी नाका मार्ग इसका बेहतर उदाहरण माना जा सकता है जो कई महीनों से बंद पड़ा हुआ है और निकट भविष्य में इसके आरंभ होने की कोई उम्मीद भी नहीं दिख रही है लेकिन जनप्रतिनिधि मौन ही बैठे हुए हैं।

यह मार्ग बंद होने के कारण लोग डायवर्टेड मार्ग से आना-जाना कर रहे हैं जो काफी मुश्किलों भरा मार्ग है। चूँकि लंबे समय तक इसका उपयोग किया जाना है इसलिये डायवर्टेड मार्ग को ही यदि ठेकेदार के द्वारा उमदा बनवा दिया जाता तो शायद किसी को कोई शिकायत भी नहीं रहती लेकिन ऐसा हो नहीं सका।

सुरेश ब्रम्हें